Politics What's on Nitish's mind

*अवधेश कुमार*

पिछले कुछ महीनों में शायद ही ऐसा कोई सप्ताह होगा जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को आगामी लोक सभा चुनाव में पराजित करने संबंधी वक्तव्य न दिया हो।बिहार ही नहीं देश भर में रहने वाले बिहार के निवासियों से आप बात करिए तो वे यही कहेंगे कि नीतीश को राजनीति करनी है करें लेकिन बिहार की जनता ने उनको भाजपा के साथ मुख्यमंत्री बनाया उसकी जिम्मेवारी का पालन जरूर करें।

तो क्या लोगों की प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि नीतीश की प्राथमिकता में शासन-प्रशासन से ज्यादा भाजपा विरोधी राजनीति है? ऐसा है तो इसके परिणाम क्या आ रहे हैं? बिहार काफी समय से कानून व्यवस्था के मोर्चे पर कमजोर होते जाने के साथ शिक्षा व्यवस्था के पतन, विकास के कार्यों की मंद गति आदि से बुरी तरह ग्रस्त है। किसी सरकार का मुख्य फोकस होना चाहिए कि कैसे बिहार में कानून व्यवस्था पटरी पर आए, अर्थव्यवस्था संभले, शिक्षा तंत्र अपनी स्वाभाविक भूमिका में लौटे।

आप प्रदेश का कोई भी समाचारपत्र उठा लीजिए, वेबसाइट देख लीजिए सरेआम गोली चलने, मारपीट, हत्या आदि की खबरें आपको विचलित करेंगी। स्वयं शिक्षक और शिक्षा तंत्र में शीर्ष पर बैठे लोग आप को अपनी ही व्यवस्था से शिकायत करते मिल जाएंगे। परीक्षाएं नकल और कदाचार की पर्याय हैं। विविद्यालयों की दशा कोई भी जाकर देख सकता है। विज्ञान के किसी शिक्षक से बात करिए और वो ईमानदार हैं तो बताएंगे कि पहले कम से कम प्रैक्टिकल में उनके पास कुछ लोग पैरवी करने आ जाते थे ताकि परीक्षार्थी को अच्छे अंक मिल सकें। अब उसके लिए भी नहीं आते क्योंकि हमें सबको पास कर देना है।

लोग अपने बच्चों को निजी संस्थानों या कोचिंग में पढ़ाने के लिए विवश हैं। यही स्थिति कानून-व्यवस्था के मामले में भी है। भय पूरे माहौल में है कि कहीं 90 के दशक वाली स्थिति पैदा न हो जाए। आप वहां निर्माण का काम करने वाले या छोटे-मोटे व्यापार करने वालों के बीच सर्वे कर लीजिए। आपको ऐसे लोग मिल जाएंगे जो बताएंगे कि उन्हें काम करने के लिए दादागिरी टैक्स देना पड़ रहा है। धमकी-मारपीट से लेकर कई तरह से परेशानियां सामने आती हैं। ज्यादातर लोग पुलिस में शिकायत करने से बचते हैं।

प्रशासनिक भ्रष्टाचार, अनदेखी और स्थानीय-प्रादेशिक राजनीतिक संरक्षण के कारण शराब और मादक द्रव्यों का भयानक तंत्र पूरे प्रदेश में विकसित है। इन अस्वीकार्य परिस्थितियों के रहते कोई कैसे मान ले कि वर्तमान सरकार की प्राथमिकता में राज्य का विकास और सुशासन है? क्या कोई बता सकता है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने इस उद्देश्य के लिए कोई बड़ी नियोजित बैठक की है कि बिहार को हमें सामाजिक-आर्थिक विकास में अन्य राज्यों से आगे ले जाना है? नीतीश और तेजस्वी पड़ोस के उत्तर प्रदेश को देखें।

योगी आदित्यनाथ के भगवा को लेकर राजनीतिक टिप्पणी आप करिए, लेकिन देखें कि आर्थिक-सामाजिक-विकास, सांस्कृतिक संरक्षण तथा कानून-व्यवस्था के मोच्रे पर उत्तर प्रदेश किस तरह देश के शीर्ष राज्यों की कतार में खड़ा हो गया है? अभी लखनऊ में 2 दिनों के निवेशक सम्मेलन का वह दृश्य उत्तर प्रदेश में पहले दुर्लभ था। हम नहीं कहते कि जितने एमओयू हस्ताक्षरित हुए हैं, सारे धरती पर उतर ही जाएंगे लेकिन देश और बाहर के पूंजी निवेशक, कारोबारी, उद्योगपति उप्र में पूंजी लगाने तथा काम करने की घोषणा करते हैं, तो यह 2017 के पहले की स्थिति को देखते हुए सामान्य तस्वीर नहीं है।

यही नहीं, योगी आदित्यनाथ के मुंबई दौरे में फिल्मी दुनिया से जुड़े लोग भी उनकी बैठकों में शामिल होकर उम्मीद करते हैं कि भविष्य में उप्र फिल्म निर्माण का बड़ा केंद्र होगा। कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर तो बहुत कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। हालांकि कानपुर और बांदा जैसी घटनाएं निश्चित रूप से परेशान करती हैं किंतु कोई भी कह सकता है कि यह उप्र के लिए सामान्य स्थिति नहीं, बल्कि अपवाद है। उत्तर प्रदेश में तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की संख्या में पिछले कुछ वर्षो में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है।

क्या बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री इससे सीख नहीं ले सकते? योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम भी राजनीति करती है, लेकिन राजनीतिक ताकत के लिए मोदी की थीम बहुत सीधी है-विकास और कानून व्यवस्था के मोर्चे पर उच्चतम स्तर पर जाने का लक्ष्य रखिए, समाज के निचले तबके तक विकास और कल्याण कार्यक्रमों को पहुंचाने, नई पीढ़ी के लिए बेहतर शिक्षा और हरसंभव रोजगार पर काम करिए, धार्मिंक-सांस्कृतिक-आध्यात्मिक महत्त्व के स्थानों का विकास करते हुए उन्हें संरक्षण दीजिए।

आपको राजनीतिक सफलता का ठोस आधार मिल जाएगा। नीतीश और तेजस्वी को भाजपा से मुकाबला करना है तो उनकी जो अच्छाइयां हैं, उन्हें अपनाने की कोशिश करें। आखिर, मोदी राष्ट्रीय क्षितिज पर आए तो उन्होंने लोगों के सामने गुजरात में अपने कार्यों को रखा जिसे मीडिया ने गुजरात मॉडल का नाम दिया।

लोग यह तो सोचेंगे कि मोदी के मुकाबले नीतीश अगर विपक्षी दलों का गठबंधन कर सरकार का स्थानापन्न करना चाहते हैं, तो विकास, कानून और व्यवस्था आदि के मुद्दे पर उनके तरकश में क्या है? अगर आपके पास लोगों को दिखाने और विश्वास दिलाने के लिए इन मामलों में सफलताएं हैं, तभी आपकी राजनीति को ताकत मिल सकती है। केवल मोदी हटाओ और विपक्षी दलों को एक करो का नारा पहले भी असफल रहा है।

कारण, इनके पास मोदी और भाजपा के समानांतर जनता को विश्वास दिलाने के लिए उपलब्धियों का ठोस आधार नहीं रहा। इसे बिहार का दुर्भाग्य कहेंगे कि जब-जब लोगों को उम्मीद बनती है तभी नेता का माथा घूम जाता है। नीतीश ने 2005 से 2010 के बीच जिस तरह काम किया उससे बिहार के साथ पूरे देश में उम्मीद बढ़ी।

भाजपा का उन्हें पूरा साथ मिला। जब से उनके अंदर राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं कुलांचे मारने लगीं, सुशासन हाशिए पर चला गया। लगता नहीं कि नीतीश शांत मन से बैठकर इस दिशा में विचार करने के लिए किंचित भी तैयार हैं।

उनके साथ के लोगों को तो लगता ही नहीं कि शासन-प्रशासन से कोई सरोकार हो। स्वाभाविक ही समय आने पर बिहार के लोग अपनी प्रतिक्रिया देंगे।

**********************************

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *