गरीब और मध्यम वर्ग के लोग मोदी सरकार की ‘आर्थिक महामारी के शिकार – राहुल

नईदिल्ली,  (आरएनएस)। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को आरोप लगाया कि कोरोना वायरस महामारी पूरे देश ने झेली, लेकिन गरीब एवं मध्य वर्ग के लोग नरेंद्र मोदी सरकार की ‘आर्थिक महामारी के भी शिकार हुए। उन्होंने एक खबर हवाला देते हुए ट्वीट किया, ”कोविड महामारी पूरे देश ने झेली, लेकिन गऱीब वर्ग व मध्यम वर्ग मोदी सरकार की ‘आर्थिक महामारी के भी शिकार हैं। अमीर-गऱीब के बीच बढ़ती ये खाई खोदने का श्रेय केंद्र सरकार को जाता है।
राहुल गांधी ने जो खबर साझा की, उसमें एक ताजा अध्ययन के हवाला से कहा गया है कि गत पांच वर्षों में सबसे गरीब 20 प्रतिशत भारतीय परिवारों की सालाना घरेलू आय करीब 53 प्रतिशत कम हो गई। इसी तरह निम्न मध्यम वर्ग के 20 प्रतिशत लोगों की घरेलू आय भी 32 प्रतिशत घट गई। इस खबर के अनुसार, गत् 5 वर्षों के दौरान देश के सबसे अमीर 20 प्रतिशत लोगों की आय 39 प्रतिशत बढ़ गई। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी इस खबर को लेकर ट्वीट किया, ”मोदी सरकार सिफऱ् अमीरों के लिए है! यह अब सामने है – गरीब और गरीब – ‘हम दो हमारे दो की चांदी। पिछले 5 साल में – सबसे गरीब लोगों की आय 53 प्रतिशत कम, निम्न मध्यम वर्ग की आय 32 प्रतिशत कम, अमीरों की आय 39 प्रतिशत बढ़ी। गरीब-मध्यम वर्ग पर मार, मोदी सरकार है अमीरों की सरकार!

डायना पेंटी जल्द करण की धर्मा प्रोडक्शंस के एक प्रोजेक्ट में आएंगी नजर

डायना पेंटी बॉलीवुड की उभरती हुई अभिनेत्री हैं। अपनी सुंदरता और ग्लैमरस लुक के कारण वह चर्चा में बनी रहती हैं। सोशल मीडिया पर भी उनकी अच्छी खासी फैन फॉलोइंग है। अब इस अभिनेत्री के करियर से जुड़ी अहम जानकारी सामने आ रही है। खबरों की मानें तो उन्होंने मशहूर फिल्ममेकर करण जौहर के साथ हाथ मिलाया है। डायना बहुत जल्द करण की धर्मा प्रोडक्शंस के एक प्रोजेक्ट में नजर आएंगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, डायना धर्मा प्रोडक्शंस के आगामी प्रोजेक्ट में अपने अभिनय का दम दिखाएंगी। सूत्र की मानें तो धर्मा प्रोडक्शंस ने एक खास प्रोजेक्ट के लिए डायना को अप्रोच किया है। मेकर्स और डायना के बीच बातचीत का दौर जारी है। रिपोर्ट की मानें तो डायना को हाल ही में मुंबई में धर्मा प्रोडक्शंस के कार्यालय में देखा गया था। इसके बाद कयास लगाए जाने लगे कि वह करण की अगली फिल्म में दिखेंगी।
डायना को धर्मा प्रोडक्शंस के ऑफिस के बाहर स्पॉट किया गया था। इस दौरान वह हमेशा की तरह बेहद ग्लैमरस अंदाज में नजर आईं। इस दौरान उन्होंने प्रशंसकों और मीडिया का भी अभिवादन जताया। हालांकि, फिलहाल आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। वह अपनी आगामी फिल्म सैल्यूट में दुलकर सलमान के साथ मलयालम सिनेमा में डेब्यू करने वाली हैं। दुलकर के साथ स्क्रीन शेयर करना भी डायना के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
कुणाल देशमुख के निर्देशन में बनी फिल्म शिद्दत में भी डायना नजर आई हैं। यह फिल्म हाल ही में रिलीज हुई है। इस फिल्म में उनके साथ मोहिता रैना, राधिका मदान और सन्नी कौशल जैसे सितारे भी नजर आए हैं। डायना ने साल 2012 में फिल्म कॉकटेल के साथ बॉलीवुड में अपना पदापर्ण किया था। इस फिल्म से उन्होंने दर्शकों का ध्यान खींचा था। फिल्म में सैफ अली खान और दीपिका पादुकोण जैसे बड़े कलाकारों ने भी अभिनय किया था।
डायना ने अपने करियर की शुरुआत मॉडलिंग से की थी। बॉलीवुड से पहले उन्होंने मॉडलिंग की दुनिया में अपना नाम कमाया। वह कई जानी मानी विज्ञापन कंपनियों की ब्रांड अंबेसडर भी रह चुकी हैं। (एजेंसी)

ऑनलाइन लर्निंग के दौरान बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए अपनाएं ये तरीके

जहां कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण कई ऑफिस ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम दे रखा है। वहीं, कई स्कूल ने भी ऑनलाइन लर्निंग को प्रथामिकता दी हुई है। अगर आपका बच्चा भी ऑनलाइन लर्निंग से जुड़ा है तो आपको उसके माहौल से लेकर खान-पान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। आइए आज हम आपको कुछ ऐसे तरीके बताते हैं, जिन्हें अपनाकर आप अपने बच्चे को ऑनलाइन लर्निंग के दौरान स्वस्थ रख सकते हैं।

यह स्टोरी क्यो महत्वपूर्ण है?

कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के कारण स्कूल बंद रहने से छात्रों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित हुआ है। इसका मुख्य कारण उनके अपने मित्रों से न मिलना, शारीरिक गतिविधि में कमी, खराब शारीरिक पॉश्चर और काफी देर तक मॉर्डन गैजेट्स में लगे रहना आदि है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चे का ऑनलाइन लर्निंग के दौरान अतिरिक्त ध्यान रखें। इसके लिए आप नीचे दी गई टिप्स अपना सकते हैं।

एक आरामदायक स्टडी स्पेस करें तैयार

अगर आप यह चाहते हैं कि आपके बच्चे का ध्यान सिर्फ पढ़ाई में लगे तो घर पर एक अच्छा स्टडी स्पेस तैयार करें। इसके लिए कमरे में एक टेबल और कुर्सी रखें। वहीं, टेबल पर रखे जाने वाले लैपटॉप की स्क्रीन ब्राइटनैस और कंट्रास्ट को ऐसे सेट करें, जिससे बच्चे की आंखें सुरक्षित रहें। वहीं, लैपटॉप को इस तरह ऊंचा रखे, जिससे बच्चे का सिर और लैपटॉप समानांतर हो और उसकी अपनी गर्दन को झुकाना न पढ़े।

स्वास्थ्यवर्धक खान-पान के दें विकल्प

बात चाहें ऑनलाइन लर्निंग की हो या फिर खेलकूद की, बच्चे के खान-पान पर अतिरिक्त ध्यान दें। बेहतर होगा कि आप बच्चे को मीठे, प्रोस्टेड और पैक फूड के साथ-साथ कार्बोनेटेड जैसी चीजें खाने-पीने से रोकें क्योंकि ये उसके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए जहां तक संभव हो हेल्दी स्नैकिंग पर जोर दें और बच्चे की स्टडी टेबल पर पानी, मेवे और फल आदि रखें ताकि जब उसे भूख लगे तो वह अपेक्षाकृत एक हेल्दी विकल्प को चुनें।

छोटे-छोटे ब्रेक लेने को कहें

अगर आपका बच्चा लंबे समय तक लैपटॉप के सामने बैठा रहेगा तो हो सकता है कि इसके कारण उसे सिर में दर्द, आंखों में दर्द या फिर गर्दन में दर्द का सामना करना पड़ जाए। वहीं, इससे बच्चे के दिमाग पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और वह खुद को बहुत थका हुआ महसूस कर सकता है। इससे बचने के लिए आप बच्चे को ऑनलाइन लर्निंग या एक्टिविटीज के दौरान छोटे-छोटे ब्रेक लेने को कहें।

नियमित तौर पर करवाएं कुछ स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज

अगर आप यह नहीं चाहते हैं कि ऑनलाइन लर्निंग के दौरान आपका बच्चा कई तरह के शारीरिक दर्द से बचा रहें तो उसे रोजाना स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज कराना सुनिश्चित करें। स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज के लिए बच्चे को अपना सिर पूरी तरह से दाई ओर झुकाने को कहें, फिर पूरी तरह बाई ओर झुकवाएं। इस दौरान थोड़ा दर्द हो सकता है, इसलिए इस एक्सरसाइज को आराम से करवाएं। इस एक्सरसाइज को ज्यादा से ज्यादा 20 बार करवाएं।  (एजेंसी )

दल बदल के मौसम में आहत लोकतंत्र

लक्ष्मीकांता चावला –
लगभग चार दशक पहले तक पूरे देश में चुनाव एक ही समय होते थे। विधानसभा और लोकसभा के लिए भारत की जनता वोट करती थी। अपने प्रतिनिधि चुनती थी। लोकतंत्र के मंदिर में अपने-अपने प्रतिनिधियों को भेजने के लिए मानो संगम का मेला ही लगता था। धीरे-धीरे परिस्थितिवश देश के अनेक भागों में चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे, जिसका यह परिणाम हुआ कि अपना देश हर वर्ष ही चुनावी संग्राम में जूझता है। जहां कहीं पहले यह आदर्श वाक्य था कि साध्य के लिए साधन भी शुद्ध चाहिए। अब साधनों की शुचिता तो अतीत की बात हो गई। साध्य अर्थात चुनावों में सफलता, सत्ता प्राप्ति एकमात्र लक्ष्य हो गया। उसके लिए साम-दाम-दंड-भेद या इससे भी कुछ आगे है तो इसका प्रयोग किया जा रहा है।
जब से 2022 में पांचों विधानसभा के चुनावों की घोषणा हुई तभी से राजनेताओं ने एक तो आश्वासनों की बौछार की। मुफ्तखोरी बनी नहीं रहेगी, अपितु बढ़ेगी इसका भरोसा दिया। जनता को रोजगार, उद्योग-धंधे, चिकित्सा शिक्षा के स्वावलंबन की कोई चर्चा नहीं की और इसके साथ ही सत्ता की दौड़ में लगे ये राजनेता दल बदलने के सारे पिछले रिकार्ड तोड़ रहे हैं। हो सकता है कि चुनावों के नामांकन की तिथि तक सैकड़ों और तथाकथित नेता दल बदल लेंगे। इनको तथाकथित इसलिए कहा है क्योंकि ये नेतृत्व नहीं कर रहे, अपितु अपनी-अपनी सत्ता या परिवार की सत्ता सुरक्षित रखने के लिए ही काम कर रहे हैं।
कभी हरियाणा से निकला— आया-राम गया-राम का व्यंग्य वाक्य अब पूरे देश में वैसे ही फैल गया जैसे केरल में एक कोरोना रोगी मिलने के बाद पूरा देश कोरोना की पहली, दूसरी और अब तीसरी लहर में जकड़ा तड़प रहा है। आज का प्रश्न यह है कि समाज दल-बदलुओं को स्वीकार क्यों करता है? आमजन का यह कहना है कि राजनीतिक पार्टियां उत्तर दें, वे उन लोगों के लिए अपने दरवाजे पलक पांवड़े बिछाकर हर समय खुले क्यों रखते हैं, जो सिद्धांतहीन हैं पर सत्ता के लालच में दौड़ते हुए उनके दरवाजों पर आते हैं, फूलों का आदान-प्रदान होता है, पटे या पटके गलों में डाले जाते हैं और दल बदलू नेता इतने समभाव वाले दिखाई देते हैं कि निंदा, स्तुति, मान-अपमान से उन्हें कोई अंतर ही नहीं पड़ता। प्रश्न एक यह भी है कि जो लोग उस पार्टी के वफादार नहीं, जिससे उन्हें पहचान मिली, सम्मान मिला, राजपद प्राप्त हुए और उनकी जिंदाबाद के नारे गली-गली में लगे, ऐसे लोग दूसरी पार्टी में जाकर उनके कैसे वफादार हो जाएंगे। जो लोग सार्वजनिक सभाओं में अपनी जनता के दुख-सुख में साथी बनने की घोषणा करते रहे वे केवल अपने परिवार की विधानसभा सीट के लिए ही क्यों दल बदल जाते हैं? अपने मतदाताओं को धोखा देते हैं?
अभी तो हालत यह हो गई जो उत्तर प्रदेश ने देखा, पंजाब ने देखा, उत्तराखंड ने दिखाया कि ये याद ही नहीं रहता कि दल बदलने वाले नेता पहले किस-किस गली का चक्कर लगाकर आए हैं और वर्तमान पार्टी में आने से पहले किस पार्टी में धन-सत्ता कमा रहे थे। उत्तर प्रदेश का उदाहरण तो बड़ा अफसोसजनक है। सरकार के एक मंत्री कांग्रेस से बीएसपी में, बीएसपी से समाजवादी पार्टी में, फिर भाजपा में और भाजपा से वापस समाजवादी पार्टी में चले गए। संभवत: वहां और कोई ऐसी बड़ी पार्टी नहीं, जिसकी दलदल में वह डुबकी लगा सकें। आश्चर्य यह भी है कि दल बदलने की बीमारी का एक सीजन विशेष ही होता है। वर्षों तक एक पार्टी में सत्तासुख भोगने के बाद अचानक ही इन्हें दलितों की पीड़ा, कमजोरों के साथ हो रहा अन्याय, युवकों की बेरोजगारी का दर्द तंग करने लगता है और फिर एक नहीं बल्कि आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री और विधायक दूसरी पार्टी का झंडा और डंडा थाम लेते हैं। पंजाब में तो दो बहुत दुखद, पर रोचक दल बदल हुए। एक एमएलए भाजपा में गए। फूलों के हार पहनाए, पर अगले दिन ही वापस कांग्रेस में चले गए। अमृतसर जिले के एक कांग्रेस नेता चौबीस घंटे भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में न काट सके। वहां उन्हें जितने फूल और पटके मिले थे उतने घंटे बिताए बिना ही वे वापस कांग्रेस में आ गए। पंजाब का शायद ही ऐसा कोई शहर बचा हो जहां यह बीमारी स्वार्थी दल बदली की न फैल रही हो। उत्तराखंड का भी एक ऐसा ही उदाहरण है। उसके अनुसार अपनी पुत्रवधू के लिए जब टिकट प्राप्त नहीं कर सके तो फिर वापस कांग्रेस में चले गए। समाचार क्यों मिलता है भाजपा का पलटवार, कांग्रेस की पूर्व महिला अध्यक्षा भाजपा में आ गई। आदान-प्रदान हो रहा है। आप जानते ही हैं कि सत्तापतियों और धनपतियों को शगुन ज्यादा मिलता है। मुलायम सिंह की पुत्रवधू भी चुनाव लडऩे के लिए यूं कहिए घरेलू राजनीतिक क्लेश के कारण अब भाजपा की ध्वज वाहिका बन चुकी हैं।
अब चुनाव पूर्व दल बदलने की बात छोडि़ए, चुनावों के बाद जो शब्द राजनेताओं ने दिया हार्स ट्रेडिंग अर्थात घोड़ों की बिक्री, वह भी लोकतंत्र पर धब्बा है। दल बदल मन बदल न हो जाए। जनता यह सोचे कि जिन पर पार्टी के नेताओं को ही विश्वास नहीं उन पर जनता आखिर क्यों विश्वास करे। अभी तक तो वह चुनावी खर्च पर भी नियंत्रण नहीं कर सका। चालीस करोड़ उड़ाने वाले चालीस लाख के आंकड़े आयोग को दे देते हैं।

पीएम मोदी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को किया नमन

नईदिल्ली, (आरएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर रविवार को उन्हें नमन किया है और कहा कि देश के लिए उनके योगदान पर प्रत्येक भारतीय को गर्व है।
मोदी ने ट्वीट कर कहा, सभी देशवासियों को पराक्रम दिवस की ढेरों शुभकामनाएं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर उन्हें मेरी आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। प्रत्येक भारतीय को हमारे राष्ट्र के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान पर गर्व है।
उल्लेखनीय है कि नेताजी सुभाष चंद्रबोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में कटक में हुआ था। उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पत्नी एमिली शेंकल !

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट – 
आजादी मन्त्र के महानायक सुभाष चंद्र बोस के बारे में बहुत कम लोग जानते है नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने एमिली शेंकल से सन1937 में विवाह किया था।एमिली शेंकल ने एक ऐसे देश भारत को ससुराल के रूप में चुना जहां कभी वह “बहू” के रूप में आई ही नही, तभी तो न बहू के आगमन पर मंगल गीत गाये गये, न उनकी बेटी अनीता बोस के पैदा होने पर कोई खुशियां ही मनाई गई।
उन्हें सात साल के अपने वैवाहिक जीवन में पति सुभाष चन्द्र बोस के साथ मात्र तीन वर्ष रहने का अवसर मिला, इसके बाद नेताजी अपनी पत्नी और नन्हीं सी बेटी को छोड़कर देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष करने चले गये।जाते समय नेताजी
अपनी पत्नी से यह वायदा करके गये कि, पहले देश आजाद करा लूँ ,फिर हम साथ-साथ रहेंगे, पर अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कथित विमान दुर्घटना में नेता जी हमेशा हमेशा के लिए लापता हो गए। उस समय उनकी पत्नी एमिली शेंकल युवा थीं वह चाहती तो युरोपीय संस्कृति के अनुसार दूसरी शादी कर लेती, परन्तु उन्होंने ऐसा नही किया और बेहद कठिन दौर में अपना जीवन गुजारा।उन्होंने एक तारघर में मामूली क्लर्क की नौकरी और बेहद कम वेतन के साथ वह अपनी बेटी को पालती रही. उनका बहुत मन था भारत आने का, कि एक बार अपने पति के वतन की मिट्टी को हाथ से छू कर उसमे नेताजी को महसूस कर सकू ,लेकिन भारत को आजादी मिलने के बाद भी ऐसा हो न सका । नेताजी की पत्नी का बड़प्पन देखिये कि उन्होंने इसकी कभी किसी से शिकायत भी नहीं की और गुमनामी में ही मार्च 1996 में अपना जीवन को अलविदा कह दिया।
सुभाष चंद्र बोस ने एमिली शेंकल से प्रेम-विवाह किया था। सन 1934 में सुभाष चंद्र बोस अपना इलाज कराने के लिए ऑस्ट्रिया गए थे ,इसी दौरान उन्हें अपनी जीवनी लिखने का विचार आया, जिसके लिए उन्हें एक टाइपिस्ट की आवश्यकता महसूस हुई ।
तब ऑस्ट्रिया के एक मित्र ने उनकी मुलाकात एमिली शेंकल से करवाई, जो धीरे-धीरे पहले उनकी मित्र बनीं और बाद में प्रेमिका और फिर पत्नी। दोनों ने सन 1937 में शादी कर ली। 29 नवंबर सन1942 को विएना में एमिली ने एक बेटी को जन्म दिया। सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी बेटी का नाम अनीता बोस रखा था।
शेंकल ने कभी भी बोस की पत्नी होने की पहचान उजागर नहीं की और वह अपनी बेटी को लेकर आस्ट्रिया में रहती थीं औऱ आजीविका के लिए एक तारघर में काम करती थीं। सुभाष की बेटी अनीता बोस ने काफी समय बाद मीडिया से कहा था कि उनकी मां को भी उनके पिता की मौत की खबर अन्य लोगों की तरह रेडियो समाचार से मिली थी।
एक दिलचस्प बात यह है कि उनकी शादी हिंदू परंपरा से हुई थी।लेकिन बोस और एमिली की शादी का पंजीयन नहीं हो सका था, क्योंकि जर्मन सरकार ने यह आपत्ति कर दी थी कि दोनों ने चूंकि हिंदू परंपरा से शादी की है,इसलिए इनका पंजीयन नही हो सकता। बोस की पत्नी के अतीत में झांके तो पता चलता है कि एमिली अपने परिवार के लिए कमाने वाली एक मात्र सदस्य थीं। वह एक जिम्मेदार बेटी भी थीं, इसीलिए शादी के बाद बूढ़ी मां को छोड़कर भारत आने को राजी नहीं हुईं। एक बार विएना में सुभाष चंद्र बोस के भाई सरत चंद्र बोस, उनकी पत्नी और बच्चों से वह मिली थीं और भावुक हो गई थीं। बोस और एमिली की शादीशुदा जिदंगी 9 साल रही। इसमें से दोनों केवल 3 साल ही साथ रहे। 18 अगस्त 1945 को ताईवान में विमान दुर्घटना में बोस का निधन हो गया था। मार्च 1996 में 85 वर्ष की उम्र में एमिली का भी निधन हो गया।
उनकी बेटी अनिता बोस एक जर्मन अर्थशास्त्री हैं। वे ऑग्सबर्ग यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर रही और इस समय अपने पति प्रो. मार्टिन फाफ के साथ उनकी जर्मन सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी में सक्रिय रहती हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती के अवसर पर उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया

रांची, देश आज स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती मना रहा है।  मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने इस अवसर पर उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित कर कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में वीर सेनानी सुभाष चंद्र बोस जी ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था ।ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग में उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व और अदम्य पराक्रम का परिचय देते हुए देशवासियों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी।  उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन और “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा ” का ओजस्वी नारा देकर देशवाशियों में अंग्रजों के खिलाफ संघर्ष में शामिल होने के लिए जोश भर दिया था । उन्होंने आजादी की लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाया।  आज राष्ट्र  के प्रति उनकी सेवा और समर्पण को याद और सम्मान करने के साथ उनके आदर्शों तथा विचारों को आत्मसात करने का दिन है। महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस को शत -शत नमन। इस अवसर पर विधायक श्री सुदिव्य कुमार , मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार श्री अभिषेक प्रसादमुख्यमंत्री के वरीय आप्त सचिव श्री सुनील कुमार श्रीवास्तव और श्री सुप्रियो भट्टाचार्य ने सुभाष चंद्र बोस जी की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।

 ‘गंगा किनारे परदेसी’ की शूटिंग उत्तराखंड में होगी

एबी बंसल प्रोडक्शन के बैनर तले बनने जा रही निर्माता डॉ अभय बंसल की भोजपुरी फिल्म ‘गंगा किनारे परदेसी’ के लिए बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता शाहबाज खान को अनुबन्धित किया गया है। इस सामाजिक और पारिवारिक भोजपुरी सिनेमा में चर्चित स्टार सत्येंद्र सिंह राजपूत और अभिनेत्री अलीशा अली खान की जोड़ी स्क्रीन पर नए अंदाज में नज़र आएगी। एन आर घिमरे के निर्देशन में बनाई जा रही इस फिल्म के लेखक अविनाश कुमार रजक, डीओपी दिव्यराज सुबेदी, फाइट मास्टर शुक्रज शाह, डांस मास्टर पप्पू खन्ना, आर्ट डायरेक्टर रणधीर और कार्यकारी निर्माता आशीष कुमार हैं। इस फिल्म में तनुश्री चटर्जी, केके गोस्वामी, अरुण सिंह काका, धर्मेंद्र कुमार,  नीलू यादव, अभय बंसल, रमेश द्विवेदी और उमेश सिंह की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस फिल्म की शूटिंग फरवरी माह के प्रथम सप्ताह में उत्तराखंड के देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, ऋषिकेश के विभिन्न लोकेशनों में की जाएगी।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

बॉलीवुड कॉलिंग’ कंसल्टेंसी वेबसाइट के जरिये हम नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाना चाहते हैं – फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा

पिछले दिनों बॉलीवुड के प्रसिद्ध फिल्म पत्रकार ज्योति वेंकटेश द्वारा फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा और  अविराज दापोडिकर के द्वारा मुम्बई में संचालित मीडिया एजेंसी और कंसल्टेंसी की वेबसाइट ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ का उद्घाटन किया गया। उद्घाटन समारोह में संचिता सेन, अमित मिश्रा, उज्जवल रॉय चौधरी, अंकुर त्यागी, शुभम शर्मा और परिधि शर्मा के अलावा बॉलीवुड के कई नामचीन शख्शियत मौजूद थे। इसके साथ ही झारखंड की धरती से जुड़े फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा की चर्चा बड़े जोर शोर से बॉलीवुड में होने लगी है। चाईबासा (झारखंड) के मूल निवासी फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा ने अपना फिल्मी कैरियर 1992 में बतौर फिल्म पत्रकार शुरू किया था। बाद में इन्होंने अपना रुख पटकथा लेखन, निर्देशन और फिल्म निर्माण की ओर किया और अपनी प्रतिभा के बदौलत बॉलीवुड में झारखंड का परचम लहराया।

फिल्म ‘काबू’ (2002), ‘बॉर्डर हिंदुस्तान का’ (2003), ‘शबनम मौसी’, ‘धमकी’ (2005), ‘मिस अनारा’ (2007), ‘माई फ्रेंड गणेशा (फिल्म श्रृंखला 2007), ‘सावंरिया’ (2007), ‘माई हस्बैंडस वाइफ’ (2010), ‘मैं कृष्णा हूँ’, ‘ज़िन्दगी 50-50′(2013), ‘लव यू फैमिली’ (2017), ‘सत्य साईं बाबा’ (2021) के अलावा मराठी फिल्म ‘बाला’ जैसी कई हिट फिल्मों का लेखन व निर्देशन कर चुके फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा की फिल्म ‘ मुम्बई कैन डांस साला’ (1915) उनकी काफी चर्चित फिल्मों में से एक है। आम लीक से हट कर सिनेदर्शकों को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने के लिए ब्लू अम्ब्रेला एंटरटेनमेंट के बैनर तले फिल्म ‘जैक एंड मिस गिल’ के निर्माण कार्य को मूर्तरूप देने की दिशा में फिलवक्त फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा अग्रसर हैं। यशराज स्टूडियो में ‘जैक एंड मिस गिल’ का एक गाना सिंगर श्रेयांश बी  के स्वर में रिकॉर्ड किया जा चुका है। फिल्म निर्देशक अविराज डी के निर्देशन में बनने वाली इस फिल्म के लिए गीतकार विजय संदीप गोलछा के द्वारा लिखे गीत को संगीतकार मिलन हर्ष अपने मधुर संगीत से सजाया है। फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा को बॉलीवुड में उनके द्वारा नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से किये गए कार्यों के लिए देहरादून इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (छठा सीजन) में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की उपस्थिति में अवार्ड दे कर सम्मानित किया जा चुका है।

बकौल फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा वर्तमान समय में ओटीटी प्लेटफार्म के जरिये भारी संख्या में दर्शकों का एक नया वर्ग सामने आया है और उनकी संख्या में उत्तरोत्तर इजाफ़ा हो रहा है ये बॉलीवुड के लिए शुभ संकेत है। कई फिल्म निर्माता निर्देशक नवोदित प्रतिभाओं के साथ संदेशपरक कंटेंट के साथ सामने आ रहे हैं। उसी दिशा में अग्रसर रहते हुए ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ कंसल्टेंसी वेबसाइट के जरिये हम नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाना चाहते हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

रूपा तिर्की मौत मामले में न्यायमूर्ति श्री वी के गुप्ता ने वर्चुअल माध्यम से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया

रांची, पुलिस उप निरीक्षक (सब इंस्पेक्टर) रूपा तिर्की मौत मामले की जांच कर रहे एक  सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग के न्यायमूर्ति श्री वी के गुप्ता  (झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश) ने आज वर्चुअल माध्यम से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया।  उन्होंने बताया कि जांच रिपोर्ट स्थानिक आयुक्त श्री एम आर मीणा को सौंप दी गई है। विधिक प्रक्रिया के तहत सरकार द्वारा अब इस रिपोर्ट को स्वीकृत किए जाने के बाद सार्वजनिक किया जाएगा  । वहीं, सार्वजनिक करने के 6 माह के अंदर   जांच रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर  रखा जाएगा।

भारत की जवाबी परमाणु नीति के मायने

जी. पार्थसारथी –
भारत की परमाणु प्रति-चेतावनी उपायों की एक खासियत इस पर गोपनीयता बरतने की रही है। यह आवश्यक भी है क्योंकि भारत के परमाणु अस्त्र और मिसाइल कार्यक्रम में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र, मसलन, डीआरडीओ, परमाणु ऊर्जा विभाग, अकादमिक संस्थान और व्यावसायिक संगठनों के वैज्ञानिक एवं इंजीनियरों की प्रतिबद्धता जुड़ी है। भारत के परमाणु कार्यक्रम पर दुनियाभर के विशेषज्ञों की टोही नजर लगातार बने रहना स्वाभाविक है, जैसे कि फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट, यूके, फ्रांस, रूस के संगठन और फिर चीन और पाकिस्तान की खास नजऱ तो रहती ही है।
जहां भारतीय वैज्ञानिक बैलेस्टिक मिसाइल परीक्षणों पर न्यूनतम जानकारी वाले वक्तव्य देते हैं, वहीं अमेरिकी प्रकाशन जैसे कि बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट और मैक्आर्थर फाउंडेशन सरीखे संगठनों की पत्रिकाओं में भारतीय परमाणु अस्त्र और अणु कार्यक्रम के बारे में तफ्सील होती है। यह लेख, अध्ययन सावधानीपूर्वक खोजपरक और सत्यापना युक्त होते हैं। रोचक यह कि उक्त जानकारी भारत में समय-समय पर छपे लेखों से कुछ खास अधिक नहीं होती।
बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट के मुताबिक, भारत के पास 150-200 परमाणु अस्त्रास्त्र बनाने लायक मात्रा का संवर्धित प्लूटोनियम है और तैयार हथियारों का अनुमानित भंडार लगभग 150 है। फिर भारत के पास फास्ट ब्रीडर एवं अन्य प्लूटोनियम रिएक्टरों के बूते परमाणु हथियार ग्रेड परमाणु पदार्थ बढ़ाने की क्षमता भी है। कुख्यात रहे पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक डॉ. एक्यू खान के मुताबिक, पाकिस्तान ने चीन को यूरेनियम संवर्धन की सेंट्रीफ्यूगल तकनीक दी थी, जिसकी जानकारी उन्होंने 1970 और 1980 के दशक में यूरोप में काम करते वक्त चुराई थी। बदले में, चीन ने पाकिस्तान को परमाणु अस्त्रास्त्र लायक स्वदेशी यूरेनियम संवर्धन करने की तकनीक साझा की थी। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने इस घटनाक्रम को जानबूझकर अनदेखा किया था क्योंकि तब वे 1978 में चीनी नेता देंग शियाओ पिंग की वाशिंगटन यात्रा के दौरान दिखाए दोस्ताना रवैये से अभिभूत हो चुके थे।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस इंस्टिट्यूट (सिपरी) के आकलन के अनुसार, आज की तारीख में चीन के पास कोई 350 परमाणु अस्त्र हैं, पाकिस्तान की संख्या 165 है, तो भारत के पास 156 आणविक मिसाइलें हैं। भारत ने थलीय मिसाइलों के परीक्षणों के अलावा लगभग एक महीने पहले अपनी तीसरी परमाणु पनडुब्बी को सेवारत किया है, जो कि 8 बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस है। इससे पहले वाली दो पनडुब्बियों में, प्रत्येक में 4 बैलेस्टिक मिसाइलें तैनात हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि में अब भारत के पास मिसाइलें पाइपनुमा मौसम-रोधी सील युक्त डिब्बों में रखकर एक से दूसरी जगह पहुंचाने की काबिलियत भी है। यह नई सुविधा हाल ही में परीक्षणों से गुजरी है और 5000 किमी. तक मार करने वाली अग्नि-पी और अग्नि-वी समेत तमाम अन्य मिसाइलों के लिए उपयुक्त है। अनेकानेक अध्ययनों में भारत की आणविक मिसाइलें दागने की क्षमता में फ्रांस निर्मित मिराज़-2000 और राफेल विमानों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है।
चीन ने पाकिस्तान को परमाणु हथियार और कई दूरियों वाली मिसाइलें बनाने का डिज़ाइन दिया है। उसने पाकिस्तान को जो मिसाइलें दी हैं, उनमें कम दूरी (320 किमी.) की गजऩवी से लेकर 2500 किमी. तक मार करने वाली शाहीन-2 और 2780 किलोमीटर रेंज वाली शाहीन-3 शामिल हैं। मजेदार यह कि चीन ने आणविक-अस्त्रों का जो डिज़ाइन पाकिस्तान को दिया है, वह वही है जो एक्यू खान ने लीबिया और इराक जैसे इस्लामिक देशों से भी साझा किया था।
भारत अब तक तीन परमाणु-शक्ति चालित पनडुब्बियां बना चुका है और चौथी अगले साल बेड़े में शामिल होने की उम्मीद है। यह खबर भी है कि भारत में मल्टीपल वार-हैड युक्त मिसाइलें बनाने पर काम चल रहा है। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 दिसंबर, 2021 को भारत ने अग्नि-पी मिसाइल का दूसरा परीक्षण अब्दुल कलाम रेंज नामक एकीकृत परीक्षण स्थल से किया है। इसका पहला टेस्ट जनवरी, 2020 में हुआ था। इससे भारत के लगातार बढ़ते परमाणु पनडुब्बी बेड़े में अग्नि-पी मिसाइलों की तैनाती की संभावना प्रशस्त हो गई है, जिसके पास पहले ही पनडुब्बियों से दागी जाने वाली अग्नि-5 और मल्टीपल वारहैड मिसाइलें हैं।
रिवायती ‘महान हान समुदाय श्रेष्ठता’ से ग्रस्त चीन आगे भी दिखावा करता रहेगा कि उसे भारत के साथ परमाणु अस्त्रों पर कोई संवाद करने में दिलचस्पी नहीं है। इसी बीच भारत पनडुब्बी से दागी जा सकने और 3500 किमी. रेंज वाली के-4 मिसाइल विकसित कर रहा है। यह अंतर-मध्यम दूरी वाली अग्नि-3 का नौसैन्य रूपांतर है। के-4 के अनेक परीक्षण हो चुके हैं लेकिन तैनाती होना बाकी है। जनवरी, 2020 में इसका एक परीक्षण विशाखापट्टनम के तट से लगे समुद्र में जलमग्न पन्टून मंच से दागकर किया गया था। हालांकि डीआरडीओ ने इस टेस्ट की तस्दीक नहीं की थी, लेकिन अधिकारियों को उद्धृत करती मीडिया रिपोर्टों में इसके सफल रहने का दावा था।
हालांकि पाकिस्तान ने कभी औपचारिक रूप से अपने परमाणु अस्त्र उपयोग सिद्धांत का खुलासा नहीं किया है, परंतु न्यूक्लियर कमांड ऑथोरिटी के सामरिक योजना विभाग के लंबे अर्से तक मुखिया रहे ले. जनरल खालिद किदवई ने वर्ष 2002 में इटली के लांडाऊ नेटवर्क के भौतिक वैज्ञानिकों को बताया था कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार ‘केवल भारत को निशाना बनानेÓ हेतु हैं। किदवई ने आगे कहा कि यदि कभी भारत बड़े पाकिस्तानी हिस्से को जीत लेता है या हमारी थल और वायुसेना को भारी नुकसान पहुंचाता है या फिर पाकिस्तान की आर्थिकी का गला घोटे अथवा राजनीतिक रूप से अस्थिर करे, इन सूरतों में भी हम परमाणु हथियार इस्तेमाल करेंगे। वह शख्स, जो एक दशक से ज्यादा समय तक पाकिस्तान के परमाणु हथियार जखीरे का नियंता और बांग्लादेश लड़ाई में 1971-73 के बीच युद्ध-बंदी रहने के अलावा एक व्यावसायिक फौजी हो, उसका यह वक्तव्य पाकिस्तान के परमाणु मंतव्यों की रूपरेखा स्पष्ट करता है। चूंकि भारत का इरादा पाकिस्तान के साथ लंबा युद्ध चलाकर अपने स्रोतों का ह्रास करने का नहीं है और न ही घनी आबादी से पटे शहर कब्जाने की ख्वाहिश है, तथापि पाकिस्तान को मुगालता न रहे कि 26/11 जैसा हमला होने की सूरत में नया भारतीय नेतृत्व, गांधी के अहिंसावादी विचारों का नव-अनुगामी होने के बावजूद, आराम से बैठा रहेगा।
अब यह एकदम साफ है कि दिवालिया हुए पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संगठनों का भारी दबाव है, ऐसे में उसको भारत को अस्थिर करने की चाहत में आतंकवादियों की मदद जारी रखने से पहले सोच-विचार करना चाहिए। फिर, वह ड्यूरंड सीमा रेखा को मान्यता न देने वाली पश्तून आकांक्षा को तालिबान का समर्थन मिलने के मद्देनजर दूरंदेशी से काम ले। रोचक है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा है कि बेशक भारत परमाणु हथियार पहले प्रयोग न करने वाली अपनी नीति पर कायम है, वहीं भविष्य में क्या होता है यह हालात पर निर्भर होगा।
देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को चीन और पाकिस्तान से दरपेश दोहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए विकसित की गई स्वदेशी मिसाइल एवं परमाणु क्षमता प्राप्त करने में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एवं उनकी टीम के इंजीनियरों और परमाणु ऊर्जा विभाग के विशिष्ट साइंसदानों का योगदान सदा याद रखना चाहिए। साथ ही निजी क्षेत्र के उन लोगों का भी, जिन्होंने इस राष्ट्रीय प्रयास में गुप्त रूप से महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

उनके जाने से सूना हुआ कथक का आंगन

अतुल सिन्हा –
16 जनवरी, 2022 की रात करीब बारह-सवा बारह बजे का वक्त। दिल्ली के अपने घर में पंडित जी अपनी दो पोतियों रागिनी और यशस्विनी के अलावा दो शिष्यों के साथ पुराने फिल्मी गीतों की अंताक्षरी खेल रहे थे। हंसते-मुस्कराते, बात-बात पर चुटकी लेते पंडित जी को अचानक सांस की तकलीफ हुई और कुछ ही देर में वह सबको अलविदा कह गए। आगामी 4 फरवरी को 84 वर्ष के होने वाले थे। बेशक उन्हें कुछ वक्त से किडनी की तकलीफ थी, डायलिसिस पर भी थे, लेकिन उनकी जीवंतता और सकारात्मकता अंतिम वक्त तक बरकरार थी।
पंडित जी में आखिर ऐसा क्या था जो उन्हें सबका एकदम अपना बना देता था? कथक को दुनियाभर में एक खास मुकाम और पहचान दिलाने वाले पंडित जी आखिर कैसे एक संस्था बन गए थे और कैसे उन्हें नई पीढ़ी भी उतना ही प्यार और सम्मान देती थी? इसके पीछे थी उनकी कभी न टूटने वाली उम्मीद। कुछ साल पहले उनके साथ हुई मुलाकात के दौरान ऐसी कई यादगार बातें पंडित जी ने कहीं। वे कहते– कथक और शास्त्रीय नृत्य का भविष्य उज्ज्वल है, इसकी संजीदगी और भाव-भंगिमाएं आपको बांध लेती हैं। नई पीढ़ी को इसकी बारीकी समझ में आ रही है और बड़ी संख्या में देश-विदेश में बच्चे कथक सीख रहे हैं। वह यह भी बताते थे कि कैसे कथक मुगलों के ज़माने से सम्मान पाता रहा, भारतीय नृत्य और संगीत की परंपरा कितनी पुरानी है और कैसे उनके वंशज आसफुद्दौला से लेकर नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में राज नर्तक और गुरु थे। उनके दादा कालिका महाराज और उनके चाचा बिंदादीन महाराज ने मिलकर लखनऊ के कालिका-बिंदादीन घराने की नींव रखी।
बातचीत में अक्सर पंडित जी अपने पिता अच्छन महाराज के अलावा अपने चाचा लच्छू महाराज और शंभु महाराज का जिक्र करते थे। तीन साल के थे तभी पिता अच्छन महाराज ने उनमें ये प्रतिभा देखी और नृत्य सिखाने लगे। नौ साल के होते-होते पिता का साया उठ गया तो चाचा लच्छू महाराज और शंभु महाराज ने उन्हें शिक्षा दी। एक दिलचस्प किस्सा भी पंडित जी ने बताया था कि जिस वार्ड में उनका जन्म हुआ, उसमें उस दिन वे अकेले बालक थे, बाकी लड़कियां। सबने तभी कहा कि कृष्ण-कन्हैया आया है साथ में गोपियां भी आई हैं। ऐसे में नाम रखा गया बृजमोहन, जो बाद में बिरजू हो गया।
अपने जीवन से जुड़े ऐसे कई दिलचस्प किस्से पंडित जी सुनाया करते थे। वह यह भी कहते कि नर्तक सिर्फ नर्तक नहीं होता, उसे सुर की समझ होती है, संगीत उसके रग-रग में होता है। संगीत और नृत्य को कभी अलग करके देखा ही नहीं जा सकता। इसलिए पंडित बिरजू महाराज बेहतरीन गायक भी थे, शानदार तबलावादक भी थे और तमाम तरह के तार और ताल वाद्य वे बजा लेते थे। अपने घराने की खासियत पंडित जी कुछ इस तरह बताते थे– बिंदादीन महाराज ने करीब डेढ़ हजार ठुमरियां रचीं और गाईं, कथक की इस शैली में ठुमरी गाकर भाव बताना इसी शैली में आपको मिलेगा। तत्कार के टुकड़ों ‘ता थई, तत थई कोÓ भी कई शैलियों और तरीकों से नाच में उतारा जाता है।
कथक के तकनीकी पहलुओं पर आप उनसे घंटों बात कर सकते थे। नृत्य में आंखों का इस्तेमाल, भाव-भंगिमाएं और पैरों की थिरकन और हाथों की मूवमेंट के बारे में उनसे बैठे-बैठे बहुत कुछ समझ सकते थे। एक खास बात और जो वह बार-बार कहते थे कि नृत्य को कभी लड़का या लड़की की सीमा में बांध कर नहीं देखना चाहिए। ये सोच बदलनी चाहिए कि शास्त्रीय नृत्य सिर्फ लड़कियों के लिए है। जिसके अंदर लचक है, सुर की समझ है, संवेदनशीलता है, भाव-भंगिमाएं हैं वह नाच सकता है। शायद इसी लिए पंडित बिरजू महाराज को एक संस्था कहा जाता है।
पंडित जी ने कई नृत्य शैलियां भी विकसित कीं और नए-नए प्रयोग किए। चाहे वह माखन चोरी हो, मालती माधव हो या फिर गोवर्धन लीला। इसी तरह उन्होंने कुमार संभव को भी उतारा और फाग बहार की रचना की।
मात्र तेरह साल के थे तभी दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य सिखाने लगे थे। भारतीय कला केन्द्र से लेकर कथक केन्द्र तक वह लगातार संगीत और नृत्य की शिक्षा देते रहे। 1998 में कथक केन्द्र से रिटायर होने के बाद पंडित जी ने दिल्ली के गुलमोहर पार्क में अपना केन्द्र खोला– कलाश्रम कथक स्कूल। देश-विदेश में पंडित जी ने हजारों प्रस्तुतियां दीं। कोई भी संगीत और नृत्य समारोह पंडित बिरजू महाराज के बगैर खाली खाली-सा लगता था। स्पिक मैके के तमाम आयोजनों में नए बच्चों के बीच अक्सर पंडित जी घुल-मिलकर बातें करते और कथक के बारे में बताते।
पद्मविभूषण से नवाजे जाने से पहले पंडित जी को संगीत नाटक अकादमी सम्मान और कालीदास सम्मान समेत तमाम प्रतिष्ठित मंचों पर सम्मानित किया गया। लेकिन वह हमेशा यही कहते कि हमारा सबसे बड़ा सम्मान लोगों का प्यार है। फिल्म देवदास के मशहूर डांस सीक्वेंस काहे छेड़े मोहे… के बारे में बात करते हुए वह माधुरी दीक्षित को एक बेहतरीन कलाकार बताते थे। वे कहते थे कि माधुरी को इस नृत्य में जो भाव-भंगिमाएं और आंखों की अदा हमने एक-दो दफा बताई और उन्होंने इसे लाजवाब तरीके से कर दिखाया। बाद में उन्होंने दीपिका पादुकोण की फिल्म बाजीराव मस्तानी के मशहूर डांस सीक्वेंस का निर्देशन किया – मोहे रंग दो लाल। शतरंज के खिलाड़ी में भी पंडित जी के दो डांस सीक्वेंस थे। ऐसी फेहरिस्त बहुत लंबी है।
जाहिर है पंडित जी का जाना कथक और भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य परंपरा के लिए एक गहरे सदमे की तरह है। बेशक उनके काम को उनकी अगली पीढिय़ां आगे बढ़ाती रहेंगी और कथक को लेकर उनके भीतर जो जुनून था वह बरकरार रहेगा। लेकिन पंडित जी जैसा भला कोई और कैसे हो सकता है।

राशनकार्ड धारियों के लिए पेट्रोल सब्सिडी योजना एप लांच

*गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री दुमका से करेंगे योजना का शुभारम्भ, लाभुकों को मिलने लगेगा योजना का लाभ

रांची, मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना अथवा झारखण्ड राज्य खाद्य सुरक्षा योजना से आच्छादित गरीब लोगों  को उनके दो-पहिया वाहन के लिए “पेट्रोल सब्सिडी योजना” के तहत निबंधन हेतु CMSUPPORTS एप लांच किया।

अब एप या http://jsfss.jharkhand.gov.in में निबंधन कर राशन कार्ड धारी योजना का लाभ ले सकेंगे। 26 जनवरी 2022 से योजना के जरिये राशन कार्ड से आच्छादित लाभुकों को अपने दो-पहिया वाहन के लिए प्रति माह अधिकतम 10 लीटर पेट्रोल के लिए प्रति लीटर 25 रूपये की सब्सिडी यानि 250 रूपये प्रतिमाह उनके बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से हस्तांतरित की जायेगी। मुख्यमंत्री 26 जनवरी 2022 को दुमका से योजना का शुभारम्भ कर योजना की आहर्ता पूर्ण करने वाले लाभुकों को लाभान्वित करेंगे।

 *पेट्रोल सब्सिडी योजना हेतु ये है अहर्ता:-

 *आवेदक को राज्य के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम अथवा झारखण्ड राज्य खाद्य सुरक्षा अधिनियम का राशन कार्ड धारी होना चाहिए।

* राशन कार्ड में परिवार के सभी सदस्यों का सत्यापित आधार संख्या अंकित होना चाहिए।

 *आवेदक के आधार से लिंक बैंक खाता संख्या एवं मोबाइल नंबर अपडेट होना चाहिए।

* आवेदक के वाहन का निबंधन आवेदक के नाम से होना चाहिए।

*आवेदक का वैद्य ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए।

 *आवेदक का दो- पहिया वाहन झारखण्ड राज्य में निबंधित होना चाहिए।

 *ऐसे करें रजिस्टर/निबंधन:-

* CMSUPPORT एप अथवा http://jsfss.jharkhand.gov.in में जाकर आवेदक को अपना राशन कार्ड एवं आधार संख्या डालना होगा, जिसके उपरांत उनके आधार से जुड़े मोबाइल नंबर पर OTP जायेगा।

* आवेदक का राशन कार्ड संख्या Login तथा परिवार के मुखिया का आधार का अंतिम आठ अंक का Password होगा।

* OTP सत्यापन के बाद आवेदक राशनकार्ड में नाम चुनते हुए वाहन संख्या एवं ड्राइविंग लाइसेंस नंबर दर्ज करेंगे।

* ऐसे होगा सत्यापन:-

*वाहन संख्या DTO के लॉगिन में जायेगा, जिसे DTO द्वारा सत्यापित किया जाएगा।

*सत्यापन के बाद सूची जिला आपूर्ति पदाधिकारी के लॉगिन में जायेगी।

 इस अवसर पर मंत्री श्री आलमगीर आलम, मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव, मंत्री श्री चम्पाई सोरेन, मंत्री श्री सत्यानंद भोक्ता, मंत्री श्री बन्ना गुप्ता, मंत्री श्री मिथलेश ठाकुर, मंत्री श्रीमती जोबा मांझी, मंत्री श्री बादल पत्रलेख, मंत्री श्री हफीजुल हसन, मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे, श्रीमती हिमानी पांडेय, सचिव खाद्य आपूर्ति व सार्वजानिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग एवं अन्य उपस्थित थे |

मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद माली में फंसे श्रमिकों तक पहुंची मदद

*गिरिडीह एवं हजारीबाग के 33 श्रमिकों ने मुख्यमंत्री से लगाई थी मदद की गुहार

*श्रम आयुक्त ने माली स्थित भारतीय दूतावास को लिखा था पत्र, जानकारी मिलने पर दूतावास ने की कार्रवाई

*भारतीय दूतावास के अधिकारियों की उपस्थिति में कंपनी एवं कर्मियों के बीच हुई बैठक

*बैठक के जरिए कंपनी की तरफ से श्रमिकों के रांची तक के हवाई टिकट एवं बकाया वेतन भुगतान की हुई व्यवस्था

*भारतीय दूतावास ने बताया-  कोविड19 की वजह से माली से इंडिया के लिए एक ही साप्ताहिक फ्लाइट, जल्द घर पहुंचेंगे सभी श्रमिक

रांची, 16 दिसंबर 2021 को रांची स्थित प्रोजेक्ट भवन में आयोजित कार्यक्रम में SRMI(Safe Responsible Migration Initiative) योजना के लॉन्च के दौरान मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्यभर से दूसरे राज्यों एवं विदेशों तक काम की तलाश में जाने वाले श्रमिकों के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि कोरोना काल के दौरान प्रवासी श्रमिकों के साथ देशभर में हुई त्रासदी को देखते हुए राज्य सरकार इस समस्या के समाधान के लिए लगातार प्रयासरत है। साथ ही, प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए इस योजना की शुरुआत की जा रही है। हमारा प्रयास है कि अगर हमारे राज्य का श्रमिक या कोई भी कामगार कमाने के लिए राज्य से बाहर किसी भी स्थान पर जाता है , तो वह निर्भीक एवं सुरक्षित महसूस करे कि उनके राज्य की सरकार किसी भी प्रकार की समस्या की स्थिति में उनके साथ है।

इस योजना की शुरुआत से पहले एवं योजना की शुरुआत के बाद भी ऐसे कई मौके आए जब राज्य के बाहर किसी विपरीत परिस्थिति में फंसे श्रमिकों ने राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाई एवं मुख्यमंत्री ने उन मामलों में पूरी संवेदनशीलता दिखाते हुए श्रमिकों की सकुशल घर वापसी की व्यवस्था सुनिश्चित की।

अफ्रीकी देश माली में फंसे 33 मजदूरों ने लगाई थी देश वापसी की गुहार

रविवार, दिनांक- 16 जनवरी को मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन को यह जानकारी मिली की अफ्रीकी देश माली में गिरिडीह एवं हजारीबाग जिले के 33 प्रवासी श्रमिक फंसे हुए हैं एवं उन्हें उनके काम का मेहनताना भी नहीं दिया जा रहा है। तीन महीने से अधिक वक्त बीत जाने के बाद भी कंपनी द्वारा प्रवासी श्रमिकों को वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने लिया संज्ञान, मंत्री श्री सत्यानन्द भोक्ता को कहा- श्रमिकों के लिए हर संभव मदद की करें व्यवस्था

मामले पर त्वरित संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने मंत्री श्रम, नियोजन, प्रशिक्षण एवं कौशल विभाग श्री सत्यानंद भोक्ता को मामले में त्वरित कार्रवाई कर श्रमिकों तक हर संभव मदद पहुंचाने का निर्देश दिया। जिसपर त्वरित कार्रवाई करते हुए मंत्री श्री सत्यानंद भोक्ता ने ट्वीटर के जरिए ही मजदूरों का संपर्क सूत्र पता कर लेबर कमिश्नर, झारखण्ड सरकार को माली स्थित भारतीय दूतावास से संपर्क करने का निर्देश दिया।

श्रम आयुक्त ने माली स्थित भारतीय दूतावास में राजनयिक को लिखा पत्र

मजदूरों से तत्काल संपर्क स्थापित कर एवं उनसे उनकी समस्या की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के उपरांत लेबर कमिश्नर, श्री ए मुथूकुमार ने माली स्थित भारतीय दूतावास के राजनयिक श्री अंजनी कुमार से संपर्क कर मजदूरों की समस्या के समाधान का आग्रह किया।

दूतावास के जरिए मजदूरों तक पहुंची मदद

अफ्रीकी देश माली के बमाको स्थित भारतीय दूतावास ने राज्य सरकार द्वारा दी गई जानकारी पर संज्ञान लिया। तत्पश्चात दूतावास ने मजदूरों एवं कंपनी से संपर्क स्थापित किया। दोनों ही पक्षों को मामले के समाधान के लिए 18 जनवरी को बैठक के लिए आमंत्रित किया गया। भारतीय दूतावास की मध्यस्थता में आयोजित बैठक के दौरान कंपनी के अधिकारियों ने मजदूरों का बकाया वेतन भुगतान करने एवं सभी 33 मजदूरों के माली से रांची तक की फ्लाइट टिकट की व्यवस्था करने की जिम्मेवारी ली।

साथ ही, फ्लाइट मिलने तक ये सभी मजदूर श्रमिक जब तक माली में रहेंगे, उनके रहने, खाने एवं किसी भी प्रकार की आपात व्यवस्था के लिए कंपनी जिम्मेवार होगी। इस मध्यस्थता पत्र पर श्रमिकों की तरफ से एक प्रतिनिधि एवं कंपनी की ओर से एक प्रतिनिधि ने हस्ताक्षर किया। साथ ही, भारतीय दूतावास के दो उच्च अधिकारियों ने इस पर सहमति जताई।

दूतावास ने कंपनी को मजदूरों से नो ड्यूज सर्टिफिकेट प्राप्त कर उनकी घर वापसी की व्यवस्था पूरी कर सूचित करने का निर्देश भी दिया है।

चर्चा में है अदाकारा अमृता राव की प्रेम कहानी

आज के प्रयोगात्मक दौर में  एक अलग तरह की प्रस्तुति ‘कपल ऑफ थिंग्स’ बॉलीवुड अदाकारा अमृता राव अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन दिनों पेश कर रही हैं और इस अनोखे कार्यक्रम में उनका साथ दे रहे हैं चर्चित रेडियो जॉकी अनमोल, जो पिछले 11 साल से अमृता के साथ एक ही छत के नीचे रहते चले आ रहे हैं। वैसे अपनी पूरी प्रेम कहानी को ‘कपल ऑफ थिंग्स’ टाइटल के अंतर्गत अपनी प्रेम कहानी का खुलासा करने का एलान करने के बाद से ही अमृता और अनमोल की चर्चा बॉलीवुड में शुरू हो गई थी। एक फिल्म अभिनेत्री और एक रेडियो जॉकी के बीच की प्रेम कहानी सिनेदर्शकों के बीच कभी नहीं आई थी। यह बॉलीवुड में पहली बार हुआ है जब अमृता और अनमोल एक साथ एक ही फ्रेम में नजर आये और अपने प्रशंसकों को अपने रोमांस से जुड़ी कई निजी जानकारियां भी संयुक्त रूप से, उपलब्ध कराते हुए दोनों प्रशंसकों का मनोरंजन भी कर रहे हैं। ‘कपल ऑफ थिंग्स’ के एपिसोड 12 के लिए दोनों एक दूसरे की असुरक्षाओं और मतभेदों के बारे में चर्चा करने के लिए आमने सामने बैठे। शो के दौरान ही अमृता और अनमोल ने प्रशंसकों के साथ एक स्वस्थ और खुशहाल रिश्तों से जुडी रहस्यों का भी खुलासा किया। उनका शो दिन पर दिन लोकप्रिय होता जा रहा है और प्रशंसक सोशल मीडिया के माध्यम से उनपर अपना प्यार बरसा रहे हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

एक्टर गौरव बजाज के बढ़ते कदम..

मेड इन इंडिया पिक्चर्स’ और ‘स्काई 247’ प्रोडक्शन के बैनर तले बनी शार्ट फिल्म ‘खेल खेल में’ में टीवी एक्टर गौरव बजाज बिल्कुल नए अवतार में नज़र आएंगे। टी वी जगत का नामचीन चेहरा , जिसकी पर्सनालिटी में जितना दम हैं उतना ही वजन उनकी अदाकारी में है। एक्टर गौरव बजाज जो कई टीवी सीरियल के जरिये अपनी एक्टिंग की छाप छोड़ चुके हैं। अब गौरव की एक तूफानी पारी की शुरुवात हो रही है। अंकुर पाण्डेय की कहानी पर आधारित इस शार्ट फिल्म ‘खेल खेल में’ को सोशल मीडिया पर काफी सराहना मिल रही है। इस फिल्म के निर्माता संतोष गुप्ता, निर्देशिका काम्या पाण्डेय और सिनेमेटोग्राफर राज गिल हैं। विदित हो कि गौरव बजाज बॉलीवुड के चर्चित सिंगर अरमान मलिक के साथ भी हाल ही में एक बांग्ला भाषा की म्यूजिक वीडियो की शूटिंग समाप्त कर चुके हैं , जिसकी शूटिंग कोलकाता में सम्पन्न हुई है। म्यूजिक वीडियो में शामिल सॉन्ग को अरमान मलिक ने गाया है। गौरव बजाज के साथ नवोदित एक्ट्रेस करिश्मा शर्मा इस म्यूजिक वीडियो में नज़र आएगी। एक्टर गौरव बजाज के लिए ये बंगाली म्यूजिक वीडियो भी एक अलग तरह का सुखद अनुभव रहा है और तो और गौरव बहुत ही जल्द एक और रोमांटिक म्यूजिक सांग में दिखाई देनेवाले हैं जिसपर अभी भी थोड़ा काम बाकी है। इस साल के मिड तक गौरव की एक वेब सीरीज रिलीज होनेवाली हैं जो एक खूबसूरत कहानी है जिसमें गौरव का ऐसा किरदार निभा रहे हैं जो आज तक उन्होंने नही किया और जिस रोल को वो हमेशा से निभाना चाहते थे। इस बात को लेकर टीवी एक्टर गौरव बजाज फ़िलवक्त बेहद उत्साहित हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

अमेरिका से अच्छे संकेत

अमेरिका से मिल रहे ये ताजा संकेत स्वागत योग्य हैं कि रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने के मामले में वह भारत को प्रतिबंधों से छूट दे सकता है। भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस के साथ 5 अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके मुताबिक एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की पांच युनिट खरीदने की बात तय हुई थी। अमेरिका की तत्कालीन ट्रंप सरकार ने चेतावनी दी थी कि अगर भारत ने इस समझौते पर अमल किया तो उसे काटसा (काउंटरिंग अमेरिकाज ऐडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट) के तहत कड़े प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं। बावजूद इसके, भारत ने सौदे को रद्द या स्थगित नहीं किया और समझौते के मुताबिक पिछले साल इसकी सप्लाई शुरू हो गई।
हालांकि अभी तक बाइडन प्रशासन ने प्रतिबंधों को लेकर कोई फैसला नहीं किया है, लेकिन जिस तरह की चर्चा वहां निर्णयकर्ताओं के बीच चल रही है, उससे लगता है कि अमेरिकी सरकार प्रतिबंध लगाने से बचना चाहेगी। सैंक्शन पॉलिसी के को-ऑर्डिनेटर पद के लिए राष्ट्रपति बाइडन के नॉमिनी जेम्स ओÓब्रायन का यह कहना महत्वपूर्ण है कि भारत पर प्रतिबंध लगाने का फैसला करने से पहले अमेरिका को जियो स्ट्रैटजिक पहलुओं, खासकर चीन के संदर्भ में बदले समीकरणों पर विचार करना होगा। यह भी कि इस मामले में भारत की तुलना तुर्की से नहीं की जा सकती। तुर्की ने भी रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था, जिसके कारण अमेरिका उस पर प्रतिबंध लगा चुका है।
अच्छी बात है कि अमेरिका में नीति-निर्माताओं को नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के मद्देनजर भारत की बढ़ती अहमियत का अहसास है। वे भारत की स्थिति और उसकी जरूरतों को लेकर भी संवेदनशीलता दिखा रहे हैं। वैसे उन्हें यह भी पता है कि यूक्रेन के सवाल पर रूस के साथ अमेरिका के संबंधों में चाहे जितना भी तनाव आ गया हो, भारत को रूस से दूर करने की कोशिश में वे एक हद से आगे नहीं बढ़ सकते। फिलहाल चीन के आक्रामक तेवर के मद्देनजर क्वॉड के एक महत्वपूर्ण सदस्य की हैसियत से भी भारत की भूमिका खासी महत्वपूर्ण है। ऐसे में बहुत संभव है कि अमेरिका प्रतिबंध लगाकर भारत को खुद से दूर कर लेने के बजाय उसे रूस से हथियार के और ज्यादा समझौता न करने को राजी करने की नीति अपनाए।
जहां तक भारत की बात है तो यह पहले दिन से साफ है कि उसकी विदेश नीति दूसरे देशों के आग्रहों या सुझावों से नहीं बल्कि अपने हितों से निर्धारित होती है। हथियारों के मामले में रूस लंबे अर्से से भारत का सबसे बड़ा सहयोगी रहा है। पिछले दशक के दौरान भी भारत में हथियारों के कुल आयात का करीब दो तिहाई हिस्सा रूस से ही आया है। ऐसे में अचानक इस पर रोक लगाना न तो उचित है और न व्यावहारिक। यह बात अमेरिका समझ रहा है तो यह दोनों देशों के रिश्तों में आती गहराई का सूचक है।

 मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने दन्ता हॉस्पिटल, बोकारो में अत्याधुनिक प्राइम स्कैन इकोसिस्टम ऑफ मशीन का ऑनलाइन उद्घाटन किया

*झारखंड- बिहार में पहली बार  दंत चिकित्सा के क्षेत्र इस अत्याधुनिक मशीन का होगा इस्तेमाल

* लोगों के दांतो से संबंधित सभी बीमारियों का सटीक और संपूर्ण इलाज हो सकेगा

रांची,  मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने आज वर्चुअल माध्यम से दन्ता हॉस्पिटल, बोकारो में अत्याधुनिक प्राइम स्कैन इकोसिस्टम ऑफ मशीन का उद्घाटन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड जैसे राज्य में दंत चिकित्सा के क्षेत्र में  इस अत्याधुनिक मशीन का स्थापित होना गौरव की बात है । इससे दांतों से संबंधित सभी बीमारियों का संपूर्ण इलाज हो सकेगा।  यहां के लोगों को दांतों की बीमारियों के लिए बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों का रुख नहीं करना होगा। उन्होंने इसके लिए हॉस्पिटल के संचालकों को बधाई दी।

 कम समय में बेहतर इलाज

इस मौके पर हॉस्पिटल के संचालकों ने बताया कि झारखंड और बिहार में पहली बार इस अत्याधुनिक प्राइम स्कैन इकोसिस्टम ऑफ मशीन की सुविधा लोगों को मिलने जा रही है । इस मशीन के जरिए दांतो का कारगर और सटीक इलाज हो सकेगा । इसके अलावा दांतों के इलाज में पहले जहां कई कई -कई दिन लग जाते हैं, वहीं इस मशीन के माध्यम से अब काफी कम समय में दांतों से जुड़ी बीमारियों का पूरा उपचार हो सकेगा । लोगों को दांतो के इलाज के लिए बार-बार चिकित्सकों और अस्पताल में जाने की जरूरत नहीं होगी ।

इस मौके पर मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे और दन्ता के डॉ अभय सिन्हा तथा डॉ मनीषा सिन्हा  के अलावा हॉस्पिटल के कई चिकित्सक मौजूद थे ।

कम पानी में कृषि कार्यों से दोगुना मुनाफा कमा खुशहाल उद्यमी बन रहे किसान

*राज्य के 9 जिलों के 30 प्रखण्डों में पर्यावरण अनुकूल सब्जी उत्पादन से किसानों को मिल रहा है फायदा

*महिला किसान भी बन रहीं सफल किसान

रांची, हमेशा से परंपरागत तरीके से खेती करने वाली रांची के ओरमांझी की रहनेवाली महिला किसान सुनीता देवी ने नहीं सोचा था कि सिंचाई के तरीके में बदलाव लाने से उत्पादन में बहुत फ़र्क आयेगा और पानी की भी समस्या नहीं रहेगी। सुनीता ने सिंचाई की कठिनाई को टपक सिंचाई से दूर करते हुए दूसरे किसानों के लिए एक मिसाल पेश की है। आज सुनीता ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के तहत झारखण्ड बागवानी सघनीकरण टपक सिंचाई परियोजना से जुड़कर टपक सिंचाई से खेती शुरू कर अच्छी आमदनी कर रही हैं। सुनीता कहती हैं, टपक सिंचाई योजना से उनकी जिंदगी में काफी बदलाव आ गया। हमारे पास सिंचाई के लिए सिर्फ कुआँ था, जो अक्सर सूख जाता था। जिस कारण हम सिंचाई के लिए पूरी तरह बारिश पर ही आश्रित थे। लेकिन, अब ड्रिप के लग जाने के बाद खेती करना काफी आसान हो गया है। आज एक साथ कई तरह की फसल की खेती कर सालाना 1.5 लाख तक की आमदनी कर लेती हूं।

कम मेहनत, कम लागत और कम पानी में दोगुना हो रहा मुनाफा

सुनीता की ही तरह झारखण्ड बागवानी सघनीकरण टपक सिंचाई परियोजना ने राज्य की हजारों महिला किसानों के जीवन में बदलाव की नई कहानी लिखी है। पश्चिमी सिंहभूम के तांतनगर प्रखण्ड के चिरची गांव निवासी संकरी परंपरागत तरीके से खेती कर सालाना 20-25 हज़ार रुपये अर्जित करती थी, अब वह टपक सिंचाई परियोजना से जुड़कर सालाना 80-90 हज़ार रुपये का मुनाफा कमा रही हैं ।

कृषि कार्यों से उद्यमी बनते कृषक

राज्य के 9 जिलों के 30 प्रखण्ड में इस परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। अब तक पूरे राज्य में करीब 11800 किसान सूक्ष्म टपक सिंचाई एवं अन्य सुविधाओं को लेकर अच्छे उत्पादन से ज्यादा कमाई कर उद्यमिता के पथ पर हैं। अबतक इस परियोजना से जुड़ने के लिए करीब 23 हजार किसानों का पंजीकरण किया जा चुका है। राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में किसानों को सुविधाओं से लैस करना है, ताकि झारखण्ड के कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी उन्हें सिंचाई समेत किसी प्रकार की दिक्कत ना हो। इसी कड़ी में राज्य के किसानों को टपक सिंचाई के जरिए कम पानी में बेहतर फसल उपजाने के लिए प्रशिक्षण एवं सुविधा मुहैया करायी जा रही है। जिसका उद्देश्य राज्य के कृषकों को स्थायी एवं पर्यावरण अनुकूल कृषि के जरिए सब्जी उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज करवाना है। सरकार अपने उद्देश्य में सफल भी हो रही है, जिससे हजारों कृषक जो पहले साल में एक फसल पर निर्भर रहते थे, अब साल में तीन-चार फसल उपजाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं।

देवघर से 13 (तेरह) साईबर ठग गिरफ्तार

पुलिस अधीक्षक देवघर, श्री धनंजय कुमार सिंह को प्राप्त गुप्त सूचना पर दिनांक 16.01.2022 को पुलिस उपाधीक्षक (सा०प०), श्री सुमित प्रसाद एवं पुलिस उपाधीक्षक (मु0), श्री मंगल सिंह जामुदा के नेतृत्व में देवघर जिला के मोहनपुर थाना अंतर्गत ग्राम बाबूपुर तथा करौं थाना अंतर्गत ग्राम जगाडीह से कुल 13 (तेरह) साईबर ठगों को गिरफ्तार किया गया है । गिरफ्तार किये गये साइबर ठगों की अपराध शैली निम्न प्रकार हैं.1 8-30 4G₁ LTE2 KB  s 1- Google  पर Flipkart केCustomer Care नम्बर के स्थान पर अपना फर्जी नम्बर Customize कर हेल्प लाईन अधिकारी बनकर तथा JUST DIAL के Business App में login कर Customer Leads प्राप्त कर झांसे में लेकर आम सहायता के नाम से गुप्त जानकारी प्राप्त कर ठगी करते हैं। 2. बैंक के ग्राहकों को फर्जी बैंक अधिकारी बनकर आधार नंबर/पैन नं० लिंक करने के नाम पर मांगते हैं एवं उनसे online अकाउंट खोल लेते हैं तथा उसपर साईबर ठगी की अवैध राशी मंगवाते हैं। 983- Phone Pe Customer को Cash Back का Request भेजकर अन्य E – Wallets जैसे PayU Money, Freecharge, DhaniPay, तथा Gaming App & Dream 11,Skill Clash के माध्यम से साईबर ठगी करते हैं।  4. फर्जी मोबाइल नम्बर से फर्जी बैंक पदाधिकारी बनकर आम लोगों को ATM बंद होने एवं उसे चालू कराने के लिएSeries Call करते हैं । उसके बाद Customer को झांसे में लेकर OTP प्राप्त कर ठगी करते हैं । छापामारी का स्थान 5. PhonePe @ Paytm में पीड़ित का ATM  CARD Number को ADD Money कर OTP प्राप्त कर रूपये ठगी करते हैं। 6. Team viewer एवं Quick Support जैसे Remote Access APPs Install करवाकर पीड़ित के मोबाइल पर आये OTP को अपने मोबाइल पर access कर साईबर ठगी का काम करते है ।

13 (thirteen) cyber thugs arrested from Deoghar

गिरफ्तार

1.अलिमुद्दीन अंसारी उम्र करीब 24 वर्ष पिता कांग्रेस मियाँ,तसलीम अंसारी उम्र करीब 26 वर्ष पिता तैयब मियाँ , अभियुक्तों का नाम व पता

1. अनिल यादव उम्र करीब 26 वर्ष पिता जगरनाथ यादव , 2. अजय कुमार यादव उम्र करीब 19 वर्ष , 3. संजय यादव उम्र करीब 22 वर्ष दोनों पिता सुभाष प्रसाद यादव , 4. छोटू कुमार राय उम्र करीब 19 वर्ष पिता – कालेश्वर राय चारो ग्राम बाबूपुर , थाना दृ मोहनपुर , 5. महेन्द्र कुमार मंडल उम्र करीब 19 वर्ष पिता भवानी मंडल , ग्रामदृ जगाडीह , गिरफ्तार अभियुक्तों के पास से बरामद सामग्री । 8. काबुल मियाँ उम्र करीब 27 वर्ष पिता वहाब मियाँ , 9. अफजल अंसारी उम्र करीब 26 वर्ष पिता- हलीम मियाँ चारो ग्राम पंचरूखी , थाना- मारगोमुण्डा , 10. कलाम अंसारी उम्र करीब 23 वर्ष पिता मुस्तफा अंसारी , ग्राम बदीया , थाना- करौं सभी जिला – देवघर , 11. आलम अंसारी उम्र करीब 25 वर्ष पिता – रफीक अंसारी , ग्राम कासीटांड , थाना- करमाटांड , जिला- जामताड़ा , 12. सलीम अंसारी उम्र करीब 27 वर्ष पिता – राजाउद्दीन मियाँ , ग्राम- खेसवा थाना – मारगोमुण्डा , , 13. मो ० जावेद अंसारी उम्र करीब 24 वर्ष पिता- सनाउल अंसारी , ग्राम घाघरा , थाना- मारगोमुण्ड , जिला देवघर । जप्त सामान मोबाईल स नोट- अभियुक्त काबुल मियाँ साईबर थाना काण्ड संख्या 71 / 2020 दिनांक 29.10.2020 , धारा 419 / 420 / 467 / 468 / 471 / 120 ( बी ) / 34 भा 0 द 0 वि 0 एवं 66 ( बी ) 66 ( सी ) 66 ( डी ) / 84 ( सी ) आई 0 टी 0 एक्ट में आरोपित हैं जो वर्तमान मे जमानत पर मुक्त थे ।

विचार शून्य राजनीति की चुनावी नाटकीयता

राजकुमार सिंह –
दशकों तक नीति-सिद्धांत-कार्यक्रम के आवरण में लिपटी रही राजनीति अब पूरी तरह नाटकीय हो गयी है। खासकर चुनाव के समय तो यह नाटकीयता चरम पर होती है। देश की राजनीति को दिशा देते रहे उत्तर प्रदेश के राजनेताओं का यह आलम है कि लगभग पांच साल तक सत्ता-सुख भोग चुकने के बाद ऐन चुनाव से पहले उन्हें अहसास होता है कि वे अपने-अपने वर्गों की सेवा करने के बजाय उनका शोषण करने वाली व्यवस्था का ही हिस्सा बने हुए थे। तीन दिन में योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल से इस्तीफा देनेवाले तीनों मंत्रियों के इस्तीफे की समान भाषा से उनकी समझ के साथ ही मंसूबों पर भी सवाल उठते ही हैं। अपने-अपने जाति-वर्ग के बड़े नेता माने जानेवाले ये तीनों महानुभाव पिछले विधानसभा चुनाव से पहले ही अचानक निष्ठा बदल कर भाजपाई बने थे। जाहिर है, तब भी उन्होंने अपने समुदाय के हित में पाला बदलने का दावा किया था, जैसा कि अब भाजपा को अलविदा कहते समय किया है। वैसे इन सभी ने दावा किया है कि मंत्री पद पर रहते हुए अपने दायित्व का पूरी निष्ठा से निर्वहन किया। ऐसे में यह स्वाभाविक प्रश्न अनुत्तरित है कि अगर पिछड़े, दलित, युवाओं, बेरोजगारों आदि वर्गों की योगी सरकार में निरंतर अनदेखी हुई तो ये महानुभाव किस दायित्व का निर्वहन कर रहे थे, और क्यों? कई दलों की परिक्रमा कर चुके इन महानुभावों से पूछा जाना चाहिए कि नेताजी, आखिर आपकी राजनीति क्या है!
आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भाजपा और उसके मित्र दलों को अलविदा कह कर मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले विधायक भी खुद को अपने-अपने जाति-वर्गों के हितों के प्रति चिंतित दिखा रहे हैं—बिना इस स्वाभाविक प्रश्न का उत्तर दिये कि पांच साल तक वे अपने लोगों के हितों के साथ अन्याय के मूकदर्शक क्यों बने रहे? असहज सवालों से मुंह चुराना हमारी राजनीति की पुरानी फितरत है। फिर भी, चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही उत्तर प्रदेश भाजपा में जैसी भगदड़ मची है,उसे सामान्य नहीं माना जा सकता—खासकर तब जबकि केंद्र में भाजपा सरकार का कार्यकाल अभी दो वर्ष से भी ज्यादा शेष है। ऐन चुनाव से पहले दलबदल करनेवाले राजनेताओं के लिए भारतीय राजनीति में एक नया शब्द ईजाद हुआ—चुनावी मौसम विज्ञानी। दिवंगत रामविलास पासवान को इस श्रेणी के राजनेताओं में अगुवा गिना जा सकता है। उत्तर प्रदेश में अब चुनाव से ठीक पहले दल बदलने वाले नेताओं के लिए भी यही शब्द इस्तेमाल करते हुए सवाल पूछा जा रहा है, क्या यह राज्य के बदलते राजनीतिक मिजाज का संकेत है? शायद शब्द कटु लगें,पर सच यही है कि अब खुद को तमाम जाति-वर्गों का हित चिंतक दर्शा रहे ये नेता दरअसल अपनी-अपनी जातियों के ही नेता हैं और उन्हीं के लिए सत्ता में हिस्सेदारी के नाम पर राजनीति करते हैं। आश्चर्यजनक सच यह भी है कि ये महानुभाव किसी भी सरकार या राजनीतिक दल में रहते हुए अपने वर्ग की हितचिंता में कभी मुखर नजर नहीं आये। वैसे दो दशक से भी ज्यादा समय तक उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय के स्वयंभू ठेकेदार दलों-नेताओं की सरकारें रहने के बावजूद पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बदहाली की बातें क्या उनके रहनुमाओं को ही कठघरे में खड़ा नहीं करतीं?
स्वामी प्रसाद मौर्य कांशीराम-मायावती की बसपा से राजनीति में आगे बढ़े। बसपा ने उन्हें अपनी सरकार में मंत्री ही नहीं, विपक्ष में आने पर नेता प्रतिपक्ष भी बनाया, पर पिछले चुनाव से पहले वह अचानक भाजपाई हो गये। अगर भाजपा ने उन्हें लिया और फिर सरकार बनने पर कई महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री भी बनाया तो जाहिर है, उनकी राजनीतिक उपयोगिता ही मुख्य आधार रहा होगा, पर अब जब फिर चुनाव की बारी आयी तो मौर्य अपने समर्थकों सहित समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये। तीन मंत्रियों और आधा दर्जन से भी अधिक विधायकों के भाजपा से इस्तीफे के बाद दावा किया जा रहा है कि यह सिलसिला जारी रहेगा। तब क्या इस कदर मची भगदड़ को वाकई राज्य की राजनीति में किसी बड़े बदलाव की आहट माना जाये? ध्यान रहे कि अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में भी बबुआ की छवि से नहीं उबर पाये सपा प्रमुख अखिलेश न सिर्फ इस बार गठबंधन के लिए छोटे दलों की पहली पसंद हैं, बल्कि उनकी सभाओं में भीड़ भी जुट रही है। राजनीति की सामान्य समझ भी कहती है कि उत्तर प्रदेश में राजनीति को गहरे तक प्रभावित करने वाले सामाजिक समीकरण बदल रहे हैं। यह भी कि यह बदलाव भाजपा के लिए नुकसानदेह और सपा के लिए फायदेमंद नजर आ रहा है, लेकिन वर्ष 2017 के विधानसभा तथा 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और सपा के मत प्रतिशत और सीटों में फासला इतना ज्यादा रहा, जिसे हालिया नेताओं के पाला बदल और सीमित जनाधार वाले छोटे दलों से गठबंधन के जरिये मिटा पाना आसान नहीं होगा। फिर इस बीच कांग्रेस न सही, बसपा ने तो अपना मत प्रतिशत बढ़ाया ही होगा, जिसे जीत की संभावना वाली सीटों पर अल्पसंख्यक मतों का साथ भी मिलेगा ही। सभी राजनीतिक दलों-नेताओं की बयानबाजी से साफ है कि विधानसभा चुनाव कमंडल-मंडल के बीच होगा। ऐसे में परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि योगी के कमंडल में से अखिलेश कितना मंडल वापस ले पाते हैं।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिए जारी सेंधमारी के साथ ही सीमावर्ती राज्य पंजाब में भी चुनावी राजनीति नित नये रंग बदल रही है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के बाद से ही अपनी राज्य सरकार के साथ-साथ आलाकमान का भी सिरदर्द बढ़ाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने अब पार्टी चुनाव घोषणापत्र से पहले ही अपना अलग पंजाब मॉडल घोषित करते हुए यह ऐलान भी कर दिया है कि मुख्यमंत्री आलाकमान नहीं, पंजाब के लोग चुनेंगे। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि विधानसभा चुनाव में राज्य के मतदाता अपना-अपना विधायक चुनते हुए मुख्यमंत्री कैसे चुनेंगे? भारतीय राजनीति, खासकर कांग्रेस की रीति-नीति को जानने वाले समझ सकते हैं कि यह सीधे-सीधे पार्टी आलाकमान को चुनौती है कि वह दलित कार्ड के चुनावी लालच में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा न घोषित कर दे। कांग्रेस आलाकमान के लिए यह सांप-छछूंदर वाली स्थिति है : ऐन चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष को नाराज करना भी ठीक नहीं और उनकी बेलगाम राजनीति के खतरे भी कम नहीं।
पिछली बार पंजाब के मतदाताओं ने कांग्रेस को जनादेश दिया था और आम आदमी पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी थी। उससे पहले लगातार 10 साल तक, भाजपा के साथ गठबंधन कर, सरकार चलाने वाला शिरोमणि अकाली दल भी इस बार बसपा से गठबंधन कर ताल ठोंक रहा है और भाजपा भी कैप्टन अमरेंद्र सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस एवं सुखदेव सिंह ढींढसा के संयुक्त अकाली दल से गठबंधन कर चुनाव को चतुष्कोणीय बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन फिलहाल मुख्य मुकाबला कांग्रेस और आप के बीच ही नजर आ रहा है। यही नहीं, मुख्यमंत्री चुनने के सवाल पर भी कांग्रेस-आप में अंतर्कलह कमोवेश एक जैसा ही है। जैसे चन्नी का दबाव है कि मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव लडऩा कांग्रेस के लिए फायदेमंद रहता है, वैसे ही आप सांसद भगवंत मान भी दबाव बना रहे हैं कि इस बार तो उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाये। चन्नी के दबाव की काट में ही सिद्धू ने रंग बदलते हुए अब पंजाब के लोगों द्वारा मुख्यमंत्री चुने जाने का दांव चला है तो आप में अंतर्कलह से संभावित नुकसान को न्यूनतम रखने के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा चुनने को अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के लोगों के बीच रायशुमारी का रास्ता निकाला है। प्रयोगवादी कहें या नाटकीय, इस कवायद से दलीय हित पर नेता की निजी राजनीति हावी होती दिख रही है, जिससे चुनावी मुद्दे पार्श्व में चले जायेंगे, जिसे चुनाव प्रक्रिया और लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं माना जा सकता। ऐसी चुनावी राजनीति में विचारधारा की तो बात ही अप्रासंगिक लगती है, पर क्या यह भारतीय राजनीति की बड़ी विडंबना नहीं है!

जान और जहान

ऐसे वक्त में जब कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर में संक्रमितों का आंकड़ा ढाई लाख पार कर गया है, प्रधानमंत्री का विभिन्न मुख्यमंत्रियों के साथ महामारी से लड़ाई के लिये बैठक करना तार्किक नजर आता है। एक सप्ताह में यह प्रधानमंत्री की दूसरी बैठक थी, जिसमें कहा गया कि संक्रमण से बचाव हेतु प्रतिबंधों व उपायों को लागू करते वक्त ध्यान रहे कि स्थानीय स्तर पर लोगों की जीविका पर प्रतिकूल असर न पड़े। स्मरण रहे कि पहली लहर के दौरान लगे सख्त लॉकडाउन से नयी तरह का मानवीय संकट पैदा हुआ था। देश ने विभाजन के बाद पलायन की सबसे बड़ी त्रासदी को देखा। अब तक भी आर्थिक दृष्टि से स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो पायी है। तीसरी लहर के दौरान राज्य सरकारों को स्थानीय प्रशासन को निर्देश देने होंगे कि संक्रमण की कड़ी तोडऩे के लिये एहतियाती उपाय जरूरी हैं, लेकिन जान के साथ जहान की रक्षा भी जरूरी है। देर-सवेर संक्रमण का दायरा सिमटेगा, लेकिन अर्थव्यवस्था को लगी चोट से उबरने में लंबा वक्त लग सकता है। मगर नये संक्रमण को लेकर जैसी दुविधा शासन-प्रशासन के सामने है, वैसी ही दुविधा देश की श्रमशील आबादी के सामने है। हालांकि, केंद्र व राज्य सरकारें आश्वासन दे रही हैं कि पूरा व सख्त लॉकडाउन नहीं लगाया जायेगा, लेकिन दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। पहली लहर की सख्त बंदिशों से महानगरों में श्रमिकों की त्रासदी की कसक अभी मिटी नहीं है। यही वजह है कि देश के कई राज्यों से श्रमिकों के पलायन की खबरें मीडिया में तैरती रही हैं। जाहिर है असुरक्षा बोध को दूर करने का आश्वासन उन उद्योगों की तरफ से श्रमिकों को नहीं मिल पाया, जहां वे काम करते हैं। ऐसे संकट के दौर में उद्योग व श्रमिकों के रिश्ते महज आर्थिक आधार पर न देखे जायें और उन्हें मानवीय संकट के संदर्भ में देखकर ऐसे आश्वासन दिये जाएं कि वे ऊहापोह की स्थिति से निकल सकें।
निस्संदेह, कोरोना की तीसरी लहर ने देश के सामने नये सिरे से बड़ी चुनौती पैदा की है, अच्छी बात यह है कि तेज संक्रमण के बावजूद अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है। निस्संदेह, इसके मूल में देश में चला सफल टीकाकरण अभियान भी है। आंकड़े बता रहे हैं कि मरने व अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई थी। अब वे लोग भी टीका लगवा रहे हैं, जिन्होंने पहले इसकी अनदेखी की। सुखद है कि देश की पंद्रह से 18 साल तक की किशोर आबादी का टीकाकरण शुरू हो गया है और किशोरों ने उत्साह के साथ टीकाकरण अभियान में भागीदारी की है। इसके बावजूद जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट की व्यवस्था जितनी बेहतर होगी, लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाने की जरूरत उतनी ही कम पड़ेगी। उन्होंने अधिक संक्रमण वाले इलाकों में निषेध क्षेत्र घोषित करने तथा घरों में पृथकवास पर जोर दिया। दरअसल, जब से विशेषज्ञों ने कहा कि नया वेरिएंट कम घातक है, तो लोग इस संकट को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। भीड़भाड़ वाले इलाकों में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन न करने की खबरें हैं। पूरी दुनिया कह रही है कि मास्क, सुरक्षित दूरी और बार-बार हाथ धोने से बचाव संभव है। विडंबना ही है कि जब तक प्रशासन सख्ती नहीं करता, हम नियम-कानूनों का पालन स्वेच्छा से नहीं करते। जबकि हमने पहली व दूसरी लहर में बड़ी कीमत चुकायी है। एक संकट यह भी है कि देश में बड़ी आबादी ऐसी है जो खांसी-जुकाम को सामान्य फ्लू मानकर जांच करने से बचती है। फिर गांव-देहात में कोरोना जांच की पर्याप्त चिकित्सा सुविधा न होने की बात कही जाती है। यही वजह है कि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यदि अमेरिका में रोज दस लाख मामले आ रहे हैं तो उनकी जांच प्रक्रिया में तेजी और पर्याप्त चिकित्सा तंत्र का होना है। जांच की स्थिति ठीक होने पर भारत में वास्तविक संक्रमण की दर काफी अधिक हो सकती है।

कमाल ख़ान के नहीं होने का अर्थ

मैं पूछता हूँ तुझसे , बोल माँ वसुंधरे ,
तू अनमोल रत्न लीलती है किसलिए ?

राजेश बादल –
कमाल ख़ान अब नहीं है। भरोसा नहीं होता। दुनिया से जाने का भी एक तरीक़ा होता है। यह तो बिल्कुल भी नहीं। जब से ख़बर मिली है ,तब से उसका शालीन ,मुस्कुराता और पारदर्शी चेहरा आँखों के सामने से नहीं हट रहा। कैसे स्वीकार करूँ कि पैंतीस बरस पुराना रिश्ता टूट चुका है। रूचि ने इस हादसे को कैसे बर्दाश्त किया होगा ,जब हम लोग ही सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं।यह सोच कर ही दिल बैठा जा रहा है।मुझसे तीन बरस छोटे थे ,लेकिन सरोकारों के नज़रिए से बहुत ऊँचे ।
पहली मुलाक़ात कमाल के नाम से हुई थी,जब रूचि ने जयपुर नवभारत टाइम्स में मेरे मातहत बतौर प्रशिक्षु पत्रकार ज्वाइन किया था। शायद 1988 का साल था । मैं वहाँ मुख्य उप संपादक था। अँगरेज़ी की कोई भी कॉपी दो,रूचि की कलम से फटाफट अनुवाद की हुई साफ़ सुथरी कॉपी मिलती थी। मगर,कभी कभी वह बेहद परेशान दिखती थी। टीम का कोई सदस्य तनाव में हो तो यह टीम लीडर की नजऱ से छुप नहीं सकता। कुछ दिन तक वह बेहद व्यथित दिखाई दे रही थी। एक दिन मुझसे नहीं रहा गया। मैने पूछा,उसने टाल दिया। मैं पूछता रहा,वह टालती रही।एक दिन लंच के दरम्यान मैंने उससे तनिक क्षुब्ध होकर कहा , रूचि ! मेरी टीम का कोई सदस्य लगातार किसी उलझन में रहे ,यह ठीक नहीं।उससे काम पर उल्टा असर पड़ता है।उस दिन उसने पहली बार कमाल का नाम लिया।कमाल नवभारत टाइम्स लखनऊ में थे।दोनों विवाह करना चाहते थे। कुछ बाधाएँ थीं । उनके चलते भविष्य की आशंकाएँ रूचि को मथती रही होंगीं । एक और उलझन थी । मैनें अपनी ओर से उस समस्या के हल में थोड़ी सहायता भी की । वक़्त गुजऱता रहा। रूचि भी कमाल की थी।कभी अचानक बेहद खुश तो कभी गुमसुम। मेरे लिए वह छोटी बहन जैसी थी।पहली बार उसी ने कमाल से मिलवाया।मैं उसकी पसंद की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सका।मैने कहा, तुम दोनों के साथ हूँ।अकेला मत समझना।फिर मेरा जयपुर छूट गया। कुछ समय बाद दोनों ने ब्याह रचा लिया।अक्सर रूचि और कमाल से फ़ोन पर बात हो जाती थी। दोनों बहुत ख़ुश थे।
इसी बीच विनोद दुआ का दूरदर्शन के साथ साप्ताहिक न्यूज़ पत्रिका परख प्रारंभ करने का अनुबंध हुआ।यह देश की पहली टीवी समाचार पत्रिका थी। हम लोग टीम बना रहे थे।कुछ समय वरिष्ठ पत्रकार दीपक गिडवानी ने परख के लिए उत्तरप्रदेश से काम किया।अयोध्या में बाबरी प्रसंग के समय दीपक ही वहाँ थे। कुछ एपिसोड प्रसारित हुए थे कि दीपक का कोई दूसरा स्थाई अनुबंध हो गया और हम लोग उत्तर प्रदेश से नए संवाददाता को खोजने लगे। विनोद दुआ ने यह जि़म्मेदारी मुझे सौंपी । मुझे रूचि की याद आई। मैनें उसे फ़ोन किया।उसने कमाल से बात की और कमाल ने मुझसे।संभवतया तब तक कमाल ने एनडीटीवी के संग रिश्ता बना लिया था।चूँकि परख साप्ताहिक कार्यक्रम था इसलिए रूचि गृहस्थी संभालते हुए भी रिपोर्टिंग कर सकती थी।कमाल ने भी उसे भरपूर सहयोग दिया।यह अदभुत युगल था ।दोनों के बीच केमिस्ट्री भी कमाल की थी।बाद में जब उसने इंडिया टीवी ज्वाइन किया तो कभी कभी फ़ोन पर दोनों से दिलचस्प वार्तालाप हुआ करता था।एक ही ख़बर के लिए दोनों संग संग जा रहे हैं।टीवी पत्रकारिता में शायद यह पहली जोड़ी थी जो साथ साथ रिपोर्टिंग करती थी।जब भी लखनऊ जाना हुआ,कमाल के घर से बिना भोजन किए नहीं लौटा।दोनों ने अपने घर की सजावट बेहद सुरुचिपूर्ण ढंग से की थी। दोनों की रुचियाँ भी कमाल की थीं.एक जैसी पसंद वाली ऐसी कोई दूसरी जोड़ी मैंने नहीं देखी।जब मैं आज तक चैनल का सेन्ट्रल इंडिया का संपादक था,तो अक्सर उत्तर प्रदेश या अन्य प्रदेशों में चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान उनसे मुलाक़ात हो जाती थी।कमाल की तरह विनम्र,शालीन और पढऩे लिखने वाला पत्रकार आजकल देखने को नहीं मिलता।कमाल की भाषा भी कमाल की थी। वाणी से शब्द फूल की तरह झरते थे।इसका अर्थ यह नहीं था कि वह राजनीतिक रिपोर्टिंग में नरमी बरतता था। उसकी शैली में उसके नाम का असर था। वह मुलायम लफ्ज़़ों की सख़्ती को अपने विशिष्ट अंदाज़ में परोसता था। सुनने देखने वाले के सीधे दिल में उतर जाती थी।आज़ादी से पहले पद्य पत्रकारिता हमारे देशभक्तों ने की थी ।लेकिन,आज़ादी के बाद पद्य पत्रकारिता के इतिहास पर जब भी लिखा जाएगा तो उसमें कमाल भी एक नाम होगा। किसी भी गंभीर मसले का निचोड़ एक शेर या कविता में कह देना उसके बाएं हाथ का काम था । कभी कभी आधी रात को उसका फ़ोन किसी शेर, शायर या कविता के बारे में कुछ जानने के लिए आ जाता ।फिर अदबी चर्चा शुरू हो जाती। यह कमाल की बात थी कि कि रूचि ने मुझे कमाल से मिलवाया ,लेकिन बाद में रूचि से कम,कमाल से अधिक संवाद होने लगा था।
कमाल के व्यक्तित्व में एक ख़ास बात और थी। जब परदे पर प्रकट होता तो सौ फ़ीसदी ईमानदारी और पवित्रता के साथ। हमारे पेशे से सूफ़ी परंपरा का कोई रिश्ता नहीं है ,लेकिन कमाल पत्रकारिता में सूफ़ी संत होने का सुबूत था। वह राम की बात करे या रहीम की ,अयोध्या की बात करे या मक्क़ा की ,कभी किसी को ऐतराज़ नहीं हुआ।वह हमारे सम्प्रदाय का कबीर था।
सच कमाल ! तुम बहुत याद आओगे। आजकल पत्रकारिता में जिस तरह के कठोर दबाव आ रहे हैं ,उनको तुम्हारा मासूम रुई के फ़ाहे जैसा नरम दिल शायद नहीं सह पाया।पेशे के ये दबाव तीस बरस से हम देखते आ रहे हैं। दिनों दिन यह बड़ी क्रूरता के साथ विकराल होते जा रहे हैं । छप्पन साल की उमर में सदी के संपादक राजेंद्र माथुर चले गए। उनचास की उमर में टीवी पत्रकारिता के महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह याने एस पी चले गए। असमय अप्पन को जाते देखा,अजय चौधरी को जाते देखा ।दोनों उम्र में मुझसे कम थे । साठ पार करते करते कमाल ने भी विदाई ले ली।अब हम लोग भी कतार में हैं।क्या करें ? मनहूस घडिय़ों में अपनों का जाना देख रहे हैं ।

याद रखना दोस्त।

जब ऊपर आएँ तो पहचान लेना।

कुछ उम्दा शेर लेकर आऊंगा ।

कुछ सुनूंगा ,कुछ सुनाऊंगा ।

महफि़ल जमेगी ।

अलविदा कमाल !

हम सबकी ओर से श्रद्धांजलि।

खेल से इतर विवादों के बीच जोकोविच

अरुण नैथानी  –
यह परिस्थितियों का खेल है कि दुनिया के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी सर्बिया के नोवाक जोकोविच खेल से अलग कारणों से सुर्खियों में हैं। दरअसल, जोकोविच को आस्ट्रेलिया में प्रवेश करने से रोक दिया गया। हालिया विवाद खेल से जुड़ा नहीं है। जोकोविच कोरोना वैक्सीन लगाने के पक्षधर नहीं रहे हैं। एक सर्बिया डॉक्टर के पुत्र नोवाक की मान्यता रही है कि वैक्सीन लगाना, न लगाना व्यक्ति का निजी मामला है। लेकिन वैक्सीन को लेकर सोच के चलते उनकी आस्ट्रेलिया सरकार से ठन गई और हवाई अड्डे पर पहुंचते ही उनका वीजा रद्द कर दिया गया। उन्हें होटल में बने डिटेंशन सेंटर में ठहरा दिया गया, जिसके चलते आस्ट्रेलिया व विदेश में टेनिस व जोकोविच के समर्थकों की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई। यहां तक कि आस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार व विक्टोरिया राज्य सरकार इस मुद्दे पर आमने-सामने आ गई। दरअसल, विक्टोरिया प्रांत की सरकार आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट का आयोजन कराती है। नोवाक जोकविच ने वर्ष 2021 समेत नौ बार आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट जीता है।
अब सर्बिया सरकार के तल्ख विरोध और खेल जगत की तीखी प्रतिक्रिया के बाद लगता है कि जोकोविच आगामी 17 जनवरी से आरंभ होने वाले वर्ष के पहले ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में अपना दमखम दिखा सकेंगे। इससे पहले आस्ट्रेलिया में प्रवेश पर रोक लगाने के आस्ट्रेलियाई प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ जोकोविच कोर्ट गये थे। वकीलों की बहस के बाद अदालत ने वीजा रद्द करने के फैसले को खारिज कर दिया। इसके मायने यह हैं कि जोकोविच का वीजा वैध है और वे साल के पहले ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में भाग ले सकते हैं।
वास्तव में दुनिया के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी चौंतीस वर्षीय नोवाक जोकोविच कोरोना संक्रमण की शुरुआत से ही वैक्सीन लगाने के पक्षधर नहीं रहे हैं। उन्होंने यह कभी स्पष्ट भी नहीं किया है कि उन्होंने वैक्सीन लगाई है। वर्ष 2020 में जब कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था तब उन्होंने कहा था कि वे टीके लगाने का विरोध करते हैं। हालांकि, तब कोरोना का टीका नहीं आया था। उनकी धारणा थी कि व्यक्ति के शरीर के लिये अच्छा-बुरा क्या है, यह तय करना व्यक्ति का नितांत निजी मामला है। उनका मानना था कि यात्रा व किसी टूर्नामेंट में भाग लेने के लिये टीका लगाने हेतु बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही उनका यह भी कथन था कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं और उन उपायों पर ध्यान देते हैं जो हमें कोरोना संक्रमण से बचाने में सहायक होते हैं। हालांकि, उनके देश सर्बिया में महामारी विशेषज्ञों का कथन था कि उनकी सोच अवैज्ञानिक है और लोगों के मन में वैक्सीन को लेकर संदेह पैदा करती है। वहीं जोकोविच की दलील थी कि सकारात्मक सोच हमारे स्वास्थ्य को बेहतर करती है, जैसे पानी के अणु हमारी भावनाओं के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं। हालांकि, जोकोविच ने कभी वैक्सीन का पुरजोर विरोध नहीं किया, लेकिन वैक्सीन विरोधी उन्हें अपना आइकन मानने लगे हैं। वे जोकोविच का वीजा रद्द करने पर खुलकर उनके समर्थन में आ खड़े हुए हैं। वहीं आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, वह कानून से ऊपर नहीं हो सकता। दरअसल, इस मुद्दे पर राजनीति भी हो रही है क्योंकि कोरोना के मामले में सरकार की नीति को लेकर आलोचना होती रही है। फिर आस्ट्रेलिया में अगले साल चुनाव भी होने हैं। संघीय सरकार चाहती है कि प्रत्येक व्यक्ति कोरोना नियमों का पालन करे। वहीं आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट का आयोजन करने वाली टेनिस ऑस्ट्रेलिया चाहती है कि अंतर्राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को स्वस्थ रहने पर छूट दी जाये क्योंकि यह आयोजन देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा सवाल है। आस्ट्रेलिया सरकार की सख्ती को लेकर जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल जगत में आलोचना होती रही है, वहीं आस्ट्रेलिया में भी टेनिस प्रेमियों का बड़ा वर्ग जोकोविच के समर्थन में उतरा।
बहरहाल, कोर्ट के आदेश के बाद जोकोविच प्रवासी हिरासत केंद्र से बाहर आ चुके हैं। लोग मान रहे हैं कि संघीय सरकार व विक्टोरिया प्रांत की सरकार की अलग-अलग राय होने से हुई खींचतान के चलते लोगों में अविश्वास की भावना पैदा हुई है। जहां वैक्सीन विरोधी इस जीत को मनोबल बढ़ाने वाली बता रहे हैं, वहीं आम आस्ट्रेलियाई लोग मानते हैं कि खास लोगों को वैक्सीन से छूट दिया जाना गलत है। दरअसल, आस्ट्रेलिया में भी नये कोरोना वेरिएंट का खासा प्रभाव है और संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।
इसी बीच जोकोविच के प्रबंधकों ने दावा किया है कि उन्हें चिकित्सा छूट के आधार पर आस्ट्रेलिया आने की अनुमति दी गई थी। अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों में कहा गया कि इस यात्रा से पूर्व टेनिस आस्ट्रेलिया के दो पैनलों ने नोवाक जोकोविच को वैक्सीन लगाने में छूट दी थी। दरअसल, यह ही संस्थान आस्ट्रेलिया व विक्टोरिया में टेनिस टूर्नामेंटों का आयोजन करता है। बहरहाल, 17 जनवरी से शुरू होने वाले आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट में भाग लेने से जोकोविच को रोकने के बाद उन्हें व्यापक सहानुभूति भी मिली है। कुछ लोग मानते हैं कि उनके साथ उनकी प्रतिष्ठा के विपरीत व्यवहार किया गया। यहां तक कि कई मानवाधिकार संगठन भी उनके समर्थन में खड़े नजर आये। जोकोविच के देश सर्बिया में इस फैसले का तीखा विरोध हुआ। यहां तक कि सर्बिया के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर वुचिच ने नोवाक को उत्पीडि़त बताया। लोगों का मानना है कि नौ बार टूर्नामेंट जीत चुके जोकोविच के साथ कम से कम ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था।

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