सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को दी कई सौगातें

*मुख्यमंत्री ने  17,222.02 करोड़ रुपए की 1454 योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास किया,  लाभुकों के बीच बांटी परिसंपत्ति

*मुख्यमंत्री ने पेट्रोल में प्रति लीटर 25 रुपए का राहत देने की घोषणा की, अगले वर्ष 26 जनवरी से गरीबों को मिलेगा लाभ 

*मुख्यमंत्री ने कहा- छात्र -छात्राओं के लिए स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना जल्द, विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति योजना का बढ़ेगा दायरा

*जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास कर रही है यह सरकार

*शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए चलाए गए “आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार ” कार्यक्रम का मिला सार्थक परिणाम – श्री रमेश बैस  राज्यपाल, झारखंड

*झारखंड अब ना रुकेगा और झुकेगा, निश्चित रूप से आगे बढ़ेगा. सरकार कर रही काम

*आपके दरवाजे पर अब पहुंच रहा सरकारी महकमा ,कल्याणकारी योजनाओं से आपको जोड़ने का चल रहा अभियान –  श्री हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री , झारखंड

 

मोरहाबादी मैदान, रांची  – लोकतंत्र में जनता का हित सर्वोपरि होता है . सरकार का लक्ष्य होना चाहिए कि वह जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर खरा उतरे. राज्यपाल श्री रमेश बैस ने आज मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के 2 वर्ष पूरे होने के अवसर पर रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कही । उन्होंने मुख्यमंत्री को की दूसरी वर्षगांठ की  बधाई देते हुए कहा कि सरकार आम जनता के कल्याण के लिए लगातार कोशिश कर रही है . उन्होंने कोरोना काल में सरकार द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की . राजपाल ने शिक्षा स्वास्थ्य और क्षेत्रों में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर खुशी जाहिर की. उन्होंने शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए चलाए गए आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम को कारगर कदम बताया . राज्यपाल ने उम्मीद जताई कि यह सरकार भविष्य में भी समाज के सभी वर्ग और तबके के हित में कार्य करती रहेगी।

 गरीबों को हर माह 10 लीटर पेट्रोल पर प्रति लीटर 25 रुपए की मिलेगी राहत

झारखंड अब ना रुकेगा और झुकेगा, निश्चित रूप से आगे बढ़ेगा. सरकार इस संकल्प के साथ अपनी कार्य योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम तेजी से कर रही है. मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर  आयोजित राज्यस्तरीय समारोह में राज्यवासियों को कई सौगातें दी. उन्होंने कहा कि आज पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं. इसका बुरा असर गरीब एवं मध्यम वर्ग के परिवारों को हुआ है .  एक गरीब व्यक्ति घर में मोटरसाइकिल होते हुए भी पेट्रोल के पैसे नहीं रहने के कारण उसको चला नहीं पा रहा है.  अपना फसल बेचने बाजार नहीं जा पा रहा है . इसलिए मैंने निर्णय लिया है कि वैसे राशन कार्डधारी यदि अपने मोटरसाइकिल या स्कूटर में पेट्रोल भरातें हैं तो 25 रुपए प्रति लीटर की दर से राशि उनके बैंक खाते में ट्रांसफर करेंगे। यह  व्यवस्था अगले वर्ष 26 जनवरी से लागू करने जा रहे हैं ।  एक गरीब परिवार प्रतिमाह 10 लीटर पेट्रोल तक यह राशि प्राप्त कर सकता है ।

 छात्र-छात्राओं के लिए स्टूडेंट्ड क्रेडिट कार्ड योजना बहुत जल्द

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर राज्य के छात्र-छात्राओं के लिए स्टूडेंट्स क्रेडिटकार्ड  योजना लागू करने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि जल्द ही राज्य के विद्यार्थियों को इस योजना का लाभ मिलेगा. उन्हें अपनी शिक्षा के लिए पैसे की कमी कभी बाधा नहीं बनेगी. स्टूडेट्स क्रेडिट योजना उनके बेहतर शिक्षा के सपनों का सार्थक करेगा.

 झारखंड आंदोलनकारी के आश्रितों को नौकरियों में 5 प्रतिशत क्षैतिज आऱक्षण मिलेगा

मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड राज्य आंदोलन की उपज है. कई लोगों ने इस राज्य के लिए हुए आंदोलन में अपनी शहादत दी. हमारी सरकार ऐसेआंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को सम्मान के साथ पेंशन तो दे ही रही है. अब उन्हें सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत क्षैतिज आऱक्षण मिलेगा. मुख्यमंत्री ने समारोह में मंच से इसकी घोषणा की.

 विदेशों में पढ़ाई के लिए शत प्रतिशत छात्रवृति योजना का दायरा बढ़ेगा

मुख्यमंत्री ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए शत प्रतिशत छात्रवृति दे रही है. इस वर्ष इस योजना के तहत छह विद्यार्थियों को विदेशों में पढ़ाई के लिए चयनित किय़ा गया है. अब राज्य सरकार इस स्कॉलरशिप योजना का दायरा बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रही है. अन्य वर्ग के होनहार विद्यार्थियों को भी विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप योजना से जोड़ा जाएगा.

 सरकारी कर्मियों की ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग पर भी सरकार कर रही विचार

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार के कर्मियों द्वारा लंबे अर्से से ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग की जा रही है. सरकार उनकी इस मांग पर विचार कर रही है और जल्द ही विधिसम्मत निर्णय लिया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि राज्य के कई विभागों में हजारों की संख्या में अनुबंधकर्मी कार्यरत है. वे अपनी मांगों और समस्याओं को लेकर लगातार आंदोलन करते रहते हैं. उनकी मांगें सरकार के संज्ञान में है. लेकिन, समस्याओं का समाधान आंदोलन और धरना प्रदर्शन से नहीं होगा. आप हमें सहयोग करें. वार्ता के लिए आगे आएं. हम आपकी मांग पर यथोचित निर्णय लेंगे, ताकि सभी के सहयोग से राज्य को विकास के पथ पर आगे ले जा सकें.

 प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के गरीब विद्यार्थियों को भी बेहतर और गुणवत्तायुक्त शिक्षा मिले, इस दिशा में सरकार लगातार काम कर रही है. इसी वजह से अगले सेशन से कई सरकारी विद्यालयों में निजी स्कूलों की तर्ज पर पढ़ाई शुरू करने का निर्णय सरकार ने लिया है. यहां विद्यार्थियों को शिक्षा से संबंधित सभी जरूरी एवं मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होंगी.

 आप सभी के सहयोग से सरकार ने सफलतापूर्वक पूरे किए हैं दो साल

इससे पहले मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि राज्यवासियों के सहयोग से हमारी सरकार ने सफलतापूर्वक दो साल पूरे किए हैं. लेकिन, ये दो साल ना सिर्फ झारखंड बल्कि पूरी दुनिया के लिए संकट औऱ चुनौतीपूर्ण रहे हैं. कोरोना महामारी के कारण पूरी दुनिया की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई. लॉक डाउन लगा और लोग अपने घरों में कैद होने को मजबूर हो गए. लोगों के सामने जीवन औऱ जीविका का संकट पैदा हो गया. ऐसे हालात में लोगों को कैसे राहत मिले, इसे लेकर सरकार लगातार मंथन करती रही. जब हालात थोड़े बेहतर हुए तो पूरी सतर्कता के साथ सरकार ने अपनी योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम शुरू किया, ताकि लोगों के जीवन और जीविका पर जो संकट आया था, उसका समाधान हो सके. इसमें हमारी सरकार की योजनाएं काफी कारगर रही. हालांकि, कोरोना का खतरा अभी भी बरकरार है. लेकिन, पूरी सावधानी के साथ विकास कार्यक्रमों को गति देने का काम चल रहा है.

 आपका विश्वास हमारी ताकत, आपकी समस्याओं का कर रहे समाधान

मुख्यमंत्री ने कहा का पिछले दो वर्षों में सरकार द्वारा 28-30 योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है. शहर से लेकर गांव में अंतिम पंक्ति में बैठे व्यक्तिय़ों को लाभ दिलाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयास कर रही है. पहले जहां सुदूरवर्ती गांवों में अधिकारी नहीं जाते थे. योजनाएं नहीं पहुंच पाती थी, लेकिन हमारी सरकार ने आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम चलाया. इसके तहत ना सिर्फ आपके दरवाजे पर सरकारी महकमा पहुंच रहा है, बल्कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से उन्हें जोड़ने के साथ उनकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है. यह जनता की सरकार है. जनता की उम्मीदों और आंकाक्षाओं को पूरा कर रहे हैं. आपकी हर समस्य़ा का समाधान होगा, हमारी सरकार पर आपने दो सालों तक विश्वास किया है, आगे भी ऐसा ही विश्वास बनाए रखें.

 भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर बना रहे कार्ययोजनाएं

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य को आगे ले जाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयत्नशील है. हमारी सरकार ना सिर्फ वर्तमान बल्कि अगले 25 से 30 सालों की जरूरतों को ध्यान में रखकर कार्य योजनाएं बना रही है. भविष्य की जरूरतें सरकार के ध्यान में है. ऐसे में हमारी जो भी योजनाएं लागू हो रही है, उसका दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेगा. वह दिन दूर नहीं जब झारखंड एक सक्षम और सशक्त राज्य के रुप में पहचान स्थापित करेगा और अन्य राज्यों को सहयोग करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा.

 खनिजों के अलावे अन्य क्षेत्रों में काफी संभावनाएं

मुख्यमंत्री ने कहा कि आमतौर पर झारखंड राज्य की पहचान खनिज संसाधनों के लिए होती है. लेकिन, यहां पर्यटन और खेल समेत कई अन्य क्षेत्रों में भी काफी संभावनाएं हैं. ऐसे में राज्य के पर्यटक स्थलों को विकसित करने के लिए नई पर्यटन नीति बनाई गई है. पर्यटक स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है. वहीं खेल और खिलाडियों के लिए भी सरकार ने कई नीति बनाई है. खिलाड़ियों की सीधी नियुक्ति हो रही है और खेल प्रतिभाओं को उभारने के लिए प्रशिक्षण के साथ विभिन्न प्रतियोगिताओं का लगातार आयोजन किया जा रहा है.

आंतरिक संसाधनों को बढाने के लिए उठाए जा रहे कई कदम

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यवासियों के हित में सरकार कई योजनाएं बना रही है. ये योजनाएं कैसे सफलतापूर्वक लागू हों, इसके लिए संसाधनों की व्यवस्था होनी बेहद जरूरी है. इसी बात को ध्यान में रखकर हमारी सरकार ईमानदार सोच, विजन और बेहतर प्रबंधन के साथ आंतरिक संसाधनों को बढ़ाने का लगातार प्रयास कर रही है.

कई नए कार्यक्रमों की हुई शुरूआत

समेकित बिरसा ग्राम विकास योजना सह किसान पाठशाला की शुरूआत

राज्य के किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए सरकार लगातार प्रयत्नशील है. आज राज्यस्तरीय समारोह में इसके लिए समेकित बिरसा ग्राम विकास योजना सह किसान पाठशाला का शुभारंभ किया गया. पहले चरण में 17 किसान पाठशाला खोले जाएंगे, जबकि आने वाले तीन सालों में इसकी संख्या को बढ़ाकर एक सौ करने की योजना है.

 कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ एक हजार दिनों के विशेष समर अभियान का शुभारंभ

महिलाओं को एनिमिया और बच्चों को कुपोषण की समस्या से निजात दिलाना सरकार की विशेष प्राथमिकता है. इसी संदर्भ में आज एक हजार दिनों का विशेष समर अभियान शुरू करने का मुख्यमंत्री ने ऐलान किया.

प्लेसमेंट लिंक्ड ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए एमओयू

राज्य में 12वीं पास विद्यार्थियों को आईटी की ट्रेनिंग देने के लिए श्रम विभाग और एचसीएल टेक्नोलॉजी के बीच आज एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया. इसके तहत यहां के इंटर पास विद्यार्थियों को एचसीएल कंपनी के द्वारा प्लेसमेंट लिंक्ड ट्रेनिंग प्रोगाम से जोड़ा जाएगा और प्लेसमेंट की भी व्यवस्था की जाएगी.

 वन उपज को बढ़ावा और बाजार उपलब्ध कराने के लिए एमओयू

झारखंड आदिवासी बाहुल्य राज्य है. यहां की एक बड़ी आबादी अपनी जीविका के लिए वनोत्पादों पर निर्भर है. ऐसे में सरकार ने वनोत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में नीति बनाई है. इसी के तहत आज  वन विभाग, कल्याण विभाग और इंडियन स्कूल ऑ फ बिजनेस के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया गया. इससे यहां के वन उपज को व्यवसायिक बाजार उपलब्ध कराने में सहूलियत होगी.

पत्रकार स्वास्थ्य बीमा योजना का शुभारंभ

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर राज्य के पत्रकारों के लिए पत्रकार स्वास्थ्य बीमा योजना लागू करने की घोषणा की. इस योजना के तहत उन्हें पांच लाख रुपए तक का बीमा कवर मिलेगा. मीडियाकर्मियों के साथ उनके परिजनों को भी इस योजना का लाभ मिलेगा.

 कई योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर 17,222.02 करोड़ रुपए की 1454 योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास किया. इसमें 2965.22 करोड़ रुपए की 20 राज्यस्तरीय और 10770.88 करोड़ रुपए की अन्य 1014 योजनाओं का शिलान्यास किया. इस तरह शिलान्यास किए जाने वाले योजनाओं की कुल लागत 13,736.1 करोड़ रुपए है. वहीं, 1287.51 करोड़ रुपए की लागत से 20 राज्यस्तरीय और 2198.41 करोड़ रुपए की लागत से 400 योजनाओं का उद्घाटन हुआ.  इसके अलावा  1493.38 रुपए की परिसंपत्तियों का वितरण लाभुकों के बीच किया गया. वहीं, कई नव चयनित अभ्यर्थियों को मुख्यमंत्री के द्वारा नियुक्ति पत्र प्रदान किया गया.

इस अवसर पर राज्यसभा सांसद श्री शिबू सोरेन, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री श्री आरपीएन सिंह, मंत्री श्री आलमगीर आलम और श्री सत्यानंद भोक्ता, विधायक श्री बंधु तिर्की और श्री राजेश कच्छप, मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी श्रीमती कल्पना सोरेन,  मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, पुलिस महानिदेशक श्री नीरज सिन्हा, मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे के अलावे विभिन्न विभागों के अपर मुख्य सचिव/ प्रधान सचिव / सचिव मौजूद थे.

संकटकाल में नयी चाल में ढला साहित्य

अतुल सिन्हा –
निस्संदेह, कोरोना काल में मानवीय त्रासदी का चरम दिखा, जिसने रचनाकारों को उद्वेलित किया। इस काल के सृजन में मानवीय त्रासदी की गहरी छाया रही। इस दौरान साहित्य ने अपनी चाल बदली। विपुल साहित्य का सृजन हुआ। डिजिटल माध्यम की स्वीकार्यता बढ़ी।?लेकिन पुस्तक छपवाने का मोह कम नहीं हुआ। प्रकाशकों का काम बढ़ा। इस दौरान हमने अनेक नामचीन साहित्यकारों को भी?खोया।
एक महामारी ने पूरी जीवन शैली बदल दी। तकरीबन दो सालों से हम सब के बीच फासले बढ़ गए। सोचने-समझने और लिखने-पढऩे के तौर-तरीकों में बदलाव आया और साहित्य सृजन की दृष्टि भी काफी हद तक बदल गई। कोरोना काल में साहित्य रचने का यह दूसरा साल था। लॉकडाउन भले ही कुछ महीनों का रहा हो, लेकिन इसका असर दीर्घकालिक है। वर्ष 2021 के इस सबसे भयानक कालखंड में हमारे बीच से बहुत से लोग, रचनाकार, पत्रकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी चले गए। कुछ रचते हुए चले गए, कुछ रचने की बहुत-सी योजनाओं को साथ लिए चले गए। सन् 2020 के कोरोना कालखंड में जहां मजदूरों का पलायन और सड़कों पर मजबूरन धकेल दिए गए श्रमिकों का दर्द रचनाओं में झलकता रहा तो इस बार लगातार और असमय अलविदा कह देने वालों से जुड़ी मानवीय पीड़ा और एक बेबसी दिखाई देती रही। रचनाकार या तो सदमे में रहा, लिखने-पढऩे से विरक्ति का शिकार रहा, या फिर रचा तो इतना रचा कि उसकी सारी संवेदनाएं अपने विभिन्न रूपों में सामने आती रहीं। कविताएं हों, कहानियां हों, डायरी के पन्ने हों, उपन्यास हों या संस्मरण– इस दौर में जो भी लिखा गया, ज्यादातर में इसकी झलक मिली। सत्ता के प्रति गुस्सा, संवेदनहीन सरकार और बेबस प्रशासन की अव्यवस्थाएं, अस्पतालों की भयावहता, ऑक्सीजन को लेकर त्राहि-त्राहि और सरकारों के दावे, वैक्सीनेशन की सरकारी प्रतियोगिताएं और सबसे ज्यादा उन परिवारों और व्यक्तियों की त्रासदी जो या तो अचानक चले गए, या अव्यवस्थाओं के शिकार होकर अलविदा कह गए।
कोरोना काल में डिजिटल हो चुके देश में वैसे तो अब ज्यादातर साहित्य फेसबुक या सोशल मीडिया पर रचा जा रहा है, लेकिन ये प्लेटफॉर्म बस आपके डायरी के पन्नों की तरह है। आखिरकार सभी की यह चाहत रहती है कि उनका यह रचनाकर्म पुस्तक के रूप में आए, बेशक इसके लिए पैसे खर्च करके प्रकाशकों की तलाश की जाए और अपने हिस्से का साहित्य रच दिया जाए। ज्यादातर लेखक और कवि चाहते हैं कि उनकी कोई न कोई किताब पुस्तक मेलों में जरूर आए ताकि कम से कम उनके रचनाकर्म को एक पहचान मिल सके। लखनऊ समेत तमाम शहरों में पुस्तक मेले लगने शुरू हो गए हैं और एक बार फिर जनवरी के दूसरे हफ्ते में दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले की तैयारी है। वर्ष 2021 में छपी हजारों पुस्तकों को एक बड़ा आयाम यहां मिलने जा रहा है। प्रकाशकों के पास पुस्तकों के जबरदस्त ऑर्डर हैं और तमाम पुस्तकें छपने के अंतिम चरण में हैं। प्रकाशकों के लिए यह वक्त बहुत मुफीद होता है और कोरोना काल ने तो उनका प्रिंट ऑर्डर काफी बढ़ा दिया है। तमाम प्रकाशक बताते हैं कि कोरोना काल से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा है, बल्कि पहले से कहीं ज्यादा किताबें इस बार छप रही हैं। कोरोना काल में घर बैठे लोगों ने खूब लिखा है। सबसे बड़ी बात कि अब किताबों को बेचने के लिए पुस्तक मेलों के अलावा अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध होने से काफी सहूलियत हो गई है, इसलिए बड़ी संख्या में किताबें छप भी रही हैं और बिक भी रही हैं। किताबें छपवाने के लिए कई लेखक प्रकाशकों को मोटी धनराशि भी देने लगे हैं इसलिए आम तौर पर प्रकाशन के व्यवसाय पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। फिर भी कई प्रकाशक ऐसे भी हैं, जिनके लिए मुश्किलें बढ़ गईं और उन्हें अपने कर्मचारियों की छंटनी भी करनी पड़ी।
कोरोना काल में 2021 का विश्व पुस्तक मेला पहली बार डिजिटल माध्यम से जनवरी की जगह मार्च के पहले हफ्ते में चार दिनों के लिए 6 से 9 मार्च तक आयोजित हुआ। कोरोना की पहली लहर से धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य होती दिख रही थीं, लेकिन लोगों में डर था, ढेर सारी पाबंदियां थीं और अगले ही महीने कोरोना का सबसे खतरनाक दूसरा दौर आया जो तमाम लोगों पर कहर बनकर टूटा और एक बार फिर दहशत से भरी जि़ंदगी घरों में कैद हो गई। फेसबुक और सोशल मीडिया मौत की सूचनाओं के अलावा अस्पतालों की चरमराई व्यवस्थाओं से भरा रहा। इसी दौरान तमाम लेखकों ने फेसबुक पर रोजाना साहित्य रचना शुरू कर दिया। जाने-माने कवि मदन कश्यप कहते हैं कि 2020 के लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद रचे गए साहित्य में जहां विस्थापन का दर्द बहुत गहराई से सामने आया, वहीं 2021 में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में हुई मौतों और आदमी की असहायता और करुणा को साहित्य के विभिन्न रूपों में पेश किया गया। अभी यह सिलसिला जारी है और लंबे समय तक यह कविता, कहानी, उपन्यास और डायरी जैसे रूपों में सामने आता रहेगा। उनका कहना है कि जिस तरह विश्वयुद्ध के बाद पोस्ट वर्ल्डवार लिटरेचर का दौर था, वैसे ही पोस्ट कोरोना पोएट्री, फिक्शन और अन्य लेखन का एक रचनात्मक आंदोलन दिखाई दे रहा है।
मदन कश्यप की लॉकडाउन डायरी भी छपकर लगभग तैयार है। 2021 में श्रीप्रकाश शुक्ल की ‘महामारी और कविताÓ के अलावा अरुण होता के संपादन में ‘तिमिर में ज्योति जैसेÓ और कौशल किशोर के संपादन में ‘दर्द के काफिलेÓ जैसे कई महत्वपूर्ण संग्रह आए हैं, जिनमें कोरोना काल के दौरान रची गई कविताएं, आलेख और संस्मरण शामिल हैं।
कवि और संस्कृतिकर्मी कौशल किशोर बताते हैं कि इस महामारी के दौर में सभी संवेदनशील रचनाकारों ने सृजनात्मक हस्तक्षेप किया और इस दौरान रची गई कविताएं, कहानियां और संस्मरण अपने समय के दस्तावेज हैं। जब भी ऐसा कोई बड़ा संकट आया है, साहित्यकारों ने अपने दायित्व का निर्वाह किया है। इस बार भी ऐसा ही देखने में आ रहा है। इस बार तो कोरोना ही नहीं, दूसरी तरह की तमाम परिस्थितियां भी झेलनी पड़ रही हैं, जिसकी अभिव्यक्ति रचनाओं में हो रही है। इसी दौरान सेतु प्रकाशन ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें छापीं। आनंद स्वरूप वर्मा का ‘पत्रकारिता का अंधा युगÓ से लेकर रज़ा फाउंडेशन के साथ कई किताबों की शृंखला, ज्ञानरंजन की किताब ‘जैसे अमरूद की खुशबूÓ, जयप्रकाश चौकसे का ‘सिनेमा जलसाघरÓ, प्रचंड प्रवीर का ‘कल की बात – षडज़, ऋषभ और गांधारÓ, रणवीर सिंह की पारसी थिएटर पर एक महत्वपूर्ण किताब, संजीव की ‘पुरबी बयारÓ, आधुनिक हिन्दी रंगमंच और हबीब तनवीर के रंगकर्म पर अमितेश कुमार की किताब ‘वैकल्पिक विन्यासÓ, चंडी प्रसाद भट्ट की जीवनगाथा, फणीश्वरनाथ रेणु पर भारत यायावर की पुस्तकें और ऐसी तमाम पुस्तकें जो अलग अलग विषयों और संदर्भों में रची गईं।
सेतु प्रकाशन के अमिताभ राय का कहना है कि साहित्य सृजन एक निरंतर प्रक्रिया है और कोरोना काल के दौरान लेखकों, रचनाकारों और कई पत्रकारों ने इस प्रक्रिया को और तेज़ किया है। लॉकडाउन की त्रासदी, कोरोना का आतंक, जीवन शैली से लेकर सोच में आए बदलाव के साथ-साथ सत्ता की विद्रूपता के कई रंग इन रचनाओं में सामने आए हैं। उनके पास पुस्तक मेले को लेकर कम से कम सौ से ज्यादा किताबों को छापने का दबाव तत्काल है। इसके अलावा अशोक वाजपेयी रचनावली भी अंतिम चरण में है। मधुकर उपाध्याय की दस खंडों में छपी किताब– बापू और मदीह हाशमी की लिखी फैज़ अहमद फ़ैज़ की जीवनी – प्रेम और क्रांति के अलावा मंगलेश डबराल का कविता संग्रह भी सेतु प्रकाशन ने इसी साल छापा है।
वहीं अनुभव प्रकाशन के पराग कौशिक कहते हैं कि कोरोना काल में इस साल उनके कामकाज में और तेजी आई है। अब तक इस साल करीब डेढ़ सौ किताबें छाप चुके हैं। पुस्तक मेले में भी कुछ किताबें आने वाली हैं। उनका कहना है कि इस दौरान ई-बुक के क्षेत्र में भी काफी काम हुआ है और तमाम प्लेटफॉर्म्स पर उनकी ई-बुक्स उपलब्ध हैं।
इस दौरान प्रलेक प्रकाशन से सुभाष राय की किताब भी आई ‘अंधेरे के पारÓ जो कई कवियों और लेखकों पर आलेख और संस्मरणों का संकलन है। इसके अलावा कवि और पत्रकार शैलेन्द्र का छठा कविता संग्रह ‘सुने तो कोईÓ, सुरेश कांटक का कहानी संग्रह ‘अनावरणÓ, चंद्रेश्वर का कविता संग्रह ‘डुमराव नजर आएगाÓ, उषा राय का कहानी संग्रह ‘हवेलीÓ, सुभाष चंद्र कुशवाहा का ‘भील विद्रोहÓ, मीना सिंह का कविता संग्रह ‘काली कविताएं, दक्षिणी भूखंड और मैं, आशा राम जाग्रत की अवधी काव्य गाथा ‘पाही माफीÓ, प्रलेक प्रकाशन से छपा सलिल सुधाकर का उपन्यास ‘तपते कैनवास पर चलते हुएÓ, रणेन्द्र का ‘गूंगी रुलाई का कोरसÓ, संजीव पालीवाल का न्यूजरूम थ्रिलर ‘पिशाचÓ, सुरेन्द्र मनन का उपन्यास ‘हिल्लोलÓ, राजवंत राज का ‘ट्रंपकार्डÓ, सीमा आजाद का ‘औरत का सफर – जेल से जेल तकÓ, रामकुमार कृषक की कोरोना केन्द्रित कविताओं का संकलन ‘साधो, कोरोना जनहंताÓ, उर्मिलेश की किताब ‘गाजीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेलÓ, शोभा सिंह का कविता संग्रह ‘यह मिट्टी दस्तावेज़ हमाराÓ जैसी कई अहम किताबें 2021 में आईं। एक महत्वपूर्ण किताब इस बीच ममता कालिया की भी आई ‘जीते जी इलाहाबादÓ। इसमें उनके भीतर रचे-बसे इलाहाबाद की वो यादें हैं जो उनके स्नायुतंत्र में दौड़ती रहती हैं। इस बीच स्त्री विमर्श और उसकी आलोचना पक्ष पर केन्द्रित पुस्तकें भी आई हैं। इसी कड़ी में राजकमल प्रकाशन ने सुजाता की एक अच्छी किताब छापी है ‘आलोचना का स्त्री पक्षÓ।
प्रभात प्रकाशन की ओर से सच्चिदानंद जोशी की दो किताबें आईं ‘जिंदगी का बोनसÓ और ‘पुत्रिकामेष्टिÓ। आनंद स्वरूप वर्मा ने नेपाली साहित्य पर केन्द्रित समकालीन तीसरी दुनिया का एक संग्रहणीय अंक निकाला। फेहरिस्त बहुत लंबी है, कितनों का जि़क्र करें। प्रभात प्रकाशन ने भी इस बीच सौ से ज्यादा पुस्तकें छापीं और साल के जाते-जाते आशुतोष चतुर्वेदी के संपादन में पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी पर एक खास किताब भी छापी, जिसका लोकार्पण राज्यसभा के सभापति हरिवंश ने किया। प्रभात कुमार कहते हैं कि कोरोना काल में लेखकों की संख्या बहुत बढ़ गई है और ई-बुक्स का चलन काफी बढ़ा है। किताबें छप तो रही हैं लेकिन बिक कम रही हैं।
वहीं अनुभव प्रकाशन के पराग कौशिक कहते हैं कि अब तक इस साल करीब डेढ़ सौ किताबें वो छाप चुके हैं। उनका कहना है कि इस दौरान ई-बुक के क्षेत्र में भी काफी काम हुआ है और तमाम प्लेटफॉर्म्स पर उनके ई-बुक्स उपलब्ध हैं। इस दौरान अनुभव प्रकाशन ने सूरजपाल चौहान, डॉ. प्रदीप जैन, कैलाश दहिया, नरेन्द्र निगम, मृदुला भटनागर, ईशकुमार गंगानी, डॉ. धनंजय सिंह जैसे 30 से ज्यादा लेखकों की किताबें छापीं। दरअसल, इस बीच रचनात्मकता के कई आयाम दिखे। कोरोना काल में लिखी गई रचनाओं के ज्यादातर संग्रह आए, कई पत्रिकाओं ने अपने विशेषांक निकाले। खास बात यह भी रही कि सबने सिर्फ महामारी की विभीषिका की ही बात नहीं की, कई ऐसे उपन्यास, कहानी संग्रह, संस्मरण और कविताएं रची गईं, जिनका सरोकार समाज के तमाम आयामों, जीवन की सच्चाइयों, राजनीतिक व्यवस्था और जातिगत, धार्मिक उन्माद जैसे विषयों से भी जुड़ा रहा। जाहिर है देश में मौजूदा सत्ता और सोच पर केन्द्रित किताबों की भी लंबी फेहरिस्त रही और तमाम लेखकों ने अपनी आस्था का रचनात्मक इजहार भी किया। धार्मिक और पौराणिक पुस्तकों के अलावा, देशप्रेम और शौर्य गाथाओं के भी किस्से खूब छापे गए और यह सिलसिला जारी है।
साल के अंत में चंडीगढ़ में भारत-पाक युद्ध की स्वर्ण जयंती पर आधारित पांचवां मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल-2021 देश की सुरक्षा चुनौतियों व गौरवशाली सैन्य उपलब्धियों पर गंभीर विमर्श नई पीढ़ी तक पहुंचाने में सफल रहा।
डिजिटल मंचों पर साहित्यिक आयोजन
कोरोना काल के पहले कालखंड ने साहित्यकारों और रचनाकारों को फेसबुक लाइव से लेकर ऑनलाइन तमाम ऐसे मंच दिए, जिसमें साहित्य की तमाम धाराओं पर समय-समय पर चर्चाएं होती रहीं। 2021 में अब यह परंपरा थोड़े और वृहद और स्वीकार्य रूप में सामने आई। ज्यादातर प्रकाशन संस्थानों ने अपनी नई किताबों का ऑनलाइन विमोचन करवाए, उसपर चर्चाएं करवाईं और तमाम साहित्यिक मंचों पर कविताओं, कहानियों के पाठ हुए, साहित्यिक चर्चाएं हुईं। विश्व पुस्तक मेला और दिल्ली पुस्तक मेला तो ऑनलाइन हुआ ही, यहां के साहित्यिक सेशन भी डिजिटल मंचों पर हुए।
प्रतिरोध का साहित्य
सत्ता के जनविरोधी चरित्र को केन्द्र में रखकर अशोक वाजपेयी के नेतृत्व में कई लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने प्रतिरोध के साहित्य सृजन का अभियान शुरू किया। इस दौरान अशोक वाजपेयी ने प्रतिरोध पूर्वज के नाम से तमाम कालजयी रचनाकारों की कविताओं का संग्रह छापा। स्वप्निल श्रीवास्तव के संपादन में ताकि स्पर्श बचा रहे और विमल कुमार की मृत्यु की परिभाषा बदल दो, किताबों में स्त्री जैसी कई किताबें भी इसी कड़ी में सामने आईं और सौ से ज्यादा रचनाकारों ने एक प्रस्ताव पास करके पूरे देश के रचनाकारों से अपील की कि वो अपनी सीमा में प्रतिरोध का साहित्य रचते रहें और जनपक्षधर साहित्य का सृजन करते रहें।
जिनको हमने खो दिया
कोरोना काल के दूसरे सबसे भयानक काल ने बहुत से साहित्यकारों, लेखकों, संस्कृतिकर्मियों को हमसे छीन लिया। वर्ष 2021 में मन्नू भंडारी, कुंअर बेचैन, नरेन्द्र कोहली, विनोद दुआ, रमेश उपाध्याय, ईश मधु तलवार, ओम भारती, राजकुमार केसवानी को हमने खो दिया।?

कांग्रेस का आजादी व देश के विकास में योगदान अहम!

कांग्रेस स्थापना दिवस पर विशेष

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट –
कांग्रेस का स्वर्णिम इतिहास देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। इसका गठन सन 1885 में हुआ, जिसका श्रेय एलन ऑक्टेवियन ह्यूम को जाता है। एलेन ओक्टेवियन ह्यूम का जन्म सन1829 को इंग्लैंड में हुआ था। वह अंग्रजी शासन की सबसे प्रतिष्ठित ‘बंगाल सिविल सेवा’ में पास होकर सन 1849 में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी बने।सन 1857 की गदर के समय वह इटावा के कलक्टर थे। लेकिन ए ओ ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई और सन1882 में पद से अवकाश ले लिया और कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में मुंबई में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिल कर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया। लेकिन सन1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख़ कड़ा हुआ और अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरु हए।इसी बीच महात्मा गाँधी भारत लौटे और उन्होंने ख़िलाफ़त आंदोलन शुरु किया। शुरु में बापू ही कांग्रेस के मुख्य विचारक रहे। इसको लेकर कांग्रेस में अंदरुनी मतभेद गहराए। चित्तरंजन दास, एनी बेसेंट, मोतीलाल नेहरू जैसे नेताओं ने अलग स्वराज पार्टी बना ली।साल 1929 में ऐतिहासिक लाहौर सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया। पहले विश्व युद्ध के बाद पार्टी में
महात्मा गाँधी की भूमिका बढ़ी, हालाँकि वो आधिकारिक तौर पर इसके अध्यक्ष नहीं बने, लेकिन कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से निष्कासित करने में उनकी मुख्य भूमिका थी।स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस सबसे मज़बूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। महात्मा गाँधी की हत्या और सरदार पटेल के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरु के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला सन 1967 तक लगातार चलता रहा। पहले प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी।नेहरू की अगुआई में सन1952, सन1957 और सन1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में सफलता पाई। सन1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में कमान सौंप गई लेकिन उनकी भी सन 1966 में ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो गई। इसके बाद पार्टी की मुख्य कतार के नेताओं में इस बात को लेकर ज़ोरदार बहस हुई कि अध्यक्ष पद किसे सौंपा जाए। आखऱिकार पंडित नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनी।देश की आजादी के संघर्ष से जुड़े सबसे मशहूर और जाने-माने लोग इसी कांग्रेस का हिस्सा थे।गांधी-नेहरू से लेकर सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद तक आजादी की लड़ाई में आम हिंदुस्तानियों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी ने देश को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की थी।एलेन ओक्टेवियन ह्यूम सन1857 के गदर के वक्त इटावा के कलेक्टर थे। ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी. व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए।दादाभाई नौरोजी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता कांग्रेस के साथ आ गए थे।आजादी के बाद सन1952 में देश के पहले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। सन1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था।लेकिन सन 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता की कुर्सी छीन ली थी। हालांकि तीन साल के अंदर ही सन1980 में कांग्रेस वापस गद्दी पर काबिज हो गई।सन 1989 में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा।दादा भाई नौरोजी 1886 और 1893 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन1887 में बदरुद्दीन तैयबजी तो सन1888 में जॉर्ज यूल कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।सन1889 से सन1899 के बीच विलियम वेडरबर्न, फिरोज़शाह मेहता, आनंदचार्लू, अल्फ्रेड वेब, राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ बनर्जी, आगा खान के अनुयायी रहमतुल्लाह सयानी, स्वराज का विचार देने वाले वकील सी शंकरन नायर, बैरिस्टर आनंदमोहन बोस और सिविल अधिकारी रोमेशचंद्र दत्त कांग्रेस अध्यक्ष रहे।इसके बाद हिंदू समाज सुधारक सर एनजी चंदावरकर, कांग्रेस के संस्थापकों में शुमार दिनशॉ एडुलजी वाचा, बैरिस्टर लालमोहन घोष, सिविल अधिकारी एचजेएस कॉटन, गरम दल व नरम दल में पार्टी के टूटने के वक्त गोपाल कृष्ण गोखले, वकील रासबिहारी घोष, शिक्षाविद मदनमोहन मालवीय, बीएन दार, सुधारक राव बहादुर रघुनाथ नरसिम्हा मुधोलकर, नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर, भूपेंद्र नाथ बोस, ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहले भारतीय सदस्य बने एसपी सिन्हा, एसी मजूमदार, पहली महिला कांग्रेस अध्यक्ष एनी बेसेंट, सैयद हसन इमाम और नेहरू परिवार के मोतीलाल नेहरू सन 1900 से सन 1919 के बीच कांग्रेस अध्यक्ष रहे।सन 1915 में अफ्रीका से लौटकर भारत आए मोहनदास करमचंद गांधी का प्रभाव कांग्रेस की विचारधारा व आंदोलन तय करने में सन1920 के आसपास से साफ दिखना शुरू हो गया था।जो गांधी के जीवन के बाद तक भी बना हुआ है। सन1920 से भारत की आज़ादी अर्थात सन 1947 के बीच के युग में कांग्रेस अध्यक्ष पंजाब केसरी लाला लाजपत राय थे, जिन्होंने सन1920 के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। स्वराज संविधान बनाने में अग्रणी रहे सी विजयराघवचारियार, जामिया मिल्लिया के संस्थापक हकीम अजमल खान, देशबंधु चितरंजन दास, मोहम्मद अली जौहर, शिक्षाविद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन1924 में बेलगाम अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी और यहां से कांग्रेस के ऐतिहासिक स्वदेशी, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलनों की नींव पड़ी थी। सरोजिनी नायडू, मद्रास के एडवोकेट जनरल रहे एस श्रीनिवास अयंगर, मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस अध्यक्ष रहे। गांधी के अनुयायी जवाहरलाल नेहरू सन 1929 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बने थे सरदार वल्लभभाई पटेल, नेली सेनगुप्ता, राजेंद्र प्रसाद, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और गांधी के अनुयायी जेबी कृपलानी भारत को आज़ादी मिलने तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे।सन1948 और सन 1949 में पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और यही वह साल था जब गांधी की हत्या हो चुकी थी. महात्मा गांधी का प्रभाव आज तक भी भारतीय राजनीति पर है, लेकिन उनकी हत्या के बाद कांग्रेस का नेहरू युग शुरू हुआ। पहले प्रधानमंत्री बन चुके पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में जिस साल संविधान लागू हुआ ।सन 1950 में कांग्रेस के अध्यक्ष साहित्यकार पुरुषोत्तमदास टंडन थे।सन1951 से सन 1954 तक खुद नेहरू अध्यक्ष रहे। पंडित नेहरू युग में 1955 से सन19 59 तक यूएन धेबार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन 1959 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी बनी थी।सन 1960 से सन 1963 तक नीलम संजीव रेड्डी, नेहरू के निधन के सन 1964 से सन19 67 तक कामराज कांग्रेस अध्यक्ष रहे। हालांकि नेहरू का निधन 1964 में हो चुका था, लेकिन कांग्रेस का अगला इंदिरा गांधी युग लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद शुरू होता है।सन 1966 में पहली बार देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं। कामराज के साथ उनका सत्ता संघर्ष काफी चर्चित रहा। इसके बाद ही इंदिरा की लीडरशिप और उनके ‘आयरन लेडी’ होने के ख्याति मिलने लगी। इंदिरा गांधी के प्रभाव के समय में सन 1968से सन 1969 तक निजालिंगप्पा, 1970से सन 1971 तक बाबू जगजीवन राम ,1972से सन 1874 तक शंकर दयाल शर्मा और सन 1975 से सन 1977 तक देवकांत बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
सन1977 से सन1978 के बीच केबी रेड्डी ने कांग्रेस को संभाला लेकिन इमरजेंसी के बाद कांग्रेस टूटी तो सन 1978 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की अध्यक्ष वे स्वयं बनीं।कुछ समय को छोड़कर 1984 में अपनी हत्या के पहले तक इंदिरा ही अध्यक्ष रहीं। कांग्रेस ने करीब 15 साल का इंदिरा गांधी युग देखा और इसके बाद राजीव गांधी युग शुरू हुआ, कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री भी बने और सन1985 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गए थे। जब प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या हुई तब फिर कांग्रेस के सामने अध्यक्ष को लेकर संकट खड़ा हो गया था,क्योंकि शुरुआत में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने में रुचि नहीं दिखाई थी।इसी कारण सन1992 से सन1996 तक पीवी नरसिम्हाराव ने कांग्रेस का नेतृत्व किया ।सन 1996 से सन 19 98 तक गांधी परिवार के वफादार सीताराम केसरी अध्यक्ष रहे।सोनिया गांधी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण हुआ और सन1998 से सन 2017 तक करीब 20 वर्षो तक सोनिया ही कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं।राहुल गांधी को सन 2017 में पार्टी की कमान सौंपी गई, लेकिन सन 2019 के आम चुनावों में बड़ी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोडऩे की पेशकश की और कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर के नेता को होना चाहिए।लेकिन इसपर सहमति नही हुई। तबसे कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ही ने कांग्रेस का नेतृत्व कर रही है। सन1991,सन 2004, सन2009 में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता हासिल की।आजादी के बाद कांग्रेस कई बार विभाजित हुई। लगभग 50 नई पार्टियां इस संगठन से निकल कर बनीं। इनमें से कई निष्क्रिय हो गए तो कईयों का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और जनता पार्टी में विलय हो गया। कांग्रेस का सबसे बड़ा विभाजन सन1967 में हुआ। जब इंदिरा गांधी ने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम कांग्रेस (आर) रखा। सन 1971 के चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने इसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया।राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का काम देखना एआईसीसी की जिम्मेदारी होती है. राष्ट्रीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा पार्टी के महासचिव, खजांची, पार्टी की अनुशासन समिती के सदस्य और राज्यों के प्रभारी इसके सदस्य होते हैं.हर राज्य में कांग्रेस की ईकाई है जिसका काम स्थानीय और राज्य स्तर पर पार्टी के कामकाज को देखना होता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा में जिला स्तरीय पदों के लिए जनजातीय भाषाओं सहित क्षेत्रीय भाषाओं की सूची जारी

रांची, झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं के आयोजन हेतु कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग के द्वारा “झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (मैट्रिक/ 10वीं) संचालन (संशोधन) नियमावली, 2021”, “झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (इंटरमीडिएट/ 10+2 स्तर) संचालन( संशोधन) नियमावली, 2021 एवं झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (इंटरमीडिएट/ 10+2 कंप्यूटर ज्ञान एवं कंप्यूटर में हिंदी टंकण अहर्त्ता धारा पद हेतु) संचालन (संशोधन) नियमावली 2021 का गठन किया गया था।

उक्त नियमावलियों में पत्र-2-चिन्हित क्षेत्रीय/जानजातीय भाषा में जिला स्तरीय पदों के लिए जिलावार चिन्हित क्षेत्रीय/ जनजातीय भाषाओं की सूची कार्मिक, प्रशासनिक सुधार राजभाषा विभाग द्वारा अलग से संसूचित किया जाना था। जिसके आलोक में सम्यक विषय विचारोंपरांत झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा में जिला स्तरीय पदों के लिए क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं को जिलावार चिन्हित किया गया है। इसके तहत जनजातीय भाषा में संथाली, कुडुख, खड़िया, मुंडारी, हो, असुर, बिरजिया, बिरहोरी, भूमिज, माल्तो एवं क्षेत्रीय भाषा में नागपुरी, पंचपरगनिया, बंगला, अंगिका, कुरमाली, मगही, उड़िया, खोरठा, भोजपुरी भाषा शामिल हैं।

गरिमा परियोजना अंतर्गत डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत के लिए होगा काम – डॉ मनीष रंजन

*डायन कुप्रथा पीड़ितों को सुरक्षा व काउन्सेलिंग की जाएगी व्यवस्था

*जेंडर मंच बनाने का कार्य शुरू

*महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा के अलख से

खत्म होगा डायन कुप्रथा – डॉ सुनीता रॉय

रांची, 22.12.2021 – ,झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के द्वारा आयोजित डायन कुप्रथा मुक्त झारखण्ड के निर्माण के लिए आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन कई तकनीकी सेशन का आयोजन हुआ। विभिन्न विभागों के समन्वय, शिक्षा एवं जागरुकता की जरुरत एवं साझा रणनीति को केन्द्र में रखकर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी। कार्यशाला के दूसरे दिन मुख्य अतिथि के रुप में शिक्षाविद् डॉ सुनीता रॉय ने कार्यशाला की अध्यक्षता की।

गरिमा परियोजना अंतर्गत डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत के लिए होगा काम- डॉ मनीष रंजन

ग्रामीण विकास सचिव, डॉ मनीष रंजन ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि गरिमा परियोजना तो एक शुरूआत है, हमारा लक्ष्य झारखण्ड को डायन कुप्रथा मुक्त बनाना है। गरिमा परियोजना के तहत वल्नेबरिलिटी मैंपिंग एवं ग्राम संगठन के प्रशिक्षण के जरिए डायन कुप्रथा उन्मूलन को गति दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जल्द ही जेंडर मंच बनाया जाएगा, जिससे डायन कुप्रथा जैसे अंधविश्वास एवं भेदभाव को दूर कर जागरुक करने का काम किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सखी मंडल की बहनों द्वारा नुक्कड़ नाटक के जरिए भी प्रभावित गांवों में जागरुकता अभियान चलाया जाएगा एवं डायन कुप्रथा पीड़ितों को सुरक्षा व काउन्सेलिंग की व्यवस्था भी गरिमा परियोजना के जरिए की जाएगी। उन्होने कहा कि डायन कुप्रथा की पीडित महिलाओं को पुनर्वास पर भी काम किया जाएगा और सशक्त आजीविका से जोड़ा जाएगा।

श्री रंजन ने कहा कि इस कार्यशाला मे मिले सुझावों पर रणनीति तैयार कर डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत का निर्माण किया जाएगा।

महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा के अलख से खत्म होगा डायन कुप्रथा – डॉ सुनीता रॉय

शिक्षाविद् व यूजीसी वूमेन्स सेंटर की प्रमुख डॉ सुनीता रॉय ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि समाज को शिक्षित करने से ही डायन कुप्रथा का उन्मूलन संभव है। उन्होंने अपील की कि डायन प्रथा की पीडित महिलाओं को प्रशिक्षित करके ही सशक्त आजीविका से जोड़ा जा सकता है। कल के सुंदर विकसित समाज के निर्माण के लिए डायन कुप्रथा का उन्मुलन जरुरी है। ग्रामीण इलाके से ओझा गुणी प्रथा को खत्म करने के लिए शिक्षा के अलख जगाने की जरुरत है। इस हेतु ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को जागरुक करना अत्यंत आवश्यक है।

उन्होंने समाज में लैंगिंक समानता एवं महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि किन्नरों को भी विभिन्न जागरुकता अभियान में जोड़ने की जरुरत है ताकि उनके आजीविका की भी व्यवस्था हो।

कार्यशाला के तकनीकी सेशन में झालसा के संतोष कुमार ने बताया कि झालसा राज्य में डायन कुप्रथा पीड़ितों को कानूनी मदद करने के लिए लगातार प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि हमें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की जरुरत है, जल्द ही झालसा के द्वारा स्कूलों में लीगल साक्षरता क्लब का गठन किया जा रहा है जो डायन कुप्रथा उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ के वाइस चांसेलर डॉ केशव राव ने बच्चों को डायन कुप्रथा के बारे में जागरुक करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होने कहा कि इस कुप्रथा के उन्मूलन के लिए सबको मिलकर साझा प्रयास करने की जरुरत है। सेंटर फॉर लीगल एड प्रोग्राम के तहत डायन कुप्रथा के पीडितों को लगातार मदद उपलब्ध कराई जाती है।

सीआईपी के निदेशक डॉ बासुदेब प्रसाद ने कहा कि गरिमा परियोजना के अंतर्गत सीआईपी मानसिक स्वास्थय एवं मनोचिकित्सिय सहयोग के लिए कार्य करेगा। मानसिक स्वास्थ्य जागरुकता के लिए भी जेएसएलपीएस के साथ मिलकर कार्य करने की जरुरत है। पीड़ित महिलाओं को एक नया जीवन देने में मानसिक स्वास्थ्य की पहल की जाएगी। उन्होने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य काउन्सेलिंग के लिए साआईपी के 15 हेल्पलाईन नंबर   दिन-रात कार्य़ कर रहे है।

राष्ट्रीय स्तर की वक्ता गोविंद केलकर ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए डायन कुप्रथा के अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य को सामने रखा। अफ्रिका, यूरोप घाना समेत कई देशो का जिक्र करते हुए डॉ केलकर ने डायन कुप्रथा के कारण, निदान एवं उन्मूलन पर अपनी बातें रखी।

कार्यशाला के समापन समारोह में सीईओ जेएसएलपीएस श्रीमती नैन्सी सहाय ने कहा कि यह कार्यशाला गरिमा परियोजना के क्रियान्वयन एवं राज्य से डायन कुप्रथा के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सखी मंडल की बहनों के जरिए गांव –गांव तक जागरुकता का कार्य किया जाएगा एवं सभी स्टेकहोल्डर्स की साझा रणनीति पर कार्य करने का प्रयास रहेगा।

इस अवसर पर तकनीकी चर्चा को डॉ राकेश रंजन, रेशमा सिंह, मनीषा किरण ने भी संबोधित किया।

झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के  सदस्यों को पाकी विधायक डॉ शशिभूषण मेहता ने शॉल ओढ़ाकर समानित किया

रांची , झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के तत्वावधान में हुए कार्यक्रम में  एसोसिएशन के  सदस्यों को पाकी विधायक डॉ शशिभूषण मेहता ने शॉल ओढ़ाकर समानित किया. उन्होंने अपने सम्बोधन मे कहा कि हमारे विद्यालय में नामांकन लेने वाले  झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के बच्चों को एल केजी से टेन प्लस टू तक ट्युशन फीस 50%माफ कर दिया जायेगा.

उक्त जानकारी झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रोमोद कुमार कुशवाहा ने दी

जीत गये किसान, क्या भाजपा भी जीतेगी

राजकुमार सिंह –
साल भर पहले याचक की मुद्रा में देश की राजधानी दिल्ली की दहलीज पर पहुंच कर आंदोलनकारी बन गये किसान कल 11 दिसंबर को विजय दिवस मना कर घर वापसी करेंगे। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरुद्ध पिछले साल 26 नवंबर को जब किसानों ने दिल्ली में प्रवेश न मिलने पर दहलीज पर ही अनंतकाल तक धरने पर बैठ जाने का ऐलान किया था, तब खुद उनके अलावा किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि कठोर निर्णय लेने और उन पर अडिग रहने के लिए चर्चित, प्रचंड बहुमत से निर्वाचित नरेंद्र मोदी सरकार कानून वापसी की उनकी मांग कभी मानेगी। सरकार ने आंदोलनकारी किसानों के विभिन्न संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा प्रतिनिधियों से एक नहीं, 12 दौर की बातचीत की, लेकिन हर बार वार्ता तीन कृषि कानूनों की वापसी की शर्त पर ही टूटी। सरकार ने कृषि कानून वापसी से दो टूक इनकार कर दिया था और संयुक्त किसान मोर्चा कानून वापसी से कम पर तैयार ही नहीं था। दोनों पक्षों की हठधर्मिता से उपजी संवादहीनता के बीच ही 26 जनवरी का दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम भी सामने आया तो लगा कि किसान आंदोलन अपना नैतिक दबाव खो रहा है, जिससे सरकार को सख्ती का अवसर मिल जायेगा, पर वही नाजुक मोड़ आंदोलन को नयी धार दे गया।
26 जनवरी के घटनाक्रम के बाद बढ़ते पुलिस दबाव के चलते सूने होते धरनास्थलों पर, गाजीपुर बॉर्डर पर निकले किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं से, फिर से जुटे किसानों के जज्बे को फिर न मौसम की मार हरा पायी और न ही सरकार। किसानों का यह अहसास और भी गहरा हो गया कि इस बार उनके आंदोलन की हार दरअसल सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्ष की हार होगी, जिसका खमियाजा आने वाली पीढिय़ों को भी भुगतना पड़ेगा। इसी अहसास ने किसानों को सरकार की उपेक्षा के साथ ही कोरोना के कहर और मौसम की मार के बीच भी दिल्ली की दहलीज पर डटे रहने का मनोबल दिया। संघर्ष आसान नहीं था, बकौल संयुक्त किसान मोर्चा 700 किसानों की आंदोलनकाल में विभिन्न कारणों से मौत इसका प्रमाण है। इसलिए मानना होगा कि विश्व के सबसे लंबे आंदोलनों में शुमार इस आंदोलन की 380 दिन बाद अपनी शर्तों पर समाप्ति दरअसल एकजुटता और संघर्ष क्षमता के साथ किसानों के विश्वास की जीत भी है। भोलेभाले किसानों ने अपने शांतिपूर्ण, मगर सुनियोजित आंदोलन के जरिये एक मजबूत सरकार से जिस तरह अपनी मांगें मनवायी हैं, उसके विजय दिवस का संदेश बहुत दूर तक जायेगा। लोक के दबाव में अगर तंत्र को झुकना पड़े तो उससे अंतत: लोकतंत्र मजबूत ही होता है, पर मांगों को जस-का-तस मानने में भी पूरा साल गुजार देने वाली सरकार को इसका सकारात्मक फल नहीं मिल पाता, क्योंकि तब तक अविश्वास की खाई बहुत चौड़ी हो चुकी होती है। जनवरी में वार्ताओं के दौरान ही मांगें स्वीकार कर लेने पर जहां सरकार की संवेदनशीलता की चर्चा होती, वहीं नौ दिसंबर को सभी मांगें लिखित रूप में मानने को भी चुनावी डर से उपजी मजबूरी माना जा रहा है।
सच तो यह है कि नयी पीढ़ी तक इस बात पर विश्वास से ज्यादा आश्चर्य करने लगी थी कि बीसवीं शताब्दी में महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलन के जरिये उस अंग्रेज सत्ता को भारत से खदेड़ कर आजादी हासिल कर ली गयी थी, जिसके साम्राज्य में सूरज ही नहीं डूबता था। आम आदमी के मन में संघर्ष के टूटते विश्वास को किसान आंदोलन की सफलता मजबूत करेगी कि खासकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में, सरकार कितनी भी मजबूत क्यों न हो, जनता की जायज मांगों के लिए संघर्ष की अनदेखी अनिश्िचतकाल तक नहीं कर सकती। यह अलग बात है कि इक्कीसवीं शताब्दी आते-आते बदली जीवन और कार्यशैली में कामकाजी आम आदमी के लिए संघर्ष का रास्ता सहज नहीं रह गया है, और इसी मजबूरी का लाभ व्यवस्था उठाती है। किसानों ने विवादास्पद तीन कृषि कानूनों को अपने जीवन-मरण का प्रश्न मान कर संघर्ष किया तो परिणाम सामने है कि कानून वापसी पर बातचीत से ही इनकार करने वाली सरकार के प्रधानमंत्री ने क्षमा-याचना करते हुए राष्ट्र के नाम संदेश में तीनों कानून वापस लेने की एकतरफा घोषणा की। हर किसी के मन में सवाल होगा कि अचानक सरकार का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? इस स्वाभाविक प्रश्न का उत्तर भी लोकतंत्र की शक्ति में निहित है। कोई सरकार कितने ही प्रचंड बहुमत से क्यों न चुनी गयी हो, समय-समय पर सत्तारूढ़ दल को जनता के बीच आना ही पड़ता है, और तब एक-एक वोट कीमती होता है।
सरकार के हृदय परिवर्तन का रहस्य पांच राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनावों में निहित है। पूछा जा सकता है कि आखिर किसान आंदोलन जारी रहते हुए ही बिहार और पश्चिम बंगाल में भी तो विधानसभा चुनाव हुए। बेशक हुए और उनमें से बिहार में भाजपानीत राजग सत्ता बरकरार रखने में सफल रहा, जबकि पश्चिम बंगाल में भी भाजपा की सीटें कई गुणा बढ़ीं, पर मत भूलिए कि कृषि की बदहाली राष्ट्रव्यापी होने के बावजूद किसान आंदोलन का असर पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वी राजस्थान यानी कि दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्रों में ज्यादा रहा है। इसलिए अब जबकि अगले साल के शुरू में ही पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी चुनाव होने हैं, किसान आंदोलन के राजनीतिक प्रभाव और परिणाम का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। माना कि पंजाब में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर नहीं है, पर हाल तक कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरेंद्र सिंह और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) से गठबंधन कर वह इस सीमावर्ती राज्य में अपनी गोटियां तो बिछा ही रही है। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है, पर चंद महीने में तीन मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद बरकरार रहने के आसार कम ही हैं। सबसे अहम है उत्तर प्रदेश, जो लोकसभा में सर्वाधिक सांसद चुन कर भेजता है। लंबे वनवास के बाद भाजपा वहां सत्ता में लौटी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विश्वस्त केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बखूबी जानते हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही निकलता है। नहीं भुलाया जा सकता कि वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अकेलेदम बहुमत दिलवाने में उत्तर प्रदेश की ही निर्णायक भूमिका रही।
माना कि अगले लोकसभा चुनाव 2024 में होंगे, लेकिन अगर 2022 में लखनऊ की सत्ता ही भाजपा के हाथ से फिसल गयी तो दिल्ली किसने देखी है! चुनाव मुद्दों-नारों-जुमलों के साथ-साथ हवा पर भी लड़े जाते हैं, और हवा बनने में देर लगती है, बिगडऩे में नहीं। फिर लगभग 100 विधानसभा सीटों वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ जिस तरह विजयी समीकरण बनाने में जुटे हैं, उसके खतरे का आकलन चुनाव प्रबंधन में माहिर भाजपा-संघ नेतृत्व से बेहतर कौन कर सकता है? कांग्रेस-बसपा के अलग रहने के बावजूद अखिलेश कई अन्य छोटे दलों से भी गठबंधन कर भाजपा की चुनावी घेराबंदी कर रहे हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम के मद्देनजर निर्णायक भूमिका पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ही मानी जा रही है। उत्तर प्रदेश हो या उत्तराखंड अथवा पंजाब, सरकार द्वारा मांगें मान लिये जाने पर आंदोलन समाप्त कर किसान सब कुछ भुला कर भाजपा समर्थक हो जायेंगे—ऐसी खुशफहमी शायद भाजपा-संघ रणनीतिकारों को भी नहीं होगी, पर हां साल भर से किसान आंदोलन पर सवार हो कर अपनी राजनीतिक-चुनावी रणनीतियां बनाने वाले विपक्षी दलों से बड़ा भावनात्मक मुद्दा चुनाव से ऐन पहले निश्चय ही छिन गया है। पर सिर्फ चुनावी मुद्दा छीनने के लिए, साल भर चले आंदोलन से सरकार की साख पर लगे सवालिया निशान को और गहरा करते हुए समर्पण की मुद्रा में सभी मांगों की लिखित स्वीकारोक्ति की यह राजनीतिक शैली मोदी-शाह की चार कदम आगे रहने की रणनीतिक छवि से फिलहाल तो उलट ही नजर आती है, बाकी तो जनता जनार्दन है।

अपूरणीय क्षति

ऐसे समय में जब देश चीन-पाक सीमा पर सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है, सेना के आधुनिकीकरण और तीनों सेनाओं के बीच रणनीतिक दृष्टि से बेहतर तालमेल बनाने वाले प्रमुख रक्षा अध्यक्ष यानी सीडीएस जनरल बिपिन रावत की हेलिकॉप्टर हादसे में मृत्यु देश के लिये अपूरणीय क्षति है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी रावत की आवश्यकता देश की सुरक्षा से जुड़े विभिन्न आयामों के लिए अपरिहार्य थी। जब राजग सरकार ने देश की सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर तीनों सेनाओं में बेहतर तालमेल और कारगर निर्णय क्षमता के लिये सीडीएस पद सृजित किया तो वे देश की पहली पसंद थे। थल सेनाध्यक्ष के कार्यकाल के रूप में उनका योगदान उन्हें इस महत्वपूर्ण पद के लिये अतिरिक्त योग्यता के रूप में देखा गया। दुखद ही है कि इस हादसे में बिपिन रावत, उनकी पत्नी समेत सेना के वरिष्ठ अधिकारियों, चालक दल के सदस्यों व जवानों समेत तेरह लोगों को देश ने खोया है। एक लेफ्टिनेंट जनरल के पुत्र बिपिन रावत ने सेना को अपना भविष्य बनाने के संकल्प के साथ देश की सेवा में एक बेदाग भूमिका निभायी। हालांकि, अपनी स्पष्टवादिता के चलते कई बार उनके बयानों को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आई हैं, लेकिन शत्रुओं के खिलाफ उनकी रणनीति स्पष्ट और लक्ष्यों को हासिल करने वाली थी। पुलवामा हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी गई थी। कारगर कार्यशैली के चलते ही वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ बेहतर तालमेल के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अभियानों को बेहतर ढंग से अंजाम दे पाये। उन्हें इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि मौजूदा रक्षा चुनौतियों के बीच वे भारतीय सेना के तीनों अंगों के संरचनात्मक परिवर्तन के माध्यम बने। इसके जरिये सेना के तीनों अंगों में बेहतर तालमेल स्थापित हो पाया। उम्मीद थी कि अपने बचे एक साल के कार्यकाल में वे देश की सुरक्षा से जुड़े बाकी मुद्दों को निर्णायक दिशा दे पायेंगे। मृत्यु से एक दिन पूर्व एक कार्यक्रम में जैविक युद्ध के खतरे के प्रति चेताकर उन्होंने नई सुरक्षा चुनौतियों की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था।
निस्संदेह, देश का हर महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने आप में विशिष्ट होता है, उसका कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे में उसकी रक्षा देश का दायित्व ही होता है। तमिलनाडु में कुन्नूर के निकट हुए हादसे ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं। यूं तो वे वायुसेना के जांचे-परखे एम.आई-17, बी-5 के जरिये यात्रा कर रहे थे, जो उन्नत किस्म का हेलिकॉप्टर है, लेकिन इस हादसे ने इसकी उपादेयता पर नये सिरे से बहस छेड़ी है। हालांकि, बकौल रक्षामंत्री इस हादसे की त्रिस्तरीय जांच की जा रही है, लेकिन देश को आश्वस्त करना होगा कि इस हादसे से सबक लेकर देश की अनमोल हस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। निस्संदेह, दुर्घटना की हकीकत जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन देश के रक्षा के महत्वपूर्ण निर्णयों से जुड़े बड़े सैन्य अधिकारी की हवाई दुर्घटना मौत में साजिश के कोण से भी जांच होनी चाहिए। विगत में हमने देश के अपने क्षेत्रों के अनमोल रत्नों को संदिग्ध हादसों में खोया है। देश में युद्धक विमानों व हेलिकॉप्टर हादसों से देश को फिर कोई बड़ी क्षति न उठानी पड़े, इस दिशा में गंभीर प्रयासों की जरूरत है। ताकि देश यह भी जान सके कि यह हादसा सिर्फ कोहरे के कारण कम दृश्यता के कारण हुआ है या फिर इसके पीछे कुछ तकनीकी खामियां थीं। आज जब देश आर्थिक व तकनीक के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित कर रहा है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि देश की महत्वपूर्ण हस्तियों की हवाई यात्रा आधुनिक तकनीकी सुविधा से दुर्घटनाओं से निरापद रहे। यूं तो हर भारतीय का जीवन महत्वपूर्ण है, फिर एक जवान का जीवन और महत्वपूर्ण है, तो उन जवानों का नेतृत्व करने वाले सेनानायक का जीवन तो अनमोल होता है, जिसकी कारगर सुरक्षा की जिम्मेदारी देश की है। बहरहाल, जनरल बिपिन रावत और हादसे में मारे गये अन्य सैनिक अधिकारियों व जवानों के बलिदान को कृतज्ञ राष्ट्र याद रखेगा।

आज का राशिफल

मेष : व्यावसायिक क्षेत्र में लाभ के आसार हैं। सब कुछ सामान्य होते हुए भी मन अरुचि का शिकार होगा। शासन-सत्ता व राजकीय क्षेत्र के लोगों की क्रियाशीलता बढ़ेगी। पुराने संबंध प्रगाढ़ होंगे।

बृषभ : दायित्वों की समयानुकूल पूर्ति हेतु प्रयत्नशील होंगे। पुरानी बातों को भूलने की चेष्ठा करें। आलस्य का त्याग करें। किसी नई योजना पर विचारमग्न होंगे। उच्च महत्वाकांक्षा ऊंची प्रगति के लिए प्रेरित करेगी।

मिथुन : महत्वपूर्ण जगहों पर अपनी वाणी पर संयम रखने की चेष्ठा करें। कोई अप्रत्यासित समाचार अचम्भित कर सकता है। कहीं-कहीं अत्याधिक बोलना आपके लिए हानिकारक हो सकता है।

कर्क : नौकरी का वातावरण सुखद होगा। असमाजिक तत्वों से दूरी बनायें। निकट संबंधों में कुछ अप्रिय बातें दूरी पैदा करेंगी। राजनीतिज्ञों के लिए लाभप्रद स्थितियों के आसार हैं।

सिंह : मूल्यवान समय को ब्यर्थ में जाया न करें। ईरीय आस्था में वृद्धि होगी। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। आर्थिक क्षेत्र में परिश्रम का लाभ प्राप्त होगा। भौतिक आकांक्षाएं मन को उद्वेलित करेंगी।

कन्या : महत्वाकांक्षाओं को फलित करने में असमर्थता संभव। जीवनसाथी से वैचारिक मतभेद संभव। माता के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। परिजनों की छोटी-छोटी बातों का बुरा न मानें।

तुला : स्वास्थ्य संबंधी कुछ कठिनाइयां मन को दुखित कर सकती हैं। कुछ पारिवारिक चिंताएं मन को दुखित करेंगी। पुरानी मर्मस्पर्शी बातें आपको भावनात्मक रुप से नीरस बना सकती हैं।

वृश्चिक : महत्वपूर्ण दायित्वों की पूर्ति हेतु मन पर दबाव बनेगा। अत्याधिक कार्यों के बोझ से मन बोझिल होगा। मन को सकारात्मक दिशा की ओर सक्रिय करते हुए अपनी क्षमता का लाभ उठाएं।

धनु : जीवनसाथी के भावनात्मक सहयोग उत्साह का संचार होगा। कोई महत्वपूर्ण कार्य सार्थक होने का योग है। मधुरवाणी से संबंधों को प्रगाढ़ बनाएंगे। आलस्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अवरोधक होगा।

मकर : जीविका क्षेत्र में लाभ के अच्छे अवसर प्राप्त होंगे। सामान्य दिनचर्या के साथ बीत रहे जीवन में उत्साह का अभाव होगा। किसी संबंधी अथवा खुद की अस्वस्थता से परेशान हो सकतें हैं।

कुंभ : नये कार्यों में ब्यस्तता बढ़ेगी। किसी इच्छित कार्य की पूर्ति से प्रसन्नता संभव। सगे-संबंधों में नैतिक कर्तव्यों से विमुख न हों। पूरा दिन अध्यात्मिक व पारम्परिक कायरें में ब्यतीत होगा।

मीन : अच्छे आचार-विचार से संबंधों में लोकप्रिय बनेंगे। नयी आकांक्षाएं मन को उद्वेलित करेंगी। अपने स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखें। भावुकता व्यावहारिक जगत के अनुकूल चलने में बाधक बनेगी।

मजदूर की दिहाड़ी से कम वेतन में शिक्षक

विश्वनाथ सचदेव – 
आपने भी देखी होगी शायद वह तस्वीर टी.वी. पर, जिसमें मोहाली के कुछ अध्यापक पानी की टंकी पर चढ़े हुए हैं। यह उनके विरोध-प्रदर्शन का तरीका है। विरोध इस बात का कि पिछले 18-18 साल से काम करने के बावजूद उन्हें स्थाई नौकरी क्यों नहीं मिल रही? मीरा रानी इनमें से एक हैं, पिछले ग्यारह साल से ‘कांट्रेक्ट टीचरÓ के रूप में बच्चों को पढ़ा रही हैं। देश का भविष्य बना रही हैं मीरा रानी, पर उनके वर्तमान की हालत यह है कि ग्यारह साल से उनका वेतन छह हज़ार प्रति माह ही है। यानी दिन के दो सौ रुपये!
कांट्रेक्ट टीचर अर्थात् नियोजित शिक्षक। यह पूछे जाने पर कि वे घर का नियोजन कैसे करती हैं, मीरा रानी की आंखों में आंसू बहने लगे थे। मनीष शर्मा ने भी अपनी हालत रोते हुए ही बयां की थी। मनीष शर्मा अंग्रेजी में एम.ए. हैं। कंप्यूटर का कोर्स भी कर चुके हैं। उन्हें भी प्रति माह छह हज़ार रुपये ही मिलते हैं। आय बढ़ाने के लिए वे मज़दूरी करते हैं। जब उनसे बात की गयी तो वे एक निर्माणाधीन मकान में इंटें ढोने का काम कर रहे थे। इस काम में उन्हें 450 रुपये रोज़ मिलते हैं! मोहाली में पानी की टंकी पर चढ़कर प्रदर्शन करने वाले इन ‘बेचारे अध्यापकोंÓ को समझाने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री तो नहीं पहुंचे पर दिल्ली के मुख्यमंत्री पहुंचे हुए थे। वे अध्यापकों से खतरनाक टंकी से नीचे उतरने का आग्रह करते हुए यह आश्वासन दे रहे थे कि यदि पंजाब में उनकी सरकार बनी तो वे ‘दिल्ली की तरहÓ ही पंजाब में भी अध्यापकों की स्थिति बेहतर बना देंगे।
विडम्बना यह है कि टी.वी के जिस कार्यक्रम में मोहाली का यह दृश्य दिखाया जा रहा था, उसी में एक समाचार यह भी था कि पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सिद्धू दिल्ली के मुख्यमंत्री के घर के सामने प्रदर्शन करने वाले अध्यापकों की भीड़ में शामिल थे। दिल्ली का मुख्यमंत्री मोहाली में जाकर स्थिति सुधारने का आश्वासन दे रहा है और पंजाब की सरकारी पार्टी का अध्यक्ष दिल्ली में स्थिति सुधारने की मांग कर रहा है।
बरसों पहले एक फिल्म आयी थी ‘शोलेÓ। शायद इसी फिल्म में पहली बार फिल्म के हीरो को पानी की ऊंची टंकी पर चढ़कर अपनी मांग मनवाते हुए देखा गया था। शायद उसी से प्रेरणा लेकर मोहाली के नियोजित अध्यापक पानी की टंकी पर चढ़ गये थे। पता नहीं उन्हें संबंधित अधिकारियों ने कोई ठोस आश्वासन दिया या नहीं, पर यह दृश्य देश की शिक्षा-व्यवस्था की दुर्दशा को अच्छी तरह दिखा रहा था।
सरकारें भले ही कुछ भी दावे करती रहें पर देश की शिक्षा-व्यवस्था की एक सच्चाई यह भी है कि आज देश में मीरा रानी और मनीष शर्मा जैसे बारह लाख अध्यापक हैं जो सालों से ‘कांट्रेक्ट टीचरÓ की तरह दो सौ रुपये की दिहाड़ी पर देश का भविष्य संवारने का काम कर रहे हैं। पंजाब की शिक्षा-व्यवस्था का सच देश के अनेक राज्यों की स्थिति का प्रतिनिधित्व करने वाला है। अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम जैसे कुछ राज्यों में तो आधे से अधिक अध्यापक ठेके पर पढ़ा रहे हैं। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-2020 में देश में कुल मिलाकर लगभग दस लाख दिहाड़ी अध्यापक हैं। कहीं इन्हें कांट्रेक्ट टीचर कहा जाता है, कहीं ‘गेस्ट टीचरÓ और कहीं शिक्षा मित्र। पंजाब, बंगाल और उत्तर प्रदेश उन राज्यों में से हैं जहां कुछ अध्यापकों की एक-तिहाई संख्या इसी तरह के ‘अस्थाई अध्यापकोंÓ की है।
यह व्यवस्था किस तरह और क्यों काम कर रही है, यह सवाल विस्तृत सर्वेक्षण की अपेक्षा करता है। महत्वपूर्ण यह है कि हमारे हुक्मरानों की दृष्टि में शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण मुद्दा वरीयता के क्रम में इतना नीचे क्यों है? क्यों उन्हें नहीं लगता कि शिक्षा की इस तरह उपेक्षा करके वे देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं? हमारी नयी शिक्षा-नीति में शिक्षकों को स्थाई बनाने का उल्लेख तो है, पर फिलहाल इस स्थिति से शिक्षकों और शिक्षा का जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई कैसे होगी, उसकी बात कोई नहीं कर रहा। क्यों ऐसी स्थिति आये कि किसी मीरा रानी को पानी की ऊंची टंकी पर चढ़कर यह कहना पड़े कि वह दो सौ रुपये से अपने परिवार को दिनभर का खाना नहीं खिला सकती। मोहाली के प्रदर्शनकारी अध्यापकों ने यह भी बताया कि 2016 के चुनाव से पहले अमरेंद्र सिंह ने ऐसे ही टीचरों के किसी प्रदर्शन-स्थल पर जाकर वादा किया था कि ‘सत्ता में आते ही मैं इन अध्यापकों की नौकरी को नियमित करूंगा।Ó वे सत्ता में आये भी, और सत्ता से चले भी गये, पर ‘बेचारे अध्यापकोंÓ का जीवन ‘अनियमितÓ ही बना रहा।
सच तो यह है कि हमारे राजनेताओं के लिए ऐसी स्थितियां वोट कमाने का साधन बन कर आती हैं। हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल और राजनेता वादों की झड़ी लगा देते हैं और फिर चुनाव के बाद ऐसे अधिकांश वादे ठंडे बस्ते में डाल दिये जाते हैं— अगले चुनावों में भुनाने के लिए। पंजाब समेत देश के पांच राज्यों में फिर चुनाव होने वाले हैं। दावों और वादों की बरसात शुरू हो गयी है। शिलान्यासों और योजनाओं के उद्घाटन की झड़ी लगी हुई है। राज्यों के नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक, आये दिन अरबों-खरबों की योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। सवाल उठता है कि यह सब कुछ चुनावों से पहले ही क्यों शुरू होता है, और चुनावों के बाद अक्सर भुला क्यों दिया जाता है? सवाल यह भी उठता है कि क्या यह मात्र संयोग ही है कि शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण मुद्दा चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनता? क्यों किसी नेता को यह अहसास नहीं होता कि कोई मीरा रानी छह हज़ार रुपये महीना में कैसे जीवन-यापन कर सकती है? क्यों एम.ए. पास मनीष शर्मा को बाध्य होना पड़ता है मुंह छिपा कर ईंटें ढोने के लिए? जी हां, दो सौ रुपये रोज़ की दर से बच्चों को पढ़ाने वाले मनीष शर्मा को शर्म आती है, कहीं कोई छात्र उसे ईंटें ढोते हुए देख न ले।
सच यह भी है कि ‘शर्म उनको नहीं आतीÓ जिन्हें आनी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में यह स्थिति उन सबके लिए शर्म की बात है, जिनके हाथों में देश का वर्तमान संवारने और भविष्य बनाने का काम सौंपा गया है। शानदार सड़कें, भव्य इमारतें, विशालकाय मूर्तियां, इन सबकी भी जगह होती है जीवन में, पर उस शिक्षा की अवहेलना किसी अपराध से कम नहीं है जो देश का भविष्य बनाती है। एक आदत-सी बन गयी है हमारे नेताओं को यह कहने की कि पिछली सरकारों ने वह काम नहीं किया जो उन्हें करना चाहिए था। सही हो सकती है यह बात, पर सही यह भी है कि आज की सरकारें भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजग़ारी जैसे मुद्दों को वह वरीयता नहीं दे रहीं जो देनी चाहिए। बुनियादी मुद्दे हैं यह, उनकी उपेक्षा किसी अपराध से कम नहीं है। इस अपराध की सज़ा भी तो किसी को मिलनी चाहिए।
किसी मोहाली में पानी की टंकी पर चढ़कर प्रदर्शन करने वाला दिहाड़ी अध्यापक उन सब प्रदर्शनकारियों से अधिक महत्वपूर्ण है नमाज़ और आरती के नाम पर नारे लगा रहे हैं। शिक्षा के मंदिरों को प्राथमिकता कब मिलेगी? कब हमारे हुक्मरानों का ध्यान इस ओर जायेगा कि अकेले मध्य प्रदेश में 21 हज़ार स्कूलों में एक शिक्षक चार-चार कक्षाओं को पढ़ा रहा है। और इस बात की पूरी संभावना है कि वह ‘दिहाड़ी शिक्षकÓ हो और उसे हमने शिक्षा-मित्र का नाम दे रखा हो!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

आज का राशिफल

मेष  : नई-नई युक्तियों के साथ लाभ के नए साधन सुलभ होंगे। समय का लाभ उठाते हुए कार्य क्षेत्र में अनवरत् परिश्रम की आवश्यकता है। पारिवारिक समस्याएं आपको थोड़ा चिन्तित कर सकती हैं।

बृषभ : निराशा त्याग मन को आशावादी विचारों से सिंचित करें। कुछ कठिनाईयों से मन में नकारात्मक विचार स्थान पायेंगे। कुछ भावनात्मक संबंधों को लेकर मन परेशान हो सकता है।

मिथुन : निर्थक दूसरों की आलोचना करना अच्छी बात नहीं। अत्यधिक कायरे में व्यस्तता से मन परेशान होगा। पुरानी समस्याओं को हल कर सुख की अनुभूति करेंगे। संबंधों में मधुर वाणी का प्रयोग करें।

ककर् : सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति से निकट संबंधों आपकी अच्छी छबि बनेगी। किसी महत्वपूर्ण कार्य की तैयारी में समुचित व्यवस्था के लिए मन चिन्तित होगा। नैतिक जिम्मेदारियों में सजगता काबिले तारीफ होगी।

सिंह : परिश्रम के लिए मन चिन्तित होगा। किसी महत्वपूर्ण कार्य में थोड़ी कठिनाई का आभास होगा। महत्वपूर्ण कायरे के प्रति आलस्य न करें। शिक्षा-प्रतियोगिता में समुचित प्रयत्न की आवश्यकता है।

कन्या : जीवन साथी के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। आवेश में कोई कार्य से हानि संभव। बहुत सारे अवरोधित कायरे के हल होने के आसार बन रहे हैं। किसी नए कार्य की सार्थकता के लिए मन प्रयत्नशील होगा।

तुला : महत्हपूर्ण क्षेत्रों में उच्चस्तरीय व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त होगा। किसी महत्वपूर्ण क्षेत्र में संबंधों का सहयोग प्राप्त होगा। कार्य क्षेत्र में अपने बौद्धिक क्षमता का लाभ उठाएंगे।

वृश्चिक : किसी नए कार्य में मन केन्द्रित होगा। शिक्षा-प्रतियोगिता में समुचित परिश्रम के लिए उत्साहित होंगे। हर बात को लेकर मन को दुखी न होने दें। भावनाओं से उद्वेलित मन से गलतियां स्वाभाविक हैं।

धनु : कुछ नई जिम्मेदारियां मन पर दबाव बनाएंगी। दूसरों की प्रगति से मन में ईष्र्या एवं हीनता न पैदा होने दें। निकटस्थ संबंधों में किसी की कटु वाणी मन को दुखित कर सकती है।

मकर : किसी महत्पूर्ण कार्य में धनाभाव अवरोधक होगा। जीवन की कठिनाईयों के कारण मन में हीन भावना न लाएं। अपनी क्षमताओं पर भरोसा करें। लेकिन प्रियजनों के सहयोग से समस्याएं हल होंगी।

कुंभ : कार्यकुशलता व सुन्दर बौद्धिक क्षमता से जीविका क्षेत्र में सफलता अर्जित करेंगे। शासन-सत्ता से जुड़े व्यक्तियों के लिए लाभ केअवसर प्राप्त होंगे। आर्थिक समृद्धि और प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।

मीन : पूर्वाग्रह वश मन में संबंधों के प्रति राजनीतिज्ञों की व्यस्तता व क्रियाशीलता बढ़ेगी। किसी नए रिश्तें में प्रगाढ़ता बढ़ेगी। अच्छी आशाएं आप में क्रियाशीलता बढ़ाएंगी।
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आम नागरिकों को कब सुलभ होंगे मानवाधिकार

10 दिसंबर  विश्व मानवाधिकार दिवस

विकास कुमार –
प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पहल संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसंबर ,1948 से की गयी थी। 1939 से 1945 द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात वैश्विक राजनीति के चिंतकों एवं विचार को ने मानवीय गरिमा एवं मनुष्य के मूलभूत अधिकारों से ओतप्रोत होकर इस नवाचार की पहल को संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों एवं उद्देश्य में लागू किया। तत्पश्चात सदस्य देशों को भी निर्देशित किया गया की वह अपने देश में मानवाधिकार से संबंधित आयोग कि स्थापना करें जो देश में रहने वाले नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा कर सकें जिनको सरकारें और शासन नकार देती हैं एवं अनदेखा कर देती हैं। भारत में भी इस अनुक्रम को अपनाते हुए 1993 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई जिसका कार्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। यह एक यात्रा का परिणाम है सर्वप्रथम 1215 में ब्रिटेन में मैग्नाकार्टा के रूप में नागरिकों के कुछ अधिकारों को सुनिश्चित किया गया था। यही पहल अमेरिका के स्वतंत्रता की घोषणा पत्र 1776 में मानव गरिमा को प्रमुख मानते हुए अधिकारों को सक्रियता प्रदान की गई थी। यही कारण रहा कि अमेरिका जैसे विकसित देश ने संविधान अपनाते समय मौलिक अधिकारों का समायोजन एवं संकलन अपने संविधान में किया। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के नारे पर हुई थी जिन में मानवाधिकारों के मूलभूत प्रावधान देखने को मिलते हैं। 1946 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया एवं 1948 में सार्वभौमिक रूप से मानव अधिकार दिवस की घोषणा की गई। इन्हीं आयामों से संबंधित 1949 में जिलों में संधि हुई तथा 1950 में मानव अधिकार तथा मौलिक स्वतंत्रता ओं के संरक्षण हेतु यूरोपीय संधि हुई। इसी प्रक्रिया में 1961 में यूरोपीय सामाजिक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर की हुई तथा 1966 में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संधि ,नागरिक एवं राजनैतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संधि, नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों से जुड़ी ऐच्छिक संधि का प्रावधान किया गया। इस प्रकार से आधुनिक समय में मानव अधिकारों का विकास हुआ। भारत में 1993 के अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग एवं राज्य के मानव अधिकार आयोग से संबंधित प्रावधान किए गए। मानव अधिकार आयोग के धारा 2(1) स्र में प्रावधान मिलता है कि जो मानव गरिमा एवं मानव सम्मान को प्रबलता प्रदान करते हैं ऐसे अधिकारों को मानव अधिकार की श्रेणी में रखा जाएगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 को मानवाधिकार से संबंधित बताया है। संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार से संबंधित है जिसमें जीवन से संबंधित इन मूलभूत अन्य अधिकारों की भी वृहद एवं विस्तृत चर्चा की गई है। कई अन्य मामलों की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई प्रकार की श्रेणियों के अधिकारों को अनुच्छेद 21 में सम्मिलित करने का निर्देश देते रहे हैं। आज विश्व सार्वभौमिक रूप से मानव अधिकारों की अवधारणा को अपना चुका है। यह कहना बिल्कुल सत्य है कि इस अवधारणा को अपनाने के पश्चात मनुष्य में मानव अधिकारों के प्रति जागरूकता एवं उनके अधिकार कुछ हद तक सुरक्षित एवं संरक्षित हुए हैं परंतु जिस संरचना के संरक्षण के तहत इनकी परिकल्पना की गई थी क्या वह आज साकार होते दिख रहे हैं? यह समाज और शासन दोनों के समक्ष एक बड़ा प्रश्न है? जिसको ना अकादमिक जगत के लोग, नाही न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोग और स्वयं मानव अधिकारों के सक्रिय लोग भी इसको नकार नहीं सकते। सामान्य तौर पर शिक्षित नागरिकों के भी अधिकार सुरक्षित होते नहीं दिखाई दे रहे हैं कई प्रकार के मानवाधिकारों से मेल न खाने वाली गतिविधियों का प्रयोजन बता कर उनके अधिकारों को ठेस पहुंचाई जाती है। यहां पर एक पक्ष लेना उचित नहीं होगा। यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि कई संगठन और राजनेताओं का जत्था मानवाधिकारों की दुहाई देकर प्रशासन की गरिमा को भी ठेस पहुंचाते हैं। परंतु यह अल्प संख्या में होता है। गरीब लोगों को नाही कानून की जानकारी होती है और ना ही मानवाधिकारों की। छोटे से छोटे काम के लिए उनसे व्यापक रूप से रिश्वत ली जाती है। फुटपाथ पर सोने वाले बिहारी मजदूरों से वसूली की जाती है। रिक्शा चलाने वाले दैनिक रूप से दो से ?300 कमाने वाले असंगठित मजदूर से छोटे से कानून के उल्लंघन पर पैसा लिया जाता है। किसानों के क्रेडिट कार्ड बनवाने एवं सरकारी योजनाओं से लाभान्वित प्रक्रिया में पहले से ही परसेंटेज तय कर दिया जाता है। आवास एवं सरकारों द्वारा संचालित आवंटित राशन में कई तकनीकी समस्याओं का हवाला देकर परेशान किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में अच्छी दवा लेने के लिए डॉक्टर को अलग से पैसा देना होता है। एक ग्लोबल सूचकांक के अनुसार एवं यूएनडीपी के रिपोर्ट के अनुसार 27 फ़ीसद से अधिक भारत की जनसंख्या मूलभूत प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित है। आज भ्रष्टाचार का स्तर बढ़ता जा रहा है, लोकतांत्रिक शासन प्रक्रिया में आम नागरिकों को महत्वहीन समझा जा रहा है। केवल मतदान के समय ही उसका महत्व समझा जाता है। कई प्रकार के प्रोटोकॉल और कानूनों को केवल आम नागरिकों पर ही लागू किया जाता है। आज तक किसी सामंत, बड़े घराने, राजनेताओं एवं पूंजी पतियों को किसी भी प्रकार की गतिविधियों में लाइन में खड़े होते हुए नहीं देखा गया है। जब तक मानव अधिकारों का प्रावधान आम जनमानस को नहीं मिलेगा तब तक तब तक मानव अधिकारों का श्रेष्ठ उद्देश्य साकार नहीं होगा। क्योंकि यह अधिकार संपूर्ण मानव के विकास के लिए एवं मानवता के रक्षा के लिए निर्धारित किए गए हैं। यदि किसी वर्ग विशेष को इससे वंचित रखा जाएगा तो इनका सिद्धांत और सपना अधूरा रह जाएगा। संस्थाओं और सरकारों को चाहिए कि मानव अधिकारों से संबंधित गतिविधियों को कानून पर आधारित प्रक्रिया के माध्यम से संचालित करें। जिससे विधि का शासन सुनिश्चित होगा और लोकतंत्र अधिक मजबूत बन सकेगा। 1992 के पश्चात नागरिक समाज कि अधिक सक्रियता और गतिविधियों को सुनिश्चित करने के लिए सुशासन की अवधारणा लोकतंत्र में सुनिश्चित हुई जिसमें मानवाधिकार से संबंधित संरक्षण का प्रावधान एक अहम मूल्य है। क्योंकि मानवाधिकारों का मूल्यांकन शासन की जवाबदेही, उत्तरदाई, विधि के शासन, संविधानवाद, एवं मानव गरिमा को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए किया जाता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि मानव अधिकारों का लाभ संपूर्ण मानव समुदाय को मिले। इसके प्रति सभी जागरूक हों। तभी वास्तविकता मानवाधिकारों के उद्देश्यों का सपना साकार हो सकेगा।
( लेखक- केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में रिसर्च स्कॉलर हैं एवं राजनीति विज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट है।)

आज का राशिफल

मेष : असंयमित शब्दों का प्रयोग सगे-संबंधों में कटुता ला सकता है। प्रियजनों के सहयोग से समस्याएं हल होंगी। क्षमता से अधिक व्यय भविष्य के लिए चिंता उत्पन्न करेगा। पारम्परिक कार्यों में ब्यस्तता बढ़ेगी।

बृषभ : वाक्यपटुता व मधुर वाणी से सगे-संबंधियों के बीच प्रभावशाली होंगे। अत: अपने दिनचर्या को सुधार, समय का पूर्ण उपयोग करें। परिवार में सुखद माहौल बनेगा। जीवन साथी का सहयोग मिलेगा।

मिथुन : भौतिक जगत की चकाचौंध से प्रभावित होंगे। आवेश में लिये गये निर्णय से हानि संभव। परिजनों से किसी प्रकार की शिकायत पर खुलकर बात करें। खराब संगत से दूरी बनाकर रखें।

कर्क : भावनाओं से उद्वेलित मन से गलतियां स्वभाविक हैं। आकस्मिक नई आशंकाओं से प्रभावित मन कोई गलत निर्णय ले सकता है। अत्याधिक कार्यों का बोझ अकेली जान पर पड़ सकता है।

सिंह : संतान संबंधी दायित्वों की पूर्ति हेतु मन चिंतित होगा। भौतिक आकांक्षाएं बलवती होंगी। राजनीतिज्ञों की अपने क्षेत्र में ब्यस्तता व क्रियाशीलता बढ़ेगी। शासन-सत्ता से जुड़े लोगों के लिए समय काफी अच्छा होगा।

कन्या : निराशा त्याग मन को आशावादी विचारों से सिंचित करें। क्रोध व शंकाए छोड़ सगे-संबंधों में प्यार बिखेरें। अत्याधिक कार्यों की ब्यस्तता से मन परेशान होगा। कार्यक्षेत्र में बौद्धिक क्षमता का लाभ उठाएंगे।

तुला : किसी महत्वपूर्ण कार्य में धनाभाव अवरोधक होगा। किसी महत्वपूर्ण कार्य में संबंधों का सहयोग मिलेगा। स्वयं को लाचार बनाए रखना ठीक नहीं है। स्वयं को सकारात्मक दिशा की ओर केंद्रित करें।

वृश्चिक : गैर सांस्कारिक कार्यों की ओर आकषिर्त मन पर अंकुश लगायें। शासन-सत्ता के सहयोग से कार्यक्षेत्र के अवरेाध समाप्त होंगे। अच्छी व्यवहार कुशलता से सामाजिक मान-मर्यादा में वृिद्ध होगी।

धनु : पूर्वाग्रहवश मन में सगे-संबंधों के प्रति नकारात्मकता को न पालें। महत्वपूर्ण जिम्मेदारी में ब्यस्तता से मन बोझिल होगा। परिश्रम द्वारा नये अवसरों का लाभ उठाएंगे। कोई नई योजना उत्साहित करेगी।

मकर : किसी की कटु वाणी मन को दुखित कर सकती है। कार्यक्षेत्र में लोकप्रियता व वर्चस्व बढ़ेगा। पुरानी समस्याओं को हल कर सुख की अनुभूति करेंगे। जीवन साथी का भावनात्मक स्नेह प्राप्त होगा।

कुंभ : कुछ नई प्रबल इच्छाएं आपको उद्वेलित करेंगी। महत्वपूर्ण कार्य में सफलता के आसार बढ़ेंगे। कार्यक्षेत्र में ब्यस्तता बढ़ेगी। व्यावसायिक क्षेत्र के लोगों को लाभ के अच्छे अवसर प्राप्त होंगे।

मीन : नैतिक जिम्मेदारियों में सजगता काबिले तारीफ होगी। किसी नये कार्य में मन केंद्रित होगा। साधनाभाव से मन चिंतित होगा। अच्छी आशाएं आप में क्रियाशीलता बढ़ाएंगी। जीवन साथी का सहयोग मिलेगा।

राज्य के विकास में सहकारिता का महत्वपूर्ण स्थान  :  श्री बादल

कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग (सहकारिता प्रभाग) द्वारा

सहकार से समृद्धि – सह लोकार्पण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का हुआ आयोजन

राज्य की 3 सर्वश्रेष्ठ सहकारी समिति को किया गया सम्मानित।

500 लैंप्स/पैक्स को 2-2 लाख के कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराई जाएगी।

रांची, हमने कृषि के क्षेत्र में विकास का बीड़ा उठाया है। हम इंटीग्रेटेड फार्मिंग की सोच को धरातल पर उतारने की दिशा में काम कर रहे हैं। राज्य में सहकारिता को लेकर कई तरह की चुनौतियां हैं और उन चुनौतियों का सामना कर हमने विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर काम किया है। उक्त बातें राज्य के कृषि,पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री माननीय श्री बादल ने हेसाग स्थित पशुपालन भवन में सहकारिता सभागार में आयोजित सहकार से समृद्धि – सह –  लोकार्पण- सह-  प्रशिक्षण कार्यक्रम मैं बतौर मुख्य अतिथि कहीं।

एनसीडीसी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम श्री बादल ने कहा कि सोच को बदलने की जरूरत है। 1904 से मद्रास से चला सहकारिता आंदोलन विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के कई नए आयाम गढ़ चुका है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ हमारे साथ ही अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था लेकिन आज वह कृषि के क्षेत्र में तेजी से काम कर रहा है और वहाँ सहकारी समितियां काफी सक्रिय है। श्री बादल ने 500 लैंप्स /पैक्स के बीच दस करोड़ रुपए की कार्यशील पूँजी के वितरण की शुरुआत करते हुए कहा कि कार्यशील पूंजी का सदुपयोग सुनिश्चित होना चाहिए साथ ही जिला स्तर पर इसकी मॉनिटरिंग सुनिश्चित की जाए।

कृषि मंत्री ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान हमारे सहकारी बंधुओं ने जान की परवाह किये बिना धान उत्पादन के क्षेत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लक्ष्य से ज्यादा धान की अधिप्राप्ति की है। 60 लाख मैट्रिक टन के विरुद्ध 62.85 लाख मैट्रिक टन धान की अधिप्राप्ति हुई है। साथ ही हमने अगले वित्तीय वर्ष के लिए 80 लाख मैट्रिक टन का लक्ष्य रखा है।

उन्होंने बताया कि कृषि विभाग राज्य में धान स्टॉक के लिए 200 यार्ड्स बनाने की योजना पर काम चल रहा है साथ ही राज्य में कम से कम 100 राइस मिल के लिए संबंधित विभाग को जमीन के लिए भी लिखा जा चुका है। राइस मिल प्रोजेक्ट को हम पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ले रहे हैं और 5000 मेट्रिक टन क्षमता का कोल्ड स्टोरेज और 30 मेट्रिक टन क्षमता के कई कोल्ड रूम तैयार किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विभाग कृषि के क्षेत्र में के आधारभूत संरचनाओं का विकास करने जा रहा है।

विभागीय सचिव श्री अबूबक्कर सिद्दीक पी. ने कहा कि एनसीडीसी ने पहली बार सहकारी समिति को सम्मानित करने का काम किया है उन्होंने कहा कि सहकारिता के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं इस पर और ज्यादा काम करने की जरूरत है। सरकार की विभिन्न योजनाओं को सहकारिता के माध्यम से कार्यान्वित करने से बेहतर नतीजे दिखाई देते हैं।

कार्यक्रम में निबंधक, सहयोग समितियाँ कार्यालय की ओर से  प्रकाशित होने वाले मासिक पत्रिका”सहकार संवाद” के प्रवेशांक का तथा झारखण्ड सहकारी मैनुअल का लोकार्पण क कृषि मंत्री के द्वारा किया गया।

कार्यशाला में मुख्य रूप से एनसीडीसी के क्षेत्रीय निदेशक श्री सिद्धार्थ कुमार, रजिस्ट्रार  सहकारिता श्री मृत्युंजय कुमार बरनवाल, निदेशक पशुपालन श्री शशि प्रकाश झा सहित कई पदाधिकारी व सहकारी समिति के सदस्य उपस्थित थे।

रोजगार व संप्रभुता हेतु संरक्षणवाद जरूरी

भरत झुनझुनवाला –
बीते वर्ष में अपने निर्यातों में 10 अरब डालर की वृद्धि हुई है तो आयातों में 21 अरब डालर की। सच यह है कि निर्यात बढ़ाने के प्रयास में हमारे आयात बढ़ रहे हैं और हम दबते जा रहे हैं। सरकार ने पिछले वर्ष इस समस्या का संज्ञान लेते हुए चीन के की एप जैसे जूम और कैम स्कैनर पर और रक्षा से सम्बन्धित लगभग 100 वस्तुओं पर प्रतिबन्ध लगाया था। कोट, पैंट, ज्यूलरी, प्लास्टिक, केमिकल, चमड़ा इत्यादि पर आयात कर बढ़ाए थे। लेकिन ये कदम पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए हैं। हमारे आयात दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। कारण यह है कि हमने खुले व्यापार को अपना रखा है।
अर्थव्यवस्था को चलाने के दो माडल हैं। एक यह कि हम खुले व्यापार को अपनाएं और अपने माल का निर्यात करने का प्रयास करें। विदेशी माल आयात करने की छूट दें ताकि हमारे निर्यात क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न हो सके और हमारे उपभोक्ता को सस्ता विदेशी माल उपलब्ध हो। इस माडल की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितना निर्यात कर पाते हैं। सस्ते आयातों का पेमेंट करने के लिए निर्यात से डॉलर अर्जित करना जरूरी होता है। पिछले वर्ष का अनुभव प्रमाणित करता है कि खुले व्यापार के माडल से हमें सफलता नहीं मिल रही है। निर्यातों में वृद्धि कम और आयातों में वृद्धि अधिक हो रही है। इसलिए हमें दूसरे संरक्षणवाद के माडल को अपनाना चाहिए।
इस माडल में हम केवल अति जरूरी माल के आयात को छूट देते हैं। शेष माल पर भारी आयात कर लगा देते हैं, जिससे कि अधिकाधिक माल का उत्पादन अपने देश में हो। संरक्षणवाद का लाभ यह है कि हम अधिकतर माल में आत्मनिर्भर हो जाते हैं। हमारी आर्थिक संप्रभुता की रक्षा होती है। नुकसान यह है कि हमें विदेशों में बना सस्ता माल नहीं मिलता। दूसरा नुकसान है कि हमारे उद्यमी अकुशल उत्पादन में लिप्त हो जाते हैं। विदेशी माल पर आयात कर अधिक होने से आयातित माल महंगा पड़ता है और हमारे उद्यमी मुनाफाखोरी करते हैं या अकुशल उत्पादन करते हैं क्योंकि उन्हें सस्ते विदेशी माल से प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत नहीं रह जाती। इस तथ्य के बावजूद हमें संरक्षणवाद को अपनाना चाहिए।
मान लें कि संरक्षणवाद को अपनाने से अपने देश में अकुशल उत्पादन होता है तो भी इस अकुशल उत्पादन में हमारे श्रमिकों को रोजगार मिलता ही है। उनकी क्रय शक्ति में वृद्धि होती है। अत: प्रश्न यह है कि हम अपने श्रमिकों को रोजगार के साथ महंगा घरेलू माल परोसेंगे या बेरोजगारी के साथ सस्ता विदेशी माल? यदि हम खुले व्यापार को अपनाते हैं और सस्ता विदेशी माल अपने देश में आता है तो हमारे उद्योग बंद हो जाते हैं। हमारे श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। विदेश का बना सस्ता माल हमारी दुकानों में उपलब्ध तो होता है लेकिन श्रमिक की जेब में नकद नहीं होता कि वह उस माल को खरीद सके। सस्ता माल उपलब्ध कराकर उन्हें बेरोजगारी के साथ भुखमरी की कगार पर लाने की तुलना में रोजगार के साथ महंगा माल उपलब्ध कराना उत्तम है। तब माल कम भी मिलेगा तो भी वे कुछ खपत तो कर ही सकेंगे। भूखे नहीं मरेंगे।
खुले व्यापार का सिद्धांत है कि हर देश उस माल का उत्पादन करेगा, जिसे वह कुशलतापूर्वक बना सकता है। जैसे भारत गलीचे का कुशल उत्पादन करे और चीन बिजली के बल्ब का कुशल उत्पादन करे। भारत सस्ते गलीचों का निर्यात करे और चीन सस्ते बल्ब का निर्यात करे। तब भारत में गलीचे के उत्पादन में रोजगार बनेंगे और उस आय से भारतीय नागरिक चीन के सस्ते बल्ब को खरीद सकेंगे। इसी प्रकार चीन के नागरिक को बल्ब के उत्पादन में रोजगार मिलेंगे और उस आय से वे भारत में बने सस्ते गलीचे को खरीद सकेंगे।
यह सिद्धांत सही है लेकिन यह गैर आवश्यक माल मात्र पर लागू होता है। जैसे मान लीजिये हम स्टील का आयात चीन से करने लगें तब हम अपने देश में बंदूक, पनडुब्बियां, हवाई जहाज इत्यादि का उत्पादन भी नहीं कर सकेंगे क्योंकि इनके उत्पादन के लिए हमें स्टील चाहिए, जिसे प्राप्त करने के लिए हम चीन पर आश्रित हो जायेंगे। इसलिए अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए जरूरी है कि हम आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन अपने देश में ही करें, यह चाहे महंगा ही क्यों न पड़े। जैसे यदि देश में उत्पादित स्टील का दाम 50 रुपये प्रति किलो है और विदेश में उत्पादित स्टील का दाम 40 रुपयेे प्रति किलो है तो हम विदेशी स्टील पर 10 रुपये का संप्रभुता अधिभार लगा सकते हैं। चूंकि हमारे लिए अपने ही देश में स्टील का उत्पादन करना आवश्यक है। तब अपने देश में बने स्टील और आयातित स्टील दोनों का दाम 50 रुपये प्रति किलो हो जाएगा और अपने देश में स्टील का उत्पादन हो सकेगा। फिर हम चीन पर आश्रित नहीं होंगे।
संरक्षणवाद के विरोध में तर्क 1950 से 1990 की हमारी दुर्गति का दिया जाता है। यह सही है कि उस समय हमने संरक्षणवाद को अपनाया और और अपना देश वांछित प्रगति नहीं कर सका लेकिन इसका कारण केवल संरक्षणवाद को ही नहीं ठहराया जा सकता है। सही बात यह है कि यदि हम संरक्षणवाद के साथ अपने घरेलू उद्यमियों के बीच प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन दें तो आपसी प्रतिस्पर्धा में ये स्वयं कुशल उत्पादन करने लगेंगे। फिर उद्यमी कुशल भी हो जायेंगे और हम निर्यातों का सामना भी कर सकेंगे।
आश्चर्य की बात है कि इस तथ्य को हमारे सरकारी अधिकारी क्यों नहीं समझते? अधिकांश अधिकारियों और नेताओं के संतानें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में कार्य करती हैं। सेवानिवृत्ति के बाद ये स्वयं विश्व बैंक की सलाहकारी करने को उत्सुक रहते हैं। इसलिए इनकी मानसिकता ही बन जाती है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों को साधें और वे अनजाने में ही देश हित की ऐसी गलत परिभाषा कर बैठते हैं जिसके अंतर्गत हम आयातों पर निर्भर होते जा रहे हैं और हमारे नागरिक बेरोजगार होते जा रहे हैं।

आज का राशिफल

मेष : व्यवसायिक क्षेत्र में उच्च अधिकारियों के साथ आवश्यक विषयो पर चर्चा होगी। आपके किसी परियोजना को सरकारी लाभ प्राप्त होने की संभावना है। कार्यालय से जुड़े कार्य के लिए प्रवास के भी योग हैं। परिवार में आनंद का वातावरण छाया रहेगा।

वृषभ : आज का दिन मिश्र फलदायी रहेगा। व्यापारी अपने व्यापार में धन लगाकर नए कार्य का प्रारंभ कर सकेंगे और भविष्य के लिए योजना भी बना पाएंगे। विदेशगमन की संभावना भी है। किसी धार्मिक स्थल की भेंट से सात्विकता में वृद्धि होगी। फिर भी स्वास्थ्य संभालिएगा। कार्यभार आज कुछ अधिक रहेगा।

मिथुन : रोगी का इलाज या शल्यचिकित्सा संभवत: आज टालिए। क्रोध से स्वयं कोई हानि होने की संभावना अधिक है। दिमाग को शांत रखिएगा। मानहानि न हो जाय इसका ध्यान रखिएगा। शारीरिक और मानसिकरूप से आज आप अस्वस्थ रहेंगे, इसलिए वाणी पर संयम रखने से वाद-विवाद को टालने में सफलता प्राप्त होगी।

ककर् : आज का दिन मित्रों और स्वजनों के साथ आनंदपूर्वक बिता सकेंगे। मनोरंजक प्रवृत्तियों का भी आनंद प्राप्त होगा। व्यापार के क्षेत्र में भी लाभ होने की संभावना अधिक है। भागीदारों से भी लाभ होगा। छोटा सा प्रवास या पर्यटन की स्मृति लंबे समय तक बनी रहेगी।

सिंह : मानसिक रूप से चिंता से मन व्यग्र रहेगा। शंका और उदासी भी मन पर छाए रहेंगे। इसलिए आज मन भारी रहेगा। किसी कारणवश दैनिक कार्यों में विध्न आ सकते है। व्यवसाय में सहकर्मियों का सहयोग आज नहीं के बराबर मिलेगा। उच्च अधिकारी से भी संभलकर चलिएगा।

कन्या : आज विद्यार्थियों के लिए समय कठिन है। संतानों के विषय में आपको चिंता बनी रहेगी। शेयर-सट्टे में संभलकर चलिएगा। मन में खिन्नता का अनुभव होगा। आज बौद्धिक चर्चाओं में न उतरने की सलाह है।

तुला : आज आप शारीरिकरूप से शिथिलता और मानसिकरूप से व्यग्रता का अनुभव करेंगे। माता के विषय में चिंता रहेगी। स्थावर संपत्ति से संबंधित दस्तावेजी कार्य सावधानी से करें। प्रवास को आज संभव हो तो टाल दीजिएगा।

वृश्चिक : आज आपके लिए लाभदायी दिन है। आज आर्थिक लाभ होने के साथ-साथ भाग्य में भी लाभ होगा। स्नेहीजनों के साथ सम्बंधों में प्रेम की अधिकता रहेगी। नए कार्य का शुभारंभ करने के लिए समय शुभ है। छोटे से प्रवास का आयोजन आप कर पाएंगे। मानसिकरूप से प्रसन्नता बनी रहेगी।

धनु : आज आपका मन दुविधा में फंसा रहेगा। पारिवारिक वातावरण क्लेशपूर्ण रहेगा। निर्धारित कार्यों को पूर्ण न कर पाने से मन में हताशा भी बनी रहेगी। किसी महत्त्वपूर्ण निर्णय को आज न लेने की सलाह है। घर या व्यवसाय के क्षेत्र में कार्यभार अधिक रहेगा।

मकर : आज निर्धारित कार्य सरलतापूर्वक पूरे होंगे। आफिस या व्यवसायिक स्थान पर आपका वर्चस्व बढ़ेगा। गृहजीवन में आनंद का वातावरण रहेगा। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। मानसिक स्वस्थता बनी रहेगी। मित्रों और स्नेहीजों के साथ की मुलाकात से खुशी का वातावरण रहेगा।

कुंभ : आज किसी की जमानत लेने तथा आर्थिक लेन-देन नहीं करने की सलाह है। खर्च की मात्रा अधिक रहेगी। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य नहीं रहेगें। स्वजनों के साथ मतभेद खड़े होंगे। किसी का हित करने में स्वंय परेशानी में पड़ जाने की संभावना है। क्रोध पर नियंत्रण रखें।

मीन : सामाजिक कार्यों या समारोहों में भाग लेने का अवसर आएगा। मित्रों-स्नेहीजनों के साथ की मुलाकात मन को खुशी देगी। सुंदर स्थान पर पर्यटन का आयोजन होगा। शुभ समाचार मिलेगा। पत्नी और संतानों से लाभ प्राप्त होगा। आकस्मिक धन प्राप्त होने की संभावना है।

प्रधानमंत्री ने हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के अन्य कर्मियों के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने तमिलनाडु में एक हेली‍कॉप्टर दुर्घटना में जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के अन्य कर्मियों के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।

प्रधानमंत्री ने सिलसिलेवार ट्वीट में कहा –

‘तमिलनाडु में हेली‍कॉप्टर दुर्घटना से मैं अत्‍यंत दुखी हूं, जिसमें हमने जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के अन्य कर्मियों को खो दिया। उन्होंने अत्यंत कर्मठता से भारत की सेवा की। मेरी गहरी संवेदनाएं शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं।

जनरल बिपिन रावत एक उत्कृष्ट सैनिक थे। एक सच्चे देशभक्त के रूप में उन्होंने सशस्त्र बलों और समस्‍त सुरक्षा व्‍यवस्‍था के आधुनिकीकरण में बहुमूल्‍य योगदान दिया। सामरिक मामलों में उनकी दूरदृष्टि असाधारण थी। उनके निधन से मुझे गहरा सदमा पहुंचा है। ओम शांति।

भारत के प्रथम ‘सीडीएस’ के रूप में जनरल बिपिन रावत ने रक्षा सुधारों सहित सशस्त्र बलों से संबंधित विभिन्न आयामों पर उत्‍कृष्‍ट काम किया। उन्‍हें सेना में अपनी सेवाएं देने का व्‍यापक अनुभव था। भारत कभी भी उनकी असाधारण सेवा को नहीं भूलेगा।’

 

 

कुसुमलता गोयल ,एक ममतामयी मां का जाना!

डॉ श्रीगोपाल नारसन (एडवोकेट) –
जीवन के आखिरी दिनों में शारिरीक रुग्णता के कारण असहाय रही कुसुमलता गोयल ने जीवटता कभी नही छोड़ी।रुग्णता के दौर में जब वे बेसुध पड़ी रहती थी तब भी,मेरे आने की आहट सुनते ही न जाने कहा से उनमे चेतना और स्फूर्ति आ जाती ।वे उठकर बैठ जाती।फिर शिकायत भरे लहजे में कहती,भाई !कहां है तू,लगता है हमें भूल गया?या फिर मेरे मरने पर ही आएगा।लेकिन जैसे ही मैं उन्हें कहता,चाची जी,क्यो ऐसा कहती हो,आप कही नही जाने वाली,मैंने ऊपरवाले से आपका स्टे लिया हुआ है।इतना सुनते ही ,वे खिलखिला कर हंसने लगती थी।फिर कहती भाई तू ,आता रहा कर,बहु व बच्चों को भी लेकर आना,बहुत मन करता है ,उन्हें देखने का।यह आत्मीय लगाव ही मुझे बार बार उनसे मिलने को लालायित करता था।मेरा उनसे मात्र कुछ वर्षों का सम्बंध नही था ।बल्कि लगभग 35 वर्षों से मुझे उनका सानीदय,स्नेह,आशीर्वाद, पालना निरंतर मिलता रहा ।सहारनपुर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पूर्व विधान परिषद सदस्य डॉ जयगोपाल के माध्यम से मुझे ग्रामीण जनता से जुडऩे और पत्र के सम्पादक डॉ एनआर गोयल की छत्रछाया में रहने का सौभाग्य मिला।ग्रामीण जनता के लिए पहले कई वर्षों तक नारसन क्षेत्र से प्रतिनिधित्व किया और फिर रुड़की में ग्रामीण जनता के समाचार सम्पादक के रूप में कार्य किया।जिसके लिए मेरी नियमित सिटिंग ग्रामीण जनता कार्यालय में होने लगी।सात आठ साल तक चले इस सेवा कार्य के दौरान प्राय: हर रोज़ चाची जी के हाथ की बनी चाय पीने को मिलती।वे मुझे हमेशा खाना खाने के लिए कहती और मना करने पर नाराज़ भी हो जाती थी।सचमुच अन्नपूर्णा थी हमारी कुसुमलता गोयल चाची जी।जहां डॉ एनआर गोयल जी मुझकर बेहद विश्वास करते थे,वही चाची जी का मेरे प्रति विश्वास कम नही था।
तभी तो उन्होंने उस दौर में जब मेरी वकालत शुरू ही हुई थी और आमदनी बहुत कम थी,मुझे आर्थिक मजबूती देने के लिए डॉ एनआर गोयल जिन्हें हमेशा मैंने चाचाजी सम्बोधन के साथ अपना गुरु माना से ग्रामीण जनता द्वारा जो मानदेय मिलता था,उसका चैक हमेशा बिना धनराशि अंकित किए ही मुझे मिलता था,गोयल साहब ,हमेशा चैक देते हुए कहते थे,बेटा ,जितने पैसों की जरूरत हो ,उतने भर लेना, ग्रामीण जनता की प्रोपराइटर होने के नाते चैक पर हस्ताक्षर चाची जी कुसुमलता गोयल के होते थे,यह बात दीगर है कि मैंने चैक में पांच सौ रुपये से अधिक की राशि कभी नही भरी,क्योंकि मुझे उस समय उतनी ही राशि मानदेय के रूप में उचित लगती थी।ग्रामीण जनता वालो के यहां रामायण का पाठ वर्षो तक निर्बाध होता रहा।उस घर मे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हेमवतीनंदन बहुगुणा से लेकर मुख्य सचिव तक आए, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री चौधरी यशपाल सिंह का तो ग्रामीण जनता दूसरा घर था।वही पंजाब के गर्वनर वीरेंद्र वर्मा भी ग्रामीण जनता और पत्र के प्रधान सम्पादक डॉ एनआर गोयल के मुरीद थे।विधान परिषद सदस्य रहे स्वाधीनता सेनानी डॉ जयगोपाल, पंडित ताराचंद वत्स जो मेरे मामा जी थे,भी गोयल साहब को बहुत मानते थे।इस घर मे नवभारत टाइम्स के सम्पादक राजेंद्र माथुर ,कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर जैसी बड़ी हस्तियां समय समय पर आती रही,जिनकी सेवा भाव के लिए कुसुमलता गोयल हमेशा तत्पर रही।उनकी रसोई में बने पकवानों की तारीफ़ हर कोई करता था।हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी भगत सिंह वर्मा तो प्राय: हर सप्ताह ही ग्रामीण जनता के कार्यालय आ जाते थे।उन्होंने गोयल साहब को एक कार भी भेंट करने की कोशिश की,ताकि स्कूटर से उन्हें आना जाना न पड़े,लेकिन गोयल साहब ने विन्रमता से उनका आग्रह अस्वीकार कर दिया।कुसुमलता गोयल ने कभी गोयल साहब को ऐसे धन के लिए नही कहा,जो अनुचित हो।वे जब कभी पैसों की तंगी हुई तब भी खुश रहती थी और कम खर्च में अच्छा गुजारा करना उन्हें अच्छे से आता था।धार्मिक विचारों से ओतप्रोत कुसुमलता गोयल की आध्यात्मिक सोच के चलते ही उनके घर स्वामी कल्याण देव,पथिक जी महाराज, स्वामी सत्यमित्रानंद जैसे सन्तो के चरण पड़ते थे।ऐसी महान विदुषी कुसुमलता गोयल चाची जी,जो मेरे किए मां ही थी, को शत शत नमन।

कोविड से अनाथ

कोविड-19 ने हमारे समाज को आर्थिक व सामाजिक रूप से बुरी तरह झकझोरा है। सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो देश में ऐसे बच्चों की संख्या लाखों में है जिन्होंने माता-पिता या दोनों में से एक को कोरोना महामारी में खोया है। इस संकट के दौरान देश में मानवता के जीवंत उदाहरण तब नजर आये जब व्यक्ति व संस्था के स्तर पर लोग जरूरतमंदों की मदद को आगे आये। उन्होंने खाने, पैसे, दवा व अन्य संसाधनों से मुसीबत के मारे लोगों की मदद की। लेकिन इस संकट में समाज का स्याह पक्ष भी उजागर हुआ, जब कुछ लोगों ने संकट को अवसर बनाया। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो महामारी से अनाथ हुए बच्चों का शोषण करने पर उतारू हैं। अमानवीयता की हद देखिये कि कोरोना महामारी में अपनों को खोने वाले मुसीबत के मारे बच्चों की सौदेबाजी की जा रही है। एक समाचार संगठन की पड़ताल और जम्मू-कश्मीर में अधिकारियों की जांच के बाद दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। वे बच्चों के लिये एनजीओ चलाने की आड़ में गैरकानूनी रूप से बच्चों को गोद देने का रैकेट चला रहे थे। प्रपंच करके लाये गये बच्चों में से एक बच्चे को पौने लाख से पौने दो लाख रुपये में बेचने की कोशिश हो रही थी। दिल्ली में एक अन्य एजेंसी बिना कागजी कार्रवाई पूरी किये बच्चों का व्यापार करती नजर आई। यह गंभीर चिंता का विषय है।
निस्संदेह समाज में ऐसे अनैतिक कार्यों में लिप्त लोग सख्त सजा के अधिकारी हैं। वास्तव में देश में आई कोरोना की दूसरी लहर से देश में जनधन की व्यापक क्षति हुई। इसके बाद सोशल मीडिया पर माता-पिता या दोनों में एक अभिभावक को खोने वाले बच्चों की खबरें बड़ी संख्या में देखी गईं। अनाथ बच्चों के विवरण के साथ उन्हें गोद लेने के आग्रह भी शामिल थे। एक अनुमान के अनुसार एक लाख बच्चों ने माता-पिता में से एक को खो दिया। तब भी बाल अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ताओं और कानून क्रियान्वयन करने वाली संस्थाओं ने इन पोस्टों की वस्तुस्थिति पर शंका जताते हुए इनके जरिये बाल तस्करी के बढऩे की आशंका जतायी थी। ऐसे में जब राज्य सरकारें इन बच्चों की अभिभावक हैं तो अधिकारियों से ऐसे मामलों में जिम्मेदारी की भूमिका की उम्मीद की जाती है। दरअसल, किशोर न्याय अधिनियम 2015 गोद लेने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले रिश्तेदारों द्वारा उनकी देखभाल को प्राथमिकता देता है। यानी जहां परिवार के सदस्य बच्चे को रखने के इच्छुक हों, तो उन्हें वरीयता दी जाती है। ऐसे में जब महामारी का संकट पूरी तरह टला नहीं है और तीसरी लहर की आशंका जाहिर की जा रही है तो प्रभावित बच्चों का भरोसमंद रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए। ताकि उन्हें बाल तस्करी करने वालों के चंगुल में आने से बचाया जाये। जो लोग बच्चों को गोद लेने के वास्तव में इच्छुक हैं, उनकी विश्वसनीयता को गंभीरता के साथ जांचा जाना चाहिए। जिला स्तर पर अधिकारियों को सतर्कता के साथ मामले की पूरी पड़ताल करनी चाहिए।

आज का राशिफल

मेष : व्यावसायिक स्थल पर आज ऊपरी अधिकारियों के साभ प्रेम से कार्य संपन्न कीजिएगा, उग्र चर्चा में न उतरें वही आप के लिए हितकारी रहेगा। आज भाग्य साथ नहीं दे रहा है, ऐसा अनुभव हो सकता है। कार्य में सफलता भी शीघ्र नहीं मिलेगी परंतु मध्याहन के बाद परिस्थिति में सुधार होगा। गृहस्थजीवन में भी आनंदपूर्ण वातावरण रहेगा।

वृषभ : शारीरिक स्वास्थ्य पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है। नए कार्य का प्रारंभ आज न करिएगा। साथ में वाणी और वर्तन पर संयम बरतिएगा। खान-पान में ध्यान रखिएगा। व्यवसायिक क्षेत्र में विध्न उपस्थित हो सकता हैं। उच्च अधिकारियों के साथ घर्षण के प्रसंगों को

टाल दीजिएगा।
मिथुन : मनोरंजन प्रवृत्ति में आप खोए से रहेंगे। मित्रों के साथ प्रवास- पर्यटन का आयोजन होगा। अच्छे खान-पान और अच्छे वस्त्रालंकार उपलब्ध होंगे। मध्याहन के बाद आप कुछ अधिक ही भावुक बनेंगे। इससे मन की व्यथा में वृद्धि भी हो सकती है। धन के खर्च में वृद्धि होगी।

कर्क : मायके से अच्छे समाचार मिलेंगे। पारिवारिक वातावरण भी अनुकूल रहेगा। प्रतिस्पर्धियों को भी अधिक लाभ प्राप्त नहीं हो पाएगा। शारीरिक और मानसिक रूप से आप स्वस्थ रहेंगे। बौद्धिक चर्चा में अपने तार्किक विचारों को प्रदान करने के लिए समय अनुकूल है।

कन्या : सामाजिक रूप से अपमान न हो इसका ध्यान रखिएगा। धन हानि होने की संभावना है। क्रोध पर संयम रखिएगा। कार्य सफलता न मिलने के कारण निराशा होगी। संतानों के विषय में चिंता सताएगी। प्रवास को संभवत: टाल दीजिएगा।

तुला : नए कार्य का शुभारंभ करने के लिए आज का दिन अच्छा है। प्रिय व्यक्ति के साथ हुई भेंट आनंददायी रहेगी। भाग्यवृद्धि होगी। सामाजिक रुप से मान-सम्मान प्राप्त होगा। पारिवारिक वातावरण क्लेशमय रहेगा। स्थावर संपत्ति से संबंधित पत्रों के विषय में सावधानी बरतिएगा। माता का स्वास्थ्य भी बिगड़ सकता है।

वृश्चिक : निर्धारित कार्य संपन्न न होने के कारण हताशा का अनुभव होगा। पारिवारिक वातावरण में क्लेश की मात्रा अधिक रहेगी। परंतु मध्याहन के बाद परिवार जनों तथा भाई- बहनों के साथ समय आनंदपूर्वक बिता पाएंगे। प्रतिस्पर्धियों को पराजित कर पाएंगे।

धनु: कार्यसिद्धि और लक्ष्मी प्राप्ति दोनों की आज प्राप्ति होगी। शारीरिक और मानसिक रूप से आप उत्साही तथा प्रफुल्लित रहेंगे, इसलिए प्रत्येक कार्य करने में आप को उत्साह रहेगा। कहीं यात्रा होने की संभावना है। मध्याहन के बाद आप कुछ दुविधा में रहेंगे। घर में तथा व्यवसायिक स्थल पर कार्यभार रहेगा। अधिक खर्च या निरर्थक खर्च हो सकता है।

मकर : वाणी और वर्तन के कारण भ्रांति न हो जाए इसका ध्यान रखिएगा। क्रोध की मात्रा बढ़ जाने से किसी के साथ उग्र चर्चा या विवाद न हो जाय। मन में व्यग्रता रहेगी। इसलिए आध्यात्मिकता का आश्रय लेने से मन शांत होगा। मध्याहन के बाद स्फूर्ति और उल्लास का अनुभव करेंगे। पारिवारिक वातावरण आनंदप्रद और शांत रहेगा।

कुंभ: सामाजिक क्षेत्र में आप अधिक सक्रिय रहेंगे और उस के फलस्वरूप मान प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होगी। विवाहोत्सुकों को अनुकूल जीवनसाथी मिलने से दिन के आनंद में भी अभिवृद्धि होगी। परंतु मध्याहन के बाद घर का वातावरण कलुषित होगा। शारीरिक स्वास्थ्य बिगडऩे की संभावना है, इसलिए आवेशपूर्ण मन को संयम में रखिएगा।

मीन : किसी परोपकार का कार्य आप के द्वारा होगा। व्यापार में उचित आयोजन के द्वारा व्यापार- वृद्धि कर सकेंगे। उच्च अधिकारीगण आप के कार्य की प्रशंसा आनंदपूर्वक करेंगे। व्यापार से सम्बंधित प्रवास का योग है। पिता और बड़ों के आशीर्वाद और उनसे लाभ भी मिलेगा। आय में वृद्धि होने की भी संभावना है।

कहीं खत्म न हो जाए गरीबों का रिजर्वेशन

वेदप्रताप वैदिक –
आजकल सर्वोच्च न्यायालय में मलाईदार परत (क्रीमी लेयर) को लेकर जोरदार बहस चल रही है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्रीमी लेयर का पैमाना सबके लिए एक-जैसा क्यों हो? उसने पूछा है कि 8 लाख रुपये की सालाना आमदनी की सीमा सब पर एक-जैसी क्यों थोपी गई है? ऊंची जातियों के गरीब लोगों को जो 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है, उसका आधार क्या है? गरीब पिछड़ों और गरीब अगड़ों को एक ही तुला पर क्यों तोला जा रहा है? सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह 8 लाख रुपये की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख करना चाहती है। यानी जिन परिवारों की आमदनी 1 लाख रुपये प्रतिमाह से कम है, उनके सदस्यों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिया जाए। यदि यह छूट दोनों वर्गों को समान रूप से दी जाएगी तो क्या अन्य पिछड़े वर्ग के साथ अन्याय नहीं होगा?
कमजोर आधार
अदालत का कहना है कि जो लोग सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं, क्या सरकार ने विस्तृत जांच करके मालूम किया है कि वे लोग ऊंची जातियों या सवर्णों की तरह ही वंचित हैं? क्या उनकी वंचना या गरीबी ऊंची जाति के लोगों की गरीबी और वंचना-जैसी ही है? सचाई तो यह है कि सरकार ने इस तरह का कोई भी व्यवस्थित अध्ययन अभी तक नहीं करवाया है। ऐसे में यही आशंका है कि कहीं सरकार ऊंची जातियों के इस 10 प्रतिशत आरक्षण को खत्म ही न कर दे।
यह आरक्षण 2019 में मोदी सरकार ने संविधान में 103 वां संशोधन करके स्वीकृत करवाया था। जब यह प्रावधान पहले कांग्रेस सरकार करवाना चाहती थी, तब सर्वोच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया और कहा कि संविधान आर्थिक पिछड़ेपन को मान्यता नहीं देता है। अब डर यह है कि सरकार कहीं इस प्रावधान को ही ताक पर न रख डाले। बीजेपी सरकार, जो जातीय वोटों पर कभी आधारित नहीं रही, उसने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते समय कुछ हफ्ते पहले अपने नए मंत्रियों की जातीय पहचान पर भी जोर दिया था। सरकार को ज्यादा सुविधा इसी हल में महसूस होगी कि वह 10 प्रतिशत का यह विशेष कोटा खत्म कर दे, क्योंकि आरक्षण के आर्थिक आधार को सिद्ध करना बड़ा पेचीदा मामला है। जो आर्थिक आधार एक राज्य में जीवन-यापन के लिए पर्याप्त है, वही दूसरे राज्य में अपर्याप्त हो सकता है। एक ही राज्य के दो जिलों में भी प्रति व्यक्ति आमदनी और खर्च में काफी अंतर हो सकता है। गांव और शहर तथा नगर और महानगर में भी काफी अंतर होता है। इसीलिए अकेले आर्थिक आधार पर आरक्षण की सीमा कैसे बांधी जा सकती है और यदि बांधी ही गई तो उसके दर्जनों संस्करण सरकार और लोगों को तंग करके रख देंगे।
अभी वास्तव में आर्थिक आधार पर आरक्षण मांगने वालों की संख्या 10 प्रतिशत से कम ही रही है। यह आरक्षण दो साल पहले शुरू हुआ था। अभी भी ऊंची जातियों के गरीब लोगों को आरक्षण की यह कला पूरी तरह आकर्षित नहीं कर सकी है लेकिन ज्यों-ज्यों समय गुजरेगा, यह मांग 10 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ सकती है। अगड़ी जातियों के ये गरीब लोग शिक्षित और जागरूक ज्यादा होते हैं। वे अपने विशेषाधिकारों के लिए नया राजनीतिक अभियान भी छेड़ सकते हैं। इस समय देश में अनुसूचितों और पिछड़ों की संख्या देश के अगड़ों से कई गुना ज्यादा है। जो सरकार लोकप्रिय बने रहना चाहती है और वोट-प्राप्ति ही जिसकी प्राणवायु है, वह देश की बहुसंख्या को खुश रखने के लिए जो कुछ कर सकती है, जरूर करेगी।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगड़ों को जब पिछड़ों के बाद 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया तो उनके पैरों में काफी चुभीली जंजीरें बांध दी गई थीं। अगड़ों की आठ लाख रुपये की वार्षिक आय में उनका वेतन जोड़ा जाता रहा है जबकि पिछड़ों को जो वेतन मिलता है, वह नहीं जोड़ा जाता है। यदि वे किसान हैं तो उनकी खेती की आय भी नहीं जोड़ी जाती है। पिछड़ी जातियों में मालदार किसानों की भी कमी नहीं है। अदालत के जोर देने पर यह संभव है कि सरकार दोनों वर्गों को दी जा रही सुविधाओं और रियायतों पर शीघ्र ही पुनर्विचार करे और अदालत के सामने आरक्षण का नया नक्शा पेश कर दे।
यहां मूल प्रश्न यह है कि यह जातीय आरक्षण और गरीबी-आरक्षण कब तक चलता रहेगा? यह तो ठीक है कि सदियों से चले आ रहे जातीय भेदभाव से भारतीय जनता को मुक्त करने के लिए ही हमारे संविधान निर्माताओं ने आरक्षण का प्रावधान किया था लेकिन स्वयं डॉ. आंबेडकर की इच्छा के विपरीत यह अल्पकालिक दवाई भारत की सर्वकालिक खुराक बन गई है। इसमें मु_ीभर लोगों को आरक्षण का झांसा देकर करोड़ों गरीबों को जस का तस सड़ते रहने के लिए मजबूर कर दिया है। मेहनतकश मजदूर लोग, वे किसी भी जाति या मजहब के हों या किसी भी गांव या शहर के हों, गरीबी का नरक भोगने के लिए विवश हैं।
गाढ़ा होता जातिवाद
नौकरियों और शिक्षा में जातीय आरक्षण ने हमारे देश में जातिवाद के जहर को पहले से भी गाढ़ा कर दिया है। कोई भी पार्टी जातिवाद का सहारा लिए बिना चुनाव की वैतरणी पार नहीं कर सकती। जातिवाद के जहर से भारत के सभी धर्म त्रस्त हैं। जो धर्म, जातियों को मानते ही नहीं, उनमें भी जातीय ऊंच-नीच का भाव जीवित है। भारत ही नहीं, मैंने भारत के पड़ोसी देशों में भी देखा है कि जातिवाद ने उनके सामाजिक जीवन को डस रखा है। यदि भारत में शिक्षा और चिकित्सा लगभग मुफ्त कर दी जाए और वह सबको समान रूप से उपलब्ध हो तो नौकरियों में जातीय आरक्षण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। जिन्हें पिछड़ा और अनुसूचित कहते हैं, वे लगभग 100 करोड़ लोग कुछ ही वर्षों में भारत को एक महाशक्ति और महासंपन्न राष्ट्र में परिवर्तित कर सकते हैं।

कॉमन रूम : कानून है फिर भी लड़नी पड़ रही हक की लड़ाई

देवेन्द्रराज सुथार –
पिछले दिनों कोलकाता पुलिस में इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा का विज्ञापन निकला तो पल्लवी ने इस परीक्षा में बैठने का मन बना लिया। जब उसने आवेदन पत्र डाउनलोड किया तो उसमें जेंडर के केवल दो ही कॉलम थे एक पुरुष और दूसरा महिला। मजबूरन उनको हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा।
अपने वकील के जरिए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और 2014 के ट्रांसजेंडर एक्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अपनी दलील रखी। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के अधिवक्ता से इस मामले पर राय पेश करने को कहा। अगली तारीख पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि सरकार आवेदन के प्रारूप में पुरुष और महिला के साथ-साथ ट्रांसजेंडर कॉलम रखने के लिए सहमत हो गई है। अब पल्लवी पुलिस अफसर बनें या ना बनें, उन्होंने भारत भर के ट्रांसजेंडर्स के लिए एक खिड़की तो खोल ही दी है।
ऐसे ही पुलिस में भर्ती होने वाली देश की पहली ट्रांसजेंडर और तमिलनाडु पुलिस का हिस्सा पृथिका यशिनी की ऐप्लिकेशन रिक्रूटमेंट बोर्ड ने खारिज कर दी थी, क्योंकि फॉर्म में उनके जेंडर का विकल्प नहीं था। ट्रांसजेंडर्स के लिए लिखित, फिजिकल परीक्षा या इंटरव्यू के लिए कोई कट-ऑफ का ऑप्शन भी नहीं था। इन सब परेशानियों के बावजूद पृथिका ने हार नहीं मानी और कोर्ट में याचिका दायर की। उनके केस में कटऑफ को 28.5 से 25 किया गया। पृथिका हर टेस्ट में पास हो गई थी, बस 100 मीटर की दौड़ में वह 1 सेकेंड से पीछे रह गई। मगर उनके हौसले को देखते हुए उनकी भर्ती कर ली गई। मद्रास हाईकोर्ट ने 2015 में तमिलनाडु यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज रिक्रूटमेंट बोर्ड को ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भी मौका देने के निर्देश दिए। इस फैसले के बाद से प्रवेश फॉर्म के जेंडर में तीन कॉलम जोड़े गए।
तमिलनाडु में ही क्यों, राजस्थान में भी यही हुआ था। जालोर जिले के रानीवाड़ा इलाके की गंगा कुमारी ने वर्ष 2013 में पुलिस भर्ती परीक्षा पास की थी। हालांकि, मेडिकल जांच के बाद उनकी नियुक्ति को किन्नर होने के कारण रोक दिया गया था। गंगा कुमारी हाईकोर्ट चली गईं, और दो साल के संघर्ष के बाद उन्हें सफलता मिली। ये फैसले बताते हैं कि जरूरत इस बात की है कि समाज के हर व्यक्ति का नजरिया बदले नहीं तो कुर्सी पर विराजमान अधिकारी अपने नजरिए से ही समुदाय को देखेगा।
2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में लगभग पांच लाख ट्रांसजेंडर्स हैं। अक्सर इस समुदाय के लोगों को समाज में भेदभाव, फटकार, अपमान का सामना करना पड़ता है। अधिकांश लोग भिखारी या सेक्स वर्कर के रूप में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। 15 अप्रैल, 2014 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने थर्ड जेंडर को संवैधानिक अधिकार दिए और सरकार को इन अधिकारों को लागू करने का निर्देश दिया। उसके बाद 5 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद थर्ड जेंडर के अधिकारों को कानूनी मान्यता मिल गई।
लैंगिकता पर सभी देशों में चर्चा होती है, उन्हें समान अधिकार और स्वतंत्रता दिए जाने की वकालत होती है। बावजूद इसके लिंग के आधार पर सभी को समान अधिकार और स्वतंत्रता अभी भी नहीं मिल पाई है। 2011 की जनगणना बताती है कि महज 38 प्रतिशत किन्नरों के पास नौकरियां हैं जबकि सामान्य जनसंख्या का प्रतिशत 46 है। 2011 की जनगणना यह भी बताती है कि केवल 46 प्रतिशत किन्नर साक्षर हैं, जबकि समूचे भारत की साक्षरता दर 76 प्रतिशत है। किन्नर समाज अत्याचार, शोषण, उत्पीडऩ का शिकार है। इनको नौकरी और शिक्षा पाने का अधिकार बहुत कम मिलता है। जीवन के सुअवसर प्राप्त न होने के कारण इन्हें अपने स्वास्थ्य की समुचित देखभाल करने में भी दिक्कत आती है।
विकास के इस दौर में किन्नर समाज आज भी हाशिए पर खड़ा है। किन्नर समुदाय के विकास की अनदेखी एक गंभीर विषय है। सभी समुदायों के हक तथा अधिकारों के बारे में चर्चा की जाती है, लेकिन किन्नर समुदाय के विषय में चर्चा तक नहीं होती। हर किन्नर पल्लवी जितने मजबूत मन का भी नहीं होता कि लड़कर अपना हक ले ले। सवाल है कि आखिर वह स्थिति कब आएगी जब समाज के सामान्य सदस्यों की तरह इन्हें भी सहजता से इनका हक उपलब्ध रहेगा।

ज्ञान विज्ञान – ब्रह्मांड की गहराई को देखेगी अब एक नई आंख

मुकुल व्यास –
अमेरिकी खगोल वैज्ञानिक एडविन हबल ने सबसे पहले यह सिद्ध किया था कि हमारी मिल्की-वे आकाशगंगा के आगे दिखने वाले अनेक ऑब्जेक्ट दरअसल दूसरी आकाशगंगाओं की मौजूदगी दर्शाते हैं। तब से खगोल वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि सबसे पुरानी आकाशगंगाएं कितनी पुरानी हैं, उनका गठन कैसे हुआ और बाद में उनमें क्या बदलाव हुए?
हबल के नाम से मशहूर हो चुके नासा के टेलिस्कोप ने ब्रह्मांड के बारे में बहुत सी नई जानकारियां हमें दी हैं। लेकिन उसके बहुत से रहस्य अनसुलझे हैं, बहुत से सवालों के जवाब खोजे जाने बाकी हैं। खगोल वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि नए जेम्स वेब टेलिस्कोप से ब्रह्मांड में ज्यादा गहराई तक झांका जा सकेगा। यह टेलिस्कोप 22 दिसंबर को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। ब्रह्मांड में दूर तक झांकने के लिए इस टेलिस्कोप में बहुत बड़ा दर्पण लगाया गया है। यह दर्पण करीब 6 मीटर चौड़ा है। इस पर एक शेड लगा हुआ है जिसका आकार टेनिस कोर्ट के बराबर है। यह शेड सूरज के विकिरण को अवरुद्ध करेगा।
इसके अलावा टेलिस्कोप में चार पृथक कैमरे और सेंसर सिस्टम हैं। यह टेलिस्कोप एक सैटलाइट डिश की तरह काम करता है। किसी तारे या आकाशगंगा से आने वाली रोशनी टेलिस्कोप के मुख में प्रवेश करेगी और प्राथमिक दर्पण से टकराकर चार सेंसरों तक जाएगी। एक सेंसर प्रकाश को विभिन्न रंगों में विभक्त करेगा और हर एक रंग की ताकत को नापेगा। एक अन्य सेंसर प्रकाश की वेवलेंथ को नापेगा। जेम्स वेब टेलिस्कोप से वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि हमारी मिल्की-वे आकाशगंगा में तारों का गठन किस प्रकार होता है। साथ ही इससे सौर मंडल के बाहर दूसरे ग्रहों के वायुमंडलों का भी अध्ययन किया जा सकेगा।

इस टेलिस्कोप का एक प्रमुख लक्ष्य पर्यवेक्षण के लायक ब्रह्मांड के छोर के पास स्थित आकाशगंगाओं का अध्ययन करना है। इन आकाशगंगाओं के प्रकाश को ब्रह्मांड पार कर पृथ्वी तक पहुंचने में अरबों वर्ष लगते हैं। टेलिस्कोप से जुड़े एक वैज्ञानिक के अनुसार टेलिस्कोप द्वारा ली जाने वाली तस्वीरों में उन प्राथमिक आकाशगंगाओं को देखा जा सकेगा, जिनका गठन बिग बैंग घटना के 30 करोड़ वर्ष बाद हुआ था। बिग बैंग थियरी के मुताबिक ब्रह्मांडीय महाविस्फोट से ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी। बिग बैंग के बाद बने तारों के पहले जमघट को खोजना बहुत ही जटिल काम है क्योंकि ये प्राथमिक आकाशगंगाए बहुत दूर हैं और मंद दिखाई देती हैं।
वेब टेलिस्कोप के दर्पण में 16 भाग हैं और वह हबल टेलिस्कोप के दर्पण के मुकाबले 6 गुणा ज्यादा प्रकाश एकत्र कर सकता है। वेब टेलिस्कोप को पर्यवेक्षण के दौरान एक बड़ी जटिल समस्या का सामना करना पड़ेगा। चूंकि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है, वे आकाशगंगाएं भी पृथ्वी से दूर जा रही हैं जिनका वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया जाएगा। दूर जाने वाली आकाशगंगाओं के प्रकाश की वेवलेंथ दृश्य प्रकाश से इंफ्रारेड लाइट में तब्दील हो जाएगी। इंफ्रारेड लाइट एक विद्युत- चुंबकीय रेडिएशन है जिसकी वेवलेंथ दृश्य प्रकाश से बड़ी होती है। वेब टेलिस्कोप इंफ्रारेड प्रकाश को डिटेक्ट कर सकता है लेकिन मंद आकाशगंगाओं को इंफ्रारेड प्रकाश में देखने के लिए टेलिस्कोप का अत्यंत ठंडा होना जरूरी है, नहीं तो वह अपना ही इंफ्रारेड रेडिएशन देखने लगेगा। इसी वजह से टेलिस्कोप के कैमरों और सेंसरों को माइनस 224 सेल्सियस तापमान पर रखने के लिए उसमें एक विशेष हीट शील्ड बनाई गई है।
जेम्स वेब टेलिस्कोप आधुनिक इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना है। इसका विकास नासा, यूरोपियन एजेंसी और कैनेडियन स्पेस एजेंसी ने मिल कर किया है। इस प्रॉजेक्ट पर काम 1996 में शुरू हुआ था। इसे पहले 2005 में अंतरिक्ष में स्थापित किया जाना था, लेकिन प्रक्षेपण की तारीख आगे खिसकती रही। इस दौरान टेलिस्कोप के डिजाइन में सुधार होते रहे। 2016 में टेलिस्कोप के निर्माण का कार्य पूरा हुआ। इसके पश्चात इसके विस्तृत परीक्षण का दौर शुरू हुआ। 2018 में परीक्षण के दौरान टेलिस्कोप की शील्ड फट जाने के बाद नासा ने इसका प्रक्षेपण स्थगित कर दिया। मार्च 2020 में कोविड महामारी के कारण टेलिस्कोप के एकीकरण और परीक्षण के काम को स्थगित करना पड़ा। टेलिस्कोप की टीम ने अब यान की रवानगी से पहले हर उपकरण को अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों में आजमा कर देख लिया है।

  तीसरी लहर का खतरा

कोविड-19 वायरस के अब तक के सबसे संक्रामक रूप ओमिक्रॉन के मरीज कर्नाटक के बाद महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली में भी मिले हैं। यह बात सही है कि अभी भारत में इसके मामले बहुत कम हैं, लेकिन इसकी संक्रामकता को ध्यान में रखते हुए जानकार यहां कोविड की तीसरी लहर की भविष्यवाणी करने लगे हैं। एक और दिक्कत यह है कि ओमिक्रॉन के मामले में वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां भी अपने टीकों को लेकर श्योर नहीं हो पा रही हैं।
पिछले दिनों अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना के सीईओ ने कहा भी था कि ओमिक्रॉन के स्पाइक प्रोटीन में इतनी बड़ी संख्या में म्यूटेशन हो रहे हैं कि यह वैक्सीन लगाने के बाद बनी एंटीबॉडीज से बचने में कामयाब हो सकता है। इससे ओमिक्रॉन को लेकर फिक्र बढ़ी है। इसके साथ यह भी कहा गया है कि ओमिक्रॉन भले ही संक्रामकता के मामले में कोविड-19 वायरस की दूसरी किस्मों से आगे है, लेकिन यह उतना जानलेवा नहीं है। यों तो इस बारे में समय के साथ अधिक जानकारी सामने आएगी, लेकिन यह मानी हुई बात है कि म्यूटेशन के साथ वायरस कम जानलेवा होता जाता है।
अभी तक दुनिया के जिन देशों में ओमिक्रॉन के मरीज मिले हैं, उनमें से किसी के भी मरने की खबर नहीं आई है। फिर भी एक्सपर्ट्स की भविष्यवाणी को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को संभावित तीसरी लहर से निपटने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। इस मामले में दूसरी लहर के दौरान के सबक याद रखने होंगे, जब स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से लाचार दिख रही थी। तीसरी लहर से निपटने की तैयारियों के साथ कुछ और बातों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इधर, वैक्सिनेशन की रफ्तार धीमी पड़ी है। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं, जो वैक्सीन की पहली डोज लेने के बाद दूसरी डोज लगवाने में लापरवाही बरत रहे हैं।
इस मामले में केंद्र और खासतौर पर राज्य सरकारों को खास पहल करनी होगी। राज्यों को यह भी पक्का करना होगा कि कोविड की जांच की रफ्तार धीमी ना पड़े। दूसरी लहर के बाद कोरोना के मामलों के कम होने के साथ लोग सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाने को भी लेकर लापरवाह हुए हैं। याद रखना होगा कि कोविड-19 महामारी खत्म नहीं हुई है और इससे बचने का पहला उपाय सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का प्रयोग है। सरकार को भी ओमिक्रॉन को लेकर चौकस रहना होगा। अगर इसके हॉट स्पॉट उभरते हैं तो जल्द से जल्द वहां से दूसरी जगहों पर संक्रमण रोकने के उपाय करने होंगे। दूसरी लहर के दौरान जिस तरह से पूर्ण लॉकडाउन से बचा गया, वह इकॉनमिक रिकवरी में मददगार साबित हुआ।
संभावित तीसरी लहर में यह सबक भी याद रखना होगा। आखिर में, ओमिक्रॉन को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है। जिस तरह से दुनिया से कोरोना महामारी से निपटने के लिए रेकॉर्ड समय में वैक्सीन बनाई। जिस तरह से सामान्य जिंदगी की ओर लौटने की कोशिश हो रही है, वह काबिल-ए-तारीफ है। इसमें कोई शक नहीं है कि दुनिया ओमिक्रॉन के खतरे से भी उबर जाएगी।

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