*बीते समय में अपने देश में घरेलू उड्डयन की हालत गड़बड़ ही चल रही है
*घरेलू उड्डयन की समस्या का समाधान किया जाय
*जेट एयरवेज बंद हो गयी है. इंडिगो के प्राफिट में भारी गिरावट आई है
*सरकारी प्रबन्धन के दुराचार के बाद एयर इंडिया वापस टाटा समूह को बेच दी गयी है
*सरकार को अपनी उड्डयन नीति में परिवर्तन करना होगा
– भरत झुनझुनवाला
सत्तर साल तक सरकारी प्रबन्धन के दुराचार के बाद एयर इंडिया वापस टाटा समूह को बेच दी गयी है। लेकिन एयर इंडिया को वापस पटरी पर लाने के लिए टाटा को मशक्कत करनी पड़ेगी। बीते समय में अपने देश में घरेलू उड्डयन की हालत गड़बड़ ही चल रही है। जेट एयरवेज बंद हो गयी है, स्पाइस लगभग बंद हो गयी थी, इंडिगो के प्राफिट में भारी गिरावट आई है और एयर इंडिया के घाटे को पूरा करने के लिए देश के नागरिक से भारी टैक्स वसूल किया गया है। अत: घरेलू उड्डयन की मूल समस्याओं को भी सरकार को दूर करना होगा।
मुख्य समस्या यह है कि अपने देश में यात्रा के रेल और सड़क के विकल्प उपलब्ध हैं, जिसके कारण हवाई यात्रा लम्बी दूरी में ही सफल होती दिख रही है। जैसे दिल्ली से बेंगलुरू की रेल द्वारा एसी2 में यात्रा का किराया 2925 रुपये है जबकि एक माह आगे की हवाई यात्रा का किराया 3170 रुपये है। दोनों लगभग बराबर हैं। अंतर यह है कि रेल से यात्रा करने में 1 दिन और 2 रात का समय लगता है और भोजन आदि का खर्च भी पड़ता है। जिसे जोड़ लें तो रेल यात्रा हवाई यात्रा की तुलना में महंगी पड़ती है। तुलना में हवाई यात्रा में कुल 7 घंटे लगते हैं। इसलिए लम्बी दूरी की यात्रा में हवाई यात्रा सफल है।
हां, यदि आपको तत्काल यात्रा करनी हो तो परिस्थिति बदल जाती है। उस समय हवाई यात्रा महंगी हो जाती है जैसे दिल्ली से बेंगलुरू का किराया 10,000 रुपये भी हो सकता है जबकि एसी2 का किराया वही 2925 रुपये रहता है, यदि टिकट उपलब्ध हो। इसलिए तत्काल यात्रा को छोड़ दें तो लम्बी दूरी की यात्रा में हवाई यात्रा सफल है।
इसकी तुलना में मध्य दूरी की यात्रा की स्थिति भिन्न हो जाती है। दिल्ली से लखनऊ का एसी2 का किराया 1100 रुपये है जबकि एक माह आगे की हवाई यात्रा का किराया 1827 रुपये है। रेल यात्रा में एक लाभ यह भी है कि आप इस यात्रा को रात्रि में कर सकते हैं, जिससे आपका दिन का उत्पादक समय बचा रहता है; जबकि वायु यात्रा आपको दिन में करनी पड़ती है और इसमें आपका लगभग आधा दिन व्यय हो जाता है। इसलिए दिल्ली से लखनऊ की यात्रा किराए और समय दोनों की दृष्टि से रेल द्वारा सफल है।
यदि छोटी दूरी की बात करें तो दिल्ली से देहरादून रेल, सड़क और हवाई यात्रा सभी में लगभग 5 घंटे का समय लगता है। हवाई यात्रा में यात्रा के दोनों छोर पर हवाई अड्डा दूर होता है (1+1 घंटा), चेक-इन करना होता है (1/2 घंटा) और बैगेज लेने में समय लगता है (1/2 घंटा)। समय के इस व्यय के कारण यद्यपि हवाई यात्रा विशेष में केवल 1 घंटे का समय लगता है परन्तु घर से घर तक कुल समय 4 घंटे लगता जो कि सड़क से लगने वाले 5 घंटे के लगभग बराबर है। हवाई यात्रा में आपको लाइन में लगना होगा, लगेज लेने के लिए इन्तजार करना होगा और हवाई अड्डे तक पहुंचने में भी मेहनत करनी होगी। इसलिए मध्य दूरी की यात्रा जैसे दिल्ली से लखनऊ और छोटी दूरी के यात्रा जैसे दिल्ली से देहरादून रेल या सड़क सफल है और लम्बी दूरी की यात्रा जैसे दिल्ली से बेंगलुरू में हवाई यात्रा सफल है। इतना जरूर है कि यदि तत्काल यात्रा करनी हो तो हवाई यात्रा सफल हो सकती है।
यहां एक विषय यह भी है कि अक्सर क्षेत्रीय उड़ानें लम्बी उड़ानों को जोडती हैं। जैसे देहरादून से दिल्ली आप एक उड़ान से आये और फिर दिल्ली से कलकत्ता दूसरी उड़ान से गये। इस प्रकार बड़े हवाई अड्डों को हब बना दिया जाता है जहां किसी एक समय तमाम क्षेत्रीय उड़ाने पहुंचती हैं और उसके कुछ समय बाद तमाम लम्बी उड़ानें निकलती हैं। ऐसा करने से क्षेत्रीय उड़ानों का देहरादून से कलकत्ता या बेंगलुरू की उड़ान भरना आसान हो जाता है। अनुमान है कि क्षेत्रीय उड़ानों में इस लम्बी दूरी की उड़ानों के यात्रियों का हिस्सा कम ही होता है, जिसके कारण लम्बी दूरी की यात्रा से जोडऩे के बावजूद क्षेत्रीय उड़ानें सफल नहीं हो रही हैं।
सरकार की नीति इस कटु सत्य को नजरअंदाज करती दिख रही है। केन्द्र सरकार ने 2012 में एक वर्किंग ग्रुप बनाया था, जिसको घरेलू उड्डयन को बढ़ावा देने के लिए सुझाव देने को कहा गया था। ग्रुप ने कहा था कि क्षेत्रीय उड्डयन को सब्सिडी दी जानी चाहिए। इसके बाद सरकार ने राष्ट्रीय घरेलू उड्डयन नीति बनाई, जिसके अंतर्गत क्षेत्रीय उड़ानों को तीन साल तक सब्सिडी देना शुरू किया गया। हाल में 2018 अंतर्राष्ट्रीय सलाहकारी कम्पनी डीलायट ने भी छोटे शहरों को उड्डयन के विस्तार की बात कही है। लेकिन इन सब संस्तुतियों को कुछ हद तक लागू करने के बावजूद घरेलू उड्डयन की स्थिति खराब ही रही है। जैसा कि एयर इंडिया, जेट एयरवेज, स्पाइस जेट और इंडिगो की दुरूह स्थिति में दिखाई पड़ती है। इसलिए मूलत: सरकार को अपनी उड्डयन नीति में परिवर्तन करना होगा।
जरूरत इस बात की है कि लम्बी दूरी की उड़ानों को और सरल बनाया जाए। लन्दन में आप हवाई जहाज के उडऩे के मात्र 15 मिनट पहले हवाई अड्डे पहुंच कर हवाई जहाज में प्रवेश कर सकते हैं जबकि अपने यहां सिक्योरिटी इत्यादि में 1-2 घंटा लग जाना मामूली बात है। इसलिए सरकार को चाहिए कि सिक्योरिटी चेक और अपने सामान को वापस पाने की व्यवस्थाओं में सुधार करे। साथ-साथ शहरों के दूरदराज के इलाकों से हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिए सड़क, मेट्रो इत्यादि की समुचित व्यवस्था करे, जिससे कि अपने देश में लम्बी दूरी के घरेलू उड्डयन का भरपूर विस्तार हो सके। इस दृष्टि से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार की योजना सही है क्योंकि इससे लम्बी दूरी की यात्राएं सरल हो जायेंगी। इस दृष्टि से एयर इंडिया की स्थिति भी अच्छी है क्योंकि एयर इंडिया के पास तमाम विदेशी हवाई अड्डों में अपने विमानों को उतारने के अधिकार हैं। इसलिए लम्बी दूरी की विदेशी उड़ानों में एयर इंडिया सफल हो सकती है।
एयर इंडिया के प्रकरण से एक विषय यह भी निकलता है कि 70 साल के सरकारी प्रबन्धन में इस कम्पनी की स्थिति खराब हो गयी है। इसी तर्ज पर सरकारी बैंकों, इंश्योरेंस कम्पनियों, कोल इंडिया आदि इकाइयों आदि का समय रहते निजीकरण कर देना चाहिए। जिस प्रकार एयर इंडिया का निजीकरण भारी घाटा खाने के बाद किया गया, वही स्थिति इन इकाइयों के साथ उत्पन्न नहीं होनी चाहिए।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)
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