Kusumlata Goyal, the passing of a loving mother!Kusumlata Goyal, the passing of a loving mother!

डॉ श्रीगोपाल नारसन (एडवोकेट) –
जीवन के आखिरी दिनों में शारिरीक रुग्णता के कारण असहाय रही कुसुमलता गोयल ने जीवटता कभी नही छोड़ी।रुग्णता के दौर में जब वे बेसुध पड़ी रहती थी तब भी,मेरे आने की आहट सुनते ही न जाने कहा से उनमे चेतना और स्फूर्ति आ जाती ।वे उठकर बैठ जाती।फिर शिकायत भरे लहजे में कहती,भाई !कहां है तू,लगता है हमें भूल गया?या फिर मेरे मरने पर ही आएगा।लेकिन जैसे ही मैं उन्हें कहता,चाची जी,क्यो ऐसा कहती हो,आप कही नही जाने वाली,मैंने ऊपरवाले से आपका स्टे लिया हुआ है।इतना सुनते ही ,वे खिलखिला कर हंसने लगती थी।फिर कहती भाई तू ,आता रहा कर,बहु व बच्चों को भी लेकर आना,बहुत मन करता है ,उन्हें देखने का।यह आत्मीय लगाव ही मुझे बार बार उनसे मिलने को लालायित करता था।मेरा उनसे मात्र कुछ वर्षों का सम्बंध नही था ।बल्कि लगभग 35 वर्षों से मुझे उनका सानीदय,स्नेह,आशीर्वाद, पालना निरंतर मिलता रहा ।सहारनपुर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पूर्व विधान परिषद सदस्य डॉ जयगोपाल के माध्यम से मुझे ग्रामीण जनता से जुडऩे और पत्र के सम्पादक डॉ एनआर गोयल की छत्रछाया में रहने का सौभाग्य मिला।ग्रामीण जनता के लिए पहले कई वर्षों तक नारसन क्षेत्र से प्रतिनिधित्व किया और फिर रुड़की में ग्रामीण जनता के समाचार सम्पादक के रूप में कार्य किया।जिसके लिए मेरी नियमित सिटिंग ग्रामीण जनता कार्यालय में होने लगी।सात आठ साल तक चले इस सेवा कार्य के दौरान प्राय: हर रोज़ चाची जी के हाथ की बनी चाय पीने को मिलती।वे मुझे हमेशा खाना खाने के लिए कहती और मना करने पर नाराज़ भी हो जाती थी।सचमुच अन्नपूर्णा थी हमारी कुसुमलता गोयल चाची जी।जहां डॉ एनआर गोयल जी मुझकर बेहद विश्वास करते थे,वही चाची जी का मेरे प्रति विश्वास कम नही था।
तभी तो उन्होंने उस दौर में जब मेरी वकालत शुरू ही हुई थी और आमदनी बहुत कम थी,मुझे आर्थिक मजबूती देने के लिए डॉ एनआर गोयल जिन्हें हमेशा मैंने चाचाजी सम्बोधन के साथ अपना गुरु माना से ग्रामीण जनता द्वारा जो मानदेय मिलता था,उसका चैक हमेशा बिना धनराशि अंकित किए ही मुझे मिलता था,गोयल साहब ,हमेशा चैक देते हुए कहते थे,बेटा ,जितने पैसों की जरूरत हो ,उतने भर लेना, ग्रामीण जनता की प्रोपराइटर होने के नाते चैक पर हस्ताक्षर चाची जी कुसुमलता गोयल के होते थे,यह बात दीगर है कि मैंने चैक में पांच सौ रुपये से अधिक की राशि कभी नही भरी,क्योंकि मुझे उस समय उतनी ही राशि मानदेय के रूप में उचित लगती थी।ग्रामीण जनता वालो के यहां रामायण का पाठ वर्षो तक निर्बाध होता रहा।उस घर मे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हेमवतीनंदन बहुगुणा से लेकर मुख्य सचिव तक आए, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री चौधरी यशपाल सिंह का तो ग्रामीण जनता दूसरा घर था।वही पंजाब के गर्वनर वीरेंद्र वर्मा भी ग्रामीण जनता और पत्र के प्रधान सम्पादक डॉ एनआर गोयल के मुरीद थे।विधान परिषद सदस्य रहे स्वाधीनता सेनानी डॉ जयगोपाल, पंडित ताराचंद वत्स जो मेरे मामा जी थे,भी गोयल साहब को बहुत मानते थे।इस घर मे नवभारत टाइम्स के सम्पादक राजेंद्र माथुर ,कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर जैसी बड़ी हस्तियां समय समय पर आती रही,जिनकी सेवा भाव के लिए कुसुमलता गोयल हमेशा तत्पर रही।उनकी रसोई में बने पकवानों की तारीफ़ हर कोई करता था।हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी भगत सिंह वर्मा तो प्राय: हर सप्ताह ही ग्रामीण जनता के कार्यालय आ जाते थे।उन्होंने गोयल साहब को एक कार भी भेंट करने की कोशिश की,ताकि स्कूटर से उन्हें आना जाना न पड़े,लेकिन गोयल साहब ने विन्रमता से उनका आग्रह अस्वीकार कर दिया।कुसुमलता गोयल ने कभी गोयल साहब को ऐसे धन के लिए नही कहा,जो अनुचित हो।वे जब कभी पैसों की तंगी हुई तब भी खुश रहती थी और कम खर्च में अच्छा गुजारा करना उन्हें अच्छे से आता था।धार्मिक विचारों से ओतप्रोत कुसुमलता गोयल की आध्यात्मिक सोच के चलते ही उनके घर स्वामी कल्याण देव,पथिक जी महाराज, स्वामी सत्यमित्रानंद जैसे सन्तो के चरण पड़ते थे।ऐसी महान विदुषी कुसुमलता गोयल चाची जी,जो मेरे किए मां ही थी, को शत शत नमन।

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