नई दिल्ली ,16 अपै्रल (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने बुधवार को केंद्रीय कानून मंत्रालय को न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को अगला सीजेआई नियुक्त करने की सिफारिश भेजी है। न्यायमूर्ति गवई वर्तमान सीजेआई के बाद उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं और वह आगामी 14 मई को देश के 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। सीजेआई खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जस्टिस गवई को पद की शपथ दिलाएंगी। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति खन्ना ने नवंबर 2024 में मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभाला था।
जस्टिस गवई का पूरा नाम भूषण रामकृष्ण गवई है और उनका जन्म 24 नवंबर, 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उन्होंने 12 नवंबर, 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति प्राप्त की थी। तब से वह शीर्ष अदालत की कई महत्वपूर्ण संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं।
जस्टिस गवई उस पांच न्यायाधीशों की पीठ के सदस्य थे जिसने सर्वसम्मति से केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा था, जिसने तत्कालीन राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया था।
जस्टिस गवई इसी वर्ष नवंबर में सेवानिवृत्त होने वाले हैं, जिसके कारण वह लगभग छह महीने तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहेंगे। जस्टिस गवई उस पांच न्यायाधीशों की पीठ में भी शामिल थे जिसने केंद्र सरकार की विवादास्पद चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था।
जस्टिस गवई सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने 6:1 के बहुमत से यह माना था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण प्रदान किया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं।
जस्टिस गवई सहित सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था कि पक्षों के बीच बिना मुहर लगे या अपर्याप्त रूप से मुहर लगे समझौते में मध्यस्थता खंड लागू करने योग्य है, क्योंकि इस तरह के दोष को ठीक किया जा सकता है और यह अनुबंध को अवैध नहीं बनाता है।
उनके नेतृत्व वाली पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अखिल भारतीय स्तर पर दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा था कि ‘कारण बताओ’ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए और प्रभावितों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 15 दिनों का समय दिया जाना चाहिए। वह उस पीठ का भी नेतृत्व कर रहे हैं जो वन, वन्यजीव और वृक्षों के संरक्षण से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर रही है।
उन्होंने 16 मार्च 1985 को बार में दाखिला लिया था और वह नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील भी रहे थे।
अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया था। सत्रह जनवरी 2000 को उन्हें नागपुर पीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था।
उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण संबंधी प्रक्रिया ज्ञापन के अनुसार, कानून मंत्री सीजेआई को पत्र लिखकर उनसे उनके उत्तराधिकारी का नाम मांगते हैं। प्रक्रिया ज्ञापन के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को सीजेआई का पद संभालने के लिए उपयुक्त माना जाता है और न्यायपालिका के निवर्तमान प्रमुख के विचार ‘उचित समय’ पर मांगे जाते हैं।
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