योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ –
इस संसार में असंख्य लोगों ने जन्म लिया, जीवन जिया और उन असंख्य लोगों में से कुछ लोग ऐसे हुए, जिन्हें इतिहास ने अपना अंग बनाकर अमृत कर दिया है। पर अकसर एक प्रश्न बार-बार मनुष्य के मस्तिष्क में कौंधता रहता है कि इस संसार में जन्मे असंख्य लोगों में, जिन्हें इतिहास ने सदा- सदा के लिए अपना अंग बनाकर महानता से अलंकृत किया, क्या वे इसलिए महान बने कि वे उच्च कुल में जन्मे थे या वे बहुत धनवान थे या उन्होंने संसार पर राज किया है? हर व्यक्ति अपनी सोच और जीवन के अनुभव के अनुरूप इसकी व्याख्या कर सकता है।
कुछ अंशों में यह बात मान भी लें, तो प्रश्न उठता है कि? श्रीराम क्या अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र होने के कारण ही पूजे गए? ऐसा होता तो फिर उनके भ्राता भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को भी राम के बराबर ही पूजा जाता। तब उत्तर यही मिलता है कि व्यक्ति का आचरण ही उसकी महानता का आधार बनता है। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गांधी, विनोबा भावे, रानी लक्ष्मी बाई, महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी जैसे अनेक महापुरुष इसीलिए महानता की श्रेणी में गिने जाते हैं, चूंकि उनके आचरण पूरे संसार के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत बन गए हैं। उनके आचरण का अनुकरण आज भी जनमानस द्वारा किया जाता है।?
कबीर ने तो स्पष्ट शब्दों में साफ-साफ कह भी दिया है :-
ऊंचे कुल का जनमिया, करनी ऊंच न होइ।
सुवरण कलश सूरा भरा, साधुन निंदत सोइ।
कबीर के कहने का अभिप्राय यह है कि उच्च कुल में जन्म लेकर यदि किसी व्यक्ति के कर्म ऊंचे न हों तो निश्चित रूप से वह निंदित ही होता है, जैसे सोने के कलश में यदि सुरा या विष भरा हो तो वह अमृत नहीं होता। सज्जन पुरुष उसको अस्वीकार ही करेंगे।
सही मायनों में आचरण ही व्यक्ति के चरित्र का परिचायक होता है, यही हमारे महान चिंतकों और ऋषि-मुनियों ने बताया भी है। आज भी हम कितनी ही भौतिक समृद्धि प्राप्त कर लें, किन्तु महानता तो संसार में आचरण से ही मिलती है। सदियों से इसी बात को ही स्वीकार किया जाता रहा है।
एक ऐसा प्रेरक प्रसंग भारत के दो महान पुरुषों का भी है। जब डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भारत के राष्ट्रपति थे, तब वे कुन्नूर की यात्रा पर गए। वहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि भारत के वीर सपूत पूर्व फील्ड मार्शल मानेकशॉ अस्वस्थ हैं और अस्पताल में भर्ती हैं। डॉ. कलाम बिना पूर्व कार्यक्रम के उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और हालचाल पूछने के बाद बोले-आपको कोई कष्ट तो नहीं है? कोई बात हो तो मुझे बताइए। अस्वस्थता के चलते बिस्तर पर लेटे मानेकशॉ बोले-मुझे एक बात का बहुत दु:ख है, तो डॉ. कलाम ने आश्चर्यचकित होकर पूछा-मुझे बताइए, क्या दु:ख है आपको? तो फील्ड मार्शल का उत्तर था-दु:ख है कि मैं अपने देश के राष्ट्रपति और सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर को सेल्यूट नहीं कर पा रहा हूं। और दोनों की आंखें छलछला उठीं।
भावुक होकर अब्दुल कलाम ने फिर पूछा-सरकार से कोई शिकायत हो तो बताइए? तो फील्ड मार्शल बोले-मुझे बीस वर्ष बाद भी सरकार से फील्ड मार्शल रैंक की पेंशन नहीं मिली है। डॉ. कलाम ने दिल्ली लौटते ही फील्ड मार्शल की बीस वर्षों से रुकी हुई पेंशन रुपए 1.25 करोड़ की स्वीकृति दी और इस राशि का चेक मानेकशॉ को पहुंचाने के लिए रक्षा सचिव को वेलिंगटन, ऊटी भेजा। लेकिन यह बात यहीं खत्म नहीं हुई। महत्वपूर्ण बात यह कि जब रुकी हुई पेंशन का चेक पूर्व फील्ड मार्शल मानेकशॉ को मिला तो तुरंत उन्होंने यह सारी राशि राष्ट्रीय रक्षा-कोष में दान कर दी।
यहां अब प्रश्न यह है कि इस घटनाक्रम के बाद हम किसे सैल्यूट करें? भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को, जो बीमार पूर्व फील्ड मार्शल को देखने बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के ही कुन्नूर के अस्पताल में पहुंचे और बीस वर्षों से रुकी हुई पेंशन का चेक उन्हें भिजवाया या उन फील्ड मार्शल को नमन करें जो राष्ट्रपति को सैल्यूट न कर पाने से दुखी हुए और मिलते ही पेंशन के रुपयों को दान करते हैं?
निस्संदेह इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती है कि इन दोनों ही महान पुरुषों को इनके आचरण ने इतनी महानता दे दी है कि हम और इतिहास उन्हें कभी भुला ही नहीं पाएगा।
हम, इन दोनों की महानता को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए यह संकल्प तो ले ही लें कि अपने लिए जीने के साथ ही समाज व किसी और के लिए भी जीएंगे, ताकि इतिहास का न सही, कुछ लोगों की यादों का अंग तो हम बन ही सकें। याद रखिए :-
धरा तो क्षमाशील है आदि से ही,
गगन भी अगर दे सुधा, तब तो जानें।
स्वयं के लिए तो जगत सांस लेता,
जगत के लिए सांस लो,तब तो जानें।