Conservation of wetlands, rejuvenation of GangaConservation of wetlands, rejuvenation of Ganga

जी. अशोक कुमार –
एक संवेदनशील क्षेत्र के तौर पर वेटलैंड्स (आद्रभूमि) ऐसे अनोखे इकोसिस्टम हैं जहां जमीनी और जलीय प्राकृतिक वास आपस में मिलते हैं। ये झीलों, नदियों से इतर पानी से सराबोर रहने वाले क्षेत्र होते हैं। ये न तो पूरी तरह से शुष्क भूमि होती है और न ही पूरी तरह से पानी में डूबी होती है। इसमें दोनों विशेषताएं मौजूद होती हैं। रामसर कन्वेंशन के तहत आर्द्रभूमि को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार दलदल भूमि, पानी भरा रहने वाला मैदान, पिट (नमी वाला कोयला या अन्य) और पानी चाहे वह प्राकृतिक हो या कृत्रिम, स्थायी हो या अस्थायी, पानी रुका हो या बह रहा हो, ताजा, खारा या नमकीन, समुद्री जल क्षेत्र, जो कम ज्वार पर छह मीटर से अधिक गहरे न हो- आदि को आर्द्रभूमि कहते हैंÓ। आर्द्रभूमि एक प्रकार से प्राकृतिक अपशिष्ट जल शोधन वाले स्थान हैं क्योंकि वे प्रदूषकों को रोकने के साथ हानिकारक जीवाणुओं को बेअसर करने में सक्षम होते हैं। कार्बन सोखने की क्षमताओं के कारण, आर्द्रभूमि जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आर्द्रभूमि भोजन का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं जहां चावल और मछली होती है जिससे अरबों लोगों का पेट भरता है।
आर्द्रभूमि के नष्ट होने और इसे बेकार भू-भाग समझकर सुखाने, भरने और दूसरे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने के विचार को देखते हुए, 2 फरवरी को हर साल ‘विश्व आर्द्रभूमि दिवसÓ मनाया जाता है। इसका मकसद पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में इन महत्वपूर्ण जल क्षेत्रों की भूमिका के बारे में दुनियाभर में जागरूकता फैलाना है। इसी दिन 2 फरवरी 1971 में ईरान के रामसर शहर में वेंटलैंड्स कन्वेंशन आयोजित हुआ था। विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2022 का विषय लोगों और प्रकृति के लिए आर्द्रभूमि संरक्षण की कार्रवाई है, जिससे मानवीय उद्देश्यों के लिए आर्द्रभूमि के संरक्षण और सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए किए जाने वाले कार्यों के महत्व पर जोर दिया जा सके।
भूजल के स्तर को बढ़ाने के अलावा, आर्द्रभूमि विशाल स्पंज (जलशोषक) या जलाशयों की तरह भी काम करती है जो भारी बारिश के दौरान अतिरिक्त पानी को अवशोषित कर लेती है। यहां बहुत ही समृद्ध जलीय जैव-विविधता पाई जाती है और ये महत्वपूर्ण पोषक तत्व परिवर्तक के रूप में कार्य करते हैं। आर्द्रभूमि पक्षियों की कई प्रजातियों के प्रजनन के लिए उचित वातावरण प्रदान करती है। आर्द्रभूमि में पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं और हंटिंग, लंबी पैदल यात्रा, मछली पकडऩे, पक्षियों को देखना और फोटोग्राफी जैसे कई लोकप्रिय मनोरंजक गतिविधियां भी यहां की जा सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) एक सार्वभौमिक एजेंडा सामने रखता है, जिसमें पानी की कमी को दूर करने के लिए आर्द्रभूमि सहित पानी के अन्य पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन और उसके पुनरोद्धार की जरूरत पर जोर दिया गया है। इस तरह, आर्द्रभूमि दुनियाभर में पानी, भोजन और जलवायु से संबंधित कई चुनौतियों का समाधान करने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हो जाती हैं।
नदी के कायाकल्प में आर्द्रभूमि का संरक्षण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नदियों की पारिस्थितिक और भूगर्भीय चीजों के संरक्षण में मदद करता है। नदियों में प्राकृतिक बहाव को बनाए रखने में आर्द्रभूमि का योगदान नदियों, विशेष रूप से गंगा को बचाने में इन जल क्षेत्रों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक है।
भारत में लगभग 4.6 प्रतिशत भूमि आर्द्रभूमि के रूप में है, जो 15.26 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है। भारत में ऐसी 47 जगहें हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि (रामसर साइट्स) के रूप में मान्यता मिली हुई है, जिसके सतह का क्षेत्रफल 1.08 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है। भारत के 47 रामसर स्थलों में से 21 गंगा बेसिन में हैं। अधिकतर रामसर स्थल उत्तर प्रदेश राज्य (9) में हैं, जो एक गंगा बेसिन राज्य है।
वेटलैंड्स दुनिया के सबसे चुनौतीपूर्ण नदी कायाकल्प परियोजना में से एक-नमामि गंगे कार्यक्रम से अटूट रूप से जुड़े हैं। आर्द्रभूमि नदी के बेसिन क्षेत्र में समग्र जल विज्ञान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और उप-सतह व नदी धाराओं में जल प्रवाह में अहम योगदान करती है। गंगा बेसिन भारत में सबसे समृद्ध नदी प्रणाली है और इससे विविध प्राकृतिक और मानव निर्मित आर्द्रभूमि तैयार होती है जो गंगा और उसकी सहायक नदियों के साथ पारिस्थितिक और जलीय रूप से जुड़े हुए हैं। 4500 से अधिक जलाशय गंगा बेसिन की आर्द्रभूमि व्यवस्थाओं का एक अभिन्न हिस्सा हैं। एमओईएफ एंड सीसी द्वारा राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में चिन्हित 180 वेटलैंड्स में से 49 गंगा बेसिन में स्थित हैं (हिमाचल प्रदेश में एक, उत्तराखंड में सात, हरियाणा में दो, राजस्थान में चार, मध्य प्रदेश में नौ, उत्तर प्रदेश में 16, बिहार में तीन और पश्चिम बंगाल में सात)। साल 2020 में, भारत में घोषित कुल 14 स्थलों में से 9 रामसर स्थलों को गंगा के मुख्य प्रवाह पथ- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में घोषित किया गया है। सुर सागर कीठम, काबर ताल और आसन इसके कुछ उदाहरण हैं। आर्द्रभूमि की सूची में नया नाम भी उत्तर प्रदेश के गंगा बेसिन- हैदरपुर वेटलैंड का है, जिसे दिसंबर 2021 में मान्यता मिली। 2021 और 2022 में शामिल किए गए अन्य वेटलैंड्स में त्सो कर आर्द्रभूमि क्षेत्र, लद्दाख, लोनार झील, महाराष्ट्र, थोल झील वन्यजीव अभयारण्य और वाधवाना वेटलैंड (गुजरात) और हरियाणा में सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान व भिंडावास वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। सुंदरबन खारे पानी का दलदली क्षेत्र है जो भारत और बांग्लादेश के भूभाग में फैला हुआ है। यह दुनिया में सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के डेल्टा के पास बहकर आई मिट्टी पर स्थित है। पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर काम करते हुए, गंगा बेसिन में राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरणों को मजबूत किया जा रहा है और अन्य राज्यों को आर्द्रभूमि को मान्यता देने व रामसर स्थलों के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
नमामि गंगे कार्यक्रम विश्व वन्य कोष (डब्लूडब्लूएफ), भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्लूआईआई), राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण आदि जैसे कई साझीदारों के साथ मिलकर काम कर रहा है जिससे आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए एक संस्थागत संरचना तैयार की जा सके। 27 जिलों में गंगा नदी के 10 किमी के बफर क्षेत्र के भीतर राज्य में 282 गंगा के बाढ़ वाले वेटलैंड्स के व्यापक संरक्षण और प्रबंधन के लिए जून 2020 में उत्तर प्रदेश में गंगा के बाढ़ के मैदानों का संरक्षण और सतत प्रबंधन परियोजना को मंजूरी दी गई थी। शहरी आर्द्रभूमि के प्रबंधन के लिए शहरी आर्द्रभूमि/जल निकाय प्रबंधन दिशा-निर्देश नामक एक टूल किट भी एसपीए, नई दिल्ली द्वारा तैयार किया गया है। विकेंद्रीकृत जल भंडारण प्रणालियों के रूप में कार्य करते हुए पेयजल उपलब्ध कराने में छोटे वेटलैंड्स की भूमिका को देखते हुए, एनएमसीजी ने डब्लूडब्लूएफ के सहयोग से जिला स्तर की संस्थाओं को आर्द्रभूमि की पहचान करने, वस्तुसूची बनाने, जमीनी सत्यापन करने और उनके संरक्षण के लिए कार्य योजना विकसित करने में सहयोग करने के लिए जिला गंगा समितियों के साथ एक कार्यक्रम शुरू किया है। आर्द्रभूमि की सुरक्षा और संरक्षण एनएमसीजी की प्राथमिकताओं में से एक है, जो आर्द्रभूमि संरक्षण को बेसिन स्तर पर लाने का प्रयास कर रहा है।
हाल के समय में, आर्द्रभूमि के संरक्षण और बचाव को सामान्य रूप से भारत के जल संरक्षण प्रयासों और विशेष रूप से नदी कायाकल्प पहलों में सबसे आगे रखा जा रहा है। जल सुरक्षा सुनिश्चित करने में आर्द्रभूमि के महत्व को स्वीकार करते हुए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) ने नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट, चेन्नई के एक हिस्से के रूप में अपनी तरह का पहला वेटलैंड संरक्षण और प्रबंधन केंद्र (सीडब्लूसीएम) स्थापित किया है। इस केंद्र की स्थापना विशिष्ट अनुसंधान जरूरतों और जानकारी जुटाने के साथ-साथ एकीकृत तरीके से आर्द्रभूमि के संरक्षण, प्रबंधन और बेहतर उपयोग में सहायता के लिए की गई है। इस केंद्र को पिछले साल रामसर कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर शुरू किया गया था। पिछले साल के विश्व आर्द्रभूमि दिवस (आर्द्रभूमि और जल) का विषय भी महत्वपूर्ण था जिसने जल, आर्द्रभूमि और जीवन के एक दूसरे से जुड़े होने का महत्व समझाया। गांधी जयंती 2021 के अवसर पर एमओईएफ एंड सीसी ने एक वेब पोर्टल-वेटलैंड्स ऑफ इंडिया- को आर्द्रभूमि से संबंधित सभी सूचनाओं के लिए सिंगल प्वाइंट एक्सेस वेबसाइट के रूप में लॉन्च किया है। ये सभी पहल भारत में आर्द्रभूमि को दिए गए महत्व का प्रमाण हैं, विशेष रूप से जल शक्ति अभियान और जल जीवन मिशन, जो स्रोत निरंतरता के जरिए जल संरक्षण को जन आंदोलन बनाने और भारत के हर घर में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से काम कर रहा है।
आर्द्रभूमि के महत्व- उसके पानी, भोजन और जलवायु परिवर्तन से सीधे संबध को लेकर जागरूकता फैलाना समय की मांग है। भारत सरकार इन छोटे, पर भारत की नदी प्रणालियों के अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्से को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस विश्व आर्द्रभूमि दिवस पर, आइए हम भारत को जल-समृद्ध बनाने के लिए अपनी आर्द्रभूमि का संरक्षण करने का संकल्प लें।
लेखक महानिदेशक, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन हैं

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