The big decision of the Supreme Court, the case for distributing 'free gifts' was sent to a bench of 3 judges

नई दिल्ली 26 Aug. (Rns/FJ): राजनीतिक पार्टियों द्वारा ‘फ्रीबीज‘ यानी मुफ्त की सौगातें बांटने पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए केस को तीन जजों की बेंच को पुनर्विचार के लिए ट्रांसफर कर दिया है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर विशेषज्ञ कमिटी का गठन करना सही होगा। लेकिन उससे पहले कई सवालों पर विचार करना जरूरी है। 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी फैसले की समीक्षा भी जरूरी है। हम यह मामला तीन जजों की विशेष बेंच को सौंप रहे हैं। अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी।

सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर अदालत का यह फैसला आया है। कोर्ट ने कहा कि ‘फ्रीबीज’ टैक्सपेयर का महत्वपूर्ण धन खर्च किया जाता है। हालांकि सभी योजना पर खर्च फ्रीबीज नहीं होते। यह मसला चर्चा का है और अदालत के दायरे से बाहर है।

अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाकर चर्चा करनी चाहिए। इसके लिए कमेटी बनाना अच्छा रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कुछ सवाल हैं जैसे कि न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा क्या है? क्या अदालत किसी भी योजना को लागू करने योग्य आदेश पास कर सकती है? समिति की रचना क्या होनी चाहिए? कुछ पार्टी का कहना है कि सुब्रमण्यम बालाजी 2013 के फैसले पर भी पुनर्विचार की जरूरत है।’

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि फ्रीबिज एक ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है, जहां राज्य को दिवालिया होने की ओर धकेल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसी मुफ्त घोषणा का इस्तेमाल पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह राज्य को वास्तविक उपाय करने से वंचित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन लोकतंत्र में निर्वाचक मंडल के पास सच्ची शक्ति है।

इस मामले की पिछली सुनवाई में कोर्ट सरकार से सर्वदलीय बैठक के जरिए एक राय बनाने की बात कह चुका है। चुनाव आयोग ने भी कहा कि इस बाबत नियम कायदे और कानून बनाने का काम उसका नहीं, बल्कि सरकार का है। वहीं, सरकार ने कहा कि कानून बनाने का मामला इतना आसान नहीं है। कुछ विपक्षी पार्टियां इस मुफ्त की घोषणाएं करने को संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकार का अंग मानती हैं।

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