Folk festival of love and dedication towards nature Hareli

27.07.2022 – हरेली : प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण का लोकपर्व . छत्तीसगढ़ में जैविक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण का नया अध्याय छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जन-जीवन में रचा-बसा खेती-किसानी से जुड़ा पहला त्यौहार है, हरेली। सावन मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्यौहार वास्तव में प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण का लोकपर्व है। हरेली के दिन किसान अच्छी फसल की कामना के साथ धरती माता का सभी प्राणियों केे भरण-पोषण के लिए आभार व्यक्त करते हैं। सभी लोग बारिश के आगमन के साथ चारो ओर बिखरी हरियाली और नई फसल का उत्साह से स्वागत करते हैं। हरेली पर्व को छोटे से बड़े तक सभी उत्साह और उमंग से मनाते हैैं।

गांवों में हरेली के दिन नागर, गैती, कुदाली, फावड़ा समेत खेती-किसानी से जुड़े सभी औजारों, खेतों और गोधन की पूजा की जाती है। सभी घरों में चीला, गुलगुल भजिया का प्रसाद बनाया जाता है। पूजा-अर्चना के बाद गांव के चौक-चौराहों में लोगों को जुटना शुरू हो जाता है। यहां गेड़ी दौड़, नारियल फेक, मटकी फोड़, रस्साकशी जैसी प्रतियोगिताएं देर तक चलती रहती हैं। लोग पारंपरिक तरीके से गेड़ी चढ़कर खुशियां मनाते हैं। माना जाता है कि बरसात के दिनों में पानी और कीचड़ से बचने के लिए गेड़ी चढऩे का प्रचलन रहा है, जो समय के साथ परम्परा में परिवर्तित हो गया।

इस अवसर पर किया जाने वाला गेड़ी लोक नृत्य भी छत्तीसगढ़ की पुरातन संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। हरेली में लोहारों द्वारा घर के मुख्य दरवाजे पर कील ठोककर और नीम की पत्तियां लगाने का रिवाज है। मान्यता है कि इससे घर-परिवार अनिष्ट से बचे रहते हैं। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर माटी से जुड़ी अपनी गौरवशाली संस्कृति और परम्परा को सहेजने और आने वाली पीढिय़ों तक पहुंचाने की पहल की गई है। छत्तीसगढ़ सरकार ने मुख्यमंत्री निवास सहित पूरे राज्य में लोकपर्वों के धूम-धाम से सार्वजनिक आयोजन कर इसकी शुरूआत की है।

इससे नई पीढ़ी के युवा भी अपनी पुरातन परम्पराओं से जुडऩे लगे हैं। सरकार ने हरेली त्यौहार के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। इस साल से प्रदेश के स्कूलों में हरेली तिहार को विशेष रूप से मनाने की शुरूआत की जा रही है। इससे बच्चे न सिर्फ अपनी कृषि संस्कृति को समझेंगे, उसका सक्रिय हिस्सा बनेंगे बल्कि अपनी संस्कृति के मूल भाव को आत्मसात भी कर सकेंगे। साथ ही स्कूलों में गेड़ी दौड़, वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण पर संगोष्ठी जैसे आयोजनों से बच्चों में अपनी संस्कृति और प्रकृति के प्रति प्रेम विकसित होगा। छत्तीसगढ़ में पारंपरिक लोक मूल्यों को सहेजते हुए गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना को साकार रूप दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में पारंपरिक संसाधनों के उपयोग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है।

इसके चलते राज्य सरकार ने दो साल पहले सन् 2020 में हरेली के दिन गो-धन न्याय योजना शुरू की थी। शुरूआत में किसी ने कल्पना नहीं की थी, कि गोबर खरीदी की यह योजना गांवों की अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत आधार तैयार करेगी। आज यह ग्रामीण अंचल की बेहद लोकप्रिय योजना साबित हुई है। इस अनूठी योजना के तहत सरकार ने गोबर को ग्रामीणों की आय का नया जरिया बनाया और किसानों और पशुपालकों से दो रूपए की दर से गोबर खरीदी शुरू की। पशुपालक ग्रामीणों ने गोबर बेचकर पिछले दो सालों में 150 करोड़ रूपये से अधिक की कमाई की है। खरीदे गए गोबर से गौठानों में स्व-सहायता समूहों ने 20 लाख क्विंटल से अधिक वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया है, जिससे प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है।

अब तक महिला समूह और गौठान समितियां 143 करोड़ से अधिक की राशि वर्मी खाद के निर्माण और विक्रय से प्राप्त कर चुकी हैं। इसके साथ ही गौठानों में गोबर से दिए, गमले सहित विभिन्न सजावटी समान बनाने से स्थानीय महिलाओं को रोजगार का नया साधन मिला है। गोधन न्याय योजना को विस्तार देते हुए राज्य सरकार इस साल हरेली तिहार से गौठानों में 4 रूपए प्रति लीटर की दर से गो-मूत्र की खरीदी की शुरूआत करने जा रही है। इस गो-मूत्र से महिला स्व-सहायता समूह द्वारा जीवामृत और कीट नियंत्रक उत्पाद तैयार किये जाएंगे। इससे रोजगार और आय का नया जरिया मिलने के साथ जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और कृषि लागत कम होगी।

गौ-मूत्र से बने कीट नियंत्रक उत्पाद का उपयोग किसान भाई रासायनिक कीटनाशक के बदले कर सकेंगे, जिससे खाद्यान्न की विषाक्तता में कमी आएगी और महंगे रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम होगी। इन नवाचारों ने हरेली को प्रदेश में जैविक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण के नए अध्यायों का प्रतीक बना दिया है। इससे लगता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम-स्वराज का सपना अब आत्मनिर्भर गांवों के रूप में छत्तीसगढ़ में साकार हो रहा है। छत्तीसगढ़ में परंपराओं को सहेजते हुए उसे आधुनिक जरूरतों के अनुसार ढालने की जो शुरूआत की गई है, उसे जरूरत है सबके सहयोग से आगे बढ़ाने की।

प्रकृति से जुड़कर पर्यावरण अनुकूल विकास की दिशा में आगे बढऩे का हमारा यह कदम बेहतर कल के लिए सर्वोत्तम योगदान होगा।

(लेखिका सहायक जनसम्पर्क अधिकारी हैं)

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