Women MPs and MLAs were stopped from going to Sandeshkhali Sudhanshu Trivedi

नई दिल्ली , 23 फरवरी (एजेंसी)। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं राज्यसभा सांसद डॉ सुधांशु त्रिवेदी ने बंगाल की टीएमसी सरकार सहित विपक्ष पर निशान साधा और संदेशखाली घटना पर विपक्ष की चुप्पी पर सवाल खड़े किए। त्रिवेदी ने कांग्रेस द्वारा किए गए सनातन विरोधी कार्य और कृत्यों को बताते हुए, कांग्रेस पार्टी और उनकी सरकार पर हिन्दु और मुस्लिम में पक्षपात करने का आरोप लगाया। त्रिवेदी ने कहा कि विगत कुछ दिनों से पश्चिम बंगाल के संदेशखाली जो नृशंस अत्याचार की कहानियां सामने आ रहीं हैं, वह सर्वविदित है। वह पावन बंग भूमि जहां से स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष को सबसे पहला उद्धघोष मिला। जहां से सूर्यसेन, बाघा जतिन, शशिनद्र नाथ सान्याल, सुभाष चंद्र बोस आते हैं और जहां पर देश का राष्ट्रीय गीत और गान दोनों लिखा गया।

राष्ट्रवाद को स्वर देने वाली बंग भूमि इस समय प्रताड़ित, दुखी और अत्याचार से टूट गई है और पीड़ित महिलाओं के करुण स्वरों द्वारा छलनी हो रही है। दुख की बात यह है की बंगाल की सरकार इस विषय पर अत्यंत असंवेदनशील और अमानवीय है, यहां तक कि उल्टा धमकाने वाला रवैया अपना रही है। कल पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष  सुकांत मजूमदार को बलपूर्वक वहां जाने से रोका गया था। आज भारतीय जनता पार्टी की महिला मोर्चा की अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल की महिला पदाधिकारी, महिला सांसद और विधायको को संदेशखाली जाने से रोका गया। और अब वहां राज्य की टीएमसी सरकार द्वारा धार 144 लागू कर दी गई है।

इस सबके साथ-साथ संदेशखाली से रिपोर्ट कर रहे मिडियाकर्मियों को भी डराया और धमकाया जा रहा है। सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि आपत्ति की बात यह है कि ममता सरकार द्वारा गठित एसआईटी, प्रताड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के बजाए, इस विषय को आगे न बढ़ाने का दबाव डाल रही हैं। इसलिए यह विषय बहुत ही संवेदनशील है और सबसे बड़ी बात यह है कि टीएमसी नेता शाहजहां शेख अभी तक लापता है। कुछ लोग झूठी अफवाहें फैलाते हैं कि शेख शाहजहां को हाई कोर्ट से संरक्षण प्राप्त है, यह बात सरासर मिथ्या है। पीड़ित महिलाओं द्वारा शाहजहां शेख पर की गई शिकायतों के संदर्भ में हाई कोर्ट को कोई भी निर्देश शाहजहां शेख के विषय में नहीं है। बल्कि कलकत्ता उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश ने यह टिप्पणी की है कि ‘शेख शाहजहां को अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया।

त्रिवेदी ने कहा कि शेख शाहजहां को केवल पश्चिम बंगाल का संरक्षण प्राप्त नहीं है, शाहजहां शेख की प्रवृत्ति वाले लोगों को पूरे भारत में सेक्युलर संरक्षण प्राप्त है। ऐसी मानसिकता वाले व्ययक्ति कितने भी प्रकार के अपराध और आतंकवाद करले, दलित और आदिवासी महिलाओं को प्रताड़ित कर ले, मगर उन्हें सदा-सर्वदा एक सेक्युलर संरक्षण प्राप्त रहता है। यहां कोई हिन्दु-मसलमान का विषय नहीं है, मगर मुस्लिम समाज के जो कट्टरपंथी और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग, चाहे शाहजहां शेख हो, शेख सिराजुद्दीन या जहांगीर, द्वारा अपनी सत्ता को बरकरार रखने का यह प्रयास निंदनीय है। तथाकथित सेक्युलर दलों द्वारा महिलाओं के वोट बैंक को तराजू पर तौला जाता है, और फिर उस विषय पर बोल जाता है। यह घटना और अधिक हृदयविदारक इसलिए है, क्योंकि तथाकथित सेक्युलर दलों के साथ-साथ महिला अधिकारों के स्वघोषित चैंपियन भी इस विषय पर मुंह में दही जमाए बैठें हैं।

त्रिवेदी ने कहा कि सबसे दुखद बात यह है कि ये तृणमूल कांग्रेस के नेता इस विषय के लिए नौटंकी जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जो की बेहद निंदनीय है। उन्होंने कहा कि संदेशखाली केवल एक घटना मात्र नहीं है, जो लोग कहते हैं कि इतिहास को भूल जाओ तो उन्हें यह याद रखना चाहिए कि यह एक घटना है जिसने बंगाल को पिछली कई शताब्दियों को बर्बाद किया है। श्री त्रिवेदी ने कहा कि एक जनश्रुति है कि बंगाल में मिर्ज़ा मुहम्मद सिराज उद-दौला के जमाने में इसी प्रकार की घटनाएं होती थी जहां महिलाओं को उठा लिया जाता था और उनके साथ बदसलूकी और दुर्व्यवहार किया जाता था। इसी क्रम में आगे उन्होंने कहा कि आज से ठीक 78 साल पहले जो नोआखाली में हुआ था, वही आज संदेशखाली में उसकी शुरुआत हो रही है। 16 अगस्त 1946 को जब बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री शाहिद हुसैन सोरावर्दी ने पूरे पुलिस सुरक्षा में हिंदुओं का नोआखाली में नरसंहार करवाया था।

उन्होंने कहा कि जो सोरावर्दी ने किया था आज उसी नक्शेकदम पर ममता बनर्जी चल रही हैं। नोआखाली से लेकर संदेशखाली तक यह बंगाल की एक दर्दनाक दास्तां है जो सिर्फ इस बात पर प्रेरित है कि 1946 में भी यह सोचते थे कांग्रेस के नेता कि “चुप बैठे रहो, अभी सत्ता बची रहनी चाहिए, आगे क्या होगा बंगाल का क्या होगा वह देखा जाएगा” और आज बंगाल सच में हाथ से निकाल गया है। आज वही मानसिकता है कि कट्टरपंथी आपराधिक तत्वों को संरक्षण दिए रहो और फिरहाल की अपनी सत्ता बचाए रखो, भविष्य में जो होना है होता रहे। इसलिए यहाँ पर जो लोग कार्रवाई नहीं कर रहे हैं और मौन समर्थन दे रहे हैं उन्हे समझ जाना चाहिए की “समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याद, जो तटस्त हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध”।सुधांशु त्रिवेदी ने बताया कि कर्नाटक में, मंदिरों और हिंदुओं के लिए काफी अनर्गल बयानबाजी की गई है और पूर्व कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष सतीश जारकीहोली ने भी “हिंदू” शब्द को अपमानजनक बताया है। कर्नाटक मंत्री प्रियंक खड़गे ने भी हिंदू धर्म के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की है।

श्री त्रिवेदी ने इस बात पर जोर दिया कि कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में सामने आ रही घटनाएं दर्शाती हैं कि “हिंदू धर्म का समूल नाश” केवल एक बयान नहीं है बल्कि एक अभियान है, जिसकी झलक तमिलनाडु से पश्चिम बंगाल तक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मद्रास प्रेसीडेंसी के दौरान, नेहरू सरकार ने हिंदू मंदिरों पर नियंत्रण रखने के लिए हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम पेश किया, जिसे अदालत ने दो बार खारिज कर दिया। हालांकि, नेहरू सरकार ने बाद में उसी को प्राप्त करने के लिए अलग कानून बनाया। त्रिवेदी ने इंडी गठबंधन दलों के नेतृत्व वाली सरकारों में दोहरे मानकों का उल्लेख किया, जहां मंदिरों पर कर लगाया जाता है, जबकि हज यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है। उन्होंने तर्क दिया कि यह असमानता दर्शाती है कि “सनातन का उन्मूलन” केवल बयानबाजी नहीं बल्कि विपक्ष द्वारा चलाया गया एक अभियान है।

श्री त्रिवेदी ने इस मुद्दे के महत्व को रेखांकित किया, यह कहते हुए कि यह केवल चुनावी राजनीति से परे है क्योंकि इसने ऐतिहासिक रूप से देश को विभाजित किया है और इसके सामाजिक ताने-बाने को बाधित किया है। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संदेशखाली मुद्दे को संबोधित नहीं करने के लिए आलोचना की, यह सुझाव देते हुए कि उनकी यात्रा के दौरान उनकी टिप्पणियां केवल गलतियां नहीं हैं बल्कि अपराध हैं, जिनके लिए उन्हें आने वाले दिनों में जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

अंत में, श्री सुधांशु त्रिवेदी ने बंगाल के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, जो क्षेत्र कभी कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए प्रसिद्ध था, अब सांप्रदायिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आने वाले समय में जनता की सरकार के कार्यों को अनदेखा करने की संभावना नहीं है और आने वाले दिनों में एक सशक्त प्रतिक्रिया के साथ अपना असंतोष व्यक्त करेगी।

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