ये नजरिया महिला विरोधी
गर्भावस्था की वजह से महिलाओं को जीवन में अवसरों से वंचित होते रहना पड़ा है। अगर समाज अब अपने को आधुनिक कहता है, तो उसे अपना यह नजरिया अवश्य ही बदलना चाहिए।
बुनियादी सवाल है। अगर महिलाएं सृष्टि को आगे बढ़ाने में अधिक बड़ी भूमिका निभाती हैं- इस क्रम में वे अधिक कष्ट सहती हैं, तो इसका बदले उन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए या दंडित? पारंपरिक समाज का नजरिया दंडित करने का रहा है। गर्भावस्था एक ऐसी सूरत है, जिसकी वजह से महिलाओं को जीवन के कई क्षेत्रों और अवसरों से वंचित होते रहना पड़ा है। लेकिन अगर समाज अब अपने को आधुनिक कहता है और अधिक मानवीय होने का दावा करता है, तो उसे अपना यह नजरिया अवश्य ही बदलना चाहिए।
एक बैंक ने हाल में जो दिशा-निर्देश जारी किया, उसमें ऐसे बदलाव के संकेत नहीं मिले। इसलिए समाज के जागरूक तबकों में उसको लेकर नाराजगी पैदा हुई है। दिल्ली महिला आयोग ने उचित ही एक बैंक को इस मामले में नोटिस जारी किया है।इस बैंक ने हाल ही में एक सर्कुलर में जारी किया था। उसमें बैंक में भर्ती की नई नीति बताई गई थी।
बैंक के सर्कुलर में कहा गया था- बारह सप्ताह या उससे अधिक की गर्भवती महिला को तब तक अस्थायी रूप से नौकरी पाने के अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए, जब तक कि वह फिट नहीं हो जाती। महिला उम्मीदवार को प्रसव की तारीख के छह सप्ताह बाद फिटनेस प्रमाण पत्र के लिए फिर से जांच की जानी चाहिए और रजिस्टर्ड डॉक्टर से उसे फिटनेस सर्टिफिकेट प्राप्त करना चाहिए।
जब इस सर्कुलर की चौतरफा आलोचना हुई, तब बैंक ने सफाई दी। उसने कहा कि मौजूदा दिशा-निर्देशों में कोई बदलाव नहीं किया गया है और किसी महिला उम्मीदवार को रोजगार से वंचित नहीं किया गया है। बैंक ने कहा कि वह महिला कर्मचारियों की देखभाल और सशक्तीकरण को सर्वोपरि महत्व देता है।
बैंक ने यह जानकारी भी दी कि उसके कार्यबल में 29 फीसदी महिलाएं हैं। लेकिन महिला अधिकार कार्यकर्ताओँ ने ध्यान दिलाया था कि इस तरह के दिशा-निर्देश से गर्भवती महिलाओं की सेवा में भर्ती में देरी होगी और इसके बाद वे अपनी वरीयता खो देंगी।
ये आशंका गलत नहीं है। बेहतर होता, बैंक ऐसा सर्कुलर जारी नहीं करता। बहरहाल, सुधार का रास्ता उसके सामने था। संभवत: उसने उसे अपना लिया है।
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