*इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पोक्सो एक्ट का मामला किया अभिखंडित*
प्रयागराज 07 दिसंबर (एजेंसी)। उच्च न्यायालय ने यौन अपराध शिशु संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत दर्ज मामले को अभिखण्डित कर समाप्त कर दिया है व व्यक्तिगत स्वतंत्रता को व्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार बताया है। पीडि़ता की मां द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी और कानपुर स्थित नारी निकेतन भेजा गया था, जहां महिला ने एक पुत्री को जन्म दिया था।
अभियुक्त पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने पीडि़ता को बहला-फुसलाकर अपने साथ भगा ले गया था। अभियुक्त के अधिवक्ता कार्तिकेय शुक्ल द्वारा याचिका दाखिल की गई, जिसपर न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की एकल पीठ ने संज्ञान लेते हुए पीडि़ता और अभियुक्त को उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने का आदेश दिया गया।
न्यायालय ने सतीश कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं दो अन्य, 2020 में पारित आदेश के आधार पर पीडि़ता एवं शिशु को अभियुक्त(पति) को सुपुर्द किया और यह कहा कि व्यगतिगत स्वतंत्रता किसी भी दशा में नहीं छीनी जा सकती है तथा महिला के इच्छा के बिना उसे नारी निकेतन में नहीं रखा जा सकता है। न्यायालय ने तथ्यों के आधार पर महिला के वयस्क मानते हुए, उसके पति को सुपुर्द किया और पोस्को एक्ट के तहत दर्ज प्राथमिकी एवं चार्जशीट को अभिखण्डित किया।
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