( 24 अक्टूबर, संयुक्त राष्ट्र दिवस पर विशेष)
विकास कुमार
युद्ध दोनों पक्ष के लिए भयानक होता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के पश्चात संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे संगठन का संरचनात्मक विचार अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट के मस्तिष्क में आया। उनकी मृत्यु हो जाने के कारण इसका उद्घाटन उनकी पत्नी ने किया था। यह संगठन कई सम्मेलनों और बैठकों के परिणाम स्वरूप स्थापित हुआ क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के समय राष्ट्र संघ का निर्माण किया गया था जिसकी नीतियों का संचालन और क्रियान्वयन नहीं हो पाया और अंतत: वह स्थिर होकर समाप्त हो गया था। 24 अक्टूबर, 1945 को इसकी स्थापना 51 देशों में मिलकर किया ।हालांकि पोलैंड का प्रतिनिधि वहां पर उपस्थित नहीं था, परंतु मूल रूप से 51 देशों के सदस्य प्रतिनिधि एकमत होकर इस पर हस्ताक्षर किए थे ।भारत भी इसका संस्थापक सदस्य था और भारत के लक्ष्मण मुदलियार प्रतिनिधि थे। वर्तमान समय में इस संगठन के कुल 193 देश सदस्य हैं। जिसमें पांच स्थाई सदस्य हैं और 10 अस्थाई सदस्य हैं। पांच स्थाई सदस्य जिनके पास निषेध अधिकार है ,को लेकर कई देशों के मध्य विवाद चलता रहता है, क्योंकि इन देशों ने अपने हितों को देखते हुए उस अधिकार का गलत प्रयोग किया है । शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ और अमेरिका में वैचारिक द्वंद उत्पन्न हुआ जिसके परिणाम स्वरूप इन देशों ने अपनी और देशों को मिलाना चाहा जिससे इनका गुट मजबूत हो सके। यहीं से वीटो पावर का गलत प्रयोग प्रारंभ हुआ क्योंकि जिस देश का मुद्दा होता था। अगर वह किसी गुट के विचारधारा से संबंधित होता था तो उस के पक्ष में वीटो पावर का प्रयोग करते थे ।अगर उसके विपक्ष में होता था तो विपक्ष में वीटो शक्ति का प्रयोग किया जाता था। उस समय विजित राष्ट्रों को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थाई सदस्यता दे दी गई थी एक आधार इसमें यह भी देखा गया था कि उनकी आर्थिक और सैन्य शक्ति मजबूत हो। आज मुख्यत: भारत, जर्मनी ,ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए प्रयासरत हैं। क्योंकि इन देशों की जनसंख्या आर्थिक शक्ति सैन्य शक्ति और संयुक्त राष्ट्र पर आर्थिक अनुदान पूर्ववत सदस्य देशों के बराबर होता दिख रहा है। आवश्यकता भी इस बात की है की भारत जैसे संपन्न और विशाल देश को आज सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता दे देनी चाहिए। इसके पीछे कई कारण और तर्क बताया जा सकते हैं। भारत ने सदैव शांति के पक्ष में ही अपना निर्णय दिया है और जो भी काम इस संगठन ने भारत को सौंपा, उसे बखूबी सफलता के साथ पूरा किया है। आज आतंकवाद , पर्यावरण शरणार्थी समस्या, सतत विकास लक्ष्य की पूर्ति, भुखमरी एवं मानव अधिकार जैसे कई मुद्दे ऐसे हैं जिन का मुकाबला मिलजुल कर ही किया जा सकता है। जिसमें संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों की भूमिका प्रमुख व महत्वपूर्ण बन सकती है। आतंकवाद को लेकर भी आज कई देशों और संगठनों में मतभेद है ।2001 के पहले अमेरिका यह मानने को ही तैयार नहीं होता था कि भारत जैसा देश पाकिस्तान जैसे देशों के आतंकी गतिविधियों से परेशान रहता है । जब उसके ट्रेड सेंटर में अलकायदा का हमला हुआ तब उसने ऑपरेशन ड्यूरिंग फ्रीडम नाम से एक मूवमेंट चलाया । जिसका मिशन था आतंकवाद को खत्म करना। आतंकवाद और मानव अधिकार को लेकर अमेरिका अपने निजी हितों के लिए कई देशों पर बेवजह हस्तक्षेप किया है। यही दृष्टिकोण चीन का भी रहता है ।उसने पाकिस्तान को लेकर सदैव अपने वीटो शक्ति का प्रयोग किया है। म्यांमार में सैन्य शासन एवं अफगानिस्तान में तालिबानी संगठन का सत्ता में आना । इसके बावजूद भी इस संगठन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। आज शरणार्थियों की समस्या व्यापक रूप से बढ़ती जा रही है ।इसमें भी संयुक्त राष्ट्र संघ को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। क्योंकि इससे उन शरणार्थियों के आने वाले भविष्य और भावी पीढ़ी का जीवन अंधकार में हो जाता है। इसकी कई विशिष्टक्रित एजेंसियां हैं जो अपने काम विशेष रूप से करती है जैसे ए किसी की एजेंसी है यूनिसेफ वह बच्चों के विकास के लिए वैश्विक स्तर पर काम करती है। मानवाधिकार परिषद वैश्विक स्तर पर मानव अधिकारों की रक्षा के लिए कार्यरत एवं प्रयासरत रहती है। इस के चार्टर में कुल 111 अनुच्छेद एवं 19 अध्याय हैं जिसमें अनुच्छेद प्रथम में संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों का विवेचन किया गया है इसमें विश्व शांति बनाए रखना एवं युद्ध को रोकना प्रथम सिद्धांत के रूप में दर्शाया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों में यह भी पंडित है कि कोई भी देश किसी भी देश की एकता ,अखंडता और संप्रभुता पर हस्तक्षेप नहीं करेगा। परंतु अनुच्छेद 2(7) में प्रावधान है कि अगर मानव अधिकारों का उल्लंघन कोई देश करता है तो संयुक्त राष्ट्र संघ अपने सिद्धांतों के अनुसार वहां पर हस्तक्षेप कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कई मामलों में अपनी भूमिका तटस्थ रूप से निभाई है जिसकी पहल की सराहना बस शुक्र ऊपर हो रही है परंतु वह आज संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष कई बड़ी चुनौतियां हैं जिनसे निपटना उसके लिए अत्यंत आवश्यक है। हाल ही में तालिबान का सत्ता में आना और संयुक्त राष्ट्र संघ का वहां हस्तक्षेप ना करना, यह संयुक्त राष्ट्र संघ पर बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा किया।
यह संगठन सेना , संसाधन और वित्तीय सहायता के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहता है जिस कारण से विकसित देश इसका फायदा उठा लेते हैं क्योंकि आर्थिक रूप से अनुदान उन्हीं का अधिक होता है । भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख रूप से वित्तीय अनुदान प्रदान करने वाला देश है। भारत में कभी भी किसी भी देश पर आक्रमण की पहल नहीं की और सदैव शांति का रास्ता अपनाया है। साथ ही उसके समस्त सिद्धांतों और प्रावधानों को मान्यता प्रदान किया है इसलिए भारत की सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता होनी चाहिए संयुक्त राष्ट्र संघ को भी चाहिए कि वह तटस्थ रहकर अपनी भूमिका निभाई ,क्योंकि इस संगठन के साथ विश्व के नागरिकों की आस्था जुड़ी हुई है। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख पदों की नियुक्तियों में भी तटस्थता होनी चाहिए और सदैव हां चार्टर के अनुच्छेदों की आधार पर होना चाहिए
(लेखक- केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में रिसर्च स्कॉलर है एवं राजनीति विज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट हैं।)