इंदौर,31 मार्च (एजेंसी)। मप्र हाईकोर्ट ने तलाक (विवाह के विघटन) के निर्णय को सही ठहराते हुए अत्यंत अहम टिप्पणी की कि पत्नी का पति और उसके परिवार के प्रति सम्मानजनक व्यवहार नहीं रखना, पति के प्रति क्रूरता माना जाएगा। कोर्ट ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि पत्नी ने अपना ससुराल छोड़ दिया और वर्ष 2013 से बिना किसी उचित कारण के पति से अलग रह रही है।
यह पति के साथ रहने की इच्छुक भी नहीं है। इस कारण यह क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद का एक वैध मामला बनता है। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इन निष्कर्षों को बरकरार रखा जिनमें कहा गया था कि पति ने कू्ररता साबित कर दी है। इसलिए हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील खारिज कर दी।
फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका मंजूर करते हुए तलाक की डिक्री पारित कर दी थी। पति पेशे से संयुक्त आयकर आयुक्त है। उसकी शादी वर्ष 2009 में हुई थी। हालांकि शादी चल नहीं सकी इसलिए उन्होंने क्रूरता और परित्याग के आधार पर फैमिली कोर्ट, जयपुर में तलाक की याचिका दायर की थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार याचिका मप्र में स्थानांतरित कर दी गई। कोर्ट ने दोनों आधारों को सही पाया।
हालांकि याचिका क्रूरता के आधार पर स्वीकार कर ली और तलाक की डिक्री के जरिए उनकी शादी को भंग कर दिया। युवती ने तलाक की डिक्री को चुनौती देते हुए मप्र हाईकोर्ट में अपील की। पत्नी ने अपील मेें कहा कि फैमिली कोर्ट ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि पति का आचरण उसके प्रति उचित नहीं था। उसने केवल उसे परेशान करने और बच्चे की कस्टडी देने के लिए उसके खिलाफ कई तुच्छ शिकायतें दर्ज की।
युवती ने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने दहेज के खिलाफ धारा-498-ए के तहत याचिका लंबित होने के तथ्य को नजरअंदाज कर दिया था। इसलिए उसने विवादित फैसले के तहत दी गई तलाक की डिक्री को रद्द करने की प्रार्थना की।
यह भी दावा किया कि पर्याप्त दहेज नहीं लाने के लिए पति और उसके परिवार के अन्य सदस्य उसे ताने अपमान और परेशान करते थे। कई मौकों पर पति ने उसके साथ्ज्ञ मारपीट भी की थी।
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