Supreme Court's big decision, 'There is no need to immediately send the Nabam Rebia decision to a larger bench'

नई दिल्ली 17 Feb, (एजेंसी): महाराष्ट्र विधानसभा में अध्यक्ष और कुछ सदस्यों की अयोग्यता के मामले में दलीलों के मुख्य आधार नेबाम रेबिया पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बदलाव या सुधार पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई की। कोर्ट ने 2016 के नबाम रेबिया फैसले को सात जजों की संविधान पीठ के पास तत्काल भेजने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नबाम रेबिया के फैसले को सात-न्यायाधीशों की बेंच को भेजा जाना चाहिए या नहीं, यह केवल महाराष्ट्र राजनीति मामले की सुनवाई के साथ ही तय किया जा सकता है। कोर्ट 21 फरवरी को महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के मामलों पर अगली सुनवाई करेगी।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जून में शिवसेना के दोफाड़ होने की वजह से महाराष्ट्र में उत्पन्न राजनीतिक संकट से जुड़े मामले के संदर्भ में 2016 में नबाम रेबिया फैसले को बड़ी पीठ को पुनर्विचार करने के लिए भेजने को लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया था। नबाम राबिया के फैसले ने अयोग्यता याचिकाओं को तय करने के लिए स्पीकर की शक्ति को प्रतिबंधित कर दिया था, क्योंकि उनके निष्कासन की मांग वाला प्रस्ताव पहले से ही लंबित था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस पहलू पर अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले नबाम रेबिया पर पुनर्विचार की आवश्यकता है या नहीं, इस पर दलीलें सुनी थीं। सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा था कि विचार किए जाने वाले पहलुओं में से एक यह है कि क्या नबाम रेबिया का फैसला इस मामले में लागू होता है या नहीं? पीठ ने कहा था कि 10वीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी कानून) को राजनीतिक प्रतिष्ठानों ने आत्मसात कर लिया है। यह शतरंज की बिसात की तरह है, हर कोई जानता है कि अगला कदम क्या होगा।

कुछ भाजपा विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी और मनिंदर सिंह ने तर्क दिया था कि नबाम रेबिया के फैसले की सत्यता पर पुनर्विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। वहीं, महा विकास अघाड़ी का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से आग्रह किया था कि संविधान की 10वीं अनुसूची की इस तरह से व्याख्या की जाए कि सरकारों को गिराने के लिए इसका दुरुपयोग न किया जा सके।

सिब्बल ने कहा था, ‘यह आज के बारे में नहीं है बल्कि यह कल के बारे में भी है। ये मुद्दे बार-बार उठेंगे और सरकारें गिरा दी जाएंगी। एक निर्वाचित सरकार को तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक कि अयोग्यता याचिकाओं का फैसला नहीं किया जाता। यदि अयोग्य ठहराया जाता है तो यह अदालत रक्षा कर सकती है। कृपया 10वीं अनुसूची को सरकारों को गिराने की अनुमति न दें। यह बहुत गंभीर है।’

महा विकास अघाड़ी की ओर से पेश हुए दूसरे वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि न्यायालय को नबाम रेबिया के मामले को वर्तमान मामले से अलग नहीं करना चाहिए। यह किसी भी समस्या का हल नहीं, बल्कि भविष्य की मुकदमेबाजी उत्पन्न करेगा।

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