Supreme Court notice to Center on petition against provision of death penalty in SCST Act, seeks reply

नई दिल्ली 03 Nov, (एजेंसी): सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को एससी/एसटी अधिनियम के अनिवार्य मौत की सजा के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया।

सीजेआई डी.वाई.चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(i) की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा।

अधिनियम का विवादित प्रावधान केवल उस व्यक्ति को मौत की सजा का प्रावधान करता है जो एससी और एसटी के किसी निर्दोष सदस्य के लिए झूठे साक्ष्य देता है या गढ़ता है और यदि ऐसे निर्दोष सदस्य को ऐसे झूठे या मनगढ़ंत साक्ष्य के परिणामस्वरूप दोषी ठहराया जाता है और फांसी दी जाती है।

अधिवक्ता ज्योतिका कालरा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, “यह धारा न्यायिक विवेक का प्रयोग किए बिना अनिवार्य मौत की सजा का आदेश देती है और इसलिए इसे भारत के संविधान और संवैधानिक कानून के मौलिक सिद्धांतों के दायरे से बाहर होने के कारण रद्द करने की जरूरत है।”

इसमें कहा गया है कि अनिवार्य मृत्युदंड सीधे तौर पर मिट्ठू बनाम पंजाब राज्य और पंजाब राज्य बनाम दलबीर सिंह के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों का उल्लंघन है। विवादित धारा बिना किसी विकल्प के अनिवार्य रूप से मृत्युदंड प्रदान करती है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी को जीवन का अधिकार हासिल है।

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