नई दिल्ली 08 Jully (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी): उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि आरोपियों को जमानत देने के लिए उसकी गतिविधियों पर नजर रखने के वास्ते गूगल पिन का स्थान संबंधित जांच अधिकारियों से साझा करने की शर्त नहीं रखी जा सकती। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने नशीले पदार्थो की तस्करी के आरोपी नाइजीरिया के निवासी फ्रैंक विटस की दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर यह फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा, जमानत की शर्त जमानत के मूल उद्देश्य को विफल नहीं कर सकती। ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती जो पुलिस को आरोपी व्यक्तियों की आवाजाही पर लगातार नज़र रखने में सक्षम बनाए। याचिकाकर्ता विटस ने दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से जमानत के लिए मोबाइल लोकेशन पुलिस से साझा करने की शर्त की व्यवस्था के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि इससे उसके निजात के अधिकार का उल्लंघन होता है।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान पाया कि जमानत की शर्त के रूप में गूगल पिन स्थान साझा करने की शर्त भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार पर आघात करती है। शीर्ष अदालत ने पहले यह भी कहा था कि जब एक बार किसी अभियुक्त को अदालतों द्वारा निर्धारित शर्तों के साथ जमानत पर रिहा कर दिया जाता है तो उसके ठिकाने को जानना और उसका पता लगाना अनुचित हो सकता है। वजह यह कि इससे उसकी निजता के अधिकार में बाधा आ सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने तब कहा था, यह जमानत की शर्त नहीं हो सकती। हम सहमत हैं कि ऐसे दो उदाहरण हैं जहां इस न्यायालय ने ऐसा किया है, लेकिन यह जमानत की शर्त नहीं हो सकती। नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2017 में अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वसम्मति से कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।
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