SC status cannot be given to Dalits who converted to Christianity and Islam Central Government

नई दिल्ली ,10 नवंबर (एजेंसी)। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग वाली याचिका की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि वे छुआछूत से पीडि़त नहीं थे। शीर्ष अदालत ने 30 अगस्त को केंद्र से इस मामले में दलित ईसाइयों और अन्य की राष्ट्रीय परिषद द्वारा दायर याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। केंद्र सरकार ने एक लिखित जवाब में कहा, संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 ऐतिहासिक आंकड़ों पर आधारित था, जिसने स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों को कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन या उत्पीडऩ का सामना नहीं करना पड़ा।

इसमें कहा गया है कि जिन कारणों से अनुसूचित जाति के लोग इस्लाम या ईसाई धर्म में धर्मातरण कर रहे हैं, उनमें से एक अस्पृश्यता की दमनकारी व्यवस्था से बाहर आना है, एक सामाजिक कलंक, जो इनमें से किसी भी धर्म में प्रचलित नहीं है। ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ देने का निर्देश देने की मांग वाली याचिकाओं के एक समूह पर केंद्र की प्रतिक्रिया आई। केंद्र सरकार ने कहा कि अनुसूचित जाति की स्थिति की पहचान एक विशिष्ट सामाजिक कलंक और जुड़े पिछड़ेपन के आसपास केंद्रित है जो संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के तहत मान्यता प्राप्त समुदायों तक सीमित है।

इसने तर्क दिया कि गंभीर अन्याय होगा और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जिसके परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति समूहों के अधिकार प्रभावित होंगे, यदि सभी धर्मान्तरित लोगों को सामाजिक विकलांगता के पहलू की जांच किए बिना मनमाने ढंग से आरक्षण का लाभ दिया जाता है।

केंद्र सरकार ने अक्टूबर में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन ने अन्य धर्मो में परिवर्तित होने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के दावों की जांच करने के लिए कहा। सरकार ने बताया कि अनुसूचित जातियों ने कुछ जन्मजात सामाजिक-राजनीतिक अनिवार्यताओं के कारण 1956 में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के आह्वान पर स्वत: बौद्ध धर्म अपना लिया था। इस तरह के धर्मातरित लोगों की मूल जाति/समुदाय स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जा सकता है। यह ईसाइयों और मुसलमानों के संबंध में नहीं कहा जा सकता है, जो अन्य कारकों के कारण धर्मातरित हो सकते हैं, क्योंकि इस तरह के धर्मातरण की प्रक्रिया सदियों से चली आ रही है।

केंद्र ने सभी धर्मो में दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के पक्ष में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की 2007 की रिपोर्ट को भी त्रुटिपूर्ण करार दिया और बताया कि इसे बिना किसी क्षेत्र अध्ययन के तैयार किया गया था।

अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य के रूप में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का संवैधानिक अधिकार 1950 के आदेश के अनुसार केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के लोगों को दिया गया है।

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