Rajkumar Sangwan got ticket from Baghpat

*जयंत ने खींची बड़ी लकीर

*समर्थक बोले-दिल जीत लिया

बागपत ,05 मार्च (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। बागपत लोकसभा सीट और चौधरी चरण सिंह का परिवार एक दूजे के पर्याय रहे हैं। मसलन चुनावी एतबार से जब भी चर्चा होती रही तो चौधरी परिवार का नाम ही चर्चाओं में रहता था। इसे लेकर सियासी गलियारे में गाहे-बगाहे परिवारवाद का आरोप भी लगता रहता था।

इस बार भी सपा से गठबंधन से लेकर भाजपा की दोस्ती तक के सफर में यही कयास लगाए जा रहे थे कि इस सीट पर चौधरी जयंत सिंह या उनकी पत्नी चारु चौधरी चुनावी मैदान में ताल ठोकेंगे, लेकिन सोमवार को रालोद मुखिया ने तमाम गुफ्तगू को नया मोड़ दे दिया। उन्होंने परिवारवाद को दरकिनार किया और जमीनी शख्सियत डॉ. राजकुमार सांगवान को टिकट देकर बड़ा संदेश दे दिया।

चौधरी जयंत सिंह ने सोमवार को बागपत और बिजनौर लोकसभा सीट को लेकर सारी अटकलों पर विराम लगा दिया। बागपत से अपने पुराने कार्यकर्ता डा. राजकुमार सांगवान को इनकी निष्ठा का ईनाम दिया है। बिजनौर सीट पर पूर्व उप मुख्यमंत्री नारायण सिंह के पौत्र चंदन चौहान को चुनावी मैदान में उतारा है। 1977 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि जब चौधरी चरण सिंह के परिवार की बजाय बागपत लोकसभा सीट से सामान्य कार्यकर्ता को टिकट दिया गया है।

बागपत लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मस्थली रही है। यहीं से वह पहली बार सांसद बने। चौधरी अजित सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन का आगाज बागपत से ही किया। जयंत ने भी यहां से चुनाव लड़ा हालांकि वे जीत नहीं पाए। ऐसे में भाजपा से गठबंधन के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि जयंत या तो खुद यहां से लड़ेंगे या फिर चारू को चुनाव मैदान में उतारा जाएगा।

इसी तरह से बिजनौर लोकसभा सीट पर भाजपा से गठबंधन के समीकरण बदले हुए हैं। दोनों ही जगह से जयंत ने अपने कार्यकर्ताओं को टिकट देकर संदेश दिया है कि पार्टी परिवारवाद में विश्वास नहीं रखती। साथ ही पुराने वफादारों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।

बागपत सीट के इतिहास और चुनावी समीकरण की बात करें तो साल 1998 को छोड़कर साल 2014 तक लगातार इस सीट पर किसानों के बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके परिवार का कब्जा रहा है। साल 1977 में चौधरी चरण सिंह ने पहली बार इस सीट से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। चौधरी चरण सिंह की जीत का सिलसिला चलता रहा।

वह 1977 के बाद 1980, 1984 में भी लगातार दो बार सांसद चुने गए। 1977 में चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के रामचंद्र विकल को 121538 वोटों के अंतर से हराया। 1980 में भी उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार राम चंद्र को मात दी। 1984 में वे तीसरी बार सांसद बने। उन्होंने कांग्रेस के महेश चंद को हराया था। दोनों के बीच हार का फासला करीब 85674 वोटों का रहा।

 1989 में अजित सिंह बने यहां के सांसद

1989 में 9वीं लोकसभा के लिए चुनाव में जनता दल ने जीत का परचम लहराया। जनता दल उम्मीदवार अजित सिंह यहां से जीतकर सांसद बने। इसके बाद 1991 में दूसरी बार और 1996 में वह तीसरी बार सांसद चुने गए।

1996 में अन्य पार्टी से जीते अजित सिंह

1996 में हुए 11वीं लोकसभा चुनाव में भी अजित सिंह ही सांसद बने, लेकिन इस बार वो किसी और पार्टी की तरफ से खड़े हुए। 1996 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, जिसमें वह जीते और लगातार तीसरी बार सांसद चुने गए। अजित सिंह ने सपा के गुर्जर को 198891 वोटों के अंतर से हराया।

1998 में पहली बार जीती भाजपा

1998 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से पहली बार जीत दर्ज की। बीजेपी के टिकट पर सोमपाल सिंह शास्त्री ने इस सीट से पार्टी का खाता खोला। सोमपाल ने भारतीय किसान कामगार पार्टी में शामिल हो चुके अजित सिंह को हराया था। सोमपाल को जहां 264736 वोट मिले थे, वहीं, अजित सिंह को 220030 वोट मिले थे।

1999 में अजित सिंह फिर बने सांसद

1998 में हारने के बाद अजित सिंह ने किसान कामगर पार्टी का साथ छोड़ दिया और 1999 में राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर उन्होंने बागपत सीट से फिर चुनाव लड़ा। भाजपा के सोमपाल शास्त्री को हराकर वे सांसद बने। इसके बाद 2004 और 2009 में भी लगातार दो बार सांसद चुने गए।

 2014 में सत्यपाल ने अजित को हराया

2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने यहां से सत्यपाल सिंह को टिकट दिया। उन्होंने अजित सिंह को हरा दिया।

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