Railways made disaster an opportunity

भारतीय रेलवे ने कोरोना वायरस की महामारी के समय ट्रेन सेवाएं बंद की तो और सेवाएं भी बंद कर दीं। जैसे पहले बुजुर्गों को किराए में 50 फीसदी तक छूट मिलती थी। कोरोना के समय यह कहते हुए इसे बंद किया गया कि छूट बंद करने से बुजुर्ग लोग गैर जरूरी यात्राएं नहीं करेंगे। तब भी इसका मजाक उड़ा था और विरोध भी हुआ था।

लेकिन तब लगा था कि कोरोना खत्म होने के बाद शायद फिर से बुजुर्गों के लिए छूट बहाल हो जाएगी। लेकिन बुधवार को संसद सत्र के दौरान रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साफ कर दिया कि कोई छूट बहाल नहीं होने जा रही है। पहले बुजुर्गों की गैर जरूरी यात्रा रोकने के लिए छूट बंद की गई थी लेकिन अब कारण बदल गया है। अब रेल मंत्री ने कहा है कि इस पर बहुत खर्च आता है इसलिए इसे बंद कर दिया गया है।

सोचें, बुजुर्ग लोगों को भाजपा की कई सरकारें मुफ्त में तीर्थयात्रा करा रही है। उस पर होने वाला खर्च उठाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन बुजुर्ग की दूसरी जरूरी ट्रेन यात्रा पर छूट नहीं दी जाएगी क्योंकि खर्च बहुत ज्यादा आ रहा है! इतना हीं नहीं रेल मंत्री ने यह भी कहा कि रेलवे में एसी 1, एसी 2, एसी 3 के अलावा एसी चेयर कार, स्लीपर और जनरल बोगी लगी होती है अगर किसी को यात्रा करनी है तो वह अपनी क्षमता के हिसाब से इनमें से किसी में यात्रा कर सकता है।

इसका मतलब है कि अगर किसी बुजुर्ग की हैसियत थर्ड क्लास में चलने की है तो वह उसी में चले वह क्यों सरकारी छूट लेकर सेकेंड क्लास में चलने की सोच रहा है! रेल मंत्री ने यह भी कहा कि अब भी रेलवे की सेवाएं बहुत सस्ती हैं और किराए का 50 फीसदी खर्च रेलवे खुद वहन करता है। सोचें, रेलवे खुद वहन करता है का क्या मतलब है?

क्या रेलवे ने कोई नोट छापने की अपनी मशीन लगा रखी है कि उसके पैसे भी लोगों के कर, किराए या मालभाड़े से ही आता है? बहरहाल, आपदा में अवसर बना कर बुजुर्गों और खिलाडिय़ों आदि को मिलने वाली छूट समाप्त कर दी गई।

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