Power against a sweeper, when the matter reached the Supreme Court, the CJI imposed the government's class

नई दिल्ली 10 Nov. (एजेंसी): स्कूल में काम करने वाले सफाई कर्मचारी को नियमित किए जाने के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार को कड़ी फटकार लगाते हए कहा कि आखिर इतनी ताकतवर सत्ता एक सफाई कर्मचारी के खिलाफ अदालत क्यों चली आई। दरअसल मद्रास हाई कोर्ट ने एक फैसला दिया था, जिसके तहत 22 साल से एक स्कूल में काम कर रहे सफाई कर्मचारी को नियमित करने का आदेश दिया गया था। इसके खिलाफ तमिलनाडु की सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी।

अर्जी पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘एक शख्स ने स्कूल में 22 साल तक नौकरी की। इन 22 सालों के बाद वह शख्स बिना ग्रैच्युटी और पेंशन के घर लौटता है। यह समाज का सबसे निचला वर्ग है। आखिर कैसे सरकार एक स्वीपर के खिलाफ जा सकती है? एक सरकार सफाई कर्मचारी के खिलाफ अपनी ताकत का इस्तेमाल कर रही है? सॉरी, हम इस अर्जी को खारिज करते हैं।’ तमिलनाडु सरकार का तर्क था कि सफाई कर्मचारी ने भले ही 22 सालों तक स्कूल में काम किया, लेकिन वह पार्ट टाइम जॉब ही थी। यदि स्कूल में परमानेंट वैकेंसी ही नहीं है तो फिर उसे कैसे रेग्युलर वैकेंसी के तहत भर्ती कर्मचारी वाले फायदे दिए जा सकते हैं।

इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती कि जिस स्कूल में हजारों बच्चे पढ़ते हैं, वहां सफाई और हाइजीन का जिम्मा एक पार्ट टाइम कर्मचारी को दे दिया गया। हम मानते हैं कि राज्य सरकार को एक स्कीम लानी चाहिए और ऐसे कर्मचारियों को नियमित नियुक्ति मिलनी चाहिए। मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ही तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने शीर्ष न्यायालय में अपील दायर की थी, लेकिन वहां भी उसे झटका ही लगा। उच्चतम न्यायालय ने एक सफाई कर्मचारी के खिलाफ राज्य सरकार की अर्जी को सत्ता का बेजा इस्तेमाल करार दिया।

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