Police escorted the reelbaaz son of deputy CM

आम नागरिक होता तो जेल पहुँच जाता…सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो

जयपुर ,27 सितंबर (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। राजस्थान की सड़कों पर न्याय और कानून के दोहरे मापदंड एक बार फिर खुलकर सामने आए। जब डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा के बेटे, आशु बैरवा, खुलेआम ट्रैफिक नियमों को तोड़ते हुए जीप में सवारी कर रहे थे, तो उन्हें पुलिस ने न तो रोका बल्कि एस्कॉर्ट कर महफूज रास्ता भी दिया।

सोचिए, अगर यही हरकत किसी आम नागरिक ने की होती, तो क्या उसके साथ भी यही बर्ताव होता? या फिर उसके हिस्से में सिर्फ पुलिस की सख्ती, चालान, और शायद जेल का रास्ता होता?

यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें पुलिस का यह वीआईपी मोह और शक्तिशाली लोगों के लिए नियमों की अनदेखी साफ दिखती है। क्या पुलिस सिर्फ रसूखदारों के लिए ही वफादारी निभाती है?

आम जनता की बिसात क्या सिर्फ चालान और सजा भुगतने तक ही सीमित है? सवाल यह है कि क्या यह खुलेआम सत्ता और शक्ति का नंगा प्रदर्शन नहीं है? क्या राजस्थान की पुलिस का काम सिर्फ सत्ता के प्यादों की सेवा करना रह गया है?

आशु बैरवा के साथ मौजूद कार्तिकेय भारद्वाज भी इस मस्ती का हिस्सा था, जो कि एक और कांग्रेस नेता का बेटा है। आम जनता के लिए जो पुलिस कड़ी होती है, वही नेताओं के बेटों की मौज-मस्ती में खाकी को सड़कों पर घुमाती है। आखिर, कौनसा कानून इन युवाओं को कानून तोडऩे की छूट देता है?

इस पूरे मामले पर खुद डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा की प्रतिक्रिया ने मानो आग में घी डालने का काम किया। उन्होंने न केवल इस घटना को सामान्य बताया, बल्कि गर्व के साथ कहा कि उनके बेटे को महंगी गाडिय़ों में बैठने का मौका मिला है।

क्या यह वही नेता नहीं हैं, जो मंचों पर जनता के लिए कानून और न्याय की दुहाई देते हैं? या फिर उनकी न्याय की परिभाषा सिर्फ उनके परिवार और रसूखदारों तक ही सीमित है?

प्रेमचंद बैरवा ने अपने बेटे की उम्र और अनुभव का हवाला देकर इस घटना को दरकिनार करने की कोशिश की, लेकिन सवाल यह है कि क्या कानून और नियम उम्र और रिश्तेदारियों के हिसाब से बदलते हैं?

जनता को यह अच्छी तरह समझना चाहिए कि कानून की किताब में सिर्फ गरीबों और आम नागरिकों के लिए सख्ती है, जबकि रसूखदारों के लिए उसमें विशेष प्रावधान हैं।

इस घटना ने साफ कर दिया है कि सत्ता में बैठे लोग अपने परिवार और करीबियों के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं, और पुलिस, जो आम जनता को नियमों की सख्ती से पालन करवाती है, वही इन वीआईपी परिवारों की चुपचाप सेवा करती रहती है।

इस घटना ने सिर्फ ट्रैफिक नियमों की अवहेलना को नहीं, बल्कि पुलिस और नेताओं की इस मिलीभगत को भी उजागर किया है। आखिर कब तक जनता इस वीआईपी संस्कृति और सत्ता के इस घिनौने खेल का मूकदर्शक बनी रहेगी?

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