कोविड-19 ने हमारे समाज को आर्थिक व सामाजिक रूप से बुरी तरह झकझोरा है। सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो देश में ऐसे बच्चों की संख्या लाखों में है जिन्होंने माता-पिता या दोनों में से एक को कोरोना महामारी में खोया है। इस संकट के दौरान देश में मानवता के जीवंत उदाहरण तब नजर आये जब व्यक्ति व संस्था के स्तर पर लोग जरूरतमंदों की मदद को आगे आये। उन्होंने खाने, पैसे, दवा व अन्य संसाधनों से मुसीबत के मारे लोगों की मदद की। लेकिन इस संकट में समाज का स्याह पक्ष भी उजागर हुआ, जब कुछ लोगों ने संकट को अवसर बनाया। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो महामारी से अनाथ हुए बच्चों का शोषण करने पर उतारू हैं। अमानवीयता की हद देखिये कि कोरोना महामारी में अपनों को खोने वाले मुसीबत के मारे बच्चों की सौदेबाजी की जा रही है। एक समाचार संगठन की पड़ताल और जम्मू-कश्मीर में अधिकारियों की जांच के बाद दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। वे बच्चों के लिये एनजीओ चलाने की आड़ में गैरकानूनी रूप से बच्चों को गोद देने का रैकेट चला रहे थे। प्रपंच करके लाये गये बच्चों में से एक बच्चे को पौने लाख से पौने दो लाख रुपये में बेचने की कोशिश हो रही थी। दिल्ली में एक अन्य एजेंसी बिना कागजी कार्रवाई पूरी किये बच्चों का व्यापार करती नजर आई। यह गंभीर चिंता का विषय है।
निस्संदेह समाज में ऐसे अनैतिक कार्यों में लिप्त लोग सख्त सजा के अधिकारी हैं। वास्तव में देश में आई कोरोना की दूसरी लहर से देश में जनधन की व्यापक क्षति हुई। इसके बाद सोशल मीडिया पर माता-पिता या दोनों में एक अभिभावक को खोने वाले बच्चों की खबरें बड़ी संख्या में देखी गईं। अनाथ बच्चों के विवरण के साथ उन्हें गोद लेने के आग्रह भी शामिल थे। एक अनुमान के अनुसार एक लाख बच्चों ने माता-पिता में से एक को खो दिया। तब भी बाल अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ताओं और कानून क्रियान्वयन करने वाली संस्थाओं ने इन पोस्टों की वस्तुस्थिति पर शंका जताते हुए इनके जरिये बाल तस्करी के बढऩे की आशंका जतायी थी। ऐसे में जब राज्य सरकारें इन बच्चों की अभिभावक हैं तो अधिकारियों से ऐसे मामलों में जिम्मेदारी की भूमिका की उम्मीद की जाती है। दरअसल, किशोर न्याय अधिनियम 2015 गोद लेने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले रिश्तेदारों द्वारा उनकी देखभाल को प्राथमिकता देता है। यानी जहां परिवार के सदस्य बच्चे को रखने के इच्छुक हों, तो उन्हें वरीयता दी जाती है। ऐसे में जब महामारी का संकट पूरी तरह टला नहीं है और तीसरी लहर की आशंका जाहिर की जा रही है तो प्रभावित बच्चों का भरोसमंद रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए। ताकि उन्हें बाल तस्करी करने वालों के चंगुल में आने से बचाया जाये। जो लोग बच्चों को गोद लेने के वास्तव में इच्छुक हैं, उनकी विश्वसनीयता को गंभीरता के साथ जांचा जाना चाहिए। जिला स्तर पर अधिकारियों को सतर्कता के साथ मामले की पूरी पड़ताल करनी चाहिए।