One who believes in one God is not a Hindu, a big statement by the Sangh chief in the centenary year program

नई दिल्ली ,27 अगस्त (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल पूरे होने (शताब्दी वर्ष) पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनने में है। भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब वो समय आ गया है।

दिल्ली में आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में भागवत ने कहा कि ‘किसी को बदलने की जरूरत नहीं है। मै आज आपसे संघ के बारे चर्चा करूंगा। भारत है इसलिए संघ है। हमारे लिए देश सर्वोपरि है।

इस लिए हम भारत मां की जय कहते हैं। संघ को पर्सेप्शन के आधार पर नहीं फैक्ट्स के आधार जानना चाहिए। संघ के बारे में बहुत सारी चर्चाएं चलती हैं। ध्यान में आया कि जानकारी कम है, जो जानकारी है, वह ऑथेंटिक कम है। इसलिए अपनी तरफ से संघ की सत्य और सही जानकारी देना चाहिए। संघ पर जो भी चर्चा हो, वह परसेप्शन पर नहीं बल्कि फैक्ट्स पर हो।

संघ प्रमुख ने कहा, ‘एक साथ चलने की परंपरा जिनकी है वो हिंदू हैं, संघ का जब गठन हुआ तब तय हुआ कि समस्त हिंदी समाज को संगठित करना है। इसी के साथ ही सवाल खड़ा होता है कि बाकियों को क्यों छोड़ दिया। नेता, नीति, पार्टी यह सब तो सहायक होते हैं मूल कार्य तो समाज का परिवर्तन है।

(राष्ट्र उन्नति के लिये) कुछ गुण हैं जिन्हें विकसित करना होता है। आज 100 साल पूरे होने के बाद भी वह नए क्षितिजों की बात क्यों कर रहा है? इसका यदि एक वाक्य में उत्तर देना हो तो वह है- संघ की प्रार्थना के अंत में हम रोज कहते हैं: ‘भारत माता की जय. अपना देश है, उस देश की जय-जयकार होनी चाहिए, उस देश को विश्व में अग्रगण्य स्थान मिलना चाहिए।

भागवत ने गोलवलकर का एक किस्सा बताते हुए कहा कि एक बार गुरुजी से किसी ने पूछा कि हमारे गांव में तो मुसलमान, ईसाई है ही नहीं, हमारे यहां शाखा का क्या काम? तो गुरुजी ने कहा कि गांव की तो छोड़ो अगर पूरी दुनिया में भी मुसलमान-ईसाई नहीं होते तो भी, अगर हिंदू समाज इस अवस्था में रहता तो संघ की शाखा की आवश्यकता थी।

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