NGT asks panel to probe alleged river pollution from ashram in Uttarakhand

नई दिल्ली 01 Oct. (Rns/FJ) : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक संयुक्त समिति को उत्तराखंड की भागीरथी नदी में साबुन के व्यावसायिक निर्माण में लगे एक आश्रम पर प्रदूषण का आरोप लगाने वाली याचिका पर गौर करने का निर्देश दिया है।

याचिका में आवेदक मदन सिंह गुसाईं ने कहा कि आर्य विहार आश्रम नदी के किनारे स्थित है और साबुन निर्माण इकाई चला रहा है, जो इको-सेंसिटिव जोन में अनुपचारित अपशिष्ट का निर्वहन कर रहा है।

आवेदक ने आरोप लगाया कि जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत सक्षम वैधानिक नियामकों से इसकी कोई पर्यावरणीय मंजूरी या सहमति नहीं है।

न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की एनजीटी पीठ ने कहा कि एक समिति को इस मुद्दे की जांच करने की जरूरत है।

हालिया आदेश में कहा गया है, “हमारे विचार में एनजीटी अधिनियम, 2010 में निर्धारित अधिनियमों से उत्पन्न होने वाले पर्यावरण से संबंधित एक महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न हुआ है।

हालांकि, हम पहले एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्राप्त करना उचित समझते हैं, जिसके लिए हम उत्तराखंड राज्य पीसीबी और संयुक्त समिति का गठन करते हैं।

जिला मजिस्ट्रेट, उत्तरकाशी जो परिसर का दौरा करेंगे और एक महीने के भीतर एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।

मामले की अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी।

*******************************

इसे भी पढ़ें : आबादी पर राजनीति मत कीजिए

इसे भी पढ़ें : भारत में ‘पुलिस राज’ कब खत्म होगा?

इसे भी पढ़ें : प्लास्टिक मुक्त भारत कैसे हो

इसे भी पढ़ें : इलायची की चाय पीने से मिलते हैं ये स्वास्थ्य लाभ

तपती धरती का जिम्मेदार कौन?

मिलावटखोरों को सजा-ए-मौत ही इसका इसका सही जवाब

जल शक्ति अभियान ने प्रत्येक को जल संरक्षण से जोड़ दिया है

इसे भी पढ़ें : भारत और उसके पड़ौसी देश

इसे भी पढ़ें : चुनावी मुद्दा नहीं बनता नदियों का जीना-मरना

इसे भी पढ़ें : *मैरिटल रेप या वैवाहिक दुष्कर्म के सवाल पर अदालत में..

इसे भी पढ़ें : अनोखी आकृतियों से गहराया ब्रह्मांड का रहस्य

इसे भी पढ़ें : आर्द्रभूमि का संरक्षण, गंगा का कायाकल्प

इसे भी पढ़ें : गुणवत्ता की मुफ्त शिक्षा का वादा करें दल

इसे भी पढ़ें : अदालत का सुझाव स्थाई व्यवस्था बने

इसे भी पढ़ें : भारत की जवाबी परमाणु नीति के

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *