नई दिल्ली 21 Nov, (एजेंसी) – संसद की एक समिति ने कुछ राजनीतिक दलों और उनके नेताओं द्वारा की जा रही आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा है कि तीन प्रस्तावित आपराधिक कानूनों को हिंदी में दिए गए नाम असंवैधानिक नहीं हैं।
दरअसल सरकार ने ब्रिटिश हुकूमत के दौर में बने कानून भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य कानून में बदलाव की पहल की है। इस महीने की शुरुआत में, संसदीय पैनल ने कई संशोधनों की पेशकश की थी, लेकिन कानूनों के हिंदी नामों पर कायम रहे।
भाजपा सांसद बृजलाल की अध्यक्षता वाली गृह मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने संविधान के अनुच्छेद 348 के शब्दों का संज्ञान लिया, जिसमें कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के साथ-साथ अधिनियमों, विधेयकों और अन्य कानूनी दस्तावेजों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अंग्रेजी होनी चाहिए।
राज्यसभा को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘समिति ने पाया कि चूंकि संहिता का पाठ अंग्रेजी में है, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 348 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है। समिति गृह मंत्रालय के जवाब से संतुष्ट है और मानती है कि प्रस्तावित कानून को दिया गया नाम भारत के संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन नहीं है।’’
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