Madhya Pradesh assembly elections increased the sourness between Scindia-Gandhi family

भोपाल 16 Nov, (एजेंसी): चुनाव में विरोधी दलों के एक दूसरे पर हमले आम बात है। व्यक्तिगत हमले काम ही होते हैं, मगर मध्य प्रदेश में ऐसे व्यक्तिगत हमले हुए कि उसने गांधी और सिंधिया परिवार के बीच खटास बढ़ाने का काम कर दिया है। राज्य में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में राहुल, प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच गजब की कैमिस्ट्री देखने को मिली थी। इन चुनाव में कांग्रेस ने बढ़त पाई और सरकार भी बनाई। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और वह भाजपा का हिस्सा बन गए परिणाम स्वरुप कांग्रेस की सरकार गिर गई वर्तमान में ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्री हैं।

भले ही सिंधिया कांग्रेस के अलग हो गए, मगर उनके और गांधी परिवार के बीच खटास नजर नहीं आई थी। संसद से तो एक ऐसी तस्वीर सामने आई थी, जिसमें सिंधिया सोनिया गांधी के साथ बैठे हुए थे। आमतौर पर यही चर्चा थी कि भले ही सिंधिया कांग्रेस छोड़कर चले गए होंं, मगर दोनों परिवारों के बीच दूरियां नहीं बढ़ी हैं। प्रियंका गांधी का पिछले दिनों ग्वालियर आना हुआ, मगर उन्होंने सीधे तौर पर सिंधिया पर हमला नहीं किया। तब भी यही माना गया कि सियासी तौर पर भले ही दोनों अलग हो गए हैं, मगर रिश्तो में औपचारिकता अभी बची हुई है।

प्रियंका गांधी का बीते रोज दतिया आना हुआ और यहां उन्होंने जनसभा में सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ही नहीं, बल्कि उनके खानदान तक पर हमला बोल दिया। विश्वासघात को उनके परिवार की परंपरा बताने में भी प्रियंका ने हिचक नहीं दिखाई। इतना ही नहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को अहंकारी तक कह दिया।

प्रियंका के बयान के बाद सिंधिया ने भी गांधी परिवार पर हमला बोला और एक्स पर लिखा, प्रियंका की बात से एक बार फिर से प्रमाणित हुआ कि गांधी परिवार का अहंकार आसमान से भी ऊंचा है। यह परिवार भले ही अपने आप को शाही परिवार समझे, इसका मतलब यह नहीं की इनका विरोध करना राजद्रोह है। इस परिवार का अस्तित्व एक ही बिंदु पर खड़ा है, कि देश पर शासन करना एक ही परिवार के सदस्यों का जन्म सिद्ध अधिकार हैं। पहले प्रियंका गांधी का बयान और उसके बाद सिंधिया की प्रतिक्रिया ने यह जाहिर कर दिया है कि अब गांधी और सिंधिया परिवार के वैसे रिश्ते नहीं हैंं, जिसकी चर्चा लोग करते आ रहे हैं। दोनों परिवारों के सिर्फ सियासी रास्ते अलग नहीं हुए हैं, बल्कि रिश्तों में भी दूरी बढ़ गई है।

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