Kanha Ayo re ayo savior, Yashoda Jayo Andheri Kalirat

*तिथि अष्टमी भाद्रपद जन्मे कृष्ण मुरार, प्रकटे आधी रात को सोये पहरेदार*

*मथुरा में कंस के कारागार में ही नहीं, ब्रज के घर घर में जन्मे कन्हाई*

मथुरा ,19 अगस्त (आरएनएस/FJ)। कान्हा : भाद्र मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि, ग्रह नक्षत्रों का अद्भुत संयोग, भक्तों को अजन्मे कान्हा के आगमन का सुखद अहसास करा रहे थे। कान्हा के 5249 वें जन्मोत्सव का साक्षी बनने के लिए जुटे हजारों की संख्या में श्रद्धालु श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर के अंदर थे तो उससे कई गुना ज्यादा भीड जन्मस्थान के बाहर इस बात का इंतजार कर रही थी कि वह किसी तरह मंदिर के अंदर प्रवेश कर सकें।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भागवत भवन में श्रीकृष्ण जन्म अभिषेक का कार्यक्रम होगा। रात्रि 11 बजे से श्री गणपति एवं नवग्रह स्थापना पूजन आदि कार्यक्रम प्रारंभ हो गए। घडी की सूई टिक टिक कर 12 के निशान की ओर बढ रही थी। इसी गति से श्रद्धालुओं की अधीरता भी अपने चरम पर पहुंच रही थी। जो श्रद्धालु भगवत भवन के अंदर थे वह किसी तरह इस क्षण तक भागवत भवन के अंदर ही टिके रहने चाहते थे। जीवन में ऐसा अद्भुत संयोग शायद फिर कभी उन्हें मिल सके, यही उनके मस्तिष्क में चल रहा होगा, तभी तो कदम थे कि आगे बढऩे को तैयार नहीं हो रहे थे। जैसे जैसे भगवान के अवतरण बेला निकट आ रही थी भागवत भवन में भीड़ का दबाव बढ रहा था।

रात्रि 11: 55 तक कमल पुष्प एवं तुलसी दल से सहस्त्रार्चन हुआ। सेवायत और सुरक्षाकर्मी किसी के भी पैर भागवत भवन के अंदर जमने नहीं दे रहे थे।  अचानक शंखनाद शुरू हो गया। पांच मिनट तक पूरा मंदिर परिसर शंख की सैकड़ों ध्वनियों से गुंजायमान रहा। यह इस बात का उद्घोष था कि अजन्मे भगवान श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हो चुके हैं।

श्रद्धालुओं के हाथ आसमान की ओर झूल रहे थे। भागवत भवन सहित पूरा जन्म स्थान और जन्म स्थान की ओर जाने वाली हर सड़क पर मौजूद श्रद्धालुओं की भीड़ मथुरा में भगवान के अवतरण की साक्षी बन खुद को ध्यन मान रही थी। इससे पहले जन्म महाभिषेक का मुख्य एवं अलौकिक कार्यक्रम रात्र करीब 11 बजे से श्रीगणेश नवग्रह आदि पूजन से शुरू हुआ। प्राकट्य दर्शन के लिए रात्रि 11:59 पर पट बंद कर दिए गए। इसी जद्दोजहद में वह अद्भुत, चमत्कारिक और अलौकिक क्षण आ गया जिसकी प्रतिक्षा पूरा विश्व कर रहा था, धीरे धीरे भागवत भवन में भगवान के श्रीविग्रह और श्रद्धालुओं के बीच दीवार बनी खादी की वह झीनी चादर खिसकने लगी, भक्त अब हिलने भर को तैयार नहीं थे, मानो जड़ चेतन और चेतन जड हो गये थे।

मध्यरात्रि के ठीक 12 बजे भगवान के प्राकट्य के साथ ही संपूर्ण मंदिर परिसर में शंख, ढोल, नगाडे, झांझ, मजीरे और मृदंग एवं हरिबोल की करतल ध्वनि के साथ असंख्य भक्तजन, संत नाच उठे। महंत नृत्य गोपाल दास जी महाराज के सानिध्य में पूरा कार्यक्रम संपन्न हुआ। प्राकट्य आरती रात 12 बजे से 12:05 मिनट तक चली। रजत जडित कामधेन के दूध से भगवान के विग्रह का अभिषेक हुआ।इसके बाद पयोधर महाभिषेक हुआ। रजत कमल पुष्प में विराजमान ठाकुर जी का जन्म अभिषेक रात्रि 12:20 से 12:40 तक चलेगा। श्रंगार आरती रात्रि 12:40 से 12:50 तक तथा इसके बाद शयन आरती हुई।

भगवान की प्राकट्य भूमि एवं कारागार के रूप में प्रसिद्ध गर्भ गृह एवं संपूर्ण श्री कृष्ण चबूतरा की साज सज्जा अद्भुत थी। गर्भ गृह की भीतरी भाग को कारागार का स्वरूप प्रदान किया गया था साथ ही श्री गर्भगृह के बाहरी भाग श्रीकृष्ण चबूतरा को गर्भ गृह के प्राचीन वास्तु अथवा मूल स्वरूप में बिना कोई परिवर्तन किए कारागार का स्वरूप दिया गया। अनुकूल प्रकाश का समायोजन गर्भगृह की भव्यता एवं दिव्यता को अद्भुत शोभा प्रदान कर रही थीं।

युगल सरकार के दिव्य विग्रह के सानिध्य में मना जन्मोत्सव

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का मुख्य आयोजन श्री राधा कृष्ण युगल सरकार के दिव्य विग्रह के सानिध्य में भागवत भवन में मनाया जाएगा। जन्मोत्सव पर ठाकुर जी सारंग शोभा पुष्प बंगले में विराजे। श्रीहरिकांता पोशाक धारण कराई गई। मोर्छलासन विराजमान होकर ठाकुर जी अभिषेक स्थल पर पधारे। भगवान श्री राधा कृष्ण युगल सरकार का श्रृंगार भी अत्यंत आकर्षक और विशिष्ट थी। ठाकुर जी ब्रजरत्न मुकुट धारण कराया गया था।

ब्रज के घर घर में अवतरित हुए कान्हा

विश्व भले ही भगवान श्रीकृष्ण को गीता के महान उपदेशों के लिए जानता हो, ब्रज में तो वह पांच हजार साल बाद भी कान्हा हैं, ब्रजवासियों के लाला हैं। इसी वात्सल्य भाव से ब्रजवासी अपने भगवान की पूजा अर्चना करते हैं और इसी वात्सल्य भाव से दुलारते हैं। दुनिया ने यह भी देखा कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के कारागार में जन्म लिया, लेकिन कान्हा तो हर बृजवासी के आंगन में अवतरित हुए।

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