Justice delivered after 39 years Bill assistant acquitted in Rs 100 bribery case

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को किया रद्द

बिलासपुर 23 Sep, (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। हाईकोर्ट ने 39 साल पहले 100 रुपये रिश्वत लेने के मामले में एक बिल सहायक की अपील स्वीकार करते हुए उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया है।

पीड़ित को भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धाराओं के तहत रायपुर की निचली अदालत ने 9 दिसंबर 2004 को एक साल की कैद की सजा सुनाई थी और उस पर एक हजार रुपये जुर्माना लगाया था। हाईकोर्ट के जस्टिस बिभू दत्त गुरु की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद आरोपी को बरी कर दिया।

शिकायतकर्ता अशोक कुमार वर्मा ने वर्ष 1981 से 1985 के दौरान सेवाकालीन बकाया बिल भुगतान के लिए वित्त विभाग के बिल सहायक रामेश्वर प्रसाद अवधिया से संपर्क किया था। आरोप था कि अवधिया ने बिल पारित करने के लिए 100 रुपये की रिश्वत मांगी। इस पर शिकायत लोकायुक्त के पास दर्ज कराई गई।

लोकायुक्त की टीम ने ट्रैप कार्रवाई की योजना बनाई और शिकायतकर्ता को 50-50 रुपये के रासायनिक लगे नोट देकर भेजा। कार्रवाई के दौरान टीम ने अवधिया को रंगे हाथों पकड़कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया और न्यायालय में चालान पेश किया।

दिसंबर 2004 में निचली अदालत ने अवधिया को दोषी मानते हुए एक वर्ष की कैद और 1000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बी.डी. गुरु की बेंच ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1947 के तहत दर्ज मामला, अधिनियम 1988 लागू होने के बाद भी विचारणीय है।

लेकिन अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि अपीलकर्ता ने वास्तव में अवैध परितोषण की मांग और स्वीकृति दी थी। उपलब्ध मौखिक, दस्तावेजी या परिस्थितिजन्य साक्ष्य से रिश्वतखोरी का अपराध सिद्ध नहीं होता।

कोर्ट ने पाया कि अभियोजन अपने साक्ष्य भार को सिद्ध करने में असफल रहा, इसलिए निचली अदालत का दोषसिद्धि आदेश अस्थिर है। इस आधार पर हाई कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए दोषसिद्धि और सजा दोनों को रद्द कर दिया।

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