Indian startups are exploring the possibilities of modern market and global partnership in the space sector

नयी दिल्ली 09 जुलाई ,(एजेंसी)।  नौ जुलाई (भाषा) अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में चक्कर लगा रहे उपग्रहों में फिर से ईंधन भरने से लेकर पृथ्वी की सेहत पर नजर रखने तक, भारत के स्टार्टअप इस महत्वपूर्ण बाजार में अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं और इसे वैश्विक स्तर पर साझेदारी के अवसर के रूप में देख रहे हैं।

अंतरिक्ष क्षेत्र की कंपनियों का मानना है कि भारत के ‘आर्टेमिस संधि’ पर हस्ताक्षर करने और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान अंतरिक्ष क्षेत्र, खास तौर से निर्यात पर नियंत्रण और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के मुद्दों की जुड़ी समस्याओं के समाधान पर जोर दिये जाने के बाद निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में अवसर उपलब्ध होंगे।

भारत ने 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र के अपने बाजार को निजी क्षेत्र के लिए खोला था, जिसके बाद से 150 स्टार्टअप स्थापित हुए हैं जो रॉकेट और उपग्रह निर्माण, अंतरिक्ष यात्रियों के लिए प्रशिक्षण सुविधाएं मुहैया कराने और अंतरिक्ष पर्यटन की संभावनाएं तलाशने का कार्य कर रहे हैं।

मनस्तु स्पेस के सह-संस्थापक तुषार जाधव ने  कहा, ”यह अच्छी शुरुआत है क्योंकि 10-15 साल पहले तक अमेरिका द्वारा अंतरिक्ष या रक्षा क्षेत्र की प्रौद्योगिकी साझा किया जाना अनसुनी बात थी। अब हम इन क्षेत्रों में साथ मिलकर काम करने की बात कर रहे हैं।’
मुंबई की कंपनी मनस्तु उपग्रहों के लिए हरित (पर्यावरण हितैषी) प्रणोदन प्रणाली विकसित करने पर काम कर रही है और अगले साल परीक्षण कर इस तकनीक को मान्यता दिलाना चाहती है। कंपनी अंतरिक्ष में एक ईंधन केन्द्र भी डिजाइन कर रही है ताकि कक्षा में चक्कर लगाने के दौरान ही उपग्रहों में ईंधन भरा जा सके। फिलहाल उपग्रह का ईंधन समाप्त हो जाने के बाद वह उपयोग से बाहर हो जाता है।
इंडिया स्पेस एसोसिएशन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल ए. के. भट्ट (सेवानिवृत्त) ने कहा, ”अंतरिक्ष क्षेत्र में कई तकनीकों दोहरी उपयोगिता है, लेकिन यह संकेत है कि कैसे अब इसकी प्रक्रिया सरल की जाएगी।’

पिछले साल नवंबर में, हैदराबाद की कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस ने अपनी स्थापना के महज चार साल के भीतर भारत में निजी उपक्रम द्वारा निर्मित पहले रॉकेट विक्रम-एस का प्रक्षेपण कर, अंतरिक्ष क्षेत्र के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया था।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कुछ पूर्व वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा स्थापित यह कंपनी अब विक्रम सीरिज के तीन अलग-अलग रॉकेट डिजाइन कर रही है, जिनकी मदद से छोटे उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा सकेगा।

इसरो के ‘इंडियन नेशनल स्पेस प्रोमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (इन-स्पेस)’ के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा, ”निजी क्षेत्र जिस तरह का काम कर रहा है वह इसरो के पुराने काम की नकल नहीं है। स्काईरूट और अग्निकुल कॉस्मोस द्वारा विकसित प्रक्षेपण यान की अपनी खासियत है। उपग्रह से जुड़े ‘एप्लिकेशन’ तकनीकी आधार पर बहुत आधुनिक हैं।’
चेन्नई की कंपनी अग्निकुल कॉस्मोस ने पिछले साल श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में अपने ‘लॉंचपैड’ का उद्घाटन किया। इसरो अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित प्रक्षेपण केन्द्र से करता है।

भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र की प्रौद्योगिकी और उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों की मांग बहुत कम है, ऐसे में घरेलू कंपनियां अपने उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार में अवसर तलाश रही हैं।

अपने उपग्रह से ‘हाइपर स्पेक्ट्रल तस्वीरें’ मुहैया कराने के संबंध में अमेरिका के ‘नेशनल रेकॉन्सांस ऑफिस’ के साथ बेंगलुरु की कंपनी ‘पिक्सल’ के करार का हवाला देते हुए गोयनका ने कहा, ”उन्हें कुछ सफलता भी मिलने लगी है। सरकारी एजेंसियों से ऑर्डर मिलने लगे हैं। कुछ बहुत बड़ा भी हो रहा है।’

भारत में अंतरिक्षक्षेत्र की अर्थव्यवस्था बहुत छोटी है 2020 में यह वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का महज 2.1 प्रतिशत (9.6 अरब अमेरिकी डॉलर) था जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का 0.4 प्रतिशत है।

केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेन्द्र सिंह ने पीटीआई-भाषा से कहा, ”प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अतीत की वर्जनाओं को तोड़ा है और अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोला है। पिछले तीन साल में 150 से ज्यादा स्टार्टअप शुरु हुए हैं जिनमें से कुछ अपनी तरह की पहली कंपनियां हैं। वैश्विक मानदंडों पर इन्हें मान्यता मिल रही है।”

उन्होंने कहा कि अमेरिका अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत को अब बराबरी का साझेदार समझता है, जो 50 साल पुरानी स्थिति के मुकाबले बहुत अलग है, जब सभी देश अंतरिक्ष क्षेत्र की तकनीक के लिए अमेरिका से उम्मीद लगाये रहा.

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