India rejects allegations of mistreatment of Rohingyas after Pahalgam terror attack at UN

New Delhi ,  29 Oct, (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी): भारत ने म्यांमार पर मानवाधिकार रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण और सांप्रदायिक बताते हुए इसकी कड़ी निंदा की है। दरअसल, इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि अप्रैल में पहलगाम आतंकवादी नरसंहार ने रोहिंग्या प्रवासियों के साथ व्यवहार को प्रभावित किया है।

इसे लेकर भारतीय जनता पार्टी के सांसद दिलीप सैकिया ने मंगलवार को कहा, “मैं अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के निर्दोष पीड़ितों के प्रति विशेष प्रतिवेदक (एसआर) द्वारा पक्षपातपूर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण अपनाए जाने की कड़ी निंदा करता हूं।”

भाजपा सांसद सैकिया ने म्यांमार में मानवाधिकारों पर एक ब्रीफिंग में कहा, “यह आरोप बिल्कुल भी तथ्यात्मक नहीं है कि इस आतंकवादी हमले ने म्यांमार के विस्थापितों को प्रभावित किया है।”

वह म्यांमार में मानवाधिकारों के विशेष प्रतिवेदक, अमेरिकी डेमोक्रेट राजनेता से हार्वर्ड के शिक्षाविद बने थॉमस एंड्रयूज ने भारत पर आरोप लगाया। इसके जवाब में सैकिया ने कहा, “मेरा देश विशेष प्रतिवेदक द्वारा किए गए ऐसे पूर्वाग्रही और संकीर्ण ‘विश्लेषण’ को अस्वीकार करता है।”

बता दें, दिलीप सैकिया महासभा में भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने वाले सांसदों में से एक हैं। भारत में रोहिंग्याओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “मेरा देश विस्थापितों के बीच कट्टरपंथ के खतरनाक स्तर को देख रहा है, जिसके परिणामस्वरूप कानून-व्यवस्था की स्थिति पर दबाव और प्रभाव पड़ रहा है।”

म्यांमार में संकट के पीछे रोहिंग्या संगठन अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) है, जिसका नेतृत्व कराची में जन्मे रोहिंग्या अताउल्लाह अबू अम्मार जुनूनी कर रहे हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, अगस्त 2017 में, एआरएसए ने म्यांमार में हिंदुओं पर सांप्रदायिक हमले किए, जिनमें 99 महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की मौत हो गई। इसके अलावा, कई लोगों को किडनैप कर लिया गया।

म्यांमार को लेकर भारत के दृष्टिकोण के बारे में सैकिया ने कहा कि भारत हिंसा की तत्काल समाप्ति, राजनीतिक कैदियों की रिहाई, मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति, और समावेशी राजनीतिक संवाद के पक्ष में है।

उन्होंने आगे कहा, “हमारा दृढ़ विश्वास है कि स्थायी शांति केवल समावेशी राजनीतिक संवाद और विश्वसनीय एवं सहभागी चुनावों के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की शीघ्र बहाली के माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सकती है।”

थॉमस एंड्रयूज ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद, “म्यांमार के शरणार्थी भारत में भारी दबाव में हैं, जबकि इस हमले में म्यांमार का कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं था।”

एंड्रयूज ने इसे सांप्रदायिक रंग देते हुए कहा कि आतंकवादी हमला “हिंदू पर्यटकों” पर किया गया था, जबकि आतंकवादियों का मकसद गैर-मुसलमानों को मारना था और उनके पीड़ितों में एक ईसाई भी शामिल था।

इसपर भाजपा सांसद सैकिया ने एंड्रयूज से कहा, “ऐसी असत्यापित और पूर्वाग्रही मीडिया रिपोर्टों पर निर्भर न रहें, जिनका एकमात्र उद्देश्य मेरे देश को बदनाम करना प्रतीत होता है, जहां सभी धर्मों के लोग रहते हैं, जिनमें 20 करोड़ से ज्यादा मुसलमान शामिल हैं, जो दुनिया की मुस्लिम आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है।”

एंड्रयूज अमेरिकी कांग्रेस के पूर्व डेमोक्रेटिक पार्टी सदस्य हैं और अब हार्वर्ड विश्वविद्यालय के दक्षिण-पूर्व एशिया मानवाधिकार परियोजना के निदेशक हैं। उन्होंने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों ने उन्हें बताया कि हाल के महीनों में उन्हें “भारतीय अधिकारियों द्वारा तलब किया गया, हिरासत में लिया गया, पूछताछ की गई और निर्वासन की धमकी दी गई।”

उन्होंने आरोप लगाया कि लगभग 40 रोहिंग्या शरणार्थियों को समुद्र के रास्ते म्यांमार के तट पर छोड़ दिया गया, जबकि अन्य को बांग्लादेश भेज दिया गया। रोहिंग्याओं का पलायन अगस्त 2017 में आतंकवादी समूह एआरएसए द्वारा म्यांमार की सुरक्षा चौकियों पर हमले के बाद शुरू हुआ, जिसके बाद बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई हुई।

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