अनूप भटनागर
कैदी की रिहाई के आदेश पर अमल में विलंब संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त वैयक्तिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है। कैदियों के वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा के लिए न्यायपालिका आवश्यक कदम उठा रही है। लेकिन यह भी सही है कि उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय से जमानत याचिका स्वीकार होने के न्यायिक आदेश अमल के लिए सक्षम अदालत के पास जाता है जहां कई बार औपचारिकताएं पूरी करने में वक्त लगता है। उच्चतर न्यायपालिका और जमानत संबंधी औपचारिकताओं को पूरा करने वाली सक्षम अदालत के बीच का समय भी कम करने की आवश्यकता है।
फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के पुत्र आर्यन के मामले में ऐसा ही कुछ हुआ था क्योंकि बंबई उच्च न्यायालय ने जमानत देने का मौखिक आदेश सुनाया और इसके एक दिन बाद आदेश के मुख्य अंश जारी किये, जिसमें जमानत के लिए लगाई गई शर्तों में निजी मुचलका देना और दूसरी औपचारिकताएं पूरी करना भी शामिल था। हालांकि, उच्च न्यायालय का विस्तृत आदेश अभी भी प्रतीक्षित है। लेकिन सक्षम अदालत में इन औपचारिकताओं को पूरा करने में वक्त लगा जिस वजह से आर्यन को दो दिन आर्थर जेल में और रहना पड़ा था।
आर्यन खान की जमानत याचिका पर तो बंबई उच्च न्यायालय ने तत्परता से सुनवाई करके उसकी रिहाई का आदेश दे दिया, लेकिन मादक पदार्थों से संबंधित आरोपों में जेल में बंद अनेक विचाराधीन कैदी इतने खुशकिस्मत नहीं हैं। आर्यन खान की जमानत याचिका को प्राथमिकता दिये जाने पर न्यायालय में कुछ वकीलों ने सवाल भी उठाए थे।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. धनन्जय वाई. चंद्रचूड़ ने हाल ही जमानत पर कैदियों की रिहाई में विलंब पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने इस तथ्य का भी जिक्र किया था कि जिला अदालतों में 2.95 करोड़ आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से 77 प्रतिशत से ज्यादा एक साल से पुराने मामले हैं। हालांकि, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह उल्लेख नहीं किया था कि कितने मामलों में कैदियों की जमानत याचिकाएं लंबित हैं और इनके निपटारे में विलंब की वजह क्या है।
लेकिन, उन्होंने यह जरूर कहा कि उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एक पहल की है, जिसमें प्रत्येक विचाराधीन कैदी और कारावास की सज़ा भुगत रहे हर दोषी को ‘ई-हिरासत प्रमाणपत्र’ प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा था, ‘यह ई-हिरासत प्रमाणपत्र हमें उस विशेष विचाराधीन कैदी या दोषी के मामले में प्रारंभिक हिरासत की अवधि से लेकर बाद की प्रगति तक सारा विवरण उपलब्ध कराएगा। इससे हमें यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि जमानत के आदेश जारी होते ही उन्हें तत्काल संप्रेषित किया जा सके।
ई-हिरासत प्रमाणपत्र की व्यवस्था हरियाणा में पहले से ही लागू है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में पंजाब सरकार को भी जमानत याचिकाओं पर तेजी से निर्णय सुनिश्चित करने के लिए ई-हिरासत प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया तेज करने का आदेश दिया है।
उच्च न्यायपालिका लगातार कैदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील है और उसका प्रयास है कि कैदियों की रिहाई से संबंधित अदालती आदेश त्वरित गति से संबंधित जेल पहुंचे ताकि प्राधिकारी तत्परता से उस पर अमल कर सकें।
जमानत पर कैदियों की रिहाई तेजी से सुनिश्चित करने के इरादे से ही अब फास्टर योजना शुरू की गयी है। इसमें डिजिटल माध्यम से जमानत का आदेश यथाशीघ्र जेल अधिकारियों तक पहुंचाने का प्रावधान है। लेकिन मुंबई की आर्थर रोड जेल में तो अभी भी ‘कागो हाथ संदेशा’ वाली व्यवस्था है। जेल के द्वार पर एक डिब्बा टंगा है, जिसमें अदालत का आदेश पहुंचाया जाता है।