नई दिल्ली ,29 नवंबर(एजेंसी)। दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में भारत और इंडोनेशिया में आपसी शांति और सामाजिक सद्भाव की संस्कृति को बढ़ावा देने में उलेमा की भूमिका पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अपने विचार रखे। इस मौके पर डोभाल ने कहा कि उग्रवाद और आतंकवाद इस्लाम के अर्थ के विरुद्ध है। वहीं लोकतंत्र में हेट स्पीच और मजहब के गलत इस्तेमाल की भी कोई जगह नहीं है। कार्यक्रम में बोलते हुए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा कि लोकतंत्र में नफरती भाषण, मजहब के गलत इस्तेमाल की कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि मजहब का गलत इस्तेमाल हम सभी के खिलाफ है और इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। उन्होंने कहा कि कोई भी लक्ष्य जिसके लिए अतिवाद, कट्टरवाद और धर्म के दुरुपयोग को नियोजित किया जाता है, किसी भी आधार पर न्यायसंगत नहीं है। यह धर्म की विकृति है, जिसके खिलाफ हम सभी को आवाज उठाने की जरूरत है।
अजीत डोभाल ने आगे कहा कि अतिवाद और आतंकवाद इस्लाम के अर्थ के ही विरुद्ध है, क्योंकि इस्लाम का अर्थ है शांति। उन्होंने कहा कि इस्लाम शांति का मजहब है, जो कहता है कि एक इंसान का कत्ल सारी इंसानियत के कत्ल के बराबर है। इस दौरान उन्होंने जिहाद को लेकर भी बड़ी बात कही। डोभाल ने कहा कि अपनी नफ़्स के खिलाफ जिहाद सबसे बेहतर है।
वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने बताया कि इस चर्चा का उद्देश्य भारतीय और इंडोनेशियाई उलेमा और विद्वानों को एक साथ लाना है जो सहिष्णुता, सद्भाव और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने में सहयोग को आगे बढ़ा सकते हैं। यह हिंसक उग्रवाद, आतंकवाद और कट्टरता के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करेगा।
इसी दौरान इंडोनेशिया के मंत्री मोहम्मद मफहूद एमडी ने कहा कि इस कॉन्फ्रेंस का आईडिया मेरे दोस्त अजीत डोवाल का था। मैं उलेमाओं के डेलिगेशन को लेकर यहां आया हूं। उन्होंने कहा कि हमारा संकल्प ये है कि इस्लामी नियमों को फॉलो करना है और इंडोनेशिया की अखंडता बरकरार रखनी है। उन्होंने कहा कि मजहब शांति का प्रतीक होता है। हम सब इस समय कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं — गरीबी, पर्यावरण और खाने की कमी जैसे कई अहम मुद्दों से जूझ रहे हैं।
अजीत डोभाल और इंडोनेशिया के मंत्री मोहम्मद महफूद एमडी दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं। दरअसल अजीत डोभाल 17 मार्च को दूसरी भारत-इंडोनेशिया सुरक्षा वार्ता में हिस्सा लेने इंडोनेशिया गए थे, जहां उन्होंने महफूद को भारत आने का न्यौता दिया था। महफूद ने उस समय प्रस्ताव किया था कि वे विभिन्न धर्मों के धार्मिक नेताओं को शिष्टमंडल में लाना चाहते हैं, ताकि वे दोनों देशों में अंतर्धार्मिक सद्भाव एवं सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने में उलेमाओं की भूमिका पर चर्चा कर सकें।
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