पटना ,04 नवंबर (एजेंसी)। पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने शनिवार को कहा कि विधान मंडल के शीतकालीन सत्र में सरकार को जातीय सर्वे की पंचायत-वार रिपोर्ट और इस सर्वे के आधार पर तैयार होने वाले विकास मॉडल का प्रारूप सदन के पटल पर रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नगर निकाय चुनाव में आरक्षण देने के लिए पिछले साल बिहार सरकार ने डेडिकेटेड अति पिछड़ा आयोग गठित किया था। उसकी रिपोर्ट जारी नहीं हुई। वह रिपोर्ट भी विधान मंडल में प्रस्तुत की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना का श्रेय लूटने में लगे राजद-जदयू को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सकारात्मक वक्तव्य से तीखी मिर्ची लग रही है। वे भाजपा की छवि बिगाडऩे के लिए केंद्र की प्रतिकूल टिप्पणी की उम्मीद कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि बिहार में जातीय सर्वे कराने का निर्णय उस एनडीए सरकार का था, जिसमें भाजपा के 14 मंत्री थे। उस समय राजद सरकार में नहीं थी। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार आज उस कांग्रेस के साथ हैं, जिसने कई दशकों तक केंद्र और राज्यों की सत्ता में रहने के बाद भी न जातीय जनगणना करायी, न पिछड़ों को आरक्षण दिया। कर्नाटक की सिद्दारमैया सरकार ने 2015 में जातीय सर्वे कराया था।
आठ साल से दबी उस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए नीतीश कुमार क्यों नहीं राहुल गांधी से बात कर रहे हैं? सुशील मोदी ने कहा कि तेलंगाना में केसीआर की सरकार ने भी जातीय सर्वे की रिपोर्ट जारी नहीं की।
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