Draupadi Murmu won the presidential election, Yashwant Sinha lost by a huge margin

विकास कुमार – द्रोपदी मुर्मू जनजातीय समुदाय की गौरव बनी भारत का जनजातीय समुदायों का इतिहास अत्यंत गौरवशाली और प्रकृति प्रेमी रहा है। देश की सेवा में अनेकों जनजातीय समुदायों के लोगों ने प्राण गवाएं हैं और अनवरत देश की सेवा में समर्पित रहे हैं। यही कारण रहा है कि इनके इतिहास में ऐसे कई लोकप्रिय व्यक्तितत्वों का नाम बड़े ही आदर और सम्मान से लिया जाता है। ऐसे ही आदर और सम्मान के सर्वोच्च पद को धारण करने वाली प्रथम जनजातीय महिला महामहिम राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुई है।

वह अपने इस पद की शपथ 25 जुलाई को संवैधानिक रूप से लेंगी और इस प्रकार वह जनजातीय समुदाय से इस पद पर पहुंचने वाली प्रथम होंगी और महिला समुदायों से वह इस पद पर पहुंचने वाली दूसरी होंगी ,क्योंकि इसके पहले श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति रह चुकी हैं। आज प्रत्येक जनजातीय समुदायों के लिए गौरव की बात है की एक झोपड़ी में निवास करने वाली महिला राष्ट्रपति भवन तक का सफर तय कर लिया है।

यदि उनके व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो उनका जन्म 20 जून, 1958 को उड़ीसा के मयूरगंज नामक जिले के वैदपोसी नामक गांव में हुआ था। उनका बचपन बड़े ही संघर्ष और अभावों से बीता है। उनके पिता का नाम वीरांची नारायण टूडू जोकि एक किसान परिवार से थे । परंतु मुर्मू जी के पिताजी और दादाजी दोनों गांव के सरपंच रह चके थे। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि उन्होंने ग्रामीण स्तर की राजनीति देखी थी ,परंतु वह इसमें सक्रिय नहीं रहीं । उनके दो भाई थे इसमें पहले का नाम भगत टूटू और दूसरे का नाम सरैनी टूडू था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही संपन्न हुई परंतु 12वीं पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए महाविद्यालय ना होने के कारण उन्होंने भुवनेश्वर के रामादेवी वूमेंस डिग्री कॉलेज में प्रवेश लिया।

इस प्रकार से वह उस गांव की पहली लड़की थी जो ग्रेजुएशन के लिए शहर पढ़ाई करने के लिए निकली थी। वही कॉलेज में ही उनकी मुलाकात श्यामाचरण मुर्मू से हुई और दोनों का आपस में प्रेम हो गया और श्यामाचरण मुर्मू इस प्रस्ताव को लेकर उनके गाँव वैदपोसी गए और दोनों की शादी हो गई। अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत इन्होंने 1979 में बिजली विभाग के जूनियर असिस्टेंट के रूप में किया जहां पर इन्होंने 1983 तक अपनी सेवाएं दी परंतु बच्चों के पढ़ाई के कारण उन्होंने उस जॉब को छोड़ा दिया और 1994 में असिस्टेंट टीचर के रूप में अपनी सेवाएं देना प्रारंभ कर दिया ।

शिक्षक के रूप में उन्होंने 3 साल अपनी सेवाएं दी और सर्वाधिक लोकप्रिय पेशा इनको शिक्षक का ही लगा परंतु इसी समय इनका रुझान राजनीति की ओर बढ़ा और 1997 में पहली बार पार्षद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की । तत्पश्चात 2000 में इन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा और उनकी कार्यशैली से प्रभावित होकर पार्टी ने राज्य मंत्री का दायित्व सौंपा। 2006 में यह भाजपा के अजजा मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष भी रहीं । इसके पश्चात भी वह प्रदेश और देश स्तर पर कई समितियों के सदस्य रहीं और पार्टी के लिए कार्य करते रहीं ।

यही कारण रहा कि इनके कार्यशैली से प्रभावित होकर के केंद्र सरकार ने 2015 में इनको झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया और 2022 में एनडीए के गठबंधन ने उन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में घोषणा की और आज तीसरे राउंड की मतगणना के बाद उनको विजय मिली है। इस चुनाव में अपने विपक्षी यशवंत सिन्हा को पराजित किया है जो कि यूपीए के गठबंधन के उम्मीदवार थे। इस प्रकार से आदिवासी समुदाय से वह इस पद को धारण करने वाली प्रथम बन गई है।

द्रोपदी मुर्मू जी संथाल आदिवासी समुदाय से आती है परंतु यह केवल संथाल आदिवासियों के लिए भी नहीं अपितु भारत के संपूर्ण महिलाओं के लिए गौरव की बात है कि देश के सर्वोच्च पद को प्रतिष्ठित करने वाले भारत की एक महिला हैं, जिन्होंने अपने कर्म शैली और निरंतर संघर्ष के परिणामस्वरूप यहां तक पहुंची। उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए निरंतर प्रयास जारी रखें और सदैव देश सेवा के प्रति अपने को समर्पित रखें । यही कारण रहा कि जब उनके दोनों पुत्रों की अचानक से मृत्यु हो गई और उसके पश्चात उनके पति की मृत्यु हो गई तब वह संघर्ष करने से नहीं हारी और निरंतर देश की सेवा में लगी रही ।

उन्होंने अपने पूरे निवास स्थान को एक स्कूल के रूप में परिवर्तित कर दिया और संपत्ति का कई प्रतिशत हिस्सा शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए दान कर दिया। यहां तक की उन्होंने अपनी आंखें भी मानव सेवा में समर्पित कर दी हैं और उन्हें भी दान कर दिया है। आज आदिवासी समुदायों के लिए गौरव का पल है कि उनके समुदाय का प्रतिनिधित्व देश के प्रतिष्ठित पद पर है।

आदिवासी समुदाय जंगल जमीन और स्वाभिमान की लड़ाई इस समय पूरे देश में लड़ रहे हैं और प्रगतिशील एकता के मार्ग में निरंतर संघर्ष कर रहे हैं ऐसे में द्रोपदी मुर्मू जी की कहानी संपूर्ण समुदायों के लिए प्रेरणा का काम करेगी और इतना ही नहीं भारतीय महिलाओं के लिए भी यह नवीन ऊर्जा और प्रेरणा उनकी कहानी प्रदान करेगी कि व्यक्ति जन्म से नहीं बल्कि कर्म से लोकप्रिय और आदरणीय बनता है।

( लेखक केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में शोधार्थी हैं एवं राजनीति विज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट हैं)

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