भारत की शिक्षा व्यवस्था से करती है घृणा – धर्मेंद्र प्रधान
नई दिल्ली ,06 अगस्त (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि मैकाले की विचारधारा से प्रेरित कांग्रेस शुरू से ही भारत के विकास और शिक्षा व्यवस्था से घृणा रखती है। उन्होंने कहा कि यह तर्क देना कि केवल संविधान की प्रस्तावना ही संवैधानिक मूल्यों का प्रतिबिंब है, कांग्रेस की संविधान की समझ को उजागर करता है।
शिक्षा मंत्री ने कहा कि कांग्रेस के पाप का घड़ा भर चुका है और आजकल जो झूठे संविधान प्रेमी बनकर घूम रहे हैं और संविधान की प्रति लहरा रहे हैं, इनके पूर्वजों ने ही बार-बार संविधान की मूल भावना की हत्या करने का काम किया था।
दरअसल, एनसीईआरटी पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि उसने कई स्कूली पाठ्य पुस्तकों से संविधान की प्रस्तावना को हटा दिया है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है की एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों से संविधान की प्रस्तावना को हटाने के आरोपों का कोई आधार नहीं है।
मंगलवार को इस विषय पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत पहली बार एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तकों में भारत के संविधान के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया है। इसमें संविधान की प्रस्तावना, मौलिक कर्तव्य, मौलिक अधिकार, राष्ट्रगान को उचित महत्व और सम्मान देने का काम किया गया है।
शिक्षा मंत्री ने कहा कि बच्चों के समग्र विकास के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के दृष्टिकोण का पालन करते हुए इन सभी पहलुओं को ‘ऐज एप्रोप्रिएट’ विभिन्न चरणों की पाठ्य पुस्तकों में रखा जा रहा है। लेकिन, शिक्षा जैसे विषय को भी अपनी झूठ की राजनीति के लिए इस्तेमाल करना और इसके लिए बच्चों का सहारा लेना कांग्रेस पार्टी की घृणित मानसिकता को दिखाता है।
बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले और भारतीय शिक्षा व्यवस्था को बकवास बताने वालों को झूठ फैलाने से पहले सच जानने की कोशिश करनी चाहिए।
शिक्षा मंत्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी में अगर थोड़ी सी भी शर्म और आत्मग्लानि बची हो तो पहले संविधान, संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को समझे और देश के बच्चों के नाम पर अपनी क्षुद्र राजनीति करना बंद करे। इस वर्ष कक्षा तीन और कक्षा छह के लिए जारी की गई कुछ पाठ्य पुस्तकों में संविधान की प्रस्तावना नहीं है।
इस पर एनसीईआरटी का कहना है कि यह समझना कि केवल प्रस्तावना ही संविधान और संवैधानिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करती है, त्रुटिपूर्ण और संकीर्ण है। बच्चों को प्रस्तावना सहित मौलिक कर्तव्य, मौलिक अधिकार और राष्ट्रगान से संवैधानिक मूल्य क्यों नहीं प्राप्त होने चाहिए।
एनसीईआरटी का कहना है कि हम एनईपी-2020 के दृष्टिकोण का पालन करते हुए बच्चों के समग्र विकास के लिए इन सभी को समान महत्व देते हैं।
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