Challenges before Rajasthan CM Political opposition, bureaucracy and poor economy.

जयपुर 07 Jan, (एजेंसी): राजस्थान में पहली बार विधायक बने और अब मुख्‍यमंत्री भजन लाल शर्मा के समक्ष चुनौतियां बड़ी हैं।

शर्मा पहले सरपंच रह चुके हैं और एक बार बीजेपी से बागी होकर चुनाव भी लड़ चुके हैं, लेकिन तब उनकी जमानत जब्त हो गई थी। इस बार वह पहली बार सांगानेर से विधायक बने और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें सीधे मुख्यमंत्री बना दिया।

शर्मा को जमीनी स्तर पर संगठन चलाने का अनुभव है, लेकिन सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती नौकरशाही और अपने राजनीतिक विरोधियों से निपटना होगा।

इस बीच बीजेपी के लिए पहली चुनौती राजस्थान में पार्टी के गुटों को एकजुट करना है। भगवा पार्टी ने अपने कई दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया है।

राज्य में भाजपा के कई बड़े नेता हैं, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, किरोड़ी लाल मीणा, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल और राजेंद्र राठौड़ जैसे कुछ नाम शामिल हैं।

अब, यह शर्मा की जिम्मेदारी होगी कि वे उन्हें एकजुट रखें, या कम से कम उनके साथ ऐसे संबंध स्थापित करें, जिससे वे उनके खिलाफ साजिश न करें या विद्रोह न करें।

इसके अलावा, उनके पास विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी कांग्रेस को समझाने की प्रतिभा होनी चाहिए।

सबसे पुरानी पार्टी में अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा, प्रताप सिंह खाचरियावास और हरीश चौधरी जैसे कई दिग्गज नेता हैं, जिन्हें बहुत चतुर राजनेता माना जाता है। इन्हें संभालना शर्मा के लिए बड़ी चुनौती होगी।

शर्मा के लिए दूसरी बड़ी परीक्षा नौकरशाही है, जो पिछली सरकार में काफी प्रभावी थी।

अशोक गहलोत सरकार के अन्य नेता और जनता तत्कालीन मुख्यमंत्री के आसपास के नौकरशाहों से चिढ़ने लगी थी।

शर्मा के लिए अब नौकरशाही को संभालना एक बड़ा काम होगा, क्योंकि उनके पास प्रशासनिक अनुभव नहीं है।

हालांकि, शर्मा के लिए सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय प्रबंधन होगी। वित्तीय कुप्रबंधन के कारण नई सरकार को 30,000 करोड़ रुपये का बकाया बिल चुकाना होगा।

ऊपर से बीजेपी ने रसोई गैस 450 रुपये प्रति सिलेंडर देने का वादा किया है। वित्तीय कुप्रबंधन के युग में इसे पूरा करना शर्मा के कौशल की एक बड़ी परीक्षा होगी।

ऐसे कई अन्य मुद्दे हैं, जिनसे शर्मा को निपटना होगा। पेपर लीक मामले को लेकर राजस्थान के युवा गहलोत सरकार से नाराज थे और बीजेपी ने इसे चुनाव में भुनाया भी। अब शर्मा के सामने चुनौती यह है कि पेपर लीक कैसे रोका जाए और युवाओं की उम्मीदों पर कैसे खरा उतरा जाए।

राजस्थान में बीजेपी सरकार के गठन और शर्मा कैबिनेट में 22 मंत्रियों को विभागों के बंटवारे के बाद विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं।

जोधपुर में मारवाड़ राजपूतों ने मंत्रिमंडल से असंतोष जताया है और कहा है कि बीजेपी सरकार में समाज को वह जगह नहीं मिली है, जिसकी उन्हें उम्मीद थी। समुदाय ने चेतावनी दी है कि अगर बीजेपी ने उनकी मांगें पूरी नहीं की तो पार्टी को लोकसभा चुनाव में इसका परिणाम भुगतना होगा।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ प्रकाश भंडारी ने कहा, “वित्तीय स्थिति खराब है क्योंकि राज्य पर 59 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और ब्याज देना भी संभव नहीं है। वित्तीय प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती है और इसे विशेषज्ञों द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए अन्यथा बजट को संभालना काफी मुश्किल हो जाएगा।

भाजपा के भीतर गुटबाजी पर बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘पार्टी के मतभेदों को केंद्र द्वारा नियंत्रित किया जाएगा क्योंकि सब कुछ नई दिल्ली में नियंत्रित किया जाता है। केंद्र इस संकट का प्रबंधन करने में सक्षम होगा।”

नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष, अरविंद पनगढ़िया, सोलहवें वित्त आयोग (एसएफसी) का नेतृत्व करेंगे और वह विकास कार्यों के लिए धन कैसे खर्च किया जाए, इस मुद्दे पर गौर करेंगे। पनगढ़िया को वापस बुला लिया गया है और वह रेगिस्तानी राज्य के मामलों को देखेंगे क्योंकि वह राजस्थान से हैं और सभी को जानते हैं।

उन्होंने कहा,“संसाधन की पहचान, उसका उपयोग और राजस्व सृजन के लिए संसाधनों का पुनर्गठन सबसे बड़ा लक्ष्य है। स्थानीय कर राजस्व उत्पन्न करते हैं और इसलिए सबसे बड़ा काम राज्य के वित्त को प्रबंधित करने के लिए राजस्व उत्पन्न करना है।”

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