भाजपा ने सौरव गांगुली से अब भी उम्मीद नहीं छोड़ी है?. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े जीवित आईकॉन हैं। बंगाल के लोग उनको अपने महान पूर्वजों की श्रेणी में रखते हैं।
तभी भाजपा पिछले कई साल से इस प्रयास में है कि वे पार्टी में शामिल हों और भाजपा का चेहरा बनें। भाजपा का यह प्रयास उस समय से चल रहा है, नरेंद्र मोदी नए नए प्रधानमंत्री बने थे और वरुण गांधी पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रभारी थी। बताया जाता है कि तब यानी 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा सफलता के काफी करीब पहुंच गई थी।
बहरहाल, उस चुनाव में भाजपा के बुरी तरह से हारने और तीन सीटों पर सिमट जाने के बाद उसका प्रयास बंद हो गया था। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के समय प्रयास शुरू हुआ, जो अब भी चल रहा है। इसी प्रयास के तहत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दो दिन के बंगाल दौरे पर गए तो दादा यानी सौरव गांगुली से मिलने गए। वे गांगुली के घर गए और उनके परिवार के साथ भोजन किया। दोनों में लंबी बातचीच भी हुई। बाद में कहा गया कि यह शिष्टाचार मुलाकात थी क्योंकि अमित शाह के बेटे जय शाह बीसीसीआई के सचिव हैं और इस नाते गांगुली के सहयोगी हैं।
लेकिन असल में ऐसा नहीं है। असल में यह अगले लोकसभा चुनाव से पहले की भाजपा की तैयारियों का हिस्सा है। भाजपा को पता है कि इस बार ममता बनर्जी जिस अंदाज में चुनाव जीती हैं और अगले लोकसभा चुनाव की वे जैसी तैयारी कर रही हैं उसमें भाजपा के लिए अपनी जीती हुई 18 सीटें बचानी मुश्किल होगी। भाजपा अपनी सीटें तभी बचा पाएगी, जब वह बंगाली अस्मिता का ममता से बड़ा दांव खेले। वह दांव सिर्फ सौरव गांगुली का चेहरा हो सकता है। लेकिन क्या गांगुली इसके लिए तैयार होंगे?
पिछले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने बड़ी कोशिश की थी कि वे किसी तरह से पार्टी में शामिल हो जाएं। बाद में यह प्रयास भी हुआ कि वे भाजपा के किसी मंच पर आएं या प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से सार्वजनिक मुलाकात हो। लेकिन वे इससे बचते रहे। यह संयोग था कि उसी समय गांगुली को सीने में दर्द की शिकायत हो गई और वे अस्पताल में भर्ती हो गए। चुनाव से ठीक पहले उनकी एंजिप्लास्टी हुई, जिस वजह से उनको सक्रिय राजनीति में लाने का प्रयास भाजपा को रोकना पड़ा। अब नए सिरे से भाजपा यह प्रयास कर रही है। गांगुली का पहला प्यार क्रिकेट है। वे उसे छोडऩा नहीं चाहते हैं।
राजनीति में भी उनके और उनके परिवार की पसंद सीपीएम रही है, इस नाते भी भाजपा से उनकी दूरी समझ में आती है। सक्रिय राजनीति में आने से ममता बनर्जी से पंगा बढ़ेगा और यह भी उनका परिवार नहीं चाहता है।
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