Assistant professors' salary is only 30 thousand rupees, Supreme Court expressed displeasure..

वेतन सही करने का दिया आदेश

नई दिल्ली,23 अगस्त (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। गुजरात के विभिन्न सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में संविदा के आधार पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों को दिए जा रहे कम सैलरी पर असंतोष व्यक्त किया.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब शिक्षकों के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता या उन्हें सम्मानजनक पारिश्रमिक नहीं दिया जाता, तो इससे देश में ज्ञान के महत्व में कमी आती है और बौद्धिक पूंजी के निर्माण की जिम्मेदारी संभालने वालों की प्रेरणा कमजोर होती है.

अदालत ने कहा कि राज्य सरकार के लिए यह बिल्कुल सही समय है कि वह असिस्टेंट प्रोफेसरों के कार्यों के आधार पर उनके वेतन को तर्कसंगत बनाए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कॉन्टेक्ट के आधार पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों को वर्तमान में 30,000 हजार रुपये मासिक सैलरी मिल रहा है. वहीं एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसरों को लगभग 1,16,000 रुपये मासिक और रेगुलर असिस्टेंट प्रोफेसरों को लगभग 1,36,000 रुपये मासिक वेतन मिल रहा है, जबकि ये सभी समान कार्य कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक समारोहों में केवल गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुदेवो महेश्वर: का जाप करना पर्याप्त नहीं है. अदालत ने आगे कहा कि, अगर हम ऐसे जाप पर विश्वास करते हैं, तो यह राष्ट्र द्वारा अपने शिक्षकों के साथ किए जाने वाले व्यवहार में भी दिखना चाहिए.

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की बेंच ने गुजरात के विभिन्न सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में कॉन्ट्रैक्ट के आधार (संविदा) पर नियुक्त सहायक प्रोफेसरों को दिए जा रहे कम वेतन पर असंतोष व्यक्त किया है.

बेंच ने 22 अगस्त को दिए गए अपने फैसले में कहा कि, यह परेशान करने वाला है कि सहायक प्रोफेसरों को 30,000 रुपये मासिक वेतन मिल रहा है. अब समय आ गया है कि राज्य इस मुद्दे को उठाए और उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के आधार पर वेतन संरचना को युक्तिसंगत बनाए.

बेंच ने कहा कि शिक्षाविद, लेक्चरर और प्रोफेसर किसी भी राष्ट्र की बौद्धिक रीढ़ होते हैं, क्योंकि वे अपना जीवन भावी पीढिय़ों के मन और चरित्र को आकार देने के लिए समर्पित करते हैं.

बेंच ने यह भी कहा कि उनका काम शिक्षा देने से कहीं आगे जाता है. इसमें मार्गदर्शन, अनुसंधान का मार्गदर्शन, आलोचनात्मक सोच को पोषित करना और समाज की प्रगति में योगदान देने वाले मूल्यों का संचार करना शामिल है.

बेंच ने कहा, जब शिक्षकों के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता है या उन्हें सम्मानजनक पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है, तो यह ज्ञान के प्रति देश के मूल्य को कम करता है और उन लोगों की प्रेरणा को कमजोर करता है जिन्हें इसकी बौद्धिक पूंजी के निर्माण का दायित्व सौंपा गया है.

बेंच ने कहा कि उचित पारिश्रमिक और सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करके, हम उनकी भूमिका के महत्व की पुष्टि करते हैं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नवाचार और अपने युवाओं के उज्जवल भविष्य के लिए राष्ट्र की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां कई अपीलों पर सुनवाई करते हुए कीं, जो गुजरात हाई कोर्ट की खंडपीठ द्वारा दिए गए दो निर्णयों से पैदा हुई थीं.

पहले फैसले में, गुजरात राज्य एवं अन्य बनाम गोहेल विशाल छगनभाई एवं अन्य, संविदा के आधार पर सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त प्रतिवादियों को सहायक प्रोफेसरों का न्यूनतम वेतनमान प्रदान करने वाले सिंगल जज के आदेशों के विरुद्ध राज्य की लेटर पेटेंट अपील (एलपीए) खारिज कर दी गई थी.

राज्य ने पहले सेट की दीवानी अपीलों में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. दूसरी सेट की दीवानी अपीलें बाद में नियुक्त कुछ संविदा सहायक प्रोफेसरों से संबंधित थीं, जिनकी रिट याचिकाओं को सिंगल जज ने समान पद पर नियुक्त सहायक प्रोफेसरों के साथ पूर्ण समानता प्रदान करते हुए स्वीकार कर लिया था.

बेंच ने कहा, राज्य के एलपीए में खंडपीठ ने अपीलों को स्वीकार करने और रिट याचिकाओं को पूरी तरह से खारिज करने के दूसरे चरम पर जाकर फैसला सुनाया. इस प्रकार, संविदा के आधार पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर हमारे समक्ष हैं.

बेंच ने कहा कि समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांतों को लागू करते हुए और प्रतिवादियों को सहायक प्रोफेसरों के न्यूनतम वेतनमान का भुगतान करने के खंडपीठ के निर्देशों की पुष्टि करते हुए, हमने राज्य की अपीलों को खारिज कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उन्हीं सिद्धांतों को लागू करते हुए, हमने समान पदों पर संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसरों द्वारा दायर दीवानी अपीलों को स्वीकार कर लिया है और निर्देश दिया है कि उन्हें सहायक प्रोफेसरों को देय वेतनमान का न्यूनतम वेतन दिया जाएगा.

बेंच ने कहा कि अपीलों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, हम निर्देश देते हैं कि संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसरों को देय न्यूनतम वेतनमान के हकदार होंगे.

बेंच ने कहा, रिट याचिका दायर करने की तारीख से तीन साल पहले से 8 प्रतिशत की दर से गणना की गई बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा. इन निर्देशों के साथ अपीलें स्वीकार की जाती हैं.

बेंच ने कहा कि अपीलकर्ता वेतन में समानता की मांग कर रहे थे और नियमितीकरण की उनकी प्रार्थना, हालांकि मुकदमेबाजी के पहले के दौरों में की गई थी, कभी स्वीकार नहीं की गई. मौजूदा मामले के तथ्य बेहद गंभीर हैं.

2011 से 2025 के दौरान संविदा के आधार पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर पिछले दो दशकों से बेहद कम मासिक वेतन पर काम कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हालांकि उनके और नियमित या एडहॉक के आधार पर नियुक्त उनके सहयोगियों द्वारा किए गए कर्तव्यों और कार्यों के बीच अंतर करने वाला कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है, फिर भी वे 30,000 रुपये का मासिक वेतन प्राप्त कर रहे हैं.

2025 में, एक एडहॉक सहायक प्रोफेसर का सकल वेतन लगभग 1.16 लाख रुपये प्रति माह और एक नियमित सहायक प्रोफेसर का लगभग 1.36 लाख रुपये प्रति माह है.

बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट ने मामले के गुण-दोष पर विचार किया है और इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर नियमित कर्मचारियों के साथ वेतन में समानता की मांग नहीं कर सकते.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम अपील को स्वीकार करते हैं और 20 दिसंबर, 2023 को खंडपीठ द्वारा पारित हाई कोर्ट के फैसले और आदेश को रद्द करते हैं, साथ ही आर/स्पेशल सिविल एप्लीकेशन में एकल न्यायाधीश द्वारा 5 जुलाई, 2023 को पारित आदेश को भी रद्द करते हैं.

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