Paying alimony to wife should not be a punishment for the husband

सर्वोच्च अदालत का बड़ा फैसला

नईदिल्ली,12 दिसंबर (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के आत्महत्या का मामला इन दिनों सुर्खियों में है. अतुल के सुसाइड के कारण कानून प्रक्रियाओं और न्यायालयों पर भी सवाल उठने लगे हैं. इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट ने फिर से दोहराया कि वैवाहिक विवाद में पति द्वारा पत्नी को दिए जाने वाला गुजारा भत्ता पति के लिए सजा जैसा नहीं होना चाहिए.

अदालतों को ध्यान देना होगा कि पत्नी सही ढंग से जीवन जी सकें लेकिन पति की आर्थिक स्थिति सहित अन्य बातों को भी ध्यान में रखना होगा.

जस्टिस विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने अपने फैसले में देश की सभी अदालतों को सलाह दी कि वे 2020 में आए ‘रजनेश बनाम नेहा’ फैसले के अनुसार ही काम करें. रजनेश बनाम नेहा केस में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदु मल्होत्रा और सुभाष रेड्डी की बेंच ने गुजारा भत्ता देने के निर्देश देते वक्त आठ बिंदुओं पर ध्यान देने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अपने नए फैसले में उन निर्देशों को शामिल किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता तय करते वक्त कोर्ट को पहले इन आठ बिंदुओं पर विचार जरुर करना चाहिए.

1.पति और पत्नी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति कैसे है

2.पत्नी और बच्चों के भविष्य की जुड़ी बुनियादी जरूरतें

3.पति-पत्नी की शैक्षणिक योग्यता और रोजगार क्या है

4.दोनों के आय के साधन और संपत्ति कितनी है

5.ससुराल में रहते वक्त पत्नी का जीवन स्तर कैसा था

6.क्या पत्नी ने परिवार का ध्यान रखने के लिए नौकरी छोड़ी थी

7.पत्नी की अगर कोई कमाई नहीं है तो कानूनी लड़ाई लडऩे के लिए उसका उचित खर्च कौन देगा

8.गुजारा भत्ता से पति की आर्थिक स्थिति, आमदनी और दूसरी जिम्मेदारियों पर पडऩे वाला असर क्या होगा

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि गुजारा भत्ता का फैसला सुनाते हुए इन आठ बातों का ध्यान देना चाहिए. लेकिन ये कोई स्थायी फॉर्मूला नहीं है. केस के तथ्यों के आधार पर कोर्ट आदेश दे सकते हैं. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि गुजारे भत्ता का प्रावधान पत्नी और बच्चों की उचित जरुरतों को पूरा करने के लिए होता है. गुजारा भत्ता पति को सजा देने के लिए हरगिज नहीं है.

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