Is this a movement issue

वेद प्रताप वैदिक –  आंदोलन का मुद्दा है क्या ? कांग्रेस आजकल राजनीतिक पार्टी की बजाय प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनती जा रही है, इसका ताजा प्रमाण फिर सामने आ रहा है। ‘नेशनल हेराल्ड’ के मामले में सोनिया गांधी और राहुल को प्रवर्तन निदेशालय के सामने जांच के लिए पेश होना पड़ रहा है। हो सकता है कि जांच में दोनों बिल्कुल खरे उतरें। वैसे देश में मुझे तो एक भी नेता ऐसा दिखाई नहीं पड़ता जो कि दूध का धुला हो। कोई न कोई धांधली, ठगी, रिश्वत या दादागीरी का दांव मारे बिना कोई भी नेता अपनी दुकान कैसे चला सकता है?

फिर भी हम मानकर चल सकते हैं कि राहुल और सोनिया बिल्कुल बेदाग निकलेंगे तो भी असली सवाल यह है कि किसी जांच एजेंसी के सामने पेश होने में उन्हें एतराज क्यों होना चाहिए? यदि कानून सबके लिए एक-जैसा है तो वह उन पर भी लागू क्यों न हो? वे अपने आप को कानून से ऊपर समझते हैं, क्या? यदि वे निर्दोष हैं तो कोई जांच एजेंसी सत्तारुढ़ नेताओं की कितनी ही गुलाम हो, उन्हें किसी से डरने की क्या जरुरत है? भारत की न्यायपालिका आज भी निर्भीक और स्वतंत्र है। वह उनके सम्मान की रक्षा अवश्य करेगी लेकिन इस जांच को लेकर पूरी कांग्रेस जिस तरह से सड़क पर उतर आई है, वह अपना मजाक बनवा रही है।

इससे कई बातें सिद्ध हो रही हैं। पहली तो यह कि कांग्रेस अपने सिर्फ दो नेताओं, माँ और बेटे को बचाने के लिए जिस तरह जन-आंदोलन पर उतर आई है, उससे लगता है कि उसके पास जनहित का कोई और मुद्दा है ही नहीं। अपने नेताओं को बचाना ही उसके लिए सबसे बड़ा जनहित है। दूसरा, उसने जन-आंदोलन की राह अपनाकर भाजपा सरकार के प्रति जनता को जो शिकायत हो सकती थी, उस पर ढक्कन लगा दिया है। जऱा याद करें कि चरणसिंह सरकार ने जब इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया था तो उस सरकार की इज्जत कैसे पैंदे में बैठ गई थी।
यही अब भी होता लेकिन मां-बेटे ने यह प्रदर्शन करवाकर भाजपा सरकार के हाथ मजबूत कर दिए हैं। तीसरा, लोगों को आश्चर्य है कि कांग्रेस की हालत मायावती की बसपा की तरह क्यों होती जा रही है? उसके पास न तो योग्य नेता हैं और न ही प्रभावशाली नीति है। इसी का नतीजा है कि राष्ट्रपति के चुनाव में उम्मीदवार के लिए किसी कांग्रेसी नेता का नाम सामने नहीं आ रहा है। सारे विपक्षी दलों को इस मुद्दे पर एक करने में भी कांग्रेस को सफलता नहीं मिल रही है।

यद्यपि कांग्रेस के कुछ मुख्यमंत्री काफी सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें भी जब मां-बेटे की सेवा में जोत दिया जा रहा हो तो आम लोग सोच में पड़ जाते हैं कि ये अनुभवी नेता लोग भी नेता हैं या किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कर्मचारी हैं? देश के करोड़ों कांग्रेसी कार्यकर्त्ता हतप्रभ हैं। उन्हें आश्चर्य होता है कि उनके नेता राष्ट्रीय मुद्दों पर कोई आंदोलन क्यों नहीं करते? क्या आंदोलन के लिए उनके नेताओं को बस यही मुद्दा मिला है?

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