Eight years of Modi

वेद प्रताप वैदिक – मोदी के आठ साल. पिछले 75 साल में भारत में 14 प्रधानमंत्री हुए। उनमें से पांच कांग्रेसी थे और 9 गैर-कांग्रेसी हुए। इन गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों में यदि सबसे लंबा कार्यकाल किसी प्रधानमंत्री को अभी तक मिला है तो वह नरेंद्र मोदी को ही मिला है। उन्होंने आठ वर्ष पूरे कर लिए हैं और अपनी शेष अवधि पूरी करने में भी उन्हें कोई आशंका नहीं है। यह भी असंभव नहीं कि वे लगातार तीसरी अवधि भी पूरी कर डालें। यदि ऐसा हुआ तो जवाहरलाल नेहरु के बाद वे ऐसे पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे, जो लगातार सर्वाधिक अवधि वाले प्रधानमंत्री कहलाएंगे।
भारतीय लोकतंत्र के विपक्ष की यह बड़ी उपलब्धि होगी। हमारे कई पड़ौसी देशों में भी इतने लंबे समय तक राज करने वाले नेता नहीं हुए हैं। लेकिन मूल प्रश्न या सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह नहीं है कि आप कितने साल तक गद्दी पर बैठे रहे? उससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि आपने अपने राष्ट्रोत्थान के लिए बुनियादी काम किए या नहीं? आपने क्या ऐसे काम भी किए हैं, जिन्हें इतिहास याद रखेगा?

इंदिरा गांधी ने आपात्काल लगाने की भयंकर भूल की लेकिन उन्हें याद किया जाएगा— परमाणु-परीक्षण, सिक्किम के विलय, पंजाब पर नियंत्रण और सबसे ज्यादा बांग्लादेश के निर्माण के लिए! उनके ‘गरीबी हटाओÓ का नारा सिर्फ चुनाव जीतने का हथकंडा बनकर रह गया लेकिन उनकी कार्यप्रणाली कुछ ऐसी रही कि भारत के लगभग सारे राजनीतिक दल उनकी देखादेखी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों में बदल गए हैं। अब क्या नरेंद्र मोदी इस ढर्रे को बदल पाएंगे या और अधिक मजबूत करके छोड़ जाएंगे? इस ढर्रे पर चलकर पार्टियों के आंतरिक लोकतंत्र की बलि तो चढ़ती ही है, राष्ट्रीय लोकतंत्र के लिए भी खतरा पैदा हो जाता है।

इसी तरह भारत की आर्थिक प्रगति भी सभी प्रधानमंत्रियों के काल में लंगड़ाती रही है। जो चीन अब से 50 साल पहले हमसे पीछे था, उसकी आर्थिक शक्ति हम से 5 गुना ज्यादा हो गई है। कहां वह और कहां हम? विश्व गुरु गुड़ चूस रहा है और चेला शक्कर के मजे ले रहा है। पिछले आठ साल में मोदी सरकार ने आम आदमियों को राहत देने के अदभुत और अपूर्व काम किए हैं। उन सबको यहां गिनाना संभव नहीं है लेकिन ये तो तात्कालिक सुविधाएं हैं।

धारा—370 और तीन तलाक को खत्म करना तो सराहनीय है लेकिन देश में एक समान आचार संहिता का निर्माण, जातिवाद का उन्मूलन और अंग्रेजी के वर्चस्व को घटाना, यह भी उतना ही जरुरी है। असली प्रश्न यह है कि शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के मामले में क्या कोई बुनियादी काम पिछले आठ साल में हुआ है? नौकरशाहों के दम पर आप राहत की राजनीति तो कर सकते हैं लेकिन क्रांतिकारी परिवर्तनों के लिए आपके पास अपनी मौलिक दृष्टि भी होनी चाहिए या दृष्टिसंपन्न लोगों के साथ नम्रतापूर्वक संवाद करने की कला भी आपके पास होनी चाहिए।

विदेश नीति के क्षेत्र में भी भारत कई नए बुनियादी कदम उठा सकता था, लेकिन न तो अभी तक वह पड़ौसी राष्ट्रों के संघ-दक्षेस- को ठप्प होने से रोक सका और न ही उसके पास कोई ऐसी विराट दृष्टि दिख रही है, जिसके चलते वह पुराने आयावर्त्त के डेढ़ दर्जन राष्ट्रों का कोई संघ खड़ा कर सके। महाशक्तियों से उसके संबंध काफी संतुलित हैं लेकिन भारत स्वयं कैसे महाशक्ति बने, इस दिशा में भी ठोस प्रयत्नों की जरुरत है।

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