Supreme Court seeks response from Centre, states on plea for doctors not prescribing generic drugs

नई दिल्ली ,18 अगस्त (एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जनहित याचिका पर केंद्र तथा राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया जिसमें जेनेरिक दवाएं न लिखने वाले डॉक्टरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की गई है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले में केंद्र, सभी राज्य सरकारों, एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड और अन्य से जवाब मांगा है।

याचिकाकर्ता अधिवक्ता के.सी. जैन ने पीठ को अवगत कराया कि जेनेरिक दवाओं को निर्धारित करने के महत्व पर जोर देने वाले नियम, जिन्हें 2002 में अधिसूचित किया गया था, व्यवहार में बड़े पैमाने पर लागू नहीं किए गए हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002, जो दवाओं को उनके जेनेरिक नामों से लिखने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं, पूरी तरह से कानूनी ढांचे के भीतर मौजूद हैं।

याचिका में कहा गया है कि दवाओं की सामर्थ्य एक महत्वपूर्ण कारक है जो प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल वितरण और स्वास्थ्य के अधिकार की प्राप्ति में योगदान करती है।

याचिका में कहा गया है, जेनेरिक दवाएं, जिनमें उनके ब्रांडेड समकक्षों के समान सक्रिय तत्व होते हैं, लेकिन एक विशिष्ट ब्रांड नाम के तहत विपणन नहीं किया जाता है, अक्सर काफी सस्ते होते हैं। जेनेरिक दवाओं (ऑफ-पेटेंट) की कीमतें ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक कम हो सकती हैं।

याचिका में गैर-अनुसूचित फॉर्मूलेशन और ऑफ-पेटेंट जेनेरिक दवाओं के अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) तय करने के लिए राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल्स मूल्य निर्धारण प्राधिकरण को निर्देश देने की मांग की गई।

याचिका में कहा गया है, जेनेरिक दवाएं लिखकर, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर मरीजों पर वित्तीय बोझ को कम करने और महत्वपूर्ण दवाओं तक उनकी पहुंच को सुविधाजनक बनाने में मदद कर सकते हैं।

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