विधान परिषद चुनाव सपा के लिए सोचने का समय. यह सही है कि विधान परिषद के चुनाव प्रदेश के मतदाताओं का मूड नहीं बताते हैं। चुने हुए प्रतिनिधियों के वोट से होने वाला एमएलसी का चुनाव धनबल और बाहुबल से लड़ा जाता है। अन्यथा कोई कारण नहीं था कि भाजपा के नौ उम्मीदवार बिना चुनाव लड़े ही जीत जाएं।
36 में से नौ सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीते और बाकी 27 सीटों पर चुनाव हुआ। सवाल है कि क्या समाजवादी पार्टी के पास ऐसे उम्मीदवारों की कमी है, जो धनबल और बाहुबल लगा कर चुनाव नहीं लड़ सकते? बिहार में तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले राजद ने ऐसे उम्मीदवार उतारे और छह सीटों पर जीत दर्ज की।
राज्य की 24 में से छह सीटों पर राजद जीता, तीन सीटों पर उसके बागी जीते और दो सीटों पर राजद का उम्मीदवार सात व 17 वोट से हारा।बिहार के उलट उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। नौ सीटों पर उसके उम्मीदवार लड़े ही नहीं। बाकी 27 में से सिर्फ दो सीटों पर सपा उम्मीदवार को एक हजार से ज्यादा वोट आया। बाकी सभी सीटों पर उसके उम्मीदवारों को पांच सौ के आसपास या उससे कम कम वोट मिले। एक हजार से ज्यादा वोट हासिल करने वाले दो उम्मीदवारों में एक शिल्पी प्रजापति हैं, जो पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की बहू हैं और दूसरे डॉक्टर कफील खान हैं।
पार्टी से इतर डॉक्टर कफील खान की अपनी लोकप्रियता है, जिसके दम पर उनको अच्छा वोट मिला। पार्टी के तमाम बड़े नेताओं और अखिलश के करीबियों ने भी बहुत खराब प्रदर्शन किया। एक तरह से सबने सरेंडर कर दिया। पार्टी को इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा। अगर पार्टी और उसके बड़े नेताओं के हौसले इस तरह से पस्त होंगे तो आगे चुनाव लडऩा और मुश्किल होता जाएगा।
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