'Chattaan' is a mirror of the real life of the police Jeet Upendra

24.07.2023  –   “मध्यप्रदेश के एक कस्बे के बहादुर और सिस्टम के खिलाफ अपने परिवार और अपनी जान की परवाह न करते हुए लड़ने वाला जांबाज पुलिस अफसर रंजीत सिंह की कहानी है ‘चट्टान’….जब फ़िल्मकार सुदीप डी.मुखर्जी ने मुझे इस की कहानी सुनाई तो मैं उनकी फिल्म ‘चट्टान’ का यह किरदार करने के लिए बहुत ही उत्साहित हो गया। ऐसे भी मेरी रूचि वास्तविक किरदारों को जीने में ज्यादा रहता है इसलिये रंजीत सिंह का सहज और स्वाभाविक कैरेक्टराइज़ेशन, कहानी का टर्निंग पॉइंट और 1990 के दौर की खुशबू मुझे भा गई और मैं ‘चट्टान’ का पुलिस इंस्पेक्टर रंजीत सिंह बन गया।”

'Chattaan' is a mirror of the real life of the police Jeet Upendra

यह राज की बात प्रखर अभिनेता जीत उपेंद्र ने हाल ही में मुंबई के गोरेगाव स्पोर्ट्स क्लब में हुई एक विशेष अंतरंग बातचीत में साझा की। अभिनेता जीत उपेंद्र सिने अंचल के लिए किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। नारी हीरा जैसे सफल मीडिया किंग ने उन्हें 1980 में वीडियो के शुरूआती दौर में वीडियो फिल्म ‘डॉन-2’ और ‘स्केंडल’ में आदित्य पंचोली के साथ लांच किया था उसके बाद जीत ने नासिरुद्दीन शाह  के साथ ‘पनाह’ ,आमिर खान के साथ ‘अफसाना प्यार का’ आदि कई हिन्दी फ़िल्में की। उसके बाद जीत उपेंद्र ने हिंदी के साथ साथ मलयालम, गुजराती, राजस्थानी, भोजपुरी,कन्नड़,तामिल फिल्मों में कई मेमोरेबल रोल्स किये, जिनमें दिल दोस्ती ने परदेशी ढोलना, आतंक, शिखंडी (गुजराती) जांनी वॉकर (मलयालम),माँ का आँचल (भोजपुरी ),शिवा रंजनी (तमिल) दूध का क़र्ज़, चुनड़ी, खून रो टीको (राजस्थानी ) विशेष उल्लेखनीय रही है l

'Chattaan' is a mirror of the real life of the police Jeet Upendra

☆ जब भी कोई अभिनेता किसी भी रियल कैरेक्टर की प्ले करता है तो अपने कला पटुत्व को दिखाने या यूँ कह लीजिये अपने किरदार को आत्मसात करने के लिए अपने आसपास विचरते हुए किसी न किसी व्यक्ति विशेष के मैनेरिज्म को ज़रूर अपनाता है आपने इस दिशा में क्या किया है ?

मेरे इस सवाल के प्रतिउत्तर में जीत ने कहा—- “मैंने अपने कैरियर में  हिंदी, राजस्थानी, मालयालम,भोजपुरी, तामिल और गुजराती मिलाकर 150 से भी अधिक फ़िल्में की है पर किसी भी रोल में कभी किसी की कॉपी नहीं की और ना ही मेरा कॉपी करने में विश्वास है। जब 90 के दौर की वास्तविक कहानी विशेष पर आधारित फिल्म चट्टान में निडर बहादुर पुलिस अफसर रंजीत सिंह का रोल करने का अवसर आया तब भी मैंने अपने सहज और स्वाभाविक मौलिक रूप को ही प्राथमिकता दी और निर्देशक सुदीप डी.मुखर्जी भी यही चाहते थे कि मैं उनके विजन का पात्र लगू बिलकुल कस्बे का नेचरल पुलिस अफसर मैंने इसका पूरा ध्यान रखा  है। मेरा रोल हीरोईज़्म से कौसो मील दूर है।

☆ आपका  लम्बा कैरियर  रहा और फिल्मों में बहुत उतार चढाव का दौर आपने करीब  से देखा है कई कलाकारों से आप दोचार हुए होंगे आप अपना रोल मॉडल किसे मानते  हैं ?

-“यूँ  तो मैंने  कभी किसी को अपना  आइडियल नहीं  माना  फिर भी मेरे मन मस्तिष्क पर डेनी डेन्जोप्पा हमेशा हावी रहे उनका अभिनय और मैनली  मैनरिज़्म मुझे बहुत अच्छा लगता है उनकी खूबियां अनायास बहुत कुछ सिखा जाती हैं।”

☆ पिछले पांच सात सालों में फिल्मों ने नई करवट बदली है स्टोरी टेलिंग,म्यूजिक और टेक्नोलॉजी सभी पक्षों में बदलाव आये हैं ऐसी स्थिति में 90 के फ्लेवर की फिल्म करना आपके कैरियर के लिहाज़ से तर्कसंगत है ?

जब मैंने उनका ध्यान इस तरफ आकृष्ट कराया तो जीत उपेंद्र ने स्पष्ट शब्दों में कहा – “बदलाव तो प्रकृति की नियति है मगर कुछ दौरों में ऐसा कुछ खास हो जाता है कि हमारे लिए धरोहर बन जाते हैं .उनसे लगाव हो जाता है ऐसा ही फिल्मों का 90 का दौर l अभी फ़िल्म इंडस्ट्री और ऑडियंस उस दौर की वापसी चाहती है मेरी फिल्म ‘चट्टान’ उसी की पहल है ।”

☆ आपकी फिल्म 90 के दौर की पहल लगे इसके लिए किन किन पक्षों को इसमें शामिल किया गया है इसका खुलासा कीजिए ?

मेरे इस अहम सवाल को सुनकर जीत उपेंद्र गहरी सोच में डूब जाते हैं फिर कॉफ़ी की चुस्की के साथ बड़े उत्साह के साथ बोल पड़ते हैं ” 90 के परिवेश को हूबहू पेश करने क लिए सभी पात्रों के बॉडी लैंगुएज,।ड्रेसउप, डायलॉग्स, एक्शन सीक्वेंस और म्यूजिक सभी पक्षों को उसी स्तर पर रखा गया और तो और टेक्नोलॉजी भी उस समय की इस्तेमाल की गई है फिल्म पूरी तरह 90 के कलेवर की लगे उसके  लिये हर छोटी बड़ी बातों का ध्यान रखा गया है ।”

☆ बतौर निर्देशक सुदीप जी के साथ आपके कैसे अनुभव रहे शूटिंग के दौरान कभी किसी क्रिएटिव मसले पर कोई नोकझोंक हुई ? यह पूंछे जाने पर जीत उपेंद्र जोर से हंस पड़े फिर अपने उसी चिर परिचित अंदाज़ में बोले – ” सुदीप दा बहुत बढ़िया सुलझे हुए निर्देशक तो हैं ही पर इंसान भी कमाल के हैं। शूटिंग का माहौल बिलकुल घरेलू रहा। उनकी स्क्रिप्ट एप्रोच,शार्ट डिवीज़न, शॉट एंगल्स सब कुछ स्पष्ट रहा तो फिर क्रिएटिव टेंशन का सवाल ही नहीं उठता। सबसे बड़ी बात है वो फिल्म के साथ जीते हैं इसलिए कुछ भी उनके आँखों से ओझल नहीं हो हो पाता  ”

☆ चट्टान के म्यूजिक को लेकर यूनिट के अतिरिक्त फिल्म अंचलों में चर्चा हो रही है क्या आपको लगता है इसमें 90 का म्यूजिक संजोया गया है ?

यह सुनते ही जीत  कुमार सानू का गया एक गीत गुनगुना उठे और बोले -“सुदीप जी को संगीत की गहरी समझ है एक एक गाना उम्दा बना है। लिरिक्स, कम्पोज़िशन्स, सिंगर्स आउट पुट्स सभी फिल्म की सिंचुएशन्स के अनुरूप है। ‘चट्टान’ पूर्णत 90 के दशक के फ्लेवर युक्त  म्यूजिकल फिल्म साबित होगी।”

प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

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