पटना 25 June (एजेंसी): पटना में 20 राजनीतिक दलों की बैठक के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ गया है। इसके अलावा, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव एक बार फिर राजनीति में जोरदार वापसी कर रहे हैं। इन दोनों नेताओं ने जिस तरह से बैठक में सूत्रधार की भूमिका निभाई, वह बिहार और देश में भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इन दोनों नेताओं का राज्य की जनता से जुड़ने का अनोखा अंदाज है। यह 2015 के विधानसभा चुनाव में देखा गया था, जब उन्होंने बिहार में नरेंद्र मोदी के ‘विजय रथ’ को रोक दिया था।
2024 में स्थिति भाजपा के लिए और भी खराब है, क्योंकि सत्ता विरोधी लहर भी चरम पर है। केंद्र की भाजपा सरकार को 2014 में किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहने के लिए काफी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी उन्हें भाजपा के लिए एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी बना देगी।
नीतीश कुमार ही थे, जिन्होंने अपने बुलावे पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को पटना आने का निमंत्रण देने में अहम भूमिका निभाई थी। इससे यह भी साबित हो गया कि विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच नीतीश कुमार की स्वीकार्यता सबसे ज्यादा है। उनकी छवि साफ-सुथरी है और उनके खिलाफ कोई कानूनी या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। उन्हें इन पार्टियों का संयोजक भी घोषित किया गया, जिसका मतलब है कि वह लोकसभा चुनाव के लिए दो या दो से अधिक पार्टियों के बीच सीट बंटवारे पर बातचीत के दौरान मध्यस्थ की भूमिका निभाएंगे। पटना की बैठक की शानदार सफलता के बाद जद-यू विधायक शालिनी मिश्रा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट अपलोड किया, जिसमें नीतीश कुमार की तस्वीर और ‘देश मांगे नीतीश’ का नारा था।
बिहार सरकार में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने कहा, हर जन आंदोलन के पीछे एक मजबूत व्यक्ति का हाथ होता है। बिहार अतीत में कई जन आंदोलनों का गवाह रहा है, जिसने देश में सत्तारूढ़ दलों को हिलाकर रख दिया था। चौधरी ने कहा, लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है और यह नीतीश कुमार के प्रयासों से संभव है। जद-यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा, जेपी नड्डा और अमित शाह के पास हमसे कहने के लिए कुछ नहीं बचा है। इसलिए, वे कांग्रेस और शिवसेना के एक ही मंच पर आने की बात करते हैं जहां हम हैं। यह एक गैर-जिम्मेदाराना कदम है।
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