नईदिल्ली,23 मार्च (आरएनएस)। भगत सिंह को शहीद दिवस के मौके पर कांग्रेस ने उन्हें याद कहा उन्होंने आज के भारत की ऐसी कल्पना नहीं की थी कि अंधभक्ति और धार्मिक उन्माद ही सर्वोपरि हो।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें याद कर ट्वीट कर कहा, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु वो विचार हैं, जो सदा अमर रहेंगे। जब-जब अन्याय के खिलाफ कोई आवाज उठेगी, उस आवाज में इन शहीदों का अक्स होगा। जिस दिल में देश के लिए मर-मिटने का जज्बा होगा, उस दिल में इन तीन वीरों का नाम होगा।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कहा, शहीद भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की शहादत एक ऐसी व्यवस्था के सपने के लिए थी। जो बंटवारे नहीं, बराबरी पर आधारित हो
जिसमें सत्ता के अहंकार को नहीं, नागरिकों के अधिकार को तरजीह मिले व सब मिलजुलकर देश के भविष्य का निर्माण करें आइए साथ मिलकर इन विचारों को मजबूत करें।
वहीं कांग्रेस महासचिव और कर्नाटक प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने अपने ब्लॉग में लिखा कि शहीद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को समर्पित –
भगत सिंह ने अपने अंतिम संदेश में कहा था, भारत में संघर्ष तब तक चलता रहेगा जब तक मु_ी भर शोषक अपने लाभ के लिए आम जनता के श्रम का शोषण करते रहेंगे। इसका कोई खास महत्व नहीं कि शोषक अंग्रेज पूंजीपति हैं या अंग्रेज और भारतीयों का गठबंधन है या पूरी तरह भारतीय हैं।
भगतसिंह एक विचार था जो शोषण, भेदभाव तथा मानसिक गुलामी के खिलाफ था। उनके जहन में एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना का स्वप्न था जहां एक व्यक्ति दुसरे का शोषण न कर पाए। जहां वैचारिक स्वतंत्रता हो तथा मानसिक गुलामी का कोई स्थान न हो। इंसान को इंसान समझा जाए। भेदभाव का कोई स्थान न हो। जहां इंसान को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी हो।
उन्होंने ब्लॉग में लिखा, यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमने आज भगतसिंह को मात्र एक ब्रांड बना दिया है तथा उनकी सोच को नकार दिया है। अगर ऐसा नहीं होता तो वैचारिक भिन्नता देशद्रोह नहीं होती, किसानों-मजदूरों को पूंजीपतियों के हवाले करने की साजिश नहीं रची जाती। धार्मिक विचार चुनाव का मुद्दा न होता। मात्र जाति जीत का आधार न होती। नेता चुनते हुए हम उसकी नीति व काबलियत देखते, न कि उसकी जाति और धर्म। अपनी जात बता लोगों की वोट माँगने की किसी नेता कीं हिम्मत न होती, न ही पार्टी की।
भगत सिंह के भारत में यह कल्पना नहीं की जा सकती कि महँगाई, बेरोजगारी, शोषण, असमानता, भेदभाव चाहे कितनी भी बढ़े; असुरक्षा और नफरत के काले बादल चाहे कितने भी गहरा जाएँ; संसद और संस्थाएँ चाहें पंगु हो जाएँ; सविंधान चाहे धीरे धीरे एक जीवंत वस्तु की बजाय एक किताब बन जाए; अंधभक्ति और धार्मिक उन्माद ही सर्वोपरि हो।
यह बड़े अफसोस का विषय है कि जिस भगतसिंह ने भेदभाव व धर्म-जात के बँटवारे के खिलाफ एक क्रांति का आह्वान किया था, उसी भेदभाव आधारित व्यवस्था को मजबूत करने वाले नेता अपने को भगतसिंह की विचारधारा का असली वारिस घोषित करके जनता को बरगला रहे हैं।