Fours and sixes rain instead of bullets in the Chambal Valley

इटावा 13 अपै्रल (एजेंसी)। कुख्यात दस्यु गिरोहों के कारण दशकों तक आतंक का पर्याय बनी चंबल घाटी इन दिनो न सिर्फ नैसर्गिक सुदंरता के चलते पर्यटकों को आकर्षित कर रही है बल्कि चंबल की वादियों में बसे गांव कस्बों में क्रिकेट प्रेमी युवा खिलाड़ी अपने हुनर की नुमाइश कर रहे हैं।

चंबल विद्यापीठ के सौजन्य से आयोजित ‘चंबल क्रिकेट लीग सीजन-2Ó का आयोजन चंबल आश्रम हुकुमपुरा ग्राउंड पर किया जा रहा है। एक अप्रैल से शुरू हुए इस आयोजन का समापन संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के निर्वाण दिवस 14 अप्रैल को होगा ।

दशकों तक चंबल घाटी में कुख्यात और खूंखार डाकुओं का आतंक रहा है। इस कारण चंबल घाटी के लोगों के मन में कहीं ना कहीं डाकुओं के प्रति लगाव या समर्पण बना रहा है और इसी के चलते चंबल के कई युवाओं ने अपने हाथों में बंदूक थामना मुनासिब समझा

इसके नतीजे में ऐसा देखा और समझा गया है कि जब युवाओं ने बंदूक थामी तो उन्हें पुलिस की कार्यवाहियो की जद में आना पड़ा है और जिसके कारण सैकड़ों युवाओ का जीवन तबाह होने के अलावा उनके परिवारों वालों को भी सालो साल अदालती प्रकिया से जूझते हुए परेशानी झेलनी पड़ी है।

जैसे जैसे पुलिस अभियानों के क्रम में डाकुओं का खात्मा हुआ तो चंबल में बदलाव की बयार भी देखी जाने लगी है। इस बदली हुई बयार के बीच युवाओं ने डाकूओ के आतंक से ना केवल निजात पाई बल्कि अपने आप को पूरी तरह से नए मिजाज में स्थापित करना मुनासिब समझा।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि चंबल घाटी के युवा अब क्रिकेट की ओर खासी तादाद में आकर्षित हो रहे हैं और इसी वजह से युवा जगह-जगह जंगल में क्रिकेट की पिचों पर नजर आ रहे हैं। चंबल के युवाओं को क्रिकेट खेलते हुए देखकर के गांव के बुजुर्ग महिलाएं भी उनका उत्साहवर्धन करती हुई देखी जा रही है।

चंबल क्रिकेट लीग के आयोजन को लेकर युवाओं में इतना जोश था कि उन्होंने एक जुट हो खुद ही बीहड़ में रास्ता बनाया और मैदान की विधिवत सफाई के बाद पिच भी बना ली। चंबल क्रिकेट लीग-2 में मध्य प्रदेश के भिंड, उत्तर प्रदेश के औरैया, इटावा, जालौन जिलों की टीमें भाग ले रही है।

चंबल क्रिकेट लीग को लेकर खेल प्रेमियों में खासा उत्साह नजर आ रहा है। लीग के आयोजन के मुख्य सूत्रधार क्रांतिकारी लेखक डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि इस लीग से घाटी की सकारात्मक पहचान बनी है। इस बार यह आयोजन जन सहयोग और साथियों के श्रम सहयोग से अधिक भव्यता के साथ शुरू हो गया है।

चंबल विद्यापीठ के संस्थापक डॉ. राना ने कहा कि इस लीग से चंबल घाटी की सकारात्मक छवि बन रही है। औरैया, इटावा, जालौन और भिंड जिला मुख्यालय से समान दूरी पर हुकुमपुरा स्थित चंबल आश्रम सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधि का केंद्र बन रहा है।

बिलौड पंचायत का हुकुमपुरा गाँव कभी कुख्यात दस्यु सरगना सलीम गुर्जर उर्फ पहलवान की वजह से सुर्खियों में रहा है। अब बदलाव की नई बयार बह रही है। इस बार भी यह आयोजन जन सहयोग और साथियों के श्रम सहयोग से ऐतिहासिक होगा।

पुराने दिनों का याद कर अकबर सिंह कुशवाहा कहते हैं कि एक तरफ डकैतों का खौफ रहता था। तो दूसरी तरफ पुलिसिया जुल्म की इंतेहा। रात में पुलिस आती तो गाँव के गाँव खाली हो जाते। क्या दहशत के दिन थे।

सड़कें नहीं थी। आवागमन के साधन नही थे। खेती भी बारिश की कृपा पर होती थी। कई तरह से हम लोग पिस रहे थे। लेकिन अब चंबल का बीहड़ बहुत बदल चुका है। यह भी विश्व के साथ कदमताल करना चाहता है।

राकेश कुमार बताते हैं कि बुनियादी सुविधाओ से कटी हुई पंचनद घाटी में शिक्षा के अवसर नहीं थे। रोजी रोटी का संकट था। इलाज की सुविधाएं नही थी। बिजली पानी नहीं था। लिहाजा यहां के वासियों ने बड़े पैमाने पर पलायन का दंश झेला है। लेकिन अब यहां का समय बदल रहा है। करवट लेते अंचल में कई संभावनाएँ बरकरार हैं।

इटावा के एसएसपी संजय कुमार का कहना है कि चंबल में डाकुओं के खिलाफ चलाए गए दस्यु उन्मूलन अभियानों का असर व्यापक पैमाने पर नजर आ रहा है

तभी ना तो कोई डाकू आतंक मचाने के लिए है और ना ही किसी भी डाकू की दहशत अब लोगों के दिलों दिमाग पर दिखाई दे रही है। जब चंबल पूरी तरीके से शांत हो गई है तो जाहिर है कि अब लोगों के मन में जो कुछ भी आएगा वह कर सकते हैं

अगर चंबल के युवा क्रिकेट खेल की ओर जागरूक हो रहे हैं तो उन्हें कोई रोक नहीं सकता है।

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