नईदिल्ली,04 मार्च (एजेंसी)। भारत की अर्थव्यवस्था में चीन की अर्थव्यवस्था की तुलना में लगातार दूसरे वर्ष तेज गति से वृद्धि हो रही है। इस वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की 7 फीसदी वृद्धि दर होने का अनुमान जताया गया है जबकि चीन की अर्थव्यवस्था के महज 3 फीसदी वृद्धि हासिल करने का अनुमान है।
इसी प्रकार गत वर्ष भारत की 9.1 फीसदी की वृद्धि दर चीन की 8.1 फीसदी की वृद्धि दर से अधिक थी। इससे भी पहले की बात करें तो कोविड महामारी के आगमन के किसी भी संकेत से पांच वर्ष पहले यानी 2014-18 के दौरान भारत की औसत वृद्धि दर 7.4 फीसदी थी जबकि चीन की वृद्धि दर केवल 7 फीसदी थी।
वहीं से भारत के सबसे तेज गति से विकसित होती बड़ी अर्थव्यवस्था की बात शुरू हुई। इसके साथ ही चीन की कुछ दशकों की तेज विकास यात्रा पर पहली बार विराम लगा।
परंतु जैसा कि इन आंकड़ों के साथ अक्सर होता है, अगर आप अध्ययन के लिए चयनित समय में बदलाव करें तो यह कहानी बदल सकती है। पिछले पैराग्राफ में जो तस्वीर पेश की गई है उसमें वर्ष 2019 और 2020 नदारद हैं।
इन दोनों वर्षों में चीन का प्रदर्शन भारत से बेहतर रहा।
दोनों सालों के दौरान चीन का प्रदर्शन भारत से इतना अधिक बेहतर रहा कि दीर्घावधि के वृद्धि के औसत में भी वह भारत से बेहतर हो गया। 2019 में चीन ने 6 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल की जबकि भारत की वृद्धि दर 3.9 फीसदी रही।
कोविड के पहले वर्ष में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 5.8 फीसदी घटा और वृद्धि दर में 2.2 फीसदी की गिरावट आई। 2014 से 2022 तक की नौ वर्ष की अवधि को मिलाकर देखें तो चीन की औसत वृद्धि 6 फीसदी से अधिक रही जबकि भारत बमुश्किल 5.7 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल कर सका।
अगर कोविड के पहले के वर्ष से लेकर बीते चार वर्षों पर ही नजर डाली जाए चीन ने भारत को पीछे छोड़ दिया।
दुनिया की सबसे तेज गति से विकसित होती बड़ी अर्थव्यवस्था का आकलन करने की कोशिश में परिणाम एक तरह से अनिश्चित नजर आते हैं। ऐसे में भविष्य के संभावित परिदृश्य को लेकर सतर्क रहना ही चाहिए।
अभी हाल तक अधिकांश पूर्वानुमान लगाने वाले कह रहे थे कि 2023-24 में भारत का प्रदर्शन चीन की तुलना में काफी बेहतर रहेगा।
उदाहरण के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा कि चीन की वृद्धि दर 4.4 फीसदी जबकि भारत की वृद्धि दर 6.1 फीसदी रहेगी। परंतु हालिया सप्ताहों में इस परिदृश्य में बदलाव आया है क्योंकि चीन में कुछ नाटकीय बदलाव आए हैं। उसने कोविड शून्य की नीति त्याग दी है और अब पहले जैसी बंदी और उथलपुथल के हालात नहीं हैं।
इसके परिणामस्वरूप एक के बाद एक अनुमान जताने वालों ने 2023 में चीन की संभावित वृद्धि के आंकड़ों में सुधार किया। अधिकांश ने चीन की संभावित वृद्धि को 5.5 फीसदी के आसपास बताया है जबकि अधिक आशावादी लोगों ने वृद्धि दर को इससे कुछ अधिक बताया है।
यह दर 6 से 6.8 फीसदी की उस संभावित वृद्धि दर से कम है जिसे एक माह पहले भारत की आर्थिक समीक्षा में उल्लिखित किया गया है। मध्यम स्तर पर इसे 6.5 फीसदी बताया गया है। सवाल यह है कि क्या अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर केवल 4.4 फीसदी रह जाने के बाद क्या भारत के आंकड़े और खराब होंगे। संभव है दोनों देश इस होड़ में बराबरी पर रहें।
सरकार की दलील है कि ताजा तिमाही के आंकड़े इसलिए कमजोर हैं क्योंकि पिछले तीन वर्षों के वृद्धि के आंकड़ों में संशोधन करके उन्हें
सुधारा गया है। शायद, लेकिन जनवरी-मार्च तिमाही के लिए अनुमान 5.1 फीसदी से अधिक नहीं हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने भी स्पष्टता के साथ स्वीकार किया है कि फिलहाल गिरावट की आशंका अधिक है।
संशोधित परिदृश्य की बात करें तो फरवरी का वस्तु एवं सेवा कर संग्रह भी उसे दर्शाता है। 1.49 लाख करोड़ रुपये के साथ यह दर्शाता है कि हाल के महीनों में बहुत कम या न के बराबर वृद्धि हुई है।
दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसी वृद्धि के कोई संकेत नहीं हैं जो अर्थव्यवस्था को 5 फीसदी से 6 फीसदी या उससे अधिक के दायरे में ले जाए। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अल्पावधि का परिदृश्य चीन से बहुत अलग नहीं दिख रहा।
यह दलील दी जा सकती है कि भारत चीन की तरह मुश्किल में नहीं है। यहां न तो आबादी घट रही है और न ही अचल संपत्ति, विनिर्माण या वित्त की कोई समस्या है। परंतु भारत के व्यापार और राजकोष में असंतुलन है।
हम सरकार के पूंजीगत व्यय पर बहुत अधिक निर्भर हैं। संदेश एकदम साफ है: यदि भारत और चीन के बीच वृद्धि को लेकर होड़ है तो अब तक दोनों में से कोई विजेता नहीं है।
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